गया: बिहार के गया में सरस्वती पूजा (Saraswati Puja 2023) को लेकर चारों ओर उत्साह का माहौल है. इस बार भी बाजारों में पारंपरिक तरीके से बनाई गई मिट्टी की मूर्तियों और प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाई मूर्तियां खूब बिक रही है. हालांकि इस बीच मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले कलाकार निराश हैं. इसकी वजह है इन मूर्तियों की डिमांड, जो धीरे-धीरे आधी हो गई है. लोग सुविधा के अनुसार अपनी धार्मिक परंपराओं को भूलकर प्लास्टर ऑफ पेरिस से निर्मित मूर्तियों की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार मिट्टी से बनी प्रतिमा का ही पूजन और विसर्जन होना चाहिए. प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां विसर्जित नहीं हो पाती हैं.
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राजस्थानी कलाकार बना रहे आकर्षक मूर्तियां: राजस्थानी कलाकार गया में अपनी कलाकारी दिखा रहे हैं. यह एक से बढ़कर एक आकर्षक मूर्तियां तैयार कर रहे हैं. राजस्थानी महिला-पुरुष कलाकारों द्वारा मूर्तियों को बनाया जा रहा है. फिलहाल सरस्वती पूजा को देखते हुए मां सरस्वती की प्रतिमा बनाई गई है. इनकी बनाई करीब 3000 मूर्तियां बेची भी जा चुकी है. इसमें बड़ी बात यह है, इन मूर्तियों में प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग बताया जा रहा है. हालांकि राजस्थान के कलाकार इससे इनकार करते हैं. उनका कहना है कि प्लास्टर ऑफ पेरिस का उपयोग सिर्फ पोता लगाने के लिए करते हैं. मूर्ति बनाने में खड़िया मिट्टी पटना से लाते हैं. मूर्ति बनाने वाली शारदा देवी कहती है कि बहुत सारी मूर्तियां इस साल बनाई गई है, जिससे अच्छी बिक्री हुई है. इस साल 500 से लेकर 3 से 5 हजार तक की भी मूर्तियां बिकी है.
बिहार में होती है अच्छी कमाई: राजस्थानी कारीगर शंकर और उसकी पत्नी शारदा बताते हैं कि राजस्थान में काफी ज्यादा कलाकार हैं, जो इस तरह की मूर्तियां बनाते हैं. ऐसे में वहां उनकी आमदनी अच्छी नहीं हो पाती है, इसे लेकर वो बिहार की ओर रुख करते हैं. यहां मूर्तियों की काफी बिक्री होती है और अच्छी कमाई भी होती है. इस वर्ष भी आधा दर्जन के करीब राजस्थानी परिवार गया आए हैं और मूर्तियां बनाने में लगे हुए हैं. शारदा बताती हैं, कि इस वर्ष 500 से 600 मूर्तियां बन चुकी है और इसमें से सभी ऑडर भी हो चुके हैं. राजस्थान के कई परिवार के लोग यहां आकर मूर्तियां बना रहे हैं. तंबू लगाकर किसी तरह निवास करते हैं और अपनी कला से आकर्षक मूर्तियां बनाते हैं. वह बताती हो कि प्रतिमा बनाने में प्लास्टर ऑफ पेरिस का सिर्फ पोता देते हैं. मूर्ति का निर्माण खड़िया मिट्टी से करते हैं. राजस्थानी कलाकारों का परिवार प्रतिमा की अच्छी बिक्री से काफी खुश है.
