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बिहार में एक ऐसा स्थान जहां लगती है 'भूतों की सर्वोच्च अदालत', प्रेत लगाते हैं हाजिरी, मिलती है तारीख

बिहार में एक ऐसा स्थान है जहां नवरात्र में 9 दिनों तक भूतों का मेला लगता है. इस स्थान को भूतों का सुप्रीम कोर्ट के रूप में भी मानते हैं. यहां लगने वाली कचहरी में लोगों को प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाई जाती है. पढ़ें पूरी खबर-

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 23, 2023, 7:49 PM IST

बिहार के कैमूर में लगती है भूतों की सर्वोच्च अदालत

कैमूर : शारदीय नवरात्र के दौरान कैमूर में भूतों का मेला लगता है. इस भूतों का मेला एक दो नहीं हजारों की संख्या में भूतों का जमघट लगता है. जिस जगह ये भूत जुटते हैं उसका नाम 'भूतों का सुप्रीम कोर्ट' यानी 'हरसू ब्रह्म स्थान' है. ऐसी मान्यता है कि यहां आने के बाद हर तरह की रोग-प्रेत बाधा ठीक हो जाती है. नवरात्र के नौ दिन इस मेले का खास महत्व होता है. यहां मानसिक रोगियों का जमावड़ा लगता है. ऐसे लोग यहां ठीक भी होकर जाने का दावा किया जाता है.

ये भी पढ़ें- कैमूर के हरसू ब्रह्म धाम में लगता है भूतों का मेला, तांत्रिक ऐसे करते हैं 'प्रेत को कैद'


प्रेत बाधा से मिलती है हरसू ब्रह्म स्थान पर मुक्ति : हरसू ब्रह्म धाम में हर तरह के लोग आते हैं. नौकरी पेशा, डॉक्टर, वकील आम आदमी हर कोई यहां आता है. हरसू ब्रह्म धाम न्यास परिषद के कोषाध्यक्ष बदरीनाथ शुक्ला बताते हैं कि यहां भूतों की कचहरी लगती है. जो भी यहां प्रेत बाधा से पीड़ित आता है. उससे हरसू ब्रह्म स्थान पर उसके बयान होते हैं. कुछ प्रेत बाधाएं पहली ही सुनवाई में पीड़ित का शरीर छोड़ देने का वचन दे देती हैं. कुछ ये कहकर राहत मांगते हैं कि ''हम इतने दिन तक हम शांत रहेंगे.'' ऐसी आत्माओं को हरसू ब्रह्म के नियम समझाए जाते हैं. उल्लंघन करने का प्रावधान बताया जाता है.

"यहां हर तरह के लोग देश विदेश से आते हैं. हरसू ब्रह्म की महिमा ऐसी है कि यहां पीड़ित शख्स खुद ब खुद बोलने लगता है. प्रेत बाधा से मुक्ति मिल जाती है. कुछ आत्माएं तारीख मांगती हैं. उन्हें अगली तारीख तक परेशान नहीं करने का वचन और नियम सुनाया जाता है. तब तक उन्हें पीड़ित के शरीर में शांत रहना होता है. यहां उनके बयान दर्ज होते हैं. एक तरह से यहां सुप्रीम सुनवाई होती है."- बद्रीनाथ शुक्ला, हरसू ब्रह्म धाम न्यास परिषद के कोषाध्यक्ष

नवरात्र में लगता है भूतों का मेला : पूरे मंदिर परिसर में ऐसे लोग झूमते, चिल्लाते अपनी पीड़ा बयां करते हुए मिल जाएंगे. जैसे ही यहां पहुंचा शख्स हाथ जोड़ता है वो 'खेलने लगता है. उसपर ब्रह्म की सवारी आ जाती है'. नवरात्र के नौ दिनों तक श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने लगी. ये लोगों की आस्था ही है जो यहां लेकर आ रही है. निसंतान, ला इलाज बीमारी से ग्रस्त, कैंसर जैसे रोगों से छुटकारा पाने के लिए लोग यहां आते हैं और मानसिक शांति मिलते ही चले भी जाते हैं.

हरसू ब्रह्म धाम 'भूतों का सुप्रीम कोर्ट' : विज्ञान युग में ये नजारा हर किसी को चौंकाता है. श्रद्धालुओं में से एक वाराणसी से पहुंचे डॉक्टर बीके दूबे से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वो एक चिकित्सा प्रभारी हैं. उन्होंने आगे कहा कि वो अपनी मां के साथ अक्सर यहां आते हैं. यहां आने से उन्हें शांति मिलती है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील निखिल मिश्रा का कहना है कि ''मेरी तबीयत खराब थी. कोरोना जैसे महामारी को मैने खुद पूरे संसार में लाया है ऐसा महसूस होता था. साथ ही मुझे सिर्फ देवियां नजर आती थीं, पर जब मैं हरसू ब्रह्म स्थान आया तब से सब ठीक हूं.''


