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बापू की स्मृति में बना था स्कूल, एक ही कमरे में होती है कक्षा 1 से लेकर 5 तक की पढ़ाई

शिक्षा पदाधिकारी ने सफाई देते हुए कहा कि जिस जगह पर विद्यालय स्थापित है, वहां जगह की कमी है. लेकिन आने वाले समय में विद्यालय को स्थानांतरित करने पर विभाग विचार कर रहा है.

हरिजन पाठशाला
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Published : Aug 30, 2019, 2:13 PM IST

कटिहार: सरकार के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दावों की आए दिन पोल खुल रही है. जिले के हरिजन पाठशाला में वर्ग 1 से 5 तक के बच्चों की पढ़ाई एक ही कमरे में चलती है. साथ ही विद्यालय का कार्यालय और एमडीएम का भोजन भी उसी एक कमरे में चल रहा है. जबकि यह स्कूल किसी ग्रामीण इलाके का नहीं है, बल्कि शहर के बीचों-बीच स्थित है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कटिहार आए थे. तो सरकार ने बापू की स्मृति में मासूमों के लिए यह स्कूल खोला था, लेकिन इस विद्यालय के विकास पर अधिकारी पल्ला झाड़ रहे हैं.

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विद्यालय के मुख्य गेट पर कपड़ो की की

राष्ट्रपिता की याद में स्थापना
कटिहार रेलवे स्टेशन से लगभग 100 मीटर की दूरी पर यह विद्यालय बसा है. बताया जा रहा है कि 1934 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी असम दौरे पर थे. तो कुछ देर के लिए कटिहार आए थे. तभी तत्कालीन सरकार ने उक्त स्थल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद में इस विद्यालय की स्थापना की थी.

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जर्जर विद्यालय

विद्यालय बना गोदाम
आजादी के पहले स्थापित हुए इस स्कूल को आज करीब 85 साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही से यह स्कूल गोदाम में तब्दील हो गया है. एक ही कमरे में बच्चे, शिक्षक, एमडीएम और विद्यालय का दफ्तर है. साथ ही कमरे में विद्यालय के अन्य सामान भी पड़े हुए है. वहीं, विद्यालय की प्राचार्या सवालों के कोरम को ही पूरा करने में लगी रहती हैं, लेकिन विद्यालय का विकास कैसे हो इस पर रत्तीभर भी ध्यान नहीं देती है.

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विद्यालय में सिर्फ दो अध्यापक

विकास के नाम पर करते हैं गोल-गोल बातें
विद्यालय के जिला शिक्षा पदाधिकारी देवविंद सिंह ने स्कूल का नाम हरिजन पाठशाला से बदलकर अनुसूचित जनजाति पाठशाला कर दिया है. अधिकारी सिर्फ विकास के नाम पर गोल-गोल बातें करते है. शिक्षा पदाधिकारी ने सफाई देते हुए कहा कि जिस जगह पर विद्यालय स्थापित है, वहां जगह की कमी है. लेकिन आने वाले समय में विद्यालय को स्थानांतरित करने पर विभाग विचार कर रहा है.

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छात्र

शोरगुल की आती है आवाजें
वर्तमान में इस पाठशाला में 40 बच्चे और 2 शिक्षक है. लेकिन बैठने की दिक्कतों के वजह से यहां अधिकांश बच्चे आते ही नहीं और जो आते भी है, वो दिक्कतों की वजह से पढ़ ही नहीं पाते है. और तो और विद्यालय के बाहर से हमेशा जेनरेटर की आवाजें आती रहती है. विद्यालय के मुख्य गेट पर कपड़ों का दुकान लगा रहता है.

विद्यालय में एक ही कमरे में चल रहा वर्ग 1 से 5 तक की पढ़ाई

अधिकारियों की लापरवाही
बिहार में सर्व शिक्षा अभियान के तहत सभी विद्यालयों को अपनी जमीन और मकान मिल चुके हैं. लेकिन भारत की आजादी से पहले स्थापित हुआ, हरिजन पाठशाला अधिकारियों की लापरवाही की वजह से जर्जर पड़ा हुआ है. एक कमरे के स्कूल में ही शिक्षक अपनी नौकरी कर रहे हैं. साथ ही बच्चे भी किसी तरह से आधी-अधूरी पढ़ाई कर रहे हैं. ऐसे में अगर सरकार इस विद्यालय पर ध्यान नहीं देगी, तो बच्चों का भविष्य क्या होगा.