"राजस्थान में काफी ज्यादा कलाकार हैं, जो इस तरह की मूर्तियां बनाते हैं. ऐसे में वहां उनकी आमदनी अच्छी नहीं हो पाती है, इसे लेकर वो बिहार की ओर रुख करते हैं. यहां मूर्तियों की काफी बिक्री होती है और अच्छी कमाई भी होती है. इस वर्ष भी आधा दर्जन के करीब राजस्थानी परिवार गया आए हैं और मूर्तियां बनाने में लगे हुए हैं. इस वर्ष 500 से 600 मूर्तियां बन चुकी है और इसमें से सभी ऑडर भी हो चुके हैं."-शारदा, राजस्थानी महिला कलाकार
मिट्टी से मूर्ति बनाने वाले कारीगर निराश: दूसरी और मिट्टी का सिर्फ उपयोग कर पारंपरिक तरीके से मां सरस्वती की भव्य और आकर्षक प्रतिमा बनाने वाले कलाकार कम बिक्री से निराश हैं. कहते हैं कि मिट्टी की प्रतिमाओं की बिक्री पहले जैसी नहीं रही. पहले प्लास्टर ऑफ पेरिस की डिमांड नहीं थी लेकिन अब लोग प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां खरीदने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं. मिट्टी की प्रतिमाएं बनाने वाले कारीगर गंगा प्रसाद बताते हैं कि पहले डेढ़ सौ से अधिक मूर्तियां सरस्वती पूजा में बेचा करते थे, लेकिन इस बार 50 मूर्तियां ही बनाई गई है. ऑडर बहुत ही कम आया था, 50 मूर्तियों में 25 की ही बिक्री हो पाई है. अब अंतिम समय है, यह सोचकर काफी निराश हैं. गंगा प्रसाद बताते हैं कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों की बिक्री ज्यादा हो रही है. यही वजह है कि मिट्टी की मूर्तियों की मांग कम है. अपनी सुविधा के ख्याल से प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां खरीदने में लोग ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
"पहले डेढ़ सौ से अधिक मूर्तियां सरस्वती पूजा में बेचा करते थे, लेकिन इस बार 50 मूर्तियां ही बनाई गई है. ऑडर बहुत ही कम आया था, 50 मूर्तियों में 25 की ही बिक्री हो पाई है. अब अंतिम समय है, यह सोचकर काफी निराश हैं. प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों की बिक्री ज्यादा हो रही है. यही वजह है कि मिट्टी की मूर्तियों की मांग कम है. अपनी सुविधा के ख्याल से प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां खरीदने में लोग ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं."-गंगा प्रसाद, मिट्टी के मूर्ति कलाकार
सनातन धर्म में मिट्टी की मूर्तियों की पूजा की परंपरा: वहीं इस संबंध में पंडित नारायण स्वामी बताते हैं कि सनातन धर्म में मिट्टी की मूर्तियों से पूजन और विसर्जन की परंपरा रही है. प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां इसलिए योग्य नहीं कही जा सकती है, क्योंकि वह विसर्जित नहीं हो पाती है. वह बताते हैं कि सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मूर्ति की स्थापन करते हैं तो उसका विसर्जन होना चाहिए और मिट्टी से बनी मूर्तियों में ही यह हो पाता है. प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियां विसर्जित नहीं हो पाती है. जल में नहीं घुल पाने के कारण वह काफी समय तक वैसी ही बनी रहती है. धार्मिक और पर्यावरण की दृष्टि से देखें तो दोनों तथ्यों पर प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां का उपयोग नहीं होना चाहिए. मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में जाते ही घुल जाती है. प्रतिमाओं को ऐसा ही होना चाहिए कि विसर्जन के बाद उसकी छवि ना दिखे.
"सनातन धर्म में मिट्टी की मूर्तियों से पूजन और विसर्जन की परंपरा रही है. प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां इसलिए योग्य नहीं कही जा सकती है, क्योंकि वह विसर्जित नहीं हो पाती है. वह बताते हैं कि सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार मूर्ति की स्थापन करते हैं तो उसका विसर्जन होना चाहिए और मिट्टी से बनी मूर्तियों में ही यह हो पाता है. प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियां विसर्जित नहीं हो पाती है. जल में नहीं घुल पाने के कारण वह काफी समय तक वैसी ही बनी रहती है. धार्मिक और पर्यावरण की दृष्टि से देखें तो दोनों तथ्यों पर प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां का उपयोग नहीं होना चाहिए. मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में जाते ही घुल जाती है. प्रतिमाओं को ऐसा ही होना चाहिए कि विसर्जन के बाद उसकी छवि ना दिखे."-पंडित नारायण स्वामी, पुजारी, दुर्गा मंदिर
40 किलोमीटर दूर से आए ग्राहक: प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों की खरीद कर रहे गौतम कुमार ने बताया कि वह पिछले 3 सालों से इसी से बनी मूर्तियों को पूजा के लिए ले जा रहे हैं. वह मुर्ति लेने 40 किलोमीटर दूर से आए हैं. प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्ति कहीं भी ले जाने में सुविधाजनक होता है. इसी को लेकर प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियों का ही उपयोग कर रहे हैं और पिछले कई सालों से यही मूर्ति ले जाते हैं. यहां मुर्तियों की कीमत भी बहुत कम रहती है.