गया: गया में एक ऐसा बाजार है जहां कूड़ा को फेंका नहीं जाता है, बल्कि संजोकर रखा जाता है. गया के चौक सर्राफा बाजार में 200 से अधिक दुकानें हैं. जिस दुकान में कारीगरी होती है, वहां टीन के बर्तन में कूड़े को रखा जाता है. न्यारा समुदाय के लोग आकर संयोजित कूड़े की बोली लगाते हैं. मतलब गया का ये बाजार कूड़ों के इस जंजाल में एक उत्तम संदेश दे रहा है.
'कूड़े-कचरे के साथ चला जाता है'
गया शहर के बीचो-बीच जीबी रोड स्थित सर्राफा बाजार है. जहां दर्जनों छोटी-बड़ी ज्वेलरी की दुकानें और करखाने हैं, जहां सोने के आभूषणों की कटिंग, पोलिश, फिनिशिंग के बाद ज्वेलरी दुकानों तक आभूषण पहुंचाए जाते हैं. सर्राफा बाजार में दर्जनों ऐसे करखाने हैं, जहां सोने की कटिंग से लेकर आभूषण तक बनाया जाता है. सोने के आभूषण बनाने वाले दुकानदार सोने की पतली और छोटी सोने के कणों से आभूषण बनाते हैं. एक सोने का कण अगर गिर जाए तो ढूंढ़े भी नहीं मिलता है. वहीं, सोने का छोटा टुकड़ा कूड़े-कचरे के साथ चला जाता है. इसलिए कूड़े को दुकानदार फेंकते नहीं हैं.
न्यारी समुदाय लगाता है बोली
बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय कुमार ने बताया कि हम लोगों को ग्राहकों की ओर से नए-नए तरह के आभूषण बनाने के लिए दिया जाता है. जिसे हम कारीगर को देते हैं. आभूषण बनाने के दौरान कटिंग करते समय सोने के छोटे-छोटे कण टूट कर गिर जाते हैं. जिसका पता भी नहीं चलता. इस छोटे कण को उठाने के लिए प्रतिदिन दुकान खोलने के समय लोग दुकान के अंदर ब्रश सफाई करते हैं. कचरे के साथ सोने का कण भी कचरे में आ जाता है. जिसे कूड़े के डिब्बे में रख जाता है. जिसे न्यारा बोला जाता है. न्यारी समुदाय के लोग कूड़े में पड़े सोने को देख अनुमानित राशि की बोली लगाते हैं.
30 से 40 हजार होती है कमाई
कारीगर मनीष कुमार ने बताया मैं 17 सालों से काम कर रहा हूँ, न्यारा को फेंकते नहीं है. न्यारा भले सबके लिए कूड़ा होगा लेकिन हमारे लिए सोना है. साल भर में न्यारा से कम से कम 30 से 40 हजार की कमाई होती है.