जमुई: बिहार के जमुई (Jamui) जिले में आदिवासियों से उनकी जमीन छीनी जा रही है. जिसे लेकर माले के नेतृत्व में सैकड़ों आदिवासियों ने हेग्रो प्राथमिक विद्यालय (Hegro Primary School) मैदान में एक दिवसीय धरना धरना प्रदर्शन किया गया है. बता दें कि इस प्रदर्शन में हड़खार पंचायत के महेग्रो, दीपाकहर, रजला, सिरसिया, बरदोंन, झीलार सहित अन्य आदिवासी गावों के लोगों ने प्रदर्शन किया है.
इसे भी पढ़ें: जमुई: महादलितों को जमीन आवंटन की मांग को लेकर भाकपा (माले) ने दिया धरना
एक दिवसीय धरना प्रदर्शन
बता दें कि धरना की अध्यक्षता भाकपा माले के रिझु बास्की ने किया. वहीं, धरना को सम्बोधित करते हुये आइसा के प्रदेश उपाध्यक्ष बाबू साहब (AISA State Vice President Babu Saheb) ने कहा कि नीतीश सरकार गरीब आदिवासियों को घर बसाने के लिए 5-5 डिसमील जमीन देने की बड़ी-बड़ी बातें करती है.
आदिवासियों को दिया गया था जमीन का पर्चा
सन् 1988-89 में सरकारी मुलाजिम ने आकर बिहार सरकार के माध्यम से आदिवासियों को जमीन का पर्चा दिया था. जिसके बाद आदिवासियों ने कठिन परिश्रम कर उसे खेती योग्य बनाया. अब उन आदिवासियों को वन विभाग के अधिकारी आकर उस जमीन से बेदखल करना चाहते हैं. इसके साथ ही आदिवासियों की जमीन हड़प कर कॉरपोरेट के हाथों देना चाहते हैं.
ये भी पढ़ें: बिहार : मुंगेर के आदिवासी पत्तों के मास्क से रोक रहे कोरोना !
भाकपा माले करेगा आंदोलन
भाकपा माले इस एक दिवसीय धरना के माध्यम से सरकार को बताना चाहता है कि वर्षों से आदिवासी जिस जमीन पर बसे हुए हैं, उस जमीन को अगर सरकार जबरदस्ती हड़पना चाहती है, तो भाकपा माले इस सवाल को लेकर जन आंदोलन करेगा.
मौके पर उपस्थित माले के प्रखण्ड सचिव बासुदेव रॉय ने कहा कि वनाधिकार अधिनियम 2008 के तहत वर्षों से बसे आदिवासियों को वन के किनारे खेती कर रहे जमीन का पर्चा देने का प्रावधान था. लेकिन जब से मोदी सरकार बनी है, तब से लाखों आदिवासियों को जमीन हड़पकर कॉरपोरेट के हाथों में सौंपना चाहती है, जो भाकपा माले होने नहीं देगा.
पिछले वर्ष भी आदिवासियों ने किया था प्रदर्शन
बता दें कि पिछले वर्ष 15 जुलाई 2020 में बिहार के बांका जिले के चांदन प्रखंड के बिरनिया पंचायत के आदिवासी मुक्ति वाहिनी ने तेलियामारण, छबेला, खैरगढ़ा कुरेबा, नोकाडीह, लूरीटांड़ में वन विभाग के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया था.
आदिवासियों का कहना था कि जिस जमीन पर वन विभाग पेड़ लगा रहा है, उस पर वे सालों से खेती करते आ रहे हैं. इससे सभी की उनका परिवार चलता है. वनपाल अशोक कुमार झा ने वहां पहुंचकर आदिवासियों को समझा-बुझाकर मामला शांत कराया था.