गोपालगंज: जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर सिवान जाने वाले मार्ग पर थावे नाम का एक स्थान है, जहां 'मां थावेवाली' का एक प्राचीन मंदिर है. थावेवाली को 'सिंहासिनी भवानी', 'थावे भवानी' और 'रहषु भवानी' के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. ऐसे तो साल भर यहा मां के भक्त आते हैं. लेकिन शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है.
सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
नवरात्र के 9वें दिन सोमवार की सुबह से ऐतिहासिक थावे मंदिर में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया. सुबह से ही मंदिर परिसर में लोगों की भारी भीड़ उमड़ने लगी. श्रद्धालु मां थावे भवानी का दर्शन करने के लिए घंटों कतार में खड़े रहे. इस दौरान मां भवानी की जयकारे से पूरा मंदिर परिसर से लेकर आसपास का इलाका गूंजता रहा. नवरात्र में लोगों की भीड़ को देखते हुए थावे मंदिर परिसर और उसके आसपास के इलाको में सुरक्षा के तगड़े प्रबंध किए गए हैं.
भक्त चढ़ाते हैं नारियल, पेड़ा और चुनरी
यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते है. मां के मंदिर का गर्भगृह काफी पुराना है. नवरात्र के सप्तमी की रात को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश के अलावा यहां नेपाल के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में मां के दर्शन के लिए आते हैं.
मंदिर के पीछे है रोचक कहानी
लोगों ने बताया कि राजा मनन सिंह हथुआ के राजा थे. वे अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे. गर्व होने के कारण अपने सामने वे किसी को भी मां का भक्त नहीं मानते थे. इसी क्रम में राज्य में अकाल पड़ गया और लोग खाने को तरसने लगे. थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था. कथा के अनुसार रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता और रात को उसी से अन्न निकल जाता था. जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा.