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CRIME के लिए कुख्यात बिहार के इन दो गांव के लोग आजादी के बाद नहीं गये थाने, ऐसे सुलझाते हैं मामले

'राम राज्य: नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना, नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना'. रामचरित मानस की इस पंक्ति का भावार्थ है- 'रामराज्य' में किसी को दैहिक, दैविक और भौतिक तकलीफ नहीं थी. सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते थे और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते थे. क्राइम के लिए बदनाम (crime in bihar)बिहार के कुछ हिस्से में ऐसा ही राम राज्य दिखता है. यहां हम आपको ऐसे ही गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां आजादी के बाद लोग थाने नहीं गये.

बिहार का एक गांव
बिहार का एक गांव
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Published : Nov 23, 2022, 9:28 PM IST

जहानाबाद/पश्चिम चंपारण: बिहार के जहानाबाद में एक ऐसा भी गांव है जो इलाके के शांतिप्रिय लोगाें के लिए नजीर है. जहानाबाद जिले के घोसी के प्रखंड का धौतालबीघा गांव (Dhautalbigha village of Jehanabad), यहां आजादी के बाद आपसी विवाद को लेकर लोग थाने नहीं गए हैं. गांव में कोई भी व्यक्ति आपसी लड़ाई काे लेकर थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करायी है. गांव की इस रिवायत से जिले के डीएम भी उत्साहित हैं. तकरीबन 120 घरों के 800आबादी वाला यह गांव इलाके के लोगों के लिए एक मिसाल है.

इसे भी पढ़ेंः क्राइम फ्री है बिहार का ये गांव, आजादी से अब तक थाने में दर्ज नहीं हुई एक भी FIR

आजादी के बाद लोग नहीं गये थाने.

कोर्ट कचहरी जाने की नहीं आयी नौबतः घोसी प्रखंड मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित यह गांव आज के युग से एकदम अलग व अनूठा प्रकृति का है. गांव के बुजुर्ग नंदकिशोर प्रसाद बताते हैं कि गांव एकता के सूत्र में इस तरह बंधा है कि अगर किसी बात को लेकर विवाद होता भी है तो उसे आपस में ही निबटा लिया जाता है. गांव में आज तक कोई ऐसा बड़ा, जटिल व गंभीर प्रकृति का विवाद नहीं हुआ है, जिसे सुलझाने के लिए थाने या कोर्ट कचहरी जाने की नौबत आयी हो.

विवाद होने पर बुजुर्ग तुरंत हस्तक्षेप करतेः संजय कुमार बताते हैं कि छोटे-मोटे विवाद को गांव के बड़े बुजुर्ग की पहल कर निपटारा करा दिया जाता है. गांव के कुछ बुजुर्ग विवाद होने पर तुरंत हस्तक्षेप कर दोनो पक्षों को समझा-बुझाकर सुलह करा देते हैं. बहरहाल इस गांव की खूब तारीफ हो रही है कि जहां छोटी छोटी बातों में लोग खून की होली खेल लेते हैं, वही इस गांव की परंपरा एक नजीर बन कर लोगों को अमन चैन का पैगाम दे रहा है.

'आज से 50 वर्ष पूर्व विवाद का मूल कारण बकरी पालन होता था. ग्रामीण सैकड़ों की संख्या में बकरी पालन किया करते थे. लेकिन तब विवादों के केन्द्र में बने बकरीपालन को ग्रामीणों ने एकमत होकर बंद करा दिया'-नंद किशोर यादव, ग्रामीण


यह किसी भी गांव के लिए एक बेहद अच्छी परंपरा है. अन्य गांवों के लोगों को भी इसी तरह विवाद को आपस में सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए. अपने स्तर से विकास के लिए प्रयास करूंगा- रिची पांडे, डीएम जहानाबाद

गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांतों का पालन आज भी होता हैः बिहार के पश्चिम चंपारण के गौनाहा प्रखंड क्षेत्र का एक छोटा सा गांव है कटरांव (katrao village in bettiah bihar). लेकिन इस गांव की खासियत ने बड़े- बड़े शहरों को पछाड़ दिया है. छोटी सी आबादी वाले बिहार के इस गांव ने देश के सामने नजीर पेश की है.जो भी इस गांव के बारे में सुनता है दांतों तले अंगुली दबा लेता है. आजादी के बाद से अगर कहीं कोई अपराध (Crime Free Village Of Bettiah ) हुआ ही ना हो तो जाहिर सी बात है लोगों को आश्चर्य होगा ही. उससे भी बड़ी बात ये कि इस गांव में आजादी से पहले भी शांति व्यवस्था इसी तरह से बहाल थी.

