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43 साल बाद भी विकास की बाट जोह रहा गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण, तमाम सरकारी वादे निकले झूठे - सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी

इस झील की नींव 1976 में बिहार सरकार के तत्कालीन पर्यटन मंत्री उमा पांडे ने रखी थी और उस वक्त सरकार ने संकल्प जताया था कि झील से जहां एक ओर पक्षी अभ्यारण बनेगा. वहीं इलाके में विकास की बयार बहेगी. लेकिन 43 साल गुजरने के बाद भी यह मनोरम झील को पक्षी विहार के रूप में विकसित नहीं किया जा सका है.

बदहाली पर आंसू बहा रहा कटिबार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण
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Published : Aug 18, 2019, 4:31 PM IST

कटिहार: जिले के मनिहारी अनुमंडल स्थित गोगा झील पक्षी अभ्यारण्य अपनी सुंदरता के कारण प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. हर वर्ष जाड़े के मौसम में विदेशी पक्षी यहां प्रवास के लिए पहुंचती है. लेकिन वर्तमान में यह झील सरकारी उपेक्षाओं का शिकार हो रहा है. जिस कारण यह अपने अस्तित्व को बचाने की राह देख रही हैं.

बदहाली पर आंसू बहा रहा कटिहार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण्य

1976 में पक्षी अभ्यारण्य बनाने की हुई थी घोषणा
गोगाबिल पक्षी अभ्यारण्य का काफी हिस्सा जिले के अमदाबाद प्रखंड क्षेत्र में पड़ता है. यह झील 215 एकड़ में फैला हुआ है. इसमें 75 एकड़ सरकारी जमीन है तथा 140 एकड़ रैयती भूमि है. यह झील एक ओर गंगा तो दूसरी ओर महानंदा से घिरी है. जिस कारण इस झील का प्राकृतिक तापमान प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. झील में 90 से अधिक प्रजाति के पक्षियों की आवाजाही दर्ज की गयी है. जिनमें मुख्य रुप से साइबेरियन पक्षी के अलावा 30 प्रवासी पक्षी हैं. इसमें चार पक्षी विलुप्त श्रेणी में आते हैं, जिनमें गरुड़ प्रजाति के पक्षी भी शामिल हैं. वहीं, सरकार ने इस झील के महत्व को देखते हुए साल 1976 में प्रवासी पक्षी अभ्यारण्य बनाने की घोषणा की थी. लेकिन वर्तमान में यहां पक्षी अभ्यारण्य के नाम पर उखड़ा हुआ माइल स्टोन इसकी कहानी बयां कर रहा है.

कटिहार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण
कटिहार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण्य

पर्यटक होते है सरकारी ठगी का शिकार
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि किताबों में इस झील की गाथा पढ़कर पर्यटक घूमने आते हैं. लेकिन उनको यहां झील के बजाय परिसर में फैली गंदगी देखने को मिलती है. सैलानियों को कुछ दीदार नहीं होता. गोगाबिल झील के नाम पर दर्जनों सैलानी सरकारी ठगी का शिकार हो जाते हैं और वे निराश होकर लौट जाते हैं. स्थानीय निवासी नजीबुर हक और राम कुमार कुंवर बताते हैं कि 2 महीने पहले लगभग 250 विदेशी सैलानियों का एक दल यहां पहुंचा था, लेकिन झील की दयनीय हालत देखकर वे बैरंग वापस लौट गए.

स्थानीय ग्रामीण
स्थानीय ग्रामीण

विकास को लेकर सरकार प्रतिबद्ध- सांसद
वहीं, इस मामले पर जिले के सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी का कहना है कि बिहार सरकार इस झील के विकास को लेकर प्रतिबद्ध है. झील के विकास के लिए सूबे का पहला स्वशासी कमेटी भी बनाई गई है. कमेटी झील के विकास को नया मुकाम देगी. उन्होंने कहा कि झील के विकास के लिए बिहार के पर्यटन मंत्री से बात किया जाएगा और लोकसभा के पटल इस मुद्दे पर आवाज बुलंद किया जाएगा.

सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी
सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी

गौरतलब है की इस झील की नींव 1976 में बिहार सरकार के तत्कालीन पर्यटन मंत्री उमा पांडे ने रखी थी और उस वक्त सरकार ने संकल्प जताया था कि झील से जहां एक ओर पक्षी अभ्यारण्य बनेगा. वहीं इलाके में विकास की बयार बहेगी. लेकिन 43 साल गुजरने के बाद भी यह मनोरम झील को पक्षी विहार के रूप में विकसित नहीं किया जा सका है और आज यह यह अपने अस्तित्व को बचाने की राह देख रही है.

