गोपालगंजः बिहार में मानसिक रोगी की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. गोपालगंज में भी इसका असर देखने को मिल रहा है. सदर अस्पताल के मानसिक रोग विभाग में इलाज कराने के लिए रोजाना 20 से 25 रोगी पहुंच रहे हैं. जानकारों की मानें तो अकेलापन और अधिक स्क्रीन शेयर के कारण इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है. इसमें युवा और किशोर की संख्या के साथ महिलाओं की संख्या भी 40 फीसदी के आसपास है. किशोर अधिक संख्या में शामिल हैं.
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मानसिक रोक के कारणः गोपालगंज सदर अस्पताल में कार्यरत क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट रत्नेश कुमार पांडेय ने भी इस मामले में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि पूर्व की अपेक्षा मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है. जिले में 8 से 10 की संख्या में मानसिक रोगी इलाज के लिए आते थे, वही अब 25 से 30 में आते हैं. इसका बड़ा कारण स्क्रीन शेयर,अकेलापन, नशा, तनाव, चिंता आदि है. कोविड के बाद से किसी को भविष्य की चिंता तो किसी को कॅरियर की चिंता रहती है.
काल्पनिक दुनिया में खोना बड़ा कारणः चिंता के कारण लोग मोबाइल की काल्पनिक दुनिया में खोकर सामाजिक और पारिवारिक रूप से अपनों से दूर हो चुके हैं. ऐसे लोगों को अपने सवालों का जवाब नहीं मिल पा रहा हैं. हर कोई अपने में डूबा है. मोबाइल में एक क्लीक में इंट्रेस्ट की वो सारी चीजे मौजूद है, जिसे वह पसंद करते हैं. यही वजह है कि अस्पतालों के मानसिक रोग विभाग में ऐसे मरीजों की कतारें लंबी होती जा रही हैं.
कोराना के बाद बने ऐसे हालातः कोरोना के कारण भागती-दौड़ती जिन्दगी में अचानक ब्रेक लग गया. लोग घर में बैठकर टीबी और मोबाइल में खोये रहते थे. लंबे समय तक वायरस का डर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाला. इस बीच स्क्रीन शेयर के साथ-साथ ऑनलाइन क्लासेज, चिंता, डर, अकेलापन व अनिश्चितता का माहौल बन गया. लोग दिन-रात इससे जूझते रहे. इसी दौरान कामकाज को लेकर अनिश्चितता, आर्थिक तंगहाली, पारिवारिक क्लेश, मोबाइल पर अत्यधिक निर्भरता जैसे कारणों ने इंसान को खुद में सिमटने के लिए मजबूर कर दिया.
अकेलापन भी है कारणः सामाजिक और पारिवारिक रूप से बढ़े अकेलापन के कारण मानसिक अवसाद बढ़ता गया. मनोचिकित्सकों का कहना है कि कोरोना के बाद से डिप्रेशन के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. कोरोना के दौरान कई लोगों ने अपनों को खोया साथ ही आर्थिक रूप से भी लोग परेशान हुए हैं. कई लोगों के व्यवसाय चौपट हो गए. विभिन्न कारणों के चलते लोगों के दिमाग पर भी गहरा असर पड़ा और वो डिप्रेशन का शिकार होते गए.
10वां व्यक्ति मानसिक रोग से ग्रसितः मनोचिकित्सक ने बताया कि जिले में हर 10वां व्यक्ति किसी न किसी रूप में मानसिक बीमारी से ग्रस्त है. इनमें वृहद अवसादग्रस्त, एकाग्रताविहीन सक्रियता का विकार, व्यवहार संबंधी विकार, नशीले पदार्थों पर निर्भरता, भय, उन्माद, बहुत चिंता होने का विकार, डिमेंशिया, मिर्गी, मानसिक कष्ट आदि प्रमुख हैं. दूसरी ओर सामाजिक और अनुवांशिक कारण भी है. मानसिक रोगी वास्तविक दुनिया से कट जाता है और अपनी ही दुनिया में खोया रहता है.
दो तरह के रोग आते हैं सामनेः मानसिक रोगियों में दो तरह के मामले सामने आते हैं. कामन मेंटल इलनेस व सीवियर मेंटल इनलेस. साइकोसिस के मरीजों की संख्या बढ़ रही है. इससे ग्रस्त व्यक्ति वास्तविक दुनिया से कट जाता है. हर किसी पर शक करता है. यह समस्या डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों में भी पाई गईं. डॉक्टर का कहना है कि तनाव, डिप्रेशन व अन्य मानसिक बीमारियों की अनदेखी बिल्कुल नहीं करनी चाहिए. कई बार सुसाइड करने का मन करता है, इनमें हर वर्ग के लोग शामिल होते हैं.
केमिकली कारण भी हो सकता हैः मानसिक अवसाद केवल तनाव और चिंता से ही नहीं होता, इसमें केमिकल लोचा भी है. इंसान के शरीर में दो तरह के केमिकल इसमें खास भूमिका निभाता है. सेरेटोनिन और मोनोमाइनस केमिकल के असंतुलन के कारण भी मानसिक अवसाद हो सकता है.
सकारात्मक संवाद की कमीः स्वयं को असुरक्षित-असहाय महसूस करना या अपने प्रति किसी के व्यवहार को नकारात्मक रूप में लेना. व्यक्ति के बचपन के अनुभव, उसके साथ हुआ व्यवहार, पारिवारिक अस्थिरता, सकारात्मक संवाद की कमी, नशे का प्रचलन इत्यादि भी कहीं ना कहीं छोटी-छोटी बातों में गुस्से और चिड़चिड़ेपन का कारण बन जाता है. इस तरह का व्यवहार मानसिक रोग का लक्षण है.