हरसू ब्रह्म स्थान की मान्यता : मंदिर के संयोजक राज किशोर चैनपुरी बाबा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि दो राक्षस उत्कल और ब्रजदन्त दोनों ने कभी आतंक मचाया था. सभी देवता परेशान हो कर भगवान शंकर की तपस्या करने लगे. तब शंकर ने उत्कल का त्रिशूल से बध कर दिया. ब्रजदन्त ने महिला रूप धारण कर लिया तो शंकर ने उसे कलयुग में मिलने का श्राप दिया. वहीं शंकर के रूप में हरसू बाबा ने अवतरित हुए. ब्रजदन्त राक्षस के रूप में राजा शालिवाहन की पत्नी माणिकमति अवतरित हुईं.

बाबा हरसू राजा शालिवाहन के राजपुरोहित थे. राजा अपने सभी शुभ कार्यो को हरसू बाबा के आदेश से कराते थे. पूर्व के श्राप के कारण राजा का वंश नहीं आगे बढ़ा तो राजा ने आने पुरोहित हरसू बाबा से पूछा की मेरा वंश कैसे चलेगा? तो उन्होंने दूसरी शादी करने का सलाह दी. तो छतीसगढ़ के राजा भूदेव सिंह की पुत्री ज्ञान कुँवरी से शादी हो गई. जिससे दुखी होकर राजा के पहली रानी ने हरसू बाबा को प्रताड़ित कराने लगी.

हरसू ब्रह्म स्थान इसलिए खास : उनके महल को भी ध्वस्त करा दिया. जिससे दुखी हो कर हरसू बाबा ने राजा के महल में 21 दिन बिना अन्न जल के पड़े रहे. उसके बाद उन्होंने अपना प्राण दे दिया. इसकी सूचना जैसे ही माता हंसरानी को मिली तो हाथ में दीपक लेकर हरसू बाबा के नाम पर तप करते हुए जल कर भस्म हो गईं. उसके बाद राजा शालिवाहन का विनाश हो गया. तब से हरसू ब्रह्म पूजने लगे. आज देश विदेश से भी लोग आते हैं और अपनी समस्या का निदान करवाते हैं. हरसू ब्राह्म बाबा धाम को भूत पिचास का सुप्रीम कोर्ट भी माना जाता है.

बिहार के कैमूर में लगती है भूतों की सर्वोच्च अदालत

कैमूर : शारदीय नवरात्र के दौरान कैमूर में भूतों का मेला लगता है. इस भूतों का मेला एक दो नहीं हजारों की संख्या में भूतों का जमघट लगता है. जिस जगह ये भूत जुटते हैं उसका नाम 'भूतों का सुप्रीम कोर्ट' यानी 'हरसू ब्रह्म स्थान' है. ऐसी मान्यता है कि यहां आने के बाद हर तरह की रोग-प्रेत बाधा ठीक हो जाती है. नवरात्र के नौ दिन इस मेले का खास महत्व होता है. यहां मानसिक रोगियों का जमावड़ा लगता है. ऐसे लोग यहां ठीक भी होकर जाने का दावा किया जाता है.

ये भी पढ़ें- कैमूर के हरसू ब्रह्म धाम में लगता है भूतों का मेला, तांत्रिक ऐसे करते हैं 'प्रेत को कैद'


प्रेत बाधा से मिलती है हरसू ब्रह्म स्थान पर मुक्ति : हरसू ब्रह्म धाम में हर तरह के लोग आते हैं. नौकरी पेशा, डॉक्टर, वकील आम आदमी हर कोई यहां आता है. हरसू ब्रह्म धाम न्यास परिषद के कोषाध्यक्ष बदरीनाथ शुक्ला बताते हैं कि यहां भूतों की कचहरी लगती है. जो भी यहां प्रेत बाधा से पीड़ित आता है. उससे हरसू ब्रह्म स्थान पर उसके बयान होते हैं. कुछ प्रेत बाधाएं पहली ही सुनवाई में पीड़ित का शरीर छोड़ देने का वचन दे देती हैं. कुछ ये कहकर राहत मांगते हैं कि ''हम इतने दिन तक हम शांत रहेंगे.'' ऐसी आत्माओं को हरसू ब्रह्म के नियम समझाए जाते हैं. उल्लंघन करने का प्रावधान बताया जाता है.

