ETV Bharat / state

गया: वर्षो बाद फल्गु नदी में चल रही 'घड़नई नाव', केवटों के चेहरे पर आई मुस्कान

जिले में पिछले कुछ दिनों से हो रही बारिश के कारण फल्गु नदी में पानी आ गया है. पिंडदानियों की सहूलियत के लिये अब घड़नई नाव चलने लगी है. मेले के अंत मे बंद पड़ी परंपरागत रोजगार शुरू होने से केवटों के चेहरे पर मुस्कान है.

फल्गू नदी में चल रहा घड़नई नाव
author img

By

Published : Sep 27, 2019, 9:44 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 4:14 PM IST

गया: मोक्षधाम गयाजी मोक्षदायिनी फल्गु नदी के बिना अधूरा है. नदी का एक बूंद भी पितरों को मोक्ष देता है. श्रेष्ठ श्रापित फल्गु नदी अंतः सलिला से सतह सलिला भारी बारिश की वजह से हो गयी है. फल्गु नदी में पानी आने से घड़नई नाव चलने लगी है. इस नाव से चलने से पिंडदानियों को सहूलियत हो रही है. नाव चलने से केवटों के चेहरों पर भी मुस्कान है.

जिले में पिछले दो दिनों से झमाझम बारिश हो रही है. बारिश से फल्गु नदी में पानी आ गया है. ऐसे तो फल्गु नदी में पानी पिछले पांचों सालो में न के बराबर रहता था. पानी के लिए पंडित-पुजारी आरती और हवन करते थे. लोग सूखी फल्गु को देखकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करते थे कि कम से कम बरसात के माह में भी पानी आ जाये.

gaya
वर्षों बाद फल्गु नदी में चल रहा घड़नई नाव

फल्गु नदी में आया पानी
इस वर्ष पितृपक्ष मेला के अंत में फल्गु नदी में पानी आ गया है. सुखी नदी तो लोग आराम से पार कर लेते थे, लेकिन कमर भर पानी में सभी पिंडदानियों के लिए पार करना मुश्किल है. ऐसे में केवट घड़े से नाव बनाकर लोगों को इस पार से उस पार ले जाते हैं. इस नाव को स्थानीय लोग घड़नई कहते हैं. मेले के अंत मे बंद पड़ी परंपरागत रोजगार शुरू होने से केवटों के चेहरे पर मुस्कान आ गया है.

केवटों के चेहरे पर मुस्कान
ईटीवी भारत से बातचीत में केवट अमित कुमार सहनी ने बताया कि ये नाव घड़ा और बांस के फटी से बनता है. कई बड़े-बड़े घड़े के जोड़कर इसे बनाया जाता है. इसे खींचकर इस से उस पार ले जाते हैं. एक नाव पर पांच से छह लोग बैठ सकते हैं. केवट ने बताया कि नाव डूबने का डर नहीं रहता क्योंकि फल्गु नदी में पानी कम रहता है.

gaya
फल्गू नदी पार करते पिंडदानी

घड़नई नाव से जुड़ी पौराणिक कथा
सीताकुंड के पुजारी एमपी बाबा ने बताया कि कई सालों से फल्गु में ये नाव चलता आ रहा है. पहले नदी में 4 से 5 महीने पानी रहता था तो नाव चलता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से फल्गु में पानी नहीं रहने का कारण नाव भी नहीं दिखता था. नाव से जुड़ी पौराणिक कथा बताते हुए पुजारी ने कहा कि भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता देवघाट से सीताकुंड इसी घड़नई नाव पर बैठकर आये थे.

गया से ईटीवी भारत के संवाददाता की रिपोर्ट

सरकार की अनदेखी
बता दें कि पिंडदानी विष्णुपद और फल्गु नदी में पिंडदान करके सीताकुंड में बालू का पिंडदान देने जरूर जाते हैं. देवघाट से सामने सीताकुंड है. जब नदी सुखी रहती है तो लोग पार कर जाते हैं. लेकिन पानी आने पर नाव का सहारा लेते हैं या भींगकर नदी पार करते हैं. जिला प्रशासन और स्थानीय विधायक प्रेम कुमार ने लक्ष्मण झूला और फुट ओवरब्रिज बनाने को लेकर कई बार घोषणाएं की लेकिन आज तक इसपर काम नहीं हुआ. पितृपक्ष मेला में पिंडदानीयों के इस समस्या का समाधान फल्गु तट के केवट अपने परंपरागत रोजगार से कर रहे हैं.

गया: मोक्षधाम गयाजी मोक्षदायिनी फल्गु नदी के बिना अधूरा है. नदी का एक बूंद भी पितरों को मोक्ष देता है. श्रेष्ठ श्रापित फल्गु नदी अंतः सलिला से सतह सलिला भारी बारिश की वजह से हो गयी है. फल्गु नदी में पानी आने से घड़नई नाव चलने लगी है. इस नाव से चलने से पिंडदानियों को सहूलियत हो रही है. नाव चलने से केवटों के चेहरों पर भी मुस्कान है.

जिले में पिछले दो दिनों से झमाझम बारिश हो रही है. बारिश से फल्गु नदी में पानी आ गया है. ऐसे तो फल्गु नदी में पानी पिछले पांचों सालो में न के बराबर रहता था. पानी के लिए पंडित-पुजारी आरती और हवन करते थे. लोग सूखी फल्गु को देखकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करते थे कि कम से कम बरसात के माह में भी पानी आ जाये.

gaya
वर्षों बाद फल्गु नदी में चल रहा घड़नई नाव

फल्गु नदी में आया पानी
इस वर्ष पितृपक्ष मेला के अंत में फल्गु नदी में पानी आ गया है. सुखी नदी तो लोग आराम से पार कर लेते थे, लेकिन कमर भर पानी में सभी पिंडदानियों के लिए पार करना मुश्किल है. ऐसे में केवट घड़े से नाव बनाकर लोगों को इस पार से उस पार ले जाते हैं. इस नाव को स्थानीय लोग घड़नई कहते हैं. मेले के अंत मे बंद पड़ी परंपरागत रोजगार शुरू होने से केवटों के चेहरे पर मुस्कान आ गया है.

केवटों के चेहरे पर मुस्कान
ईटीवी भारत से बातचीत में केवट अमित कुमार सहनी ने बताया कि ये नाव घड़ा और बांस के फटी से बनता है. कई बड़े-बड़े घड़े के जोड़कर इसे बनाया जाता है. इसे खींचकर इस से उस पार ले जाते हैं. एक नाव पर पांच से छह लोग बैठ सकते हैं. केवट ने बताया कि नाव डूबने का डर नहीं रहता क्योंकि फल्गु नदी में पानी कम रहता है.

gaya
फल्गू नदी पार करते पिंडदानी

घड़नई नाव से जुड़ी पौराणिक कथा
सीताकुंड के पुजारी एमपी बाबा ने बताया कि कई सालों से फल्गु में ये नाव चलता आ रहा है. पहले नदी में 4 से 5 महीने पानी रहता था तो नाव चलता था. लेकिन पिछले कुछ सालों से फल्गु में पानी नहीं रहने का कारण नाव भी नहीं दिखता था. नाव से जुड़ी पौराणिक कथा बताते हुए पुजारी ने कहा कि भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता देवघाट से सीताकुंड इसी घड़नई नाव पर बैठकर आये थे.

गया से ईटीवी भारत के संवाददाता की रिपोर्ट

सरकार की अनदेखी
बता दें कि पिंडदानी विष्णुपद और फल्गु नदी में पिंडदान करके सीताकुंड में बालू का पिंडदान देने जरूर जाते हैं. देवघाट से सामने सीताकुंड है. जब नदी सुखी रहती है तो लोग पार कर जाते हैं. लेकिन पानी आने पर नाव का सहारा लेते हैं या भींगकर नदी पार करते हैं. जिला प्रशासन और स्थानीय विधायक प्रेम कुमार ने लक्ष्मण झूला और फुट ओवरब्रिज बनाने को लेकर कई बार घोषणाएं की लेकिन आज तक इसपर काम नहीं हुआ. पितृपक्ष मेला में पिंडदानीयों के इस समस्या का समाधान फल्गु तट के केवट अपने परंपरागत रोजगार से कर रहे हैं.

Intro:मोक्षधाम गयाजी मोक्षदायिनी फल्गू नदी के बिना अधूरा है, नदी में पानी रहे या नही रहे,नदी का एक बूंद भी पितरों को मोक्ष देता है। नदियों में श्रेष्ठ श्रापित फल्गू नदी अततः सलिला से सतत: सलिला भारी बारिश के वजह से हो गयी है। फल्गू नदी में पानी आने से जुगाड़ से घड़नई नाव चलने लगा है। इस नाव से चलने से पिंडदानीयो को सहूलियत हैं वही फल्गू के केवटों के चेहरों पर मुस्कान है।


Body:गया में पिछले दो दिनों से झमाझम बारिश होने से फल्गू नदी में पानी आ गया है, ऐसे तो फल्गू नदी में पानी इन पांचों सालो में ना के बराबर रहता था। पानी लाने के लिए नेताओं के तरफ से घोषणाएं होते थे, पंडित-पुजारियों द्वारा आरती व हवन किया जाता था आम लोग सुखी फल्गू को देखकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करते थे फल्गू में कम से कम बरसात में माह भी पानी आ जाये। इस वर्ष पितृपक्ष मेला के अंत मे फल्गू नदी में पानी आ गया है। सुखी नदी तो लोग आराम से पार कर लेते थे लेकिन कमर भर पानी मे सभी पिंडदानी के लिए पार करना मुश्किल है। यहां नदी पट करने के लिए घड़े से नाव बनाकर केवट पिंडदानी को इस पार से उसपार ले जाते हैं। मेला के अंत मे बंद पड़ी परंपरागत रोजगार शुरू होने से केवटों( मल्लाहों) चेहरे पर मुस्कान आ गया है।

गया क्षेत्र में लगातार दो दिन से बारिश होने से फल्गू नदी में पानी आ गया है। पिंडदान करने के लिए लोगो को नदी पार जाना होता है और इसके लिए एक मात्र सहारा नाव है। फल्गू में पानी इतना ज्यादा नही रहता कि बड़ी नाव चल सके , फल्गू के तट के केवटों ने जुगाड़ से घड़े का नाव बनाया है। इसे स्थानीय लोग घड़नई कहते हैं। इस नाव को दो लोग खिंचकर इस पार से उस पार ले जाते हैं।

केवट ने अमित कुमार सहनी ने बताया कि पिछले वर्ष फल्गू में पानी नही आया था, 2017 में थोड़ा बहुत पानी आया था कम दिनों तक नाव चला था। इस वर्ष मेला के अंतिम में पानी आया है हजारो साल पुरानी परंपरागत रोजगार का कम से कम बोहनी तो हुआ है। ये घड़ा और बांस के फ़टी से बनता है। कई बड़े बड़े घडो घडो जोड़कर बनाया जाता हैं। इसे खिंचकर इस से उस पार ले जाते है। एक नाव पर पांच से छः लोग को बैठाते हैं। जिसमे डूबने का डर नही है क्योंकि फल्गू पानी कम रहता है।

सीताकुंड के पुजारी एमपी बाबा ने बताया हमलोग बचपन से इस नाव को देख रहे हैं पहले नदी में 4 से 5 माह पानी रहता था ये माह में नाव चलता था। इधर के दिनों में फल्गू में पानी नही रहने लगा ये नाव भी नही दिखता था। इसके पीछे कथा है जब भगवान राम,लक्ष्मण और माता सीता देवघाट से इस तरफ सीताकुंड तरफ आने के लिए इसी घड़नई नाव पर बैठकर आये थे। हजारो साल पुरानी ये नाव का प्रचलन है।


Conclusion:अधिकांश पिंडदानी विष्णुपद ,फल्गू नदी में पिंडदान करके सीताकुंड में बालू का पिंडदान देने जरूर जाते हैं। देवघाट से सामने सीताकुंड है सुखी नदी रहती है उस नदी को पारकर पिंडदानी पहुँच जाते हैं। पानी आने पर नाव का सहारा लेते हैं या भींगकर नदी पार करते हैं। सरकार , स्थानीय विधायक प्रेम कुमार और जिला प्रशासन ने लक्ष्मण झूला और फुट ओवरब्रिज बनाने को लेकर कई बार घोषणाएं किये लेकिन आज तक नही बना हैं। पितृपक्ष मेला में पिंडदानीयो इस समस्या का समाधान फल्गू तट के मल्लाहों अपने परंपरागत रोजगार से कर रहा है।
Last Updated : Sep 27, 2019, 4:14 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.