कटिहार: केंद्र और राज्य सरकार किसानों को समय-समय पर सफल खेती के लिए अनुदानित बीज, खाद या फिर फसल बर्बाद होने पर मुआवजा देने की सुविधा तो प्रदान कर रही है लेकिन यह सरकारी सुविधा देश में अधिकतर खेत में हल चलाने वाले किसानों को नसीब नहीं हो पाती. वजह यह है कि जो खेत में किसान हल चलाते हैं उनमें अधिकांश ऐसे किसान होते हैं जो भू-धारी नहीं होते. उनकी जमीन का स्वामित्व किसी और के पास होता है.
'जमीन आपकी खेती हमारी'
बेरोजगारी से निजात पाने के लिए किसान स्वामित्व वाले जमींदारों से आग्रह करके मौखिक रूप से जमीन बटाई पर ले लेते हैं. जिसका अर्थ हुआ कि 'जमीन आपकी खेती हमारी'. खाद, बीज पटवन सब हमारा लेकिन जब फसल तैयार होगी तब उपज का आधा हिस्सा जमीन मालिक को जाएगा और बचा हिस्सा इन किसानों के बीच जाएगा. कुल मिलाकर इसका अर्थ यह हुआ कि जमींदारों ने किसानों को एक फसल लगाने के लिए मौखिक रूप से खेत पट्टे पर दिया है. जब फसल तैयार हो जाती है तब किसान उसके एहसान के नीचे दबकर अनाज का आधा हिस्सा भू-धारी को दे देता है.
अनुदान राशि का नहीं मिलता लाभ
यदि कोई फसल प्राकृतिक आपदा के कारण बर्बाद हो जाए तो सरकारी अनुदान का हिस्सा खेत में काम कर रहे इन किसानों को नहीं मिल पाता. अनुदान की यह राशि सीधे भू-धारी के खाते में चली जाती है. ऐसे में सरकार की नजरों में भू-धारी 'किसान' बन जाता है और किसान 'मजदूर'.
क्यों नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभ?
मनसाही प्रखंड के मरंगी गांव के मनीष कुमार बताते हैं कि जमीन मालिक और किसान के बीच मौखिक रूप से आपसी रजामंदी में सौदा तैयार होता है. आम भाषा में किसान बटइया शुरू कर देते हैं और तैयार फसल का आधा हिस्सा जमीन मालिक को दे देते है. मनीष बताते हैं कि सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को कभी नहीं मिल सकता है. क्योंकि खेती कर रहे किसान को भू-धारी कोई लिखित कागजात नहीं देते. ऐसे में उन्हें कृषि विभाग के दफ्तरों में क्लेम करने में परेशानी होती है.
कई योजनाओं के लाभ से वंचित
सरकार किसानों के लिए फसल बीमा योजना, किसान सहायता योजना, किसान सम्मान योजना के साथ कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है. लेकिन इसका लाभ इन गरीब किसानों को नहीं मिल पाता है क्योंकि वह भूधारी नहीं होते हैं. जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि कृषकों के हित में कई योजनाएं बनी हैं लेकिन बटाइदार के नाम से लाभ लेने वालों की संख्या कम होती हैं. अगर भूधारी और बटाईदार दोनों की सहमति होगी और वे दफ्तरों में लिखकर देंगे तो अनुदान की राशि दोनों को आधा-आधा मिल जाएगी.