गोपालगंज: बिहार के गोपालगंज जिले का स्वस्थ्यय व्यवस्था डॉक्टरों की कमी (Shortage Of Doctors In Gopalganj) का दंश झेल रहा है. आलम यह है कि करीब 32 लाख की आबादी पर महज 122 डॉक्टर ही कार्यरत हैं. ऐसे में मरीजो को कैसी स्वास्थ्यय सुविधा मिलती होगी, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. जिला सदर अस्पताल में मूलभूत सुविधाओं की बात करे तो यहां मरीजों को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराई जाती है लेकिन सबसे बड़ी समस्या जर्जर भवन की है जो अक्सर टूट-टूट कर गिरते हुए छत का प्लास्टर मरीजों के लिए काफी घातक साबित हो रहा है. इतना ही नहीं इस अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड समेत परिसर चंद बारिश में लबालब भर जाता है. जिससे मरीज पानी के बीच रहकर चिकित्सकिय सुविधा का लाभ लेते हैं.
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गोपालगंज सदर अस्पताल का हाल बेहाल : दरअसल जिले की आबादी तकरीबन 32 लाख बताई जाती है. लेकिन इतनी बड़ी आबादी के इलाज के नाम पर डाक्टरों की संख्या काफी कम है. जिले में एमबीबीएस, दंत चिकित्सक व आयुष चिकित्सक मिलाकर महज करीब 122 तैनात हैं जबकि स्वीकृत पद करीब 285 है. इसके मुताबिक, 163 डाक्टर अब भी कम हैं. आम तौर पर जिले में पिछले एक माह में कुल 53136 मरीजों का इलाज किया गया जो 4428 रोगी हर रोज इलाज के लिए पीएचसी से लेकर सदर अस्पताल पहुंचते हैं.
अस्पताल में है डाक्टरों की कमी : कई अस्पतालों में 24 घंटे डॉक्टर उप्ल्बध नहीं हैं. नर्सो की लगभग 75 प्रतिशत पद खाली हैं. मरीजों की देखभाल भगवान भरोसे है. स्वीकृत बल का आंकड़ा बाबा आदम के जमाने का है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की माने तो हर 1000 की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए. लेकिन 2011 की जनसंख्या के अनुसार, जिले की कुल आबादी, 2,562,012 है. 10 साल पीछे के हिसाब से भी अगर बात करे तो करीब 2200 डाक्टर की आवश्यकता होती है. अब समझ सकते हैं कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज का क्या स्तर होगा. गनीमत कहिए कि निजी अस्पताल और वहां के चिकित्सक मरीजों को संभालने के लिए बड़ी संख्या में कार्यरत हैं. वरना छोटी-बड़ी बीमारियों में आदमी बेमौत मरता रहता.
सरकारी अस्पताल में राम भरोसे मरीज : कोरोना महामारी काल में स्वास्थ्य सेवा के आधारभूत ढांचे की पोल खुल गई है. अस्पताल में बेड की कमी से लेकर ऑक्सीजन और दवाओं की कमी तक के लिए मारामारी की नौबत रही. लोग यह जानने को बेचैन रहे कि जिले में डॉक्टरों की संख्या कितनी है. कितनी आबादी पर कितने डॉक्टर और बेड हैं. कहां कितने इलाज होते हैं. सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की तैनाती न होने से मरीजों को पर्याप्त चिकित्सकिय सुविधा नहीं मिल पा रही है. सदर अस्पताल समेत जिले के स्वस्थ्यय केंद्र डॉक्टर व स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहा है. गंभीर रोगों के मरीजों का इलाज यहां नहीं होता और मजबूरन पीएमसीएच या फिर गोरखपुर रेफर करना पड़ता है.
