ETV Bharat / state

गयाः लॉकडाउन में ई-पिंडदान पर संशय, पंडा समुदाय कर रहा है विरोध - प्रतिनिधि पिंडदान

गया जी में 17 दिवसीय पिंडदान में आज यानि पूर्णिमा तिथि को फल्गु नदी तीर्थ में स्नान, तर्पण और नदी तट पर खीर के पिंड से फल्गु श्राद्ध करने का विधान है.

gaya
gaya
author img

By

Published : Sep 2, 2020, 9:54 AM IST

Updated : Sep 2, 2020, 10:17 AM IST

गयाः कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए इस बार सभी पर्व त्यौहारों पर ग्रहण लग गया है. मंगलवार से पितृपक्ष शुरू हो गया है, लेकिन इस बार कोरोना को देखते हुए राज्य सरकार ने पितृपक्ष मेला स्थगित कर दिया है. बुधवार से पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाना वाला पिंडदान शुरू हो गया है.

ई-पिंडदान का विरोधी पंडा समाज
कोरोना की वजह से इस बार पारंपरिक पिंडदान की जगह पांच सालों से चली आ रही ई-पिंडदान की व्यवस्था शुरू करने की बात कही जा रही है. जिसका पंडा समुदाय घोर विरोधी है. साथ ही उन्होंने इसे अधार्मिक बताया है. हालांकि अभी राज्य सरकार या किसी माध्यम से पिंडदान की व्यवस्था शुरू नहीं हुई है. इसे पर्यटन विभाग की ओर से यह आयोजित किया जाता है. जिला प्रशासन ने कहा कि विभाग ने इस संबंध कोई भी जानकारी नहीं दी है.

देखें रिपोर्ट

अपने हाथों से पिंडदान करने का महत्व
गयापाल पंडा गोकुल दुबे ने बताया कि पिंडदान करना एक परंपरा है और ऑनलाइन पिंडदान करना फॉर्मोलिटी है. सनातन धर्म के वेद-पुराणों और शास्त्र में भी कहीं घर बैठे पिंडदान करने का जिक्र नहीं है. पिंडदान के लिए गया जी आना अनिवार्य है. यहां जब पितरों के वंशज का पग पड़ता है वे प्रसन्न होते हैं. पितरों को मुक्ति के लिए अपने हाथों से पिंडदान करने का महत्व है.

gaya
पिंडदान

जिला प्रशासन करेगा मदद
पंडा गोकुल दुबे ने कहा कि ई पिंडदान की व्यवस्था सरकार करे या अन्य संस्था हमलोग उसका विरोध करते हैं. इस संबंध में जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि पर्यटन विभाग की तरफ से अभी तक ई पिंडदान को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है. अगर विभाग भविष्य ई पिंडदान शुरू करती है तो जिला प्रशासन हर संभव मदद करेगा.

पितरों की मोक्ष प्राप्ति
पिंडदान को लेकर पूर्व में कुछ अलग नियम थे. कई वर्षों पहले एक साल तक पिंडदान होता था. उस समय पिंडदान करनेवाले को आस पड़ोस के लोग पत्र में पितरों का नाम लिखकर देते थे और उनसे आग्रह करते थे उनका भी पिंडदान कर दें. ये पत्र पिंडदान राजस्थान आज भी देखने को मिल जाती है. इसके साथ ही प्रतिनिधि पिंडदान भी किया जाता है. इसमें जो व्यक्ति लाचार या बीमार है उसकी जगह पर कोई और उसके पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करता है.

पत्र और प्रतिनिधि पिंडदान
पत्र पिंडदान और प्रतिनिधि पिंडदान के बारे में विद्वान कहते हैं कि दोनों लाचारी या मजबूरी में की जाती थी. पत्र पिंडदान का भी जिक्र नहीं है लेकिन ई पिंडदान में कोई भी जाति या कुल का पिंडदान करता है लेकिन पत्र माध्यम से उनके ही मिट्टी या कुल के लोग पिंडदान करते हैं. कुछ लाचारियों की वजह से वे नहीं आ पाते हैं.

gaya
पंडा

'धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षति'
पंडितों ने बताया कि प्रतिनिधि पिंडदान बीमार और लाचार के लिए है, लेकिन इसमें अधिकांश में उनके वंशज उस स्थिति में उपस्थित रहते हैं. उन्होंने कहा कि ई पिंडदान का फल मिलेगा ये किसी को पता नहीं है. यह व्यवस्था आदि काल से नहीं है और इससे धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षति है.

