गया : बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2023 का गुरुवार से शुभारंभ हो गया है. यह पितृपक्ष मेला 14 अक्टूबर तक चलेगा. पहला दिन पुनपुन पटना में पिंडदानियों ने श्राद्ध तर्पण का कर्मकांड किया, जो तीर्थयात्री पुनपुन को नहीं पहुंच सके, उन्होंने गया के गोदावरी सरोवर में पिंडदान किया. पितृपक्ष मेले के दूसरे दिन गया जी में खीर से श्राद्ध पिंडदान का कर्मकांड होता है. द्वितीय दिन फल्गु स्नान, प्रेत शिला जाकर ब्रह्म कुंड तथा प्रेतशिला पर पिंडदान, वहां से रामशिला जाकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान और वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक यम तथा स्वान बलि नामक पिंडदान करना चाहिए.
ये भी पढ़ें- Pitru Paksha 2023: रूस-यूक्रेन युद्ध में मारे गए लोगों का गया में होगा पिंडदान, विदेशी निभाएंगे सदियों पुरानी परंपरा
गया धाम में फल्गु नदी की विशेष महिमा : गया धाम में फल्गु नदी की विशेष महिमा है. यह गया के पूर्व में बहने वाली नदी है. श्रद्धालु इसे भगवान विष्णु से ओतप्रोत मानते हैं. कहा जाता है, कि फल्गु नदी को सदैव अंदर ही अंदर बहने वाली नदी का श्राप माता सीता के द्वारा दिया गया था. तभी से फल्गु अतःसलिला हो गई है. हालांकि फिलहाल में यहां लबालब पानी है. क्योंकि फल्गु में गयाजी डैम का निर्माण किया गया है. हालांकि डैम के अलावा यहां से हटकर फल्गु नदी अंत: सलिला ही है. गयाजी धाम की मुख्य वेदियों में से एक फाल्गुनी नदी है. फल्गु नदी को भगवान विष्णु की जलापूर्ति मानते हैं.
हजारों तीर्थ यात्री करेंगे गया में पिंडदान: पितृ पक्ष मेला के दूसरे दिन गया जी में फल्गु स्नान, फल्गु तट पर खीर से पिंडदान का विशेष महत्व है. पहले दिन पुनपुन के बाद दूसरे दिन गया जी में फल्गु के अलावा अन्य वेदियों पर पिंडदान का कर्मकांड होता है, तो ऐसे में इस दिन गया जी धाम में देवघाट पर हजारों तीर्थयात्री जुटेंगे और पितरों के पिंडदान का कर्मकांड करेंगे.
ये भी पढ़ेंः Pitru Paksha 2023 : अब घर बैठे गयाजी में करें पिंडदान.. जानें कैसे होता है ऑनलाइन श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान
प्रथम और द्वितीय दिन का श्रद्ध: पहला दिन- 28 सितंबर, पुनपुन तट पर श्राद्ध और पितृपक्ष मेले का उद्घाटन हो चुका है. दूसरे दिन यानी आज 29 सितंबर को फल्गु नदी के तट पर खीर के पिंड से श्राद्ध, फल्गु स्नान, प्रेतशिला जाकर ब्रह्मकुंड तथा प्रेतशिला पर पिंडदान वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान और वहां से नीचे आकर काक बली स्थान पर काक यम तथा स्वान बलि नामक पिंडदान करना चाहिए.
तीसरे से पाचंवें दिन का क्रिया कलाप : तीसरे दिन यानी 30 सितंबर को प्रेतशिला, रामकुंड रामशिला ब्रह्मकुंड काकबली पर श्रद्धा करना चाहिए. चौथे दिन 1 अक्टूबर को उत्तर मानस, उदीची, कनखल, दक्षिण मानस, जिहवा लोल वेदी पर पिंडदान करना चाहिए. पांचवे दिन यानी 2 अक्टूबर को धर्मारणय बोधगया, सरस्वती स्नान, मातंग वापी, बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे श्राद्ध करना चाहिए.
छठे से 12वें दिन का श्राद्ध : छठे दिन 3 अक्टूबर को ब्रह्म सरोवर पर श्राद्ध, आम्र सिंचन, काकबली पर पिंडदान श्राद्ध करना चाहिए. सातवें दिन 4 अक्टूबर को विष्णुपद मंदिर में रूद्र पद ब्रह्म पद और विष्णुपद में खीर के पिंड से श्राद्ध करना चाहिए. आठवां, नौवां और दसवां दिन-5, 6, 7 अक्टूबर को विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी नामक मंडप में 14 स्थानों पर पिंडदान करना चाहिए. 11वें दिन यानी 8 अक्टूबर को राम गया में श्राद्ध, सीता कुंड में श्राद्ध करना चाहिए. 12वें दिन यानी 9 अक्टूबर को गया सिर और गयाकूप पिंडदान करना चाहिए.
13वें से आखिरी दिन का श्राद्ध कर्म : 13वें दिन 10 अक्टूबर को मुण्ड पृष्ठा, आदि गया और धौत पद में खोवे या तिल गुड़ से पिंडदान करना चाहिए.11 अक्टूबर को 14 वां दिन है इस दिन भीम गया गो प्रचार के पास पिंडदान करना चाहिए. 15वां दिन यानी 12 अक्टूबर को फल्गु स्नान करके दूध का तर्पण, गायत्री, सावित्री तथा सरस्वती तीर्थ पर क्रमशः प्रात: मध्याह्न साह और सायं स्नान एवं संध्या करना चाहिए. 16 वें दिन 13 अक्टूबर को वैतरणी स्नान और तर्पण किया जाता है. 17 वें और आखिरी दिन यानी 14 अक्टूबर को अक्षयवट के नीचे श्राद्ध और ब्राह्मण भोजन, यहीं पर गयापाल पंडों द्वारा सुफल विदाई दी जाएगी.
ये भी पढ़ेंः ...
Pitru Paksha Mela 2023: आज से पितृ पक्ष की शुरुआत, जानें तर्पण की तिथियां और विधि