"यहां हर तरह के लोग देश विदेश से आते हैं. हरसू ब्रह्म की महिमा ऐसी है कि यहां पीड़ित शख्स खुद ब खुद बोलने लगता है. प्रेत बाधा से मुक्ति मिल जाती है. कुछ आत्माएं तारीख मांगती हैं. उन्हें अगली तारीख तक परेशान नहीं करने का वचन और नियम सुनाया जाता है. तब तक उन्हें पीड़ित के शरीर में शांत रहना होता है. यहां उनके बयान दर्ज होते हैं. एक तरह से यहां सुप्रीम सुनवाई होती है."- बद्रीनाथ शुक्ला, हरसू ब्रह्म धाम न्यास परिषद के कोषाध्यक्ष

नवरात्र में लगता है भूतों का मेला : पूरे मंदिर परिसर में ऐसे लोग झूमते, चिल्लाते अपनी पीड़ा बयां करते हुए मिल जाएंगे. जैसे ही यहां पहुंचा शख्स हाथ जोड़ता है वो 'खेलने लगता है. उसपर ब्रह्म की सवारी आ जाती है'. नवरात्र के नौ दिनों तक श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने लगी. ये लोगों की आस्था ही है जो यहां लेकर आ रही है. निसंतान, ला इलाज बीमारी से ग्रस्त, कैंसर जैसे रोगों से छुटकारा पाने के लिए लोग यहां आते हैं और मानसिक शांति मिलते ही चले भी जाते हैं.

हरसू ब्रह्म धाम 'भूतों का सुप्रीम कोर्ट' : विज्ञान युग में ये नजारा हर किसी को चौंकाता है. श्रद्धालुओं में से एक वाराणसी से पहुंचे डॉक्टर बीके दूबे से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि वो एक चिकित्सा प्रभारी हैं. उन्होंने आगे कहा कि वो अपनी मां के साथ अक्सर यहां आते हैं. यहां आने से उन्हें शांति मिलती है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील निखिल मिश्रा का कहना है कि ''मेरी तबीयत खराब थी. कोरोना जैसे महामारी को मैने खुद पूरे संसार में लाया है ऐसा महसूस होता था. साथ ही मुझे सिर्फ देवियां नजर आती थीं, पर जब मैं हरसू ब्रह्म स्थान आया तब से सब ठीक हूं.''


हरसू ब्रह्म स्थान की मान्यता : मंदिर के संयोजक राज किशोर चैनपुरी बाबा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि दो राक्षस उत्कल और ब्रजदन्त दोनों ने कभी आतंक मचाया था. सभी देवता परेशान हो कर भगवान शंकर की तपस्या करने लगे. तब शंकर ने उत्कल का त्रिशूल से बध कर दिया. ब्रजदन्त ने महिला रूप धारण कर लिया तो शंकर ने उसे कलयुग में मिलने का श्राप दिया. वहीं शंकर के रूप में हरसू बाबा ने अवतरित हुए. ब्रजदन्त राक्षस के रूप में राजा शालिवाहन की पत्नी माणिकमति अवतरित हुईं.

बाबा हरसू राजा शालिवाहन के राजपुरोहित थे. राजा अपने सभी शुभ कार्यो को हरसू बाबा के आदेश से कराते थे. पूर्व के श्राप के कारण राजा का वंश नहीं आगे बढ़ा तो राजा ने आने पुरोहित हरसू बाबा से पूछा की मेरा वंश कैसे चलेगा? तो उन्होंने दूसरी शादी करने का सलाह दी. तो छतीसगढ़ के राजा भूदेव सिंह की पुत्री ज्ञान कुँवरी से शादी हो गई. जिससे दुखी होकर राजा के पहली रानी ने हरसू बाबा को प्रताड़ित कराने लगी.

हरसू ब्रह्म स्थान इसलिए खास : उनके महल को भी ध्वस्त करा दिया. जिससे दुखी हो कर हरसू बाबा ने राजा के महल में 21 दिन बिना अन्न जल के पड़े रहे. उसके बाद उन्होंने अपना प्राण दे दिया. इसकी सूचना जैसे ही माता हंसरानी को मिली तो हाथ में दीपक लेकर हरसू बाबा के नाम पर तप करते हुए जल कर भस्म हो गईं. उसके बाद राजा शालिवाहन का विनाश हो गया. तब से हरसू ब्रह्म पूजने लगे. आज देश विदेश से भी लोग आते हैं और अपनी समस्या का निदान करवाते हैं. हरसू ब्राह्म बाबा धाम को भूत पिचास का सुप्रीम कोर्ट भी माना जाता है.

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