गयाः कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए इस बार सभी पर्व त्यौहारों पर ग्रहण लग गया है. मंगलवार से पितृपक्ष शुरू हो गया है, लेकिन इस बार कोरोना को देखते हुए राज्य सरकार ने पितृपक्ष मेला स्थगित कर दिया है. बुधवार से पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाना वाला पिंडदान शुरू हो गया है.

ई-पिंडदान का विरोधी पंडा समाज
कोरोना की वजह से इस बार पारंपरिक पिंडदान की जगह पांच सालों से चली आ रही ई-पिंडदान की व्यवस्था शुरू करने की बात कही जा रही है. जिसका पंडा समुदाय घोर विरोधी है. साथ ही उन्होंने इसे अधार्मिक बताया है. हालांकि अभी राज्य सरकार या किसी माध्यम से पिंडदान की व्यवस्था शुरू नहीं हुई है. इसे पर्यटन विभाग की ओर से यह आयोजित किया जाता है. जिला प्रशासन ने कहा कि विभाग ने इस संबंध कोई भी जानकारी नहीं दी है.

देखें रिपोर्ट

अपने हाथों से पिंडदान करने का महत्व
गयापाल पंडा गोकुल दुबे ने बताया कि पिंडदान करना एक परंपरा है और ऑनलाइन पिंडदान करना फॉर्मोलिटी है. सनातन धर्म के वेद-पुराणों और शास्त्र में भी कहीं घर बैठे पिंडदान करने का जिक्र नहीं है. पिंडदान के लिए गया जी आना अनिवार्य है. यहां जब पितरों के वंशज का पग पड़ता है वे प्रसन्न होते हैं. पितरों को मुक्ति के लिए अपने हाथों से पिंडदान करने का महत्व है.

gaya
पिंडदान

जिला प्रशासन करेगा मदद
पंडा गोकुल दुबे ने कहा कि ई पिंडदान की व्यवस्था सरकार करे या अन्य संस्था हमलोग उसका विरोध करते हैं. इस संबंध में जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि पर्यटन विभाग की तरफ से अभी तक ई पिंडदान को लेकर कोई जानकारी नहीं दी गई है. अगर विभाग भविष्य ई पिंडदान शुरू करती है तो जिला प्रशासन हर संभव मदद करेगा.

पितरों की मोक्ष प्राप्ति
पिंडदान को लेकर पूर्व में कुछ अलग नियम थे. कई वर्षों पहले एक साल तक पिंडदान होता था. उस समय पिंडदान करनेवाले को आस पड़ोस के लोग पत्र में पितरों का नाम लिखकर देते थे और उनसे आग्रह करते थे उनका भी पिंडदान कर दें. ये पत्र पिंडदान राजस्थान आज भी देखने को मिल जाती है. इसके साथ ही प्रतिनिधि पिंडदान भी किया जाता है. इसमें जो व्यक्ति लाचार या बीमार है उसकी जगह पर कोई और उसके पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान करता है.

पत्र और प्रतिनिधि पिंडदान
पत्र पिंडदान और प्रतिनिधि पिंडदान के बारे में विद्वान कहते हैं कि दोनों लाचारी या मजबूरी में की जाती थी. पत्र पिंडदान का भी जिक्र नहीं है लेकिन ई पिंडदान में कोई भी जाति या कुल का पिंडदान करता है लेकिन पत्र माध्यम से उनके ही मिट्टी या कुल के लोग पिंडदान करते हैं. कुछ लाचारियों की वजह से वे नहीं आ पाते हैं.

gaya
पंडा

'धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षति'
पंडितों ने बताया कि प्रतिनिधि पिंडदान बीमार और लाचार के लिए है, लेकिन इसमें अधिकांश में उनके वंशज उस स्थिति में उपस्थित रहते हैं. उन्होंने कहा कि ई पिंडदान का फल मिलेगा ये किसी को पता नहीं है. यह व्यवस्था आदि काल से नहीं है और इससे धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षति है.

Last Updated : Sep 2, 2020, 10:17 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.