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Bihar Special Sweet : इस मिठाई को देखते ही टपकने लगेगी लार, रसीली पिड़िकिया का स्वाद चखा क्या?

बिहार के गोपालगंज में दर्शनीय स्थल थावे भवानी के पास पिड़िकिया नाम की मशहूर मिठाई मिलती है. यहां आने वाला हर भक्त इसका स्वाद लेना नहीं भूलता. इस मिठाई का क्या है इतिहास और कैसे बनती है ये जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर-

खाई है लजीज गरमागरम पिड़िकाया
खाई है लजीज गरमागरम पिड़िकाया
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 20, 2023, 7:28 AM IST

रसीली पिड़िकिया का स्वाद चखा क्या?

गोपालगंज : बिहार के गोपालगंज में दर्शनीय स्थल थावे भवानी के दरबार में पूजा अर्चना करने के लिए आने वाले भक्त खोआ और शुद्ध घी के बने पिड़िकिया का स्वाद लेना नहीं भूलते. यहां जो भी भक्त आते हैं वह थावे भवानी के प्रसाद के तौर पर अपने साथ अपने परिजनों के लिए भी जरूर लेकर जाते हैं. थावे की प्रसिद्ध पिड़िकिया लोगों की पहली पसंद मानी जाती है. पिड़िकिया यानी एक तरह की गुझिया बनाने का इतिहास भी काफी रोचक है.


ये भी पढ़ें- बिहार की इस मिठाई को देखते ही मुंह से टपकने लगेगी लार, स्वाद की तरह नाम भी अनोखा, आपने चखा क्या..?

पिड़िकाया मिठाई का इतिहास : इस संदर्भ में बताया जाता है की पिड़िकिया बनाने की शुरुआत सौ वर्ष पूर्व सबसे पहले सिवान जिले के जिरादेई थाना क्षेत्र के नरेंद्रपुर गांव निवासी लक्ष्मी साह के बेटा गौरीशंकर साह ने किया था. पिता के मौत होने के बाद गौरीशंकर अपने चार भाईयों जटा शंकर साह, शिवशंकर साह और विश्वनाथ साह के साथ गोपालगंज जिलें के थावे प्रखंड के विदेशी टोला गांव स्थित अपने मामा बुनिलाल साह के घर रहने लगे. जहां उन्होंने परिवार चलाने के लिए पिड़िकिया बनाना शुरू किया और हाट, बाजार, मेला में गांव-गांव घूम घूम कर पिड़िकिया बेचना शुरू कर दिया. तभी से इसका स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ गया.

खाई है लजीज गरमागरम पिड़िकाया
खाई है लजीज गरमागरम पिड़िकाया

साधु ने शुद्ध घी में पिड़िकिया बनाने को दी थी सलाह : गौरीशंकर साह के पोता अनिल गुप्ता ने बताया कि ''सौ वर्ष पूर्व हमारे दादा जी गौरीशंकर साह सिवान जिले से आए थे. पिड़िकिया बनाने का काम शुरू किया था. वे पिड़िकिया को बनाकर गांव-गांव, मेला समेत विभिन्न जगह घूम घूम कर बेचते थे. इसी बीच साधु के रूप में एक बाबा उनके पास पहुंचे और खैनी मांगा. दादा जी ने उन्हे खैनी खिलाई इसके बाद उन्होंने सलाह दी कि शुद्ध घी और खोआ से पिड़िकिया बना कर बेचें तभी विकास होगा.''

शुद्ध देसी घी में बनती गुझिया
शुद्ध देसी घी में बनती गुझिया

शुद्ध घी से बनाने लगे पिड़िकिया : इसके बाद वे आशीर्वाद देकर चले गए. कुछ ही दूरी पर वे अदृश्य हो गए. उन्होंने बताया कि साधु की सलाह पर उन्होंने शुद्ध घी और खोआ से पिड़िकिया बनाना शुरू किया. कुछ ही दिन बाद काफी फायदा हुआ. जिसका नतीजा हुआ की जमीन खरीद कर घर बनाया और दुकान खोल दिया. जिससे काफी फायदा होने लगा. तभी से शुद्ध घी और खोआ से पिड़िकिया बनाने का सिल सिला आज भी कायम है.

गुझिया को पिड़िकिया के नाम से भी जानते हैं
गुझिया को पिड़िकिया के नाम से भी जानते हैं

25 से 30 दुकानें, जुड़े हैं 3 सौ परिवार : थावे मंदिर के पास गौरीशंकर मिष्ठान भंडार के नाम से आपको कई दुकानें एक ही कतार में देखने को मिल जाएगी. इसके अलावा गौरीशंकर मिष्ठान भंडार, गोपालगंज, पटना सिवान और बड़हरिया में भी देखने को मिल जाएगी. कुल 25 से 30 दुकानों से गौरीशंकर के 3 सौ परिवार जुड़े हैं. हलांकि परिवार में कई लोग अन्य पेशा से जरूर जुड़े है. लेकिन पिड़िकिया व्यवसाय से अलग नहीं है.

