कैमूरः मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना....' यह लाइन कैमूर के लोगों पर बिल्कुल फिट बैठती हैं. यहा गंगा-जमुना तहजीब की शानदार मिसाल देखने को मिलती है. ग्रामिण लोग मिल जुलकर मुहर्रम का त्योहार मनाते हैं. यह बेजोड़ नमूना पिछले 40 वर्षों से देखने को मिल रहा है. इस गांव में हिन्दू परिवार की ओर से आखाड़े में रखे ताजिया पर मुस्लिम समुदाय के लोग फातिहा करते हैं. दोनों समुदाय के लोग मातम जुलूस एकसाथ निकालते हैं.
40 वर्षों से निभा रहे है परंपरा
बसंतपुरा के 160 घरों वाली आबादी में लगभग 40 घर मुस्लिम परिवार के है. जिसमें गांव के राधे जायसवाल पिछले 40 वर्षों से ताजिया बनाने की परंपरा निभा रहे है. वह सिर्फ ताजिया ही नहीं बनाते बल्कि मुस्लिम समुदाय के साथ फातिहा भी करते है. खास बात यह है कि गांव के लोग हिन्दू मुस्लिम एकता का मिसाल पिछले कई दशक से पेश करते आ रहे हैं.
गांव में आपसी भाईचार
गांव के वार्ड सदस्य पति सैयद अंसारी बताते हैं कि गांव में पहले 2 जगह ताजिया रखा जाता था. उन्होंने कहा कि एक चौक पर मुस्लिम समुदाय के लोग रखते थे. तो दूसरी चौक पर राधे का परिवार ताजिया रखता था. लेकिन पिछले 22 वर्षों से गांव में सिर्फ एक ताजिया ही रखा जा रहा है. जो राधे जायसवाल रखते हैं. गांव में आपसी भाईचारा है. उन्होंने बताया कि राधे के दादा, परदादा ने यह परंपरा शुरू किया था. जिसे अब तक निभाई जा रही है.
वहीं कैमूर जिले के सभी प्रखंडों में शांतिपूर्ण तरीके से मोहर्रम का पर्व मनाया जा रहा हैं. कही से कोई भी अप्रिय घटना की सूचना नही है. पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गए हैं.