उखड़ा हुआ माइल स्टोन
उखड़ा हुआ माइल स्टोन

कटिहार: जिले के मनिहारी अनुमंडल स्थित गोगा झील पक्षी अभ्यारण्य अपनी सुंदरता के कारण प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. हर वर्ष जाड़े के मौसम में विदेशी पक्षी यहां प्रवास के लिए पहुंचती है. लेकिन वर्तमान में यह झील सरकारी उपेक्षाओं का शिकार हो रहा है. जिस कारण यह अपने अस्तित्व को बचाने की राह देख रही हैं.

बदहाली पर आंसू बहा रहा कटिहार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण्य

1976 में पक्षी अभ्यारण्य बनाने की हुई थी घोषणा
गोगाबिल पक्षी अभ्यारण्य का काफी हिस्सा जिले के अमदाबाद प्रखंड क्षेत्र में पड़ता है. यह झील 215 एकड़ में फैला हुआ है. इसमें 75 एकड़ सरकारी जमीन है तथा 140 एकड़ रैयती भूमि है. यह झील एक ओर गंगा तो दूसरी ओर महानंदा से घिरी है. जिस कारण इस झील का प्राकृतिक तापमान प्रवासी पक्षियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. झील में 90 से अधिक प्रजाति के पक्षियों की आवाजाही दर्ज की गयी है. जिनमें मुख्य रुप से साइबेरियन पक्षी के अलावा 30 प्रवासी पक्षी हैं. इसमें चार पक्षी विलुप्त श्रेणी में आते हैं, जिनमें गरुड़ प्रजाति के पक्षी भी शामिल हैं. वहीं, सरकार ने इस झील के महत्व को देखते हुए साल 1976 में प्रवासी पक्षी अभ्यारण्य बनाने की घोषणा की थी. लेकिन वर्तमान में यहां पक्षी अभ्यारण्य के नाम पर उखड़ा हुआ माइल स्टोन इसकी कहानी बयां कर रहा है.

कटिहार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण
कटिहार गोगाबिल झील पक्षी अभ्यारण्य

पर्यटक होते है सरकारी ठगी का शिकार
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि किताबों में इस झील की गाथा पढ़कर पर्यटक घूमने आते हैं. लेकिन उनको यहां झील के बजाय परिसर में फैली गंदगी देखने को मिलती है. सैलानियों को कुछ दीदार नहीं होता. गोगाबिल झील के नाम पर दर्जनों सैलानी सरकारी ठगी का शिकार हो जाते हैं और वे निराश होकर लौट जाते हैं. स्थानीय निवासी नजीबुर हक और राम कुमार कुंवर बताते हैं कि 2 महीने पहले लगभग 250 विदेशी सैलानियों का एक दल यहां पहुंचा था, लेकिन झील की दयनीय हालत देखकर वे बैरंग वापस लौट गए.

स्थानीय ग्रामीण
स्थानीय ग्रामीण

विकास को लेकर सरकार प्रतिबद्ध- सांसद
वहीं, इस मामले पर जिले के सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी का कहना है कि बिहार सरकार इस झील के विकास को लेकर प्रतिबद्ध है. झील के विकास के लिए सूबे का पहला स्वशासी कमेटी भी बनाई गई है. कमेटी झील के विकास को नया मुकाम देगी. उन्होंने कहा कि झील के विकास के लिए बिहार के पर्यटन मंत्री से बात किया जाएगा और लोकसभा के पटल इस मुद्दे पर आवाज बुलंद किया जाएगा.

सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी
सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी

गौरतलब है की इस झील की नींव 1976 में बिहार सरकार के तत्कालीन पर्यटन मंत्री उमा पांडे ने रखी थी और उस वक्त सरकार ने संकल्प जताया था कि झील से जहां एक ओर पक्षी अभ्यारण्य बनेगा. वहीं इलाके में विकास की बयार बहेगी. लेकिन 43 साल गुजरने के बाद भी यह मनोरम झील को पक्षी विहार के रूप में विकसित नहीं किया जा सका है और आज यह यह अपने अस्तित्व को बचाने की राह देख रही है.