प्रतिदिन होती है 50 किलो पिड़िकिया की बिक्री : एक दुकान से प्रतिदिन लगभग 50 किलो पिड़िकिया की बिक्री हो जाती है. सोमवार और शुक्रवार को इसकी संख्या और अधिक होती है. चैत्र और शारदीय नवरात्र में इसकी बिक्री एक क्विंटल से अधिक हो जाती है. ताजा और गर्म पिड़िकिया को खरीदना लोग पसंद करते हैं. बताया जाता है कि गौरीशंकर की सभी दुकानों में प्रतिदिन पिड़िकिया बनाई जाती है. इससे लोगों को ताजा पिड़िकिया मिल जाती है. लोग सामने पिड़िकिया बनती देख इसे खरीदना पसंद करते हैं. हर कोई चाहता है कि गर्म पिडिकिया ही खरीदे.

पिड़िकिया के स्वाद ने बनाया दीवाना
पिड़िकिया के स्वाद ने बनाया दीवाना


कैसे बनती है पिड़िकिया : पिड़िकिया बनाने के लिए सबसे पहले मैदा में घी डालकर उसे गूंथ कर तैयार किया जाता है. फिर इसे रोटी की तरह बेलकर इसमें खोये को भर कर इसे पिड़िकिया के अकार में तैयार कर घी में तला जाता है. तली हुए मिठाई को चीनी की चासनी में डुबोया जाता है. कुछ देर बाद उसे चीनी के चासनी से निकाल कर बाहर एक अलग बर्तन में रखा जाता है. फिर इसे खाने के लिए परोसा जाता है.

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पिड़िकिया मिठाई बनाते कारीगर


दूर दूर तक फैली है पिड़िकिया की मिठास : जिले के सुप्रसिद्ध थावे भवानी के दर्शन करने के लिए बिहार, यूपी, झारखंड नेपाल से लोग आते हैं. प्रसाद के तौर पर पिड़िकिया लेकर जाते हैं इसके आलावा जिले के अधिकांश लोग विदेशों में रहते हैं. इस कारण भी लोग इसे विदेशों तक लेकर जाते हैं.


''यूपी के देवरिया से आया हूं तीन साल के बाद आया हूं मां का दर्शन किया. यहां के मशहूर पिड़िकिया को खाया बहुत अच्छा लगा. दो चार किलो घर पर लेकर जाएंगे बच्चों के लिए और मां का दर्शन करने पर जो भी मनोकामना है वह पूरा हो जाता है.''- ठकराल सिंह, श्रद्धालु

रसीली पिड़िकिया का स्वाद चखा क्या?

गोपालगंज : बिहार के गोपालगंज में दर्शनीय स्थल थावे भवानी के दरबार में पूजा अर्चना करने के लिए आने वाले भक्त खोआ और शुद्ध घी के बने पिड़िकिया का स्वाद लेना नहीं भूलते. यहां जो भी भक्त आते हैं वह थावे भवानी के प्रसाद के तौर पर अपने साथ अपने परिजनों के लिए भी जरूर लेकर जाते हैं. थावे की प्रसिद्ध पिड़िकिया लोगों की पहली पसंद मानी जाती है. पिड़िकिया यानी एक तरह की गुझिया बनाने का इतिहास भी काफी रोचक है.


ये भी पढ़ें- बिहार की इस मिठाई को देखते ही मुंह से टपकने लगेगी लार, स्वाद की तरह नाम भी अनोखा, आपने चखा क्या..?

पिड़िकाया मिठाई का इतिहास : इस संदर्भ में बताया जाता है की पिड़िकिया बनाने की शुरुआत सौ वर्ष पूर्व सबसे पहले सिवान जिले के जिरादेई थाना क्षेत्र के नरेंद्रपुर गांव निवासी लक्ष्मी साह के बेटा गौरीशंकर साह ने किया था. पिता के मौत होने के बाद गौरीशंकर अपने चार भाईयों जटा शंकर साह, शिवशंकर साह और विश्वनाथ साह के साथ गोपालगंज जिलें के थावे प्रखंड के विदेशी टोला गांव स्थित अपने मामा बुनिलाल साह के घर रहने लगे. जहां उन्होंने परिवार चलाने के लिए पिड़िकिया बनाना शुरू किया और हाट, बाजार, मेला में गांव-गांव घूम घूम कर पिड़िकिया बेचना शुरू कर दिया. तभी से इसका स्वाद लोगों की जुबान पर चढ़ गया.

