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अनुदान की राशि सीधे भू-धारकों के खातों में, नहीं मिलता बटाईदारों को सरकारी लाभ

'काम सिपाही का नाम हवलदार का', यह कहावत तो सबने पुलिस महकमों की खबरों में सुनी होंगी. लेकिन कुछ ऐसी ही बातें राज्य में खेती पर भी लागू होती हैं. जहां खेतों में हल कोई और चलाता है और सरकारी योजनाओं का लाभ कोई और ले जाता है.

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Published : Jul 29, 2019, 3:33 PM IST

कटिहार

कटिहार: केंद्र और राज्य सरकार किसानों को समय-समय पर सफल खेती के लिए अनुदानित बीज, खाद या फिर फसल बर्बाद होने पर मुआवजा देने की सुविधा तो प्रदान कर रही है लेकिन यह सरकारी सुविधा देश में अधिकतर खेत में हल चलाने वाले किसानों को नसीब नहीं हो पाती. वजह यह है कि जो खेत में किसान हल चलाते हैं उनमें अधिकांश ऐसे किसान होते हैं जो भू-धारी नहीं होते. उनकी जमीन का स्वामित्व किसी और के पास होता है.

'जमीन आपकी खेती हमारी'
बेरोजगारी से निजात पाने के लिए किसान स्वामित्व वाले जमींदारों से आग्रह करके मौखिक रूप से जमीन बटाई पर ले लेते हैं. जिसका अर्थ हुआ कि 'जमीन आपकी खेती हमारी'. खाद, बीज पटवन सब हमारा लेकिन जब फसल तैयार होगी तब उपज का आधा हिस्सा जमीन मालिक को जाएगा और बचा हिस्सा इन किसानों के बीच जाएगा. कुल मिलाकर इसका अर्थ यह हुआ कि जमींदारों ने किसानों को एक फसल लगाने के लिए मौखिक रूप से खेत पट्टे पर दिया है. जब फसल तैयार हो जाती है तब किसान उसके एहसान के नीचे दबकर अनाज का आधा हिस्सा भू-धारी को दे देता है.

सरकारी योजनाओं से वंचित बटाईदार किसान

अनुदान राशि का नहीं मिलता लाभ
यदि कोई फसल प्राकृतिक आपदा के कारण बर्बाद हो जाए तो सरकारी अनुदान का हिस्सा खेत में काम कर रहे इन किसानों को नहीं मिल पाता. अनुदान की यह राशि सीधे भू-धारी के खाते में चली जाती है. ऐसे में सरकार की नजरों में भू-धारी 'किसान' बन जाता है और किसान 'मजदूर'.

क्यों नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभ?
मनसाही प्रखंड के मरंगी गांव के मनीष कुमार बताते हैं कि जमीन मालिक और किसान के बीच मौखिक रूप से आपसी रजामंदी में सौदा तैयार होता है. आम भाषा में किसान बटइया शुरू कर देते हैं और तैयार फसल का आधा हिस्सा जमीन मालिक को दे देते है. मनीष बताते हैं कि सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को कभी नहीं मिल सकता है. क्योंकि खेती कर रहे किसान को भू-धारी कोई लिखित कागजात नहीं देते. ऐसे में उन्हें कृषि विभाग के दफ्तरों में क्लेम करने में परेशानी होती है.

कई योजनाओं के लाभ से वंचित
सरकार किसानों के लिए फसल बीमा योजना, किसान सहायता योजना, किसान सम्मान योजना के साथ कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है. लेकिन इसका लाभ इन गरीब किसानों को नहीं मिल पाता है क्योंकि वह भूधारी नहीं होते हैं. जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि कृषकों के हित में कई योजनाएं बनी हैं लेकिन बटाइदार के नाम से लाभ लेने वालों की संख्या कम होती हैं. अगर भूधारी और बटाईदार दोनों की सहमति होगी और वे दफ्तरों में लिखकर देंगे तो अनुदान की राशि दोनों को आधा-आधा मिल जाएगी.

