कैमूर : बिहार में किसान आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है. अक्सर अपने बयानों के चलते सुर्खियों में रहने वाले आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं. दरअसल, भारतमाला परियोजना के तहत बनारस से कोलकाता एक्सप्रेसवे बनाने को लेकर भारत सरकार द्वारा कैमूर के किसानों की जमीन ली जा रही है. इसपर स्थानीय किसानों का कहना है कि उनकी जमीन का सरकार उचित मूल्य नहीं दे रही है. कैमूर में किसान नेता राकेश टिकैत भी सुधाकर सिंह के साथ मौजूद थे.
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सुधाकर सिंह ने भरी किसानों के पक्ष में हुंकार : भभुआ के लिच्छवी भवन पर किसान सभा को संबोधित करते हुए सुधाकर सिंह ने सरकार और अधिकारियों पर जमकर हमला बोला. पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह से पूछा गया तो उन्होंने सीधे-सीधे राज्य सरकार को इसके लिए कठघरे में खड़ा किया. उनका कहना था कि राज्य सरकार औने-पौने दाम में जमीन खरीदकर केंद्र सरकार को दे रही है. किसानों को जगाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के नुमाइंदे जब आपके पास आएं तो उनका विरोध गांधीवादी तरीके से करें. उन्होंने इस दौरान किसानों को ऐसे ऐसे टिप्स दिए जिसको सुनकर लोग हंस भी पड़े.
''अगर आप लोग आंदोलन के दौरान अधिकारियों पर लाठी बरसते हैं और उसका सर फट जाएगा, तो आप पर 302 और 307 लग जाएगा. लेकिन 100 लोग मिलकर कलेक्टर के मुंह पर थूक देंगे तो कलेक्टर 100 लोगों पर क्या दफा लगाएगा, फूलों की माला की जगह अधिकारियों को फटे हुए जूते और चप्पलों की माला पहनाइए. अगर कोई अधिकारी बाजार में सब्जी देने आता है तो उसे अंगूठा दिखाइए. इन सब चीजों से आप लोग के ऊपर किसी भी तरह का कोई धारा नहीं लगेगी.''- सुधाकर सिंह, पूर्व कृषि मंत्री, बिहार
'कलेक्टर के मुंह पर थूक दो' : सुधाकर सिंह ने कहा कि जब कोई कलेक्टर आपके पास आए तो उसके मुंह पर थूक दो, उसपर कोई दफा नहीं लगेगी. वो आएं तो उनको फूलों की जगह जूतों का हार पहना दें, उसपर भी कोई धारा नहीं लगेगी. फिर उन्होंने कहा कि आप अगर ये भी नहींं कर सकते, तो कम से कम उन्हें ठेंगा तो दिखा ही सकते हैं. ऐसा करने से भी कोई धारा नहीं लगेगी. जो किसान आंदोलन में शामिल होना चाहते हैं. लेकिन किसी कारण वश नहीं आ पा रहे हैं तो वो जहां हैं वहां से एक दिन का भोजन त्याग दें.
'जंगलों के बागी नहीं बल्कि कुर्सी पर बैठने वाले नक्सली' : सुधाकर सिंह ने समझाते हुए 'नक्सली कौन हैं' उसे बताया. सुधाकर सिंह ने कहा कि जो कुर्सियों पर बैठकर आम लोगों और किसानों की बात नहीं सुनते वो नक्सली हैं. जंगलों में बागी, नक्सली नहीं बल्कि कुर्सियों पर बैठने वाले लोग हैं.