गभीर रुप से बीमार मरीजों का नहीं होता इलाज : गंभीर हालत में रेफर के खेल में कई बार मरीजों की जान भी चली जाती है. ऐसे तमाम केस सामने आते रहते हैं, जब रेफर होने के बाद रास्ते में ही मरीज दम तोड़ बैठता है. जिले में सदर अस्पताल के अलावा 14 पीएचसी, 10 अतिरिक्त पीएचसी, 184 उप स्वास्थ्य केंद्र के अलावे एक अनुमंडलीय अस्पताल है. अगर बात करे गोपालगंज सदर अस्पताल की तो यहां साफ-सफाई पर काफी ध्यान दिया जाता है. इसके आलावे मरीजों को दवा, पैथोलॉजी व भोजन भी मुहैया कराई जाती है. लेकिन यहां सबसे बड़ी समस्या जर्जर भवन की है. कब ये भवन धराशायी हो जाएगा, कहा नहीं जा सकता. क्योंकि इमरजेंसी वार्ड व महिला वार्ड के छत से अक्सर प्लास्टर टूट-टूट कर गिरते रहते हैं.
गोपालगंज सदर अस्पताल है जर्जर : इमरजेंसी वार्ड के बाहर व वार्ड में जलजमाव की स्थिति अक्सर उत्पन्न हो जाने के कारण मरीज पानी के बीच रहने को विवश होते हैं. सदर अस्पताल में डॉक्टर के कुल 42 पद स्वीकृत हैं. जिनमें 21 ही डयूटी कर रहे हैं, 21 पद रिक्त हैं. वहीं महिला डॉक्टरों की पद वर्षो से खाली है. डिप्टेशन पर महिला डॉक्टर से कार्य कराया ज रहा है. डॉक्टरों की कमी की वजह से यहां लोगों को उपचार मिलना मुश्किल होता है. कई विभागों में विशेषज्ञ न होने से मरीज बिना इलाज कराए बैरंग लौट जाते हैं. जहां डॉक्टर हैं, वहां मरीजों की लंबी लाइन लगी होती है. जिससे सभी मरीज को डाक्टर उचित समय और सलाह नहीं दे पाते. कर्मियों की कमी के कारण अस्पताल में दलाल भी सक्रिय होते हैं.
'अचानक छत के प्लास्टर टूट कर मरीज के शरीर पर गिर रहा है, बनवाने की कोशिश किया जाए.' - केदार साह, मरीज के परिजन
'खाना-पीना, दवा, सफाई सब की व्यवस्था है. डॉक्टर और कंपाउंडर समय पर आकर चेकअप करते हैं.' - सीमा देवी, मरीज के परिजन
'सुविधा तो मिला हुआ है. लेकिन छत के प्लास्टर टूट- टूट कर गिर रहा है. गरीब आदमी कहा जाएगा, दवा मिलता है. लेकिन एक दवा बाहर से खरीदना पड़ता है. गरीब आदमी कहां से लाएगा.' - नन्हे राम, मरीज के परिजन
'दिक्कत कुछ नहीं है, सब कुछ ठीक है. लेकिन जब हम आए तो देखें की छत से पानी टपक रहा था. कोई मरीज आए, पैर फिसल कर गिर जाए तो दूसरा दुख हो जाएगा.' - मनोज कुमार, मरीज के परिजन
'बेहतर व्यवस्था मिलता है जो दवा नहीं है, वह आउटडोर से लाना पड़ता है, मरीजों को अच्छे से रखा जाता है.' - अनिकेत श्रीवास्तव, मरीज के परिजन
'थोड़ा बारिश में पूरा पानी भर जाता है, चेंबर रूम में पानी घुस जाता है. शौचालय का पानी वार्ड में घुस जाता है. इसी पानी के बीच मरीज का इलाज कराना करना पड़ता है.' - विमान केसरी, डॉक्टर
'सभी सुविधाएं मुहैया कराई जा रही है, बिल्डिंग काफी पुराना है. सरकार द्वारा तोड़ने का प्रस्ताव भेजा गया है. फेज बाई फेज बिल्डिंग को तोड़ा जाएगा. सड़क से इमरजेंसी वार्ड का जमीन नीचे है. जिसके कारण पानी इमरजेंसी वार्ड में घुस जाता है. ट्रामा सेंटर में सिटी स्कैन लगाने की व्यवस्था चल रही है. जल्दी चालू हो जाएगा. पर्याप्त मात्रा में डॉक्टर मौजूद हैं. लेडी डॉक्टर की कमी है, इसके बावजूद डिप्टेशन पर डॉक्टरों को रखकर मरीजों का इलाज किया जा रहा है.' - सिद्धार्थ कुमार, अस्पताल प्रबंधक