कटिहार: केंद्र और राज्य सरकार किसानों को समय-समय पर सफल खेती के लिए अनुदानित बीज, खाद या फिर फसल बर्बाद होने पर मुआवजा देने की सुविधा तो प्रदान कर रही है लेकिन यह सरकारी सुविधा देश में अधिकतर खेत में हल चलाने वाले किसानों को नसीब नहीं हो पाती. वजह यह है कि जो खेत में किसान हल चलाते हैं उनमें अधिकांश ऐसे किसान होते हैं जो भू-धारी नहीं होते. उनकी जमीन का स्वामित्व किसी और के पास होता है.

'जमीन आपकी खेती हमारी'
बेरोजगारी से निजात पाने के लिए किसान स्वामित्व वाले जमींदारों से आग्रह करके मौखिक रूप से जमीन बटाई पर ले लेते हैं. जिसका अर्थ हुआ कि 'जमीन आपकी खेती हमारी'. खाद, बीज पटवन सब हमारा लेकिन जब फसल तैयार होगी तब उपज का आधा हिस्सा जमीन मालिक को जाएगा और बचा हिस्सा इन किसानों के बीच जाएगा. कुल मिलाकर इसका अर्थ यह हुआ कि जमींदारों ने किसानों को एक फसल लगाने के लिए मौखिक रूप से खेत पट्टे पर दिया है. जब फसल तैयार हो जाती है तब किसान उसके एहसान के नीचे दबकर अनाज का आधा हिस्सा भू-धारी को दे देता है.

सरकारी योजनाओं से वंचित बटाईदार किसान

अनुदान राशि का नहीं मिलता लाभ
यदि कोई फसल प्राकृतिक आपदा के कारण बर्बाद हो जाए तो सरकारी अनुदान का हिस्सा खेत में काम कर रहे इन किसानों को नहीं मिल पाता. अनुदान की यह राशि सीधे भू-धारी के खाते में चली जाती है. ऐसे में सरकार की नजरों में भू-धारी 'किसान' बन जाता है और किसान 'मजदूर'.

क्यों नहीं मिलता सरकारी योजनाओं का लाभ?
मनसाही प्रखंड के मरंगी गांव के मनीष कुमार बताते हैं कि जमीन मालिक और किसान के बीच मौखिक रूप से आपसी रजामंदी में सौदा तैयार होता है. आम भाषा में किसान बटइया शुरू कर देते हैं और तैयार फसल का आधा हिस्सा जमीन मालिक को दे देते है. मनीष बताते हैं कि सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को कभी नहीं मिल सकता है. क्योंकि खेती कर रहे किसान को भू-धारी कोई लिखित कागजात नहीं देते. ऐसे में उन्हें कृषि विभाग के दफ्तरों में क्लेम करने में परेशानी होती है.

कई योजनाओं के लाभ से वंचित
सरकार किसानों के लिए फसल बीमा योजना, किसान सहायता योजना, किसान सम्मान योजना के साथ कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है. लेकिन इसका लाभ इन गरीब किसानों को नहीं मिल पाता है क्योंकि वह भूधारी नहीं होते हैं. जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि कृषकों के हित में कई योजनाएं बनी हैं लेकिन बटाइदार के नाम से लाभ लेने वालों की संख्या कम होती हैं. अगर भूधारी और बटाईदार दोनों की सहमति होगी और वे दफ्तरों में लिखकर देंगे तो अनुदान की राशि दोनों को आधा-आधा मिल जाएगी.

Intro:कटिहार

काम सिपाही का नाम हवलदार का। यह कहावत तो आप लोग पुलिस महकमों के खबरों में सुनते ही होंगे। लेकिन कुछ ऐसी ही बातें राज्य में खेती पर भी होती है। जहां खेतों में हल तो कोई और चलाता है लेकिन जब सरकारी योजनाओं का लाभ लेने की बारी आती है तो हल चलाने वाले किसान के जगह दूसरे किसान का चेहरा सामने आ जाता है।


