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बिहार का ऐसा जिला जहां पर्व के अगले दिन मनाई जाती है दिवाली, तांत्रिक विधि से की जाती है पूजा अर्चना

Diwali Celebrated On Next Day In Jamui: जमुई बिहार का एकलौता जिला है जहां दीपावली एक दिन बाद मनाई जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि हिंदू कैलेंडर के अनुसार चतुर्दशी के अंत और अमावस्या की शुरुआत के दिन मां काली की प्राण प्रतिष्ठा के साथ पूजा की जाती है. वहीं, मां काली के समक्ष दीप जलने के अगले दिन दीपावली मनाई जाती है.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 14, 2023, 3:26 PM IST

जमुई: बिहार में इस साल दिवाली को लेकर लोगों में अलग ही उत्साह देखने को मिला. वहीं, राज्य के एक जिले में दिवाली के एक दिन बाद इसे मनाया गया. हम बात कर रहे हैं जमुई जिले की. जमुई सूबे का पहला जिला है जहां सदियों से दीपावली के एक दिन बाद तांत्रिक विधि के साथ इस पर्व को मनाया जा रहा है. ऐसे में सोमवार को भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला.

सिकंदरा प्रखंड अंतर्गत लछुआड़ गांव और बरहट प्रखंड का गुगुलडीह गांव एक ऐसा गांव है जहां दीपावली तय तिथि से एक दिन बाद मनाई जाती है. इस वर्ष पूरे देश में दीपावली 12 नवंबर को मनाई गई. लेकिन बरहट के गुगुलडीह व लछुआड़ गांव में दीपावली 13 नवंबर को ही मनाई गई. गांव के जानकार बताते हैं कि यहां की पूजा विधियां विलक्षण है. प्रतिमा के निर्माण से लेकर पूजन विधि महानिशा पूजन और महानिशावली सब अद्भुत और तांत्रिक अनुष्ठानों द्वारा संपन्न होती है.

300 वर्ष पहले जमींदारों ने प्रथा को किया था लागू: बताया जाता है कि गांव में 300 वर्ष पहले के जमींदारी प्रथा से क्षेत्र में धमना के कुमार वैद्यनाथ सिंह जमींदार हुआ करते थे. उन्हीं के द्वारा स्थापित मां काली की मंदिर में तांत्रिक पद्धति से पूजा पाठ शुरू हुआ था. तब से यहां के लोगों ने इसे परंपरा को मानते है. काली पूजा में वर्षों से पूजा अर्चना कर रहे गांव के प्रतिष्ठित पंडित हरिवंश पांडेय ने बताया कि गांव में एक दिन बाद दिवाली मनाने का मुख्य कारण है कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार चतुर्दशी के अंत और अमावस्या की शुरुआत के दिन मां काली का प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. वहीं, मां काली के समक्ष दीप जलने के बाद दूसरे दिन लछुआड़ गांव में दीपावली मनाई गई.

लछुआड़ की धरती सत्य अहिंसा एवं शांति का प्रतीक: दरअसल, लछुआड़ भगवान महावीर की जन्म भूमि को लेकर ऐतिहासिक धरती माना जाता है. लछुआड़ की धरती सत्य अहिंसा एवं शांति का प्रतीक है. यहां की ऐतिहासिक मान्यता है कि मां काली की पूजा करीब 200 वर्ष पूर्व से गिद्धौर के महाराज के द्वारा मंदिर स्थापित कर की जाती है. तब से लेकर अभी तक उन्हीं के रीति रिवाज को लछुआड़ वासी पालन करते आ रहे हैं. वर्षों पूर्व से एक दिन बाद दीपावली यहां मनायी जाती है.

"पूर्वजों से दीपावली की रात 12 बजे मां काली की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है. इस वक्त मां काली के समक्ष दीपक जलाया जाता है. 2:30 बजे की रात करीब पूजा संपन्न होने के उपरांत दीपावली के दूसरे दिन ग्राम वासी अपने-अपने घरों में दीपक जलाकर दीपावली मनाते हैं. वहीं, मां के समक्ष दीपक जलने के बाद ही गांव वाले दीपक जलते हैं. इसलिए दीपावली के दूसरे दिन लछुआड़ में दीपावली मनाया जाता है. दीपावली को लेकर एक से बढ़कर एक रंग बिरंगी लाइटों से मां काली मंदिर, जैन मंदिर, धर्मशाला, महावीर हॉस्पिटल एवं थाने को सजाया गया है." - शक्तिधर मिश्रा, पूर्व मुखिया एवं लछुआड़ निवासी, जमुई

