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9 सितंबर से शुरू होगा पितृपक्ष मेला, जानिए गया में ही क्यों पितरों का श्राद्ध करने जाते हैं लोग? - Significance of Pind Daan in Gaya

गया में पितृपक्ष मेला 2022 (Pitru Paksha Mela 2022) की तैयारी पूरी कर ली गई है. देश के कई स्थानों पर पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान और तर्पण की परंपरा है लेकिन बिहार के गया में पिंडदान का खासा महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गया में पिंडदान करने से 121 कुल और 7 गोत्र का उद्धार होता है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

गया में पितृपक्ष मेला 2022
गया में पितृपक्ष मेला 2022
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Published : Sep 4, 2022, 5:26 PM IST

Updated : Sep 6, 2022, 12:51 PM IST

गया: बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2022 आगामी 9 सितंबर से शुरू होने जा रहा है. कोरोना काल के 2 वर्षों के बाद पितृपक्ष मेला शुरू हो रहा है. गया के पितृपक्ष मेले का खासा महत्व रहा है. पुराणों और शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु ने यहां अपना दाहिना पांव गयासुर पर रखा था. इसका महत्व इतना है कि शमी वृक्ष के पत्ते के समान पिंड का दाना भी गया क्षेत्र विष्णुपद में रख देने मात्र से सात गोत्र और 121 कुलों का उद्धार होता है.

ये भी पढ़ें-मसौढ़ी के पुनपुन नदी के तट पर पिंडदान का खासा महत्व, सबसे पहले भगवान श्रीराम ने यहीं किया था तर्पण

गया में पिंडदान का क्यों है खास महत्व?: समस्त विश्व में पूर्वजों, पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गया क्षेत्र ही एकमात्र पुण्य क्षेत्र माना जाता है. जहां पुत्र अपने पिता-पूर्वजों के लिए श्राद्ध तