गया: टिकारी के तिलकुट की डिमांड ना सिर्फ बिहार में है बल्कि विदेश में रहने वाले लोग भी यहां से तिलकुट मंगवाते हैं. मकर संक्रांति पर इलाके के लोग गया के रमना रोड जाने के साथ टिकारी भी पहुंचते हैं और यहां गुड़ से बने तिलकुट खरीदते हैं.
...तो इसलिए है ज्यादा डिमांड
चर्चित तिलकुट दुकानदार मोहन साव बताते हैं कि यहां के तिलकुट कि डिमांड इसलिए ज्यादा है क्योंकि टिकारी के रकसिया, नोनी, साहोपुर, मल्हेया, बाजितपुर, लाव, खनेटु, बाला बिगहा, मकसूदपुर, जलालपुर आदि दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां के गुड़ से बने तिलकुट का स्वाद निराला होता है. वहीं इसके स्वाद की गुणवत्ता और इसका खास्तापन बनाए रखने के लिए यहां के व्यवसायी कानपुर से ही मंगाए गए तिल का प्रयोग करना बेहतर समझते हैं.
सबसे ज्यादा मोहन साव की दुकान में लगती है भीड़
इस व्यवसाय में टिकारी को प्रसिद्धि दिलाने वाले दुर्गा साव थे. वहीं, टिकारी को उत्कृष्ट तिलकुट उत्पाद के रूप में चर्चित करने वालों में मोहन साव का भी नाम आता है. उनके वंशज कहते हैं कि उनके द्वारा ही निर्मित गुड़ का तिलकुट राज दरबार में उपयोग होता था. आज भी तिल और गुड़ के समिश्रण से बना टिकारी का तिलकुट अपने विशिष्ट स्वाद के कारण अलग स्थान रखता है. साथ ही इसे पाने के लिए लोग 18 से 24 घण्टे पूर्व से नम्बर लगाकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं.
पटना सहित दिल्ली के कई बड़े नेता और अधिकारी आज भी टिकारी की तिलकुट विशेष रूप से मंगवाते हैं. इसके खास स्वाद का राज बताते हुए व्यवसायी मृत्युंजय कुमार कहते हैं कि अच्छे किस्म और स्वादिष्ट खास्ता तिलकुट के लिए इस क्षेत्र के कुछ गांव का गुड़ उपयोग करना उपयुक्त होता है.
अप्रवासी भारतीयों की पसंद
खासकर बिहार के वो लोग जो देश-विदेश के किसी शहर में जा बसे हैं. वो आज भी टिकारी के इस उत्पाद के स्वाद से निर्मित मोह पाश से खुद को अलग नहीं कर पाए हैं. आज भी अपनी माटी की सौंधी महक उन्हें इसी तिलकुट से मिलती है.
मकर सक्रांति पर तिलकुट की डिमांड
दीपावली के बाद से प्रारंभ होने वाला यह तिलकुट व्यवसाय यूं तो होली तक चलता रहता है. लेकिन 14 जनवरी को मकर सक्रांति के समय इसकी मांग अधिक होती है. मकर सक्रांति पर गुड़, चूड़ा, तिलकुट, दूध और दही के साथ सेवन करने की परंपरा हमारे यहां अनादि काल से चली आ रही है.
एक ऊंची छलांग की आस
जब व्यवसाय ही विकास का द्वार पूरी दुनिया में खोलने का काम कर रहा है तो जरुरत इस बात की है कि टिकारी के इस प्रसिद्ध उत्पाद की मार्केटिंग आधुनिक साधनों का सहयोग लेकर पूरी दुनिया में की जाए. कुशल कारीगरों को बैंकों के माध्यम से पूंजी उपलब्ध कराया जाए तो विकास की दुनिया में टिकारी भी एक लंबी छलांग लगा सकता है. बिना किसी राजकीय संरक्षण कर यह व्यवसाय जितनी दूरी तय कर चुका है वो यह बताने के लिए काफी है कि यदि ऐसी कोशिश हुई तो पूरे क्षेत्र के तीव्र विकास के लिए यह पूंजी साबित होगी.