कटरांव गांव में नहीं होता अपराध : इस गांव की आबादी लगभग दो हजार है. कटरांव गांव पटना से 285 किमी दूर स्थित है. इसमें थारू, मुस्लिम, मुशहर और धनगर जैसे विभिन्न समुदायों के लोग हैं. यह गांव सहोदरा पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता है. 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद से यहां के अधिकारियों ने एक भी मामला दर्ज नहीं किया है. आज तक यहां किसी प्रकार का झगड़ा-विवाद या चोरी-डकैती नहीं हुई है. आलम यह है कि आजादी के बाद से इस गांव मे अबतक एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है.

आज तक दर्ज नहीं हुई यहां से एक भी FIR :आज के दौर मे जहां लोग अपने स्वार्थ और लालच के लिए अपराध करने से भी नहीं हिचकते, वहीं इस गांव के लोग पूरे समाज को साथ लेकर चलने मे विश्वास रखते हैं. गुलामी देख चुके गांव के वृद्ध की मानें तो कभी इस गांव मे पुलिस की जरूरत ही महसूस नहीं हुई. आदिवासी बहुल यह गांव काफी पिछड़ा हुआ माना जाता है. लेकिन इनकी सोच दूसरों को पछाड़ रही है. कटरांव गांव के लोगों ने साबित कर दिया है कि आधुनिक और शिक्षित कहे जाने वाले समाज से वे आगे हैं. ऐसे मे पुलिस प्रशासन भी इस गांव के जज्बे को सलाम कर रहा है.

'हमारे गांव में आजतक एक भी केस मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है. झगड़ा झंझट होने पर आपस में मिल जुलकर सुलझाते हैं. अगर सभी इसी तरह से मिलकर रहें तो देश की तस्वीर बदलेगी'- मनीषा, ग्रामीण

'कटरांव में कोई मुकदमा, केस नहीं हुआ है. हमें आज कर लज्जित होना नहीं पड़ा है. मैं सभी से अपील करती हूं कि जैसा कटरांव आज है वैसा ही इसे आगे भी बनाए रखे'-प्रियरत्ना, ग्रामीण

ऐसे होता है मामले का निपटारा: मामलों का निपटारा गोमस्थ बायवस्थ व्यवस्था (Gomastha Bayawastha in bettiah katrao) के तहत की जाती है. 1950 के दशक में इस व्यवस्था की शुरुआत हुई थी. यह व्यवस्था बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा के दिमाग की उपज थी. गोमस्थ ही कटरांव में उत्पन्न होने वाले छोटे विवादों का सौहार्दपूर्ण समाधान करते है. यहां इस व्यवस्था का आज भी सम्मान किया जाता है. यही कारण है कि गोमस्थ दोषी व्यक्ति को दंडित भी कर सकता है. कटरा, जिसने पंचायत प्रणाली में प्रतिनिधियों को चुना है, को अपने गोमस्थों में अटूट विश्वास है. गांव, आज तक गुमास्थों द्वारा दिए गए फैसलों का पालन करता है. यही कारण है कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद से 75 वर्षों से यहां कानून-व्यवस्था कायम है.

जहानाबाद/पश्चिम चंपारण: बिहार के जहानाबाद में एक ऐसा भी गांव है जो इलाके के शांतिप्रिय लोगाें के लिए नजीर है. जहानाबाद जिले के घोसी के प्रखंड का धौतालबीघा गांव (Dhautalbigha village of Jehanabad), यहां आजादी के बाद आपसी विवाद को लेकर लोग थाने नहीं गए हैं. गांव में कोई भी व्यक्ति आपसी लड़ाई काे लेकर थाने में एफआईआर दर्ज नहीं करायी है. गांव की इस रिवायत से जिले के डीएम भी उत्साहित हैं. तकरीबन 120 घरों के 800आबादी वाला यह गांव इलाके के लोगों के लिए एक मिसाल है.

इसे भी पढ़ेंः क्राइम फ्री है बिहार का ये गांव, आजादी से अब तक थाने में दर्ज नहीं हुई एक भी FIR

आजादी के बाद लोग नहीं गये थाने.

कोर्ट कचहरी जाने की नहीं आयी नौबतः घोसी प्रखंड मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर दूरी पर स्थित यह गांव आज के युग से एकदम अलग व अनूठा प्रकृति का है. गांव के बुजुर्ग नंदकिशोर प्रसाद बताते हैं कि गांव एकता के सूत्र में इस तरह बंधा है कि अगर किसी बात को लेकर विवाद होता भी है तो उसे आपस में ही निबटा लिया जाता है. गांव में आज तक कोई ऐसा बड़ा, जटिल व गंभीर प्रकृति का विवाद नहीं हुआ है, जिसे सुलझाने के लिए थाने या कोर्ट कचहरी जाने की नौबत आयी हो.

विवाद होने पर बुजुर्ग तुरंत हस्तक्षेप करतेः संजय कुमार बताते हैं कि छोटे-मोटे विवाद को गांव के बड़े बुजुर्ग की पहल कर निपटारा करा दिया जाता है. गांव के कुछ बुजुर्ग विवाद होने पर तुरंत हस्तक्षेप कर दोनो पक्षों को समझा-बुझाकर सुलह करा देते हैं. बहरहाल इस गांव की खूब तारीफ हो रही है कि जहां छोटी छोटी बातों में लोग खून की होली खेल लेते हैं, वही इस गांव की परंपरा एक नजीर बन कर लोगों को अमन चैन का पैगाम दे रहा है.

