कटिहारः बिहार में बाढ़ राहत के नाम पर बाबुओं का लूट-खसोट का खेल शुरू हो गया है. सामुदायिक किचन में दाल-चावल-सब्जी की जगह खिचड़ी-चोखा देकर जैसे-तैसे काम निपटाया जा रहा है. ग्रामीणों का आरोप है कि जहां चार-पांच सामुदायिक किचनों की जरूरत है तो वहां एक-आधा देकर खानापूर्ति की जा रही है.
यह दृश्य कटिहार जिले के बाढ़ प्रभावित बरारी प्रखण्ड के उत्तरी कांतनगर पंचायत के केन्द्र संख्या 26 की है. जहां बाढ़ पीड़ितों के लिये प्रशासन सामुदायिक किचन चला रहा है. उनका मकसद है किसी भी बाढ़ पीड़ित को भूखे नहीं रहने देना. इसके लिए मेन्यू बनायी गयी है. जिसमें दाल-चावल-सब्जी का प्रावधान किया गया है. लेकिन यहां दाल-चावल-सब्जी की जगह खिचड़ी-आलू चोखा दे कर काम चलाया जा रहा है.
जब इसके पीछे की वजह को जानना चाहा तो एमडीएम प्रभारी मंजू देवी बताती हैं कि राशि का आवंटन ही नहीं हुआ है तो हम कहां से पूर्ति करें. खिचड़ी-आलू चोखा देकर काम चलाया जा रहा हैं. स्थानीय मुखिया रंजीत झा बताते हैं कि एक हजार रूपया केन्द्र चलाने के लिये बाबुओं ने दिया था. लेकिन वह फुर्र हो गया. अब राशि ही नहीं हैं तो दाल-चावल-सब्जी कैसे खिलाएं. पदाधिकारी मेन्यू में करते हैं हेराफेरी
प्रशासन की तरफ से एक पंचायत में एक या दो सामुदायिक किचन चलाया जाता है. जिसमें हजारों पीड़ित को भोजन देने का लक्ष्य रखा जाता है. इस हजारों पीड़ितों के भोजन के लिये मेन्यू तैयार किया जाता है. जिस पर खर्च प्रतिदिन हजारों रूपया आता है. लेकिन लूट-खसोट पदाधिकारी मेन्यू में हेराफेरी कर जैसे-तैसे खिचड़ी-आलू चोखा खिला कर, थोड़े समय बाद अच्छे भोजन का बिलिंग निकालते हैं और पूरे पंचायत के आबादी के हिसाब से यह बिलिंग लाखों में पहुंच जाती है.
जैसे ही बाढ़ का हल्ला कम होता है, लूट-खसोट पदाधिकारी धीरे से यह बिल निकाल मालामाल हो जाते हैं. खास बात यह है कि बाढ़ राहत के बिलिंग पर जल्दी रोक नहीं लगती. यही कारण है कि कटिहार जिले में बाढ़ पीड़ितों के बीच खिचड़ी-आलू चोखा वितरण का खानापूर्ति और लूट-खसोट जारी है.