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भागर जलाशय में हैं दुर्लभ प्रजाति के शैवाल, इस वजह से मछुआरों के लिए साबित हो रहा वरदान

गोपालगंज के बरौली प्रखंड में स्थित भागर जलाशय में दुर्लभ प्रजाति के शैवाल (Algae in Gopalganj) पाये जाते हैं. ये शैवाल जलीय जीवों की ग्रोथ में काफी सहायक होते हैं. यही शैवाल आज स्थानीय लोगों की जीविका का साधन बना है. इसे दूसरे जिले के मत्स्य पालक और व्यापारी मछलियों के चारे और दवा के लिये ले जाते हैं.

Bhagar Reservoir of Gopalganj
भागर जलाशय में दुर्लभ प्रजाति के शैवाल
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Published : Apr 6, 2022, 4:47 PM IST

गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर बरौली प्रखंड के सलेमपुर में भागर जलाशय है. गोपालगंज का भागर जलाशय (Bhagar Reservoir of Gopalganj) आज किसानों और मत्स्य पालकों के लिए वरदान साबित हो रहा है. इस जलाशय में दुर्लभ प्रजाति के शैवाल पाए जाते हैं. ये शैवाल जलीय जीवों की ग्रोथ में सहायक होते हैं. जो यहां के लोगों के जीविकोपार्जन का जरिया बने हैं. वहीं, भागर जलाशय का दायरा तेजी से सिमट रहा (Area of Bhagar reservoir Shrinking) है. ये यहां के लोंगो की चिंता का विषय बना हुआ है. पहले यह जलाशय 180 एकड़ में फैला था, लेकिन वर्तमान में इसका दायरा सिमट कर 100 एकड़ हो गया है.

ये भी पढ़ें- साइबेरिया के मेहमानों के कलरव से गुलजार पटना का राजधानी जलाशय, मोह रहा लोगों का मन

भागर जलाशय में दुर्लभ प्रजाति के शैवाल

शैवाल में वसा और नाइट्रोजन की प्रचूरता: वहीं, स्थानीय किसान केशव ने बताया कि जलाशय में दुर्लभ प्रजाति के शैवाल पाये जाते हैं. इसे दवन घास के नाम से जाना जाता है. बॉटनी की भाषा में यह एलगी ग्रुप का पौधा है. इसमें वसा और नाइट्रोजन की प्रचूरता होती है. इससे जलीय जीवों की ग्रोथ तेजी से होती है. नाइट्रोजन के कारण पानी में मिठास और ठंडक बनी रहती है. यहां के मछुआरे जलाशय से शैवाल एकत्रित कर प्रति ट्रॉली यानी एक नाव शैवाल 1200 रुपये में बेचते हैं. दूसरे जिले के व्यापारी मछलियों के चारे और दवा बनाने के लिए शैवाल की खरीदी करते हैं.

केवल इसी जलाशय में मिलता है ऐसा शैवाल: किसानों ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि इस जलाशय से शैवाल निकाल कर किसी अन्य तालाबों या जलाशयों में रखा जाये तो वह कारगर नहीं हो पाता. दुर्लभ प्रजाति के शैवाल इस जलाशय की खासियत हैं. यहां के पानी में गजब का मिठास है. प्रत्येक साल नारायणी के पानी से जलाशय का गर्भ भर जाता है. पानी का बहाव स्थिर होने पर शैवाल जमने लगते हैं. यह शैवाल दुर्लभ प्रजाति के हैं. ऐसा शैवाल केवल इसी जलाशय में मिलता है. बाहर के मछली पालक बड़े पैमाने पर यहां से शैवाल खरीद कर ले जाते हैं. इस शैवाल से मछलियों का ग्रोथ तेजी से बढ़ता है. पानी में यह शैवाल नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे पानी की मिठास बढ़ जाती है.

ये भी पढ़ें- विदेशी पक्षियों की कलरव स्थली बना भागलपुर का जगतपुर झील, 250 से अधिक प्रजाति के पक्षियों का जमावड़ा

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भागर जलाशय में दुर्लभ प्रजाति के शैवाल

शैवाल में वसा और नाइट्रोजन की प्रचूरता: वहीं, स्थानीय किसान केशव ने बताया कि जलाशय में दुर्लभ प्रजाति के शैवाल पाये जाते हैं. इसे दवन घास के नाम से जाना जाता है. बॉटनी की भाषा में यह एलगी ग्रुप का पौधा है. इसमें वसा और नाइट्रोजन की प्रचूरता होती है. इससे जलीय जीवों की ग्रोथ तेजी से होती है. नाइट्रोजन के कारण पानी में मिठास और ठंडक बनी रहती है. यहां के मछुआरे जलाशय से शैवाल एकत्रित कर प्रति ट्रॉली यानी एक नाव शैवाल 1200 रुपये में बेचते हैं. दूसरे जिले के व्यापारी मछलियों के चारे और दवा बनाने के लिए शैवाल की खरीदी करते हैं.

केवल इसी जलाशय में मिलता है ऐसा शैवाल: किसानों ने बताया कि ऐसा माना जाता है कि इस जलाशय से शैवाल निकाल कर किसी अन्य तालाबों या जलाशयों में रखा जाये तो वह कारगर नहीं हो पाता. दुर्लभ प्रजाति के शैवाल इस जलाशय की खासियत हैं. यहां के पानी में गजब का मिठास है. प्रत्येक साल नारायणी के पानी से जलाशय का गर्भ भर जाता है. पानी का बहाव स्थिर होने पर शैवाल जमने लगते हैं. यह शैवाल दुर्लभ प्रजाति के हैं. ऐसा शैवाल केवल इसी जलाशय में मिलता है. बाहर के मछली पालक बड़े पैमाने पर यहां से शैवाल खरीद कर ले जाते हैं. इस शैवाल से मछलियों का ग्रोथ तेजी से बढ़ता है. पानी में यह शैवाल नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे पानी की मिठास बढ़ जाती है.

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