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गोपालगंज: ऐतिहासिक थावे मंदिर में उमड़ा भक्तों का सैलाब

यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते है. मां के मंदिर का गर्भगृह काफी पुराना है. नवरात्र के सप्तमी की रात को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है.

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Published : Oct 7, 2019, 2:41 PM IST

गोपालगंज: जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर सिवान जाने वाले मार्ग पर थावे नाम का एक स्थान है, जहां 'मां थावेवाली' का एक प्राचीन मंदिर है. थावेवाली को 'सिंहासिनी भवानी', 'थावे भवानी' और 'रहषु भवानी' के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. ऐसे तो साल भर यहा मां के भक्त आते हैं. लेकिन शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है.

सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
नवरात्र के 9वें दिन सोमवार की सुबह से ऐतिहासिक थावे मंदिर में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया. सुबह से ही मंदिर परिसर में लोगों की भारी भीड़ उमड़ने लगी. श्रद्धालु मां थावे भवानी का दर्शन करने के लिए घंटों कतार में खड़े रहे. इस दौरान मां भवानी की जयकारे से पूरा मंदिर परिसर से लेकर आसपास का इलाका गूंजता रहा. नवरात्र में लोगों की भीड़ को देखते हुए थावे मंदिर परिसर और उसके आसपास के इलाको में सुरक्षा के तगड़े प्रबंध किए गए हैं.

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भक्तों की उमड़ी भीड़

भक्त चढ़ाते हैं नारियल, पेड़ा और चुनरी
यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते है. मां के मंदिर का गर्भगृह काफी पुराना है. नवरात्र के सप्तमी की रात को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश के अलावा यहां नेपाल के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में मां के दर्शन के लिए आते हैं.

पेश है ये रिपोर्ट

मंदिर के पीछे है रोचक कहानी
लोगों ने बताया कि राजा मनन सिंह हथुआ के राजा थे. वे अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे. गर्व होने के कारण अपने सामने वे किसी को भी मां का भक्त नहीं मानते थे. इसी क्रम में राज्य में अकाल पड़ गया और लोग खाने को तरसने लगे. थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था. कथा के अनुसार रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता और रात को उसी से अन्न निकल जाता था. जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा.

गोपालगंज: जिला मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर सिवान जाने वाले मार्ग पर थावे नाम का एक स्थान है, जहां 'मां थावेवाली' का एक प्राचीन मंदिर है. थावेवाली को 'सिंहासिनी भवानी', 'थावे भवानी' और 'रहषु भवानी' के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं. ऐसे तो साल भर यहा मां के भक्त आते हैं. लेकिन शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है.

सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम
नवरात्र के 9वें दिन सोमवार की सुबह से ऐतिहासिक थावे मंदिर में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया. सुबह से ही मंदिर परिसर में लोगों की भारी भीड़ उमड़ने लगी. श्रद्धालु मां थावे भवानी का दर्शन करने के लिए घंटों कतार में खड़े रहे. इस दौरान मां भवानी की जयकारे से पूरा मंदिर परिसर से लेकर आसपास का इलाका गूंजता रहा. नवरात्र में लोगों की भीड़ को देखते हुए थावे मंदिर परिसर और उसके आसपास के इलाको में सुरक्षा के तगड़े प्रबंध किए गए हैं.

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भक्तों की उमड़ी भीड़

भक्त चढ़ाते हैं नारियल, पेड़ा और चुनरी
यहां मां के भक्त प्रसाद के रूप में नारियल, पेड़ा और चुनरी चढ़ाते है. मां के मंदिर का गर्भगृह काफी पुराना है. नवरात्र के सप्तमी की रात को मां दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है. इस दिन मंदिर में भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश के अलावा यहां नेपाल के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में मां के दर्शन के लिए आते हैं.

पेश है ये रिपोर्ट

मंदिर के पीछे है रोचक कहानी
लोगों ने बताया कि राजा मनन सिंह हथुआ के राजा थे. वे अपने आपको मां दुर्गा का सबसे बड़ा भक्त मानते थे. गर्व होने के कारण अपने सामने वे किसी को भी मां का भक्त नहीं मानते थे. इसी क्रम में राज्य में अकाल पड़ गया और लोग खाने को तरसने लगे. थावे में कमाख्या देवी मां का एक सच्चा भक्त रहषु रहता था. कथा के अनुसार रहषु मां की कृपा से दिन में घास काटता और रात को उसी से अन्न निकल जाता था. जिस कारण वहां के लोगों को अन्न मिलने लगा.

Intro:गोपालगंज। कहते हैं भक्त से ही भगवान होते है जो भी भक्त अपने सच्चे मन से ईश्वर को याद कर ले भगवान उनकी हर मन्नते पूर्ण करते है। कुछ ऐसी ही कहानी गोपालगंज मुख्यालय से करीब 6 की किलोमीटर स्थित थावे भवानी की है। जहां एक भक्त की पुकार सुन मां कामाख्या से थावे पहुंचकर भक्त के सच्चे भक्ति का बोध कराया तब से लेकर आज तक यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मां की आराधना करता है मां उसकी हर मुराद पूरी करती है।


Body:मां थावेवाली को सिंहासनी भवानी, थावे भवानी के नाम से भी पुकारते हैं। वैसे तो सालभर यहां भक्त आते हैं परंतु नवरात्रि में भक्तो का आना जाना काफी बढ़ जाता है। माँ थावे भवानी के संदर्भ में कई किदवंतीया प्रचलित है। जिसमे सबसे महत्वपूर्ण किदवंतीय यह है कि यहां चेरो बंश के राजा राज करते थे। जो बाद में हथुआ राज के नाम से प्रचलित हुए। इसी राज में एक रहसु नामक माँ का भक्त भी रहता था जो। उसने बाघ से खर पतवार को दौनी कर उसमें से चावल निकालता और माँ को भोग लगाता था। जिसकी जानकारी राजा मनन सिंह को हुई तब राजा उनसे देवी का प्रकट करने की जिद करने लगे जिसपर रहसु भक्त ने कहा कि माँ अगर प्रकट होगी तो आपका सारा राज पाट नष्ट हो जाएगा क्योंकि आपके पास दिव्य दृष्टि नही है साधरण आंखों से देखना सम्भव नही है। लेकिन राजा नही माने और जिद पर अड़ गए। जिसके बाद रहसु ने माँ को याद किया माँ अपने भक्त के पुकार सुन कर उनके शरीर को विभाजित करती हुई अपना हाथ बाहर की ओर निकाली।तब से लेकर आज तक यहां भक्तो की हुजूम जुटने लगी साथ ही हथुआ महाराज के कुल देवी के रूप में जाने जानी लगी।

बाइट -सुरेश पांडेय, प्रधान पुजारी
बाइट- अमरेंद्र कुमार मिश्रा, श्रद्धालु





Conclusion:na
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