कटिहार: सरकार के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दावों की आए दिन पोल खुल रही है. जिले के हरिजन पाठशाला में वर्ग 1 से 5 तक के बच्चों की पढ़ाई एक ही कमरे में चलती है. साथ ही विद्यालय का कार्यालय और एमडीएम का भोजन भी उसी एक कमरे में चल रहा है. जबकि यह स्कूल किसी ग्रामीण इलाके का नहीं है, बल्कि शहर के बीचों-बीच स्थित है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कटिहार आए थे. तो सरकार ने बापू की स्मृति में मासूमों के लिए यह स्कूल खोला था, लेकिन इस विद्यालय के विकास पर अधिकारी पल्ला झाड़ रहे हैं.

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विद्यालय के मुख्य गेट पर कपड़ो की की

राष्ट्रपिता की याद में स्थापना
कटिहार रेलवे स्टेशन से लगभग 100 मीटर की दूरी पर यह विद्यालय बसा है. बताया जा रहा है कि 1934 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी असम दौरे पर थे. तो कुछ देर के लिए कटिहार आए थे. तभी तत्कालीन सरकार ने उक्त स्थल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद में इस विद्यालय की स्थापना की थी.

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जर्जर विद्यालय

विद्यालय बना गोदाम
आजादी के पहले स्थापित हुए इस स्कूल को आज करीब 85 साल पूरे हो चुके हैं. लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही से यह स्कूल गोदाम में तब्दील हो गया है. एक ही कमरे में बच्चे, शिक्षक, एमडीएम और विद्यालय का दफ्तर है. साथ ही कमरे में विद्यालय के अन्य सामान भी पड़े हुए है. वहीं, विद्यालय की प्राचार्या सवालों के कोरम को ही पूरा करने में लगी रहती हैं, लेकिन विद्यालय का विकास कैसे हो इस पर रत्तीभर भी ध्यान नहीं देती है.

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विद्यालय में सिर्फ दो अध्यापक

विकास के नाम पर करते हैं गोल-गोल बातें
विद्यालय के जिला शिक्षा पदाधिकारी देवविंद सिंह ने स्कूल का नाम हरिजन पाठशाला से बदलकर अनुसूचित जनजाति पाठशाला कर दिया है. अधिकारी सिर्फ विकास के नाम पर गोल-गोल बातें करते है. शिक्षा पदाधिकारी ने सफाई देते हुए कहा कि जिस जगह पर विद्यालय स्थापित है, वहां जगह की कमी है. लेकिन आने वाले समय में विद्यालय को स्थानांतरित करने पर विभाग विचार कर रहा है.

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छात्र

शोरगुल की आती है आवाजें
वर्तमान में इस पाठशाला में 40 बच्चे और 2 शिक्षक है. लेकिन बैठने की दिक्कतों के वजह से यहां अधिकांश बच्चे आते ही नहीं और जो आते भी है, वो दिक्कतों की वजह से पढ़ ही नहीं पाते है. और तो और विद्यालय के बाहर से हमेशा जेनरेटर की आवाजें आती रहती है. विद्यालय के मुख्य गेट पर कपड़ों का दुकान लगा रहता है.

विद्यालय में एक ही कमरे में चल रहा वर्ग 1 से 5 तक की पढ़ाई

अधिकारियों की लापरवाही
बिहार में सर्व शिक्षा अभियान के तहत सभी विद्यालयों को अपनी जमीन और मकान मिल चुके हैं. लेकिन भारत की आजादी से पहले स्थापित हुआ, हरिजन पाठशाला अधिकारियों की लापरवाही की वजह से जर्जर पड़ा हुआ है. एक कमरे के स्कूल में ही शिक्षक अपनी नौकरी कर रहे हैं. साथ ही बच्चे भी किसी तरह से आधी-अधूरी पढ़ाई कर रहे हैं. ऐसे में अगर सरकार इस विद्यालय पर ध्यान नहीं देगी, तो बच्चों का भविष्य क्या होगा.

Intro:कटिहार

बिहार के शिक्षा विभाग का कमाल, एक ही कमरे में चलता है वर्ग 1 से वर्ग 5 तक के बच्चों का वर्ग संचालन के साथ विद्यालय का कार्यालय और एमडीएम का भोजन भी। मजे की बात यह है कि यह स्कूल किसी ग्रामीण इलाके का नहीं बल्कि शहर के बीचों-बीच स्थित है जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कटिहार आगमन के दौरान चरण पड़े थे तो सरकार ने बापू की स्मृति में मासूमों के तालीम के लिए खोल डाला था स्कूल। यह बेबसी भरी दास्तां उसी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के धरोहर रूपी विद्यालय की है। कैसे हो स्कूल का विकास इस पर अधिकारी भी विद्यालय स्थानांतरण की बातें कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं?


Body:कटिहार रेलवे स्टेशन से महज 100 मीटर की दूरी पर बसा है हरिजन पाठशाला विद्यालय। बताया जाता है कि 1934 में जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी असम दौरे पर थे तो कुछ देर के लिए इसी कटिहार की धरती पर उनके चरण पड़े थे और तत्कालीन सरकार ने उक्त स्थल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद में एक विद्यालय की स्थापना कर डाली। मकसद था कि गांधी जी की याद इलाके के लोगों के दिल में सनातन बसा रहे और उक्त स्थल से तालीम की ब्यार बह सके।

आजादी के पहले स्थापित हुए इस स्कूल को आज करीब 85 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन शिक्षा विभाग की लापरवाही से इसे महज एक गोदाम का शक्ल ही मिला हुआ है जिसमें बच्चे, शिक्षक, एमडीएम, विद्यालय के दफ्तर साथ में विद्यालय का अन्य सामान पड़े हुए हैं। अब बच्चे कैसे पढ़ते होंगे यह आप भी समझ सकते हैं। बच्चे भी इन अव्यवस्था के बीच सिमट गए हैं और पूछने पर बताते हैं सब कुछ ऐसे ही चल रहा है।

विद्यालय के प्राचार्य अर्चना देवी बस सवालों के कोरम को पूरा करती है लेकिन विद्यालय का विकास कैसे हो इस पर अपने आला अधिकारियों के सिर अपना जवाब मढ देती है। मजे की बात यह है जब हमने इसका जवाब जिला शिक्षा पदाधिकारी देवविंद सिंह से जानना चाहा तो वह भी विकास के मामले में गोल गोल बातें करते रहें और स्कूल का नाम बदलकर अनुसूचित जनजाति पाठशाला कर डाला। शिक्षा पदाधिकारी ने बताया कि जिस जगह पर विद्यालय स्थापित है वहां जगह की कमी है और आने वाले समय में इसे स्थानांतरित करने पर विभाग विचार कर रहा है।


Conclusion:वर्तमान में इस हरिजन पाठशाला में 40 बच्चे पढ़ते हैं और 2 शिक्षक हैं यानी 1 वर्ग में औसतन 8 बच्चे क्लास आते हैं। कहने को तो विद्यालय में 40 बच्चे नामांकित हैं लेकिन बैठने के दिक्कतों की वजह से यहां अधिकांश बच्चे नहीं आते और जो आते भी हैं तो बस क्या पढ़ते होंगे यह आसानी से समझा जा सकता है। विद्यालय के बाहर से शोरगुल, जनरेटर की आवाजें तथा मुख्य गेट पर कपड़ों की दुकान लगा हुआ है जिससे बच्चों को तालीम हासिल करने में दिक्कत होती है।

आज बिहार में सर्व शिक्षा अभियान के तहत कमोवेश हर विद्यालय का अपना जमीन और चकाचक करता हुआ गुलाबी मकान मिल चुका है लेकिन भारत की आजादी से पहले स्थापित महात्मा गांधी की याद में यह स्कूल आज अधिकारियों की लापरवाही की वजह से अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा है। एक कमरे के स्कूल में शिक्षक अपनी नौकरी कर रहे हैं और बच्चे किसी तरह अधकचरा ककहरा सीखने को मजबूर हैं। ऐसे में अगर सरकार इस विद्यालय पर ध्यान नहीं देती है तो बच्चे रूपी हमारे भविष्य क्या तालीम हासिल करेंगे और कितना शिक्षित हो पाएंगे इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है लेकिन जब 15 वर्षों के बाद स्कूल अपना 100वां सालगिरह मनाएगा तो पीढिया निश्चित पूछेंगे कि इस स्कूल को सरकार ने कितना विकसित किया।
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