इसे भी पढ़े- दीपावली में आकाश दीप जलाने की है पुरानी परंपरा, जानें इसके पीछे की मान्यता

जमुई: बिहार में इस साल दिवाली को लेकर लोगों में अलग ही उत्साह देखने को मिला. वहीं, राज्य के एक जिले में दिवाली के एक दिन बाद इसे मनाया गया. हम बात कर रहे हैं जमुई जिले की. जमुई सूबे का पहला जिला है जहां सदियों से दीपावली के एक दिन बाद तांत्रिक विधि के साथ इस पर्व को मनाया जा रहा है. ऐसे में सोमवार को भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला.

सिकंदरा प्रखंड अंतर्गत लछुआड़ गांव और बरहट प्रखंड का गुगुलडीह गांव एक ऐसा गांव है जहां दीपावली तय तिथि से एक दिन बाद मनाई जाती है. इस वर्ष पूरे देश में दीपावली 12 नवंबर को मनाई गई. लेकिन बरहट के गुगुलडीह व लछुआड़ गांव में दीपावली 13 नवंबर को ही मनाई गई. गांव के जानकार बताते हैं कि यहां की पूजा विधियां विलक्षण है. प्रतिमा के निर्माण से लेकर पूजन विधि महानिशा पूजन और महानिशावली सब अद्भुत और तांत्रिक अनुष्ठानों द्वारा संपन्न होती है.

300 वर्ष पहले जमींदारों ने प्रथा को किया था लागू: बताया जाता है कि गांव में 300 वर्ष पहले के जमींदारी प्रथा से क्षेत्र में धमना के कुमार वैद्यनाथ सिंह जमींदार हुआ करते थे. उन्हीं के द्वारा स्थापित मां काली की मंदिर में तांत्रिक पद्धति से पूजा पाठ शुरू हुआ था. तब से यहां के लोगों ने इसे परंपरा को मानते है. काली पूजा में वर्षों से पूजा अर्चना कर रहे गांव के प्रतिष्ठित पंडित हरिवंश पांडेय ने बताया कि गांव में एक दिन बाद दिवाली मनाने का मुख्य कारण है कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार चतुर्दशी के अंत और अमावस्या की शुरुआत के दिन मां काली का प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. वहीं, मां काली के समक्ष दीप जलने के बाद दूसरे दिन लछुआड़ गांव में दीपावली मनाई गई.

लछुआड़ की धरती सत्य अहिंसा एवं शांति का प्रतीक: दरअसल, लछुआड़ भगवान महावीर की जन्म भूमि को लेकर ऐतिहासिक धरती माना जाता है. लछुआड़ की धरती सत्य अहिंसा एवं शांति का प्रतीक है. यहां की ऐतिहासिक मान्यता है कि मां काली की पूजा करीब 200 वर्ष पूर्व से गिद्धौर के महाराज के द्वारा मंदिर स्थापित कर की जाती है. तब से लेकर अभी तक उन्हीं के रीति रिवाज को लछुआड़ वासी पालन करते आ रहे हैं. वर्षों पूर्व से एक दिन बाद दीपावली यहां मनायी जाती है.

"पूर्वजों से दीपावली की रात 12 बजे मां काली की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है. इस वक्त मां काली के समक्ष दीपक जलाया जाता है. 2:30 बजे की रात करीब पूजा संपन्न होने के उपरांत दीपावली के दूसरे दिन ग्राम वासी अपने-अपने घरों में दीपक जलाकर दीपावली मनाते हैं. वहीं, मां के समक्ष दीपक जलने के बाद ही गांव वाले दीपक जलते हैं. इसलिए दीपावली के दूसरे दिन लछुआड़ में दीपावली मनाया जाता है. दीपावली को लेकर एक से बढ़कर एक रंग बिरंगी लाइटों से मां काली मंदिर, जैन मंदिर, धर्मशाला, महावीर हॉस्पिटल एवं थाने को सजाया गया है." - शक्तिधर मिश्रा, पूर्व मुखिया एवं लछुआड़ निवासी, जमुई

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