खाई है लजीज गरमागरम पिड़िकाया
खाई है लजीज गरमागरम पिड़िकाया

साधु ने शुद्ध घी में पिड़िकिया बनाने को दी थी सलाह : गौरीशंकर साह के पोता अनिल गुप्ता ने बताया कि ''सौ वर्ष पूर्व हमारे दादा जी गौरीशंकर साह सिवान जिले से आए थे. पिड़िकिया बनाने का काम शुरू किया था. वे पिड़िकिया को बनाकर गांव-गांव, मेला समेत विभिन्न जगह घूम घूम कर बेचते थे. इसी बीच साधु के रूप में एक बाबा उनके पास पहुंचे और खैनी मांगा. दादा जी ने उन्हे खैनी खिलाई इसके बाद उन्होंने सलाह दी कि शुद्ध घी और खोआ से पिड़िकिया बना कर बेचें तभी विकास होगा.''

शुद्ध देसी घी में बनती गुझिया
शुद्ध देसी घी में बनती गुझिया

शुद्ध घी से बनाने लगे पिड़िकिया : इसके बाद वे आशीर्वाद देकर चले गए. कुछ ही दूरी पर वे अदृश्य हो गए. उन्होंने बताया कि साधु की सलाह पर उन्होंने शुद्ध घी और खोआ से पिड़िकिया बनाना शुरू किया. कुछ ही दिन बाद काफी फायदा हुआ. जिसका नतीजा हुआ की जमीन खरीद कर घर बनाया और दुकान खोल दिया. जिससे काफी फायदा होने लगा. तभी से शुद्ध घी और खोआ से पिड़िकिया बनाने का सिल सिला आज भी कायम है.

गुझिया को पिड़िकिया के नाम से भी जानते हैं
गुझिया को पिड़िकिया के नाम से भी जानते हैं

25 से 30 दुकानें, जुड़े हैं 3 सौ परिवार : थावे मंदिर के पास गौरीशंकर मिष्ठान भंडार के नाम से आपको कई दुकानें एक ही कतार में देखने को मिल जाएगी. इसके अलावा गौरीशंकर मिष्ठान भंडार, गोपालगंज, पटना सिवान और बड़हरिया में भी देखने को मिल जाएगी. कुल 25 से 30 दुकानों से गौरीशंकर के 3 सौ परिवार जुड़े हैं. हलांकि परिवार में कई लोग अन्य पेशा से जरूर जुड़े है. लेकिन पिड़िकिया व्यवसाय से अलग नहीं है.

प्रतिदिन होती है 50 किलो पिड़िकिया की बिक्री : एक दुकान से प्रतिदिन लगभग 50 किलो पिड़िकिया की बिक्री हो जाती है. सोमवार और शुक्रवार को इसकी संख्या और अधिक होती है. चैत्र और शारदीय नवरात्र में इसकी बिक्री एक क्विंटल से अधिक हो जाती है. ताजा और गर्म पिड़िकिया को खरीदना लोग पसंद करते हैं. बताया जाता है कि गौरीशंकर की सभी दुकानों में प्रतिदिन पिड़िकिया बनाई जाती है. इससे लोगों को ताजा पिड़िकिया मिल जाती है. लोग सामने पिड़िकिया बनती देख इसे खरीदना पसंद करते हैं. हर कोई चाहता है कि गर्म पिडिकिया ही खरीदे.

पिड़िकिया के स्वाद ने बनाया दीवाना
पिड़िकिया के स्वाद ने बनाया दीवाना


कैसे बनती है पिड़िकिया : पिड़िकिया बनाने के लिए सबसे पहले मैदा में घी डालकर उसे गूंथ कर तैयार किया जाता है. फिर इसे रोटी की तरह बेलकर इसमें खोये को भर कर इसे पिड़िकिया के अकार में तैयार कर घी में तला जाता है. तली हुए मिठाई को चीनी की चासनी में डुबोया जाता है. कुछ देर बाद उसे चीनी के चासनी से निकाल कर बाहर एक अलग बर्तन में रखा जाता है. फिर इसे खाने के लिए परोसा जाता है.

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पिड़िकिया मिठाई बनाते कारीगर


दूर दूर तक फैली है पिड़िकिया की मिठास : जिले के सुप्रसिद्ध थावे भवानी के दर्शन करने के लिए बिहार, यूपी, झारखंड नेपाल से लोग आते हैं. प्रसाद के तौर पर पिड़िकिया लेकर जाते हैं इसके आलावा जिले के अधिकांश लोग विदेशों में रहते हैं. इस कारण भी लोग इसे विदेशों तक लेकर जाते हैं.


''यूपी के देवरिया से आया हूं तीन साल के बाद आया हूं मां का दर्शन किया. यहां के मशहूर पिड़िकिया को खाया बहुत अच्छा लगा. दो चार किलो घर पर लेकर जाएंगे बच्चों के लिए और मां का दर्शन करने पर जो भी मनोकामना है वह पूरा हो जाता है.''- ठकराल सिंह, श्रद्धालु

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