उखड़ा हुआ माइल स्टोन
उखड़ा हुआ माइल स्टोन
Intro:कटिहार

सरकारी अपेक्षाओं के कारण दम तोड़ रही है कटिहार की गोगा बिल झील। नहीं बना पाया आज तक पर्यटन के क्षेत्र में अपना मुकाम। ग्रामीणों की माने तो किताबों में इसकी गाथा पढ़कर लोग गोगाबिल झील घूमने आते हैं और सरकारी ठगी का शिकार बनते हैं। स्थानीय सांसद विकास की बातें कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं।


Body:जहां तक जाती है कैमरे की नजर पानी हीं पानी दिखता है। दरअसल यह जिले के मनिहारी का वह इलाका है जिसे बिहार सरकार ने 1976 में गोगा बिल झील के रूप में विकसित करने की घोषणा की थी। मकसद था गोगा बिल झील में विदेशी पक्षियों का अभ्यारण बनाना। ठंड के समय में जब यह प्रवासी पक्षी साइबेरिया तथा अन्य दूसरे देशों से चारा की खोज में इस इलाके में आते हैं तो कुछ दिन यहां प्रवास करते हैं। इस दौरान वह प्रजनन भी करते हैं। सरकार ने इसी विदेशी मेहमानों के लिए पक्षी अभ्यारण बनाने की घोषणा की थी लेकिन बदकिस्मती देखिए यहां पक्षी अभ्यारण के नाम पर गंदा तालाब है जिसकी इलाके में आए सैलाब ने सूरत और सीरत दोनों बर्बाद कर डाली है। गोगाबिल झील के नाम पर यहां केवल पहचान के लिए एक माइल स्टोन उखड़ा पड़ा है जिसे देखकर लोग समझते हैं कि वही यह गोगाबिल झील है जिसे बिहार सरकार ने पक्षी अभ्यारण का दर्जा दे रखा है।

स्थानीय ग्रामीण राम कुमार कुंवर बताते हैं कि गोगा बिल झील के नाम पर सैकड़ों लोग आज तक ठगे गए हैं। किताबों में पढ़ कर पर्यटन के नाम पर यहां घूमने आए लोगों को जब यहां के जमीनी हकीकत से रूबरू होते हैं तो सरकार और बदइंतेजामी को कोसते नहीं थकते। स्थानीय नजीबुर हक की मानें तो 2 महीने पहले लगभग 250 विदेशी सैलानियों का एक दल यहां पहुंचा था लेकिन हालात देखकर बैरण वापस चला गया। लोग बताते हैं जब सरकार ने इसे पक्षी अभ्यारण के घोषणा की थी तब उन लोगों के आशाओं को पंख लग गए थे कि इलाके का विकास होगा लेकिन आज हालात यह है कि रोज गोगाबिल झील के नाम पर दर्जनों सैलानी ठगे जाते हैं निराश होकर लौट जाते हैं कुछ दीदार नहीं होता।


Conclusion:कटिहार सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी ने बताया गोगा बिल झील के विकास को लेकर बिहार सरकार प्रतिबद्ध है और यहां सूबे का पहला स्वशासी कमेटी भी बनाई गई है जो गोगा बिल झील के विकास को मुकाम देगी और अगर जरूरत पड़ी तो इसके विकास के लिए बिहार के पर्यटन मंत्री से बात करने से लेकर लोकसभा के पटल तक आवाज बुलंद करेंगे।

1976 में बिहार सरकार के तत्कालीन पर्यटन मंत्री उमा पांडे ने कटिहार के गोगा बिल झील का बुनियाद रखी थी और तब सरकार ने संकल्प जताया था कि गोगा बिल झील से जहां पक्षी अभ्यारण बनेगा वहीं इलाके में विकास की बयार बहेगी। लेकिन 43 साल गुजरने के बाद भी यह गोगाबिल झील एक गंदे तालाब के रूप में ही दिखता है जो बताता है सरकार के इरादे विकास के मामले में नेक नहीं है और केवल डकोरशंखी वादों के जरिए ही सरकार तरक्की की उड़ानें भर रही है। होना तो यह चाहिए था 43 साल के वक्त में जो काफी लंबा वक्त होता है गोगा बिल झील को पर्यटन के रूप में एक विकसित झील बना दिया जाता तो सरकार को यहां राजस्व की प्राप्ति होती है वहीं विदेशी मेहमान भी अपने बोली में सरकार के गुण गाते।
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