गोपालगंजः सरकार ने सालों पहले सिंचाई के लिए विभिन्न गांव के खेतों तक नलकूप की व्यवस्था की थी. ताकि किसान अपने खेतों की सिंचाई आसानी से कर सकें. लेकिन इन किसानों को नलकूपों से सिंचाई के लिए पानी आज तक नसीब नहीं हुआ. मजबूरन यह किसान अपने निजी पंपसेट के जरिए ही खेतों की सिंचाई करते हैं.
सरकारी नलकूप किसान को दे रहे धोखा
दरअसल जिले के कई इलाकों में गेहूं के खेतों में सिंचाई शुरू हो गई है. लेकिन सिंचाई के समय सरकारी नलकूप किसान को धोखा दे रहे हैं. जिससे किसानों की मुश्किलें कम होने के बजाय बढ़ती जा रही हैं. वहीं, किसानों का कहना है कि दस साल पहले इस नलकूप को लगाया गया था. लेकिन आज तक इसमें से पानी नहीं निकला. मजबूरन हम लोग निजी पंपसेट से अपने खेतों की सिचाई करते हैं.
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सिंचाई के समय भी बेकार पड़े हैं नलकूप
जिले में अधिकांश सरकारी नलकूप खराब पड़े हैं. लेकिन सरकारी आकड़ों में खराब नलकूप को सही नलकूप दिखा जा रहा है और सरकार को चूना लगाया जा रहा है. फिर भी विभागीय अधिकारी खराब नलकूप को सही समय पर चालू करने का दावा भी करते हैं. कई इलाकों में गेहूं की सिंचाई जोरों पर है. लेकिन सरकारी संसाधन खेतों की सिंचाई के समय भी बेकार पड़े हुए हैं. ऐसे में वर्तमान में रबी अभियान में किसानों को खेतों की सिंचाई के लिए निजी पंप सेट का सहारा लेना पड़ रहा है.
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खराब नलकूप को विभाग ने बताया चालू
अगर बात करें प्रखंड माझा की तो यहां के नलकूप से सिंचाई का लक्ष्य 140 है. लेकिन यहां सिर्फ कागज में खानापूर्ति कर 3 हेक्टेयर में सिंचाई दिखाया गया है. वहीं खराब नलकूप को भी विभाग ने चालू बता दिया है. इस खराब नलकूप के ऑपरेटर पर प्रति माह लाखों रुपए खर्च होते हैं. किसानों के सिंचाई के लिए लघु सिंचाई विभाग ने 7 नलकूप लगाए थे. लेकिन बिजली की समस्या के कारण किसानों को सिंचाई का लाभ नहीं मिला. कर्मचारियों के वेतन पर लाखों रुपये खर्च होते हैं, लेकिन किसानो को इस नलकूप से कितना फायदा मिला है, इसकी सच्चाई इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है
मांझा प्रखण्ड में खेतों की स्थिति
- कुल क्षेत्रफल 93 हजार 256हेक्टेयर
- खेती योग्य भूमि 39 हजार 137 हेक्टेयर
- सिचात भूमि 28,662
- असिंचित भूमि 40, 320 हेक्टेयर
अगर सरकारी आंकड़ों की माने तो जिले में कुल नलकूपों की संख्या 287 है. जबकि कार्यरत 182दर्शाया गया है. लेकिन हमारी पड़ताल में ये दावे झूठे साबित हुए. जो खराब नलकूप हैं, वह कागज में सही है. जिसपर ऑपरेटर को भी बहाल किया गया है. ऐसे में अंदाज लगाया जा सकता है कि बिना किसानों को पानी का लाभ दिए बगैर ऑपरेटर पर कितने रुपये खर्च किये जाते होंगे.