'आज से 50 वर्ष पूर्व विवाद का मूल कारण बकरी पालन होता था. ग्रामीण सैकड़ों की संख्या में बकरी पालन किया करते थे. लेकिन तब विवादों के केन्द्र में बने बकरीपालन को ग्रामीणों ने एकमत होकर बंद करा दिया'-नंद किशोर यादव, ग्रामीण


यह किसी भी गांव के लिए एक बेहद अच्छी परंपरा है. अन्य गांवों के लोगों को भी इसी तरह विवाद को आपस में सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए. अपने स्तर से विकास के लिए प्रयास करूंगा- रिची पांडे, डीएम जहानाबाद

गांधी जी के अहिंसा के सिद्धांतों का पालन आज भी होता हैः बिहार के पश्चिम चंपारण के गौनाहा प्रखंड क्षेत्र का एक छोटा सा गांव है कटरांव (katrao village in bettiah bihar). लेकिन इस गांव की खासियत ने बड़े- बड़े शहरों को पछाड़ दिया है. छोटी सी आबादी वाले बिहार के इस गांव ने देश के सामने नजीर पेश की है.जो भी इस गांव के बारे में सुनता है दांतों तले अंगुली दबा लेता है. आजादी के बाद से अगर कहीं कोई अपराध (Crime Free Village Of Bettiah ) हुआ ही ना हो तो जाहिर सी बात है लोगों को आश्चर्य होगा ही. उससे भी बड़ी बात ये कि इस गांव में आजादी से पहले भी शांति व्यवस्था इसी तरह से बहाल थी.

कटरांव गांव में नहीं होता अपराध : इस गांव की आबादी लगभग दो हजार है. कटरांव गांव पटना से 285 किमी दूर स्थित है. इसमें थारू, मुस्लिम, मुशहर और धनगर जैसे विभिन्न समुदायों के लोग हैं. यह गांव सहोदरा पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आता है. 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद से यहां के अधिकारियों ने एक भी मामला दर्ज नहीं किया है. आज तक यहां किसी प्रकार का झगड़ा-विवाद या चोरी-डकैती नहीं हुई है. आलम यह है कि आजादी के बाद से इस गांव मे अबतक एक भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है.

आज तक दर्ज नहीं हुई यहां से एक भी FIR :आज के दौर मे जहां लोग अपने स्वार्थ और लालच के लिए अपराध करने से भी नहीं हिचकते, वहीं इस गांव के लोग पूरे समाज को साथ लेकर चलने मे विश्वास रखते हैं. गुलामी देख चुके गांव के वृद्ध की मानें तो कभी इस गांव मे पुलिस की जरूरत ही महसूस नहीं हुई. आदिवासी बहुल यह गांव काफी पिछड़ा हुआ माना जाता है. लेकिन इनकी सोच दूसरों को पछाड़ रही है. कटरांव गांव के लोगों ने साबित कर दिया है कि आधुनिक और शिक्षित कहे जाने वाले समाज से वे आगे हैं. ऐसे मे पुलिस प्रशासन भी इस गांव के जज्बे को सलाम कर रहा है.

'हमारे गांव में आजतक एक भी केस मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है. झगड़ा झंझट होने पर आपस में मिल जुलकर सुलझाते हैं. अगर सभी इसी तरह से मिलकर रहें तो देश की तस्वीर बदलेगी'- मनीषा, ग्रामीण

'कटरांव में कोई मुकदमा, केस नहीं हुआ है. हमें आज कर लज्जित होना नहीं पड़ा है. मैं सभी से अपील करती हूं कि जैसा कटरांव आज है वैसा ही इसे आगे भी बनाए रखे'-प्रियरत्ना, ग्रामीण

ऐसे होता है मामले का निपटारा: मामलों का निपटारा गोमस्थ बायवस्थ व्यवस्था (Gomastha Bayawastha in bettiah katrao) के तहत की जाती है. 1950 के दशक में इस व्यवस्था की शुरुआत हुई थी. यह व्यवस्था बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिन्हा के दिमाग की उपज थी. गोमस्थ ही कटरांव में उत्पन्न होने वाले छोटे विवादों का सौहार्दपूर्ण समाधान करते है. यहां इस व्यवस्था का आज भी सम्मान किया जाता है. यही कारण है कि गोमस्थ दोषी व्यक्ति को दंडित भी कर सकता है. कटरा, जिसने पंचायत प्रणाली में प्रतिनिधियों को चुना है, को अपने गोमस्थों में अटूट विश्वास है. गांव, आज तक गुमास्थों द्वारा दिए गए फैसलों का पालन करता है. यही कारण है कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद से 75 वर्षों से यहां कानून-व्यवस्था कायम है.

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