Body:दरअसल हम बात कर रहे हैं केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले किसानों को सरकारी योजनाओं का। समय-समय पर किसानों को सफल खेती के लिए अनुदानित बीज खाद या फिर फसल बर्बाद होने पर मुआवजा देने की सुविधा है लेकिन यह सरकारी सुविधा देश में अधिकतर खेत में हल चलाने वाले किसानों को नसीब नहीं हो पाती है। वजह यह है कि जो खेत में किसान हल चलाते हैं उनमें अधिकांश ऐसे किसान होते हैं जो भूधारी नहीं होते हैं और जमीन का स्वामित्व किसी और के पास होता है।

बेरोजगारी से निजात पाने के लिए यह लोग स्वामित्व वाले जमींदारों से आग्रह करके मौखिक रूप से जमीन बटाई पर ले लेते हैं जिसका अर्थ यह हुआ जमीन आपकी खेती हमारी। खाद, बीज पटवन सब हमारा लेकिन जो फसल तैयार होगी तो उपज भाग का आधा हिस्सा जमीन मालिक को जाएगा और बचा भाग इन किसानों के बीच जाएगा। कुल मिलाकर इसका अर्थ यह हुआ कि जमींदारों ने किसानों को एक फसल लगाने के लिए मौखिक रूप से खेत पट्टे पर दिया और जब फसल तैयार हो गई तो किसान उसके एहसान मंदी के नीचे अनाज का आधा हिस्सा भूधारी को दे देता है।

मजे की बात यह है कि यदि यह फसल बाढ़ में या प्राकृतिक आपदा आ जाए तो सरकारी अनुदान का हिस्सा खेत में काम कर रहे हैं इन किसानों को नहीं मिलता। अनुदान की यह राशि सीधे भूधारी के खाते में चला जाता है और सरकार की नजरों में भूधारी किसान बन जाता है और किसान मजदूर।

आखिर क्यों नहीं मिलता है इन किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ?

मनसाही प्रखंड के मरंगी गांव के मनीष कुमार बताते हैं कि जमीन मालिक और किसान के बीच मौखिक रूप से आपसी रजामंदी में सौदा तैयार होता है और आम भाषा में किसान बटइया शुरू कर देते हैं और तैयार फसल का आधा हिस्सा जमीन मालिक को देना पड़ता है। मनीष बताते हैं सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों को कभी नहीं मिल सकता है क्योंकि खेती कर रहे किसान को भूधारी कोई लिखित कागजात नहीं देते जिस कारण उन्हें कृषि विभाग के दफ्तरों में क्लेम करने में परेशानी होती है। यह सब कुछ आपसी रजामंदी के बीच होता है।


Conclusion:सरकार किसानों के लिए फसल बीमा योजना, किसान सहायता योजना, किसान सम्मान योजना के साथ कई कल्याणकारी योजनाएं चलाती है लेकिन इसका लाभ इन गरीब किसानों को नहीं मिल पाता है क्योंकि वह भूधारी नहीं होते हैं। जिला कृषि पदाधिकारी चंद्रदेव प्रसाद बताते हैं कि कृषकों के हित में कई योजनाएं बनी हैं लेकिन बटाईदार के नाम से लाभ लेने वालों की संख्या कम होती है। अगर भूधारी और बटाईदार दोनों की सहमति होगी और हमे लिखकर देंगे तो अनुदान की राशि दोनों को आधा-आधा मिल जाएगी। अभी तक कटिहार में ऐसा कोई भी किसान नहीं है जिन्होंने आपसी रजामंदी से मुआवजे की मांग की हो।

सरकार और किसान के बीच बटाईदार अंतिम और महत्वपूर्ण कड़ी है जो हाड़ मांस से पसीना निकाल कर खेती तो करते हैं लेकिन ना तो इन्हें किसान कहलाने का गौरव मिल पाता है और ना ही सरकारी योजनाओं का लाभ और ऊपर से दिल अलग धक धक करता है कि कब जमीन मालिक किसानों को जमीन खाली कराकर बाय-बाय कह दे। इस तरह के किसान अपना मुंह बंद रखना ही बेहतर समझते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार ऐसे बटाईदार किसानों को लाभ की राशि देने की कोशिश करें ताकि इनके खेती में प्रोत्साहन हो सके।
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