जमुई: बिहार का जमुई (Jamui) जिला बुद्धिजीवियों की धरती मानी जाती है. जिसकी कोख ने डॉक्टर, इंजीनियर, नेता, समाजसेवी, विद्वान सहित कई कर्मवीरों को जन्म दिया है. वहीं, अब कुमार कालिका मेमोरियल महाविद्यालय (केकेएम कॉलेज) में लोगों को पीजी की डीग्री दिलाने की कवायद शुरू की जा रही है. जिसको लेकर विधायक श्रेयसी सिंह ने कहा है कि केकेएम कॉलेज का समूचित विकास मेरी प्राथमिकता है.
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श्रेयसी सिंह ने कहा कि युवाओं के माध्यम से खेल और शिक्षा के क्षेत्र में नित्यदिन नई शिकायतें और सुझाव मिलते रहते हैं. केकेएम कॉलेज (KKM College) में स्नातकोत्तर (पीजी) की पढ़ाई शुरू करवाना सर्वप्रथम सुझावों में से एक था. बीते जनवरी माह में कॉलेज के प्रधानाध्यापक, अध्यापकों और छात्रों के साथ बैठक में पीजी की पढ़ाई शुरू करवाने को लेकर बहुप्रतीक्षित मांग संज्ञान में आया था.
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विधायक ने बताया कि सभी जरूरी कागजात और प्रतिवेदन के साथ राज्यपाल और शिक्षा मंत्री से मिलकर अवगत कराया था. इस तरह जमुई पीजी की पढ़ाई शुरू करने का प्रस्ताव भेजने वाला पहला जिला बन गया. प्रस्ताव की स्वीकृति मिलने से सभी को खुशी हो रही है.
जिले के बहुत से छात्र-छात्राएं अपने घर से दूर जैसे भागलपुर, पटना आदि जगहों पर रहकर पढ़ाई करने को मजबूर थे. लेकिन अब बहुत जल्द ही उन्हें ऐसी समस्याओं से निजात मिल जाएगी. साथ ही छात्रों के परिजनों को भी राहत मिलेगी.
बता दें कि बिहार के 10 जिलों सुपौल, गोपालगंज, कैमूर, किशनगंज, लखीसराय, जमुई, अरवल, बांका, नवादा और शिवहर को चिह्नित कर पीजी की पढ़ाई शुरू करने का निर्णय लिया गया है. इनमें से सुपौल में बीएसएस कॉलेज और जमुई में केकेएम कॉलेज में स्नातकोत्तर की पढ़ाई शुरू करने की स्वीकृति प्रदान करने की कार्रवाई पूरी की जा चुकी है. शेष जिलों से विधिवत प्रस्ताव प्राप्त होने पर कार्रवाई की जाएगी.
राज्य के हर पंचायत में एक उच्च माध्यमिक विद्यालय स्थापित किया गया है. साथ ही सरकार के निर्णयानुसार प्रत्येक अनुमंडल में एक डिग्री महाविद्यालय की स्थापना की जा रही है. ऐसे में अगले चरण में हर जिले में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की व्यवस्था वांछनीय है. जिसके बाद शिक्षा विभाग ने ये फैसला लिया है कि उन जिलों में जहां स्नातकोत्तर की पढ़ाई किसी महाविद्यालय में नहीं हो रही है, वैसे जिलों से संबंधित विश्वविद्यालयों के माध्यम से विधिवत प्रस्ताव और अनुशंसा प्राप्त होते ही सरकार द्वारा इसकी स्वीकृति प्राथमिकता के आधार पर देने की कार्रवाई की जाएगी.
बता दें कि ईटीवी भारत ने ये खबर प्रमुखता से दिखाई थी कि हायर एजुकेशन में कम सीट होने और बिहार के सभी जिलों में डिग्री महाविद्यालय नहीं होने की वजह से हायर एजुकेशन के मामले में बिहार पिछड़ रहा है. इसके अलावा पूरे बिहार में कॉलेज और यूनिवर्सिटी में शिक्षकों और कर्मियों की भारी कमी है. जीईआर यानी सकल नामांकन अनुपात के मामले में बिहार सबसे फिसड्डी राज्यों में से एक है. ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो का राष्ट्रीय औसत 27.1% है.
वहीं, बिहार का औसत महज 14.5 फीसदी है. ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो का मतलब 18 से 23 साल की उम्र के छात्र-छात्राओं की संख्या प्रति एक सौ आबादी पर जो इंटर के बाद आगे की पढ़ाई जारी रखती है. बिहार इस मामले में फिसड्डी इसलिए है कि यहां बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं इंटर पास करने के बाद या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं या उच्च शिक्षा के लिए बिहार से बाहर चले जाते हैं. इसके पीछे बड़ी वजह बिहार के शिक्षण संस्थानों में सीट और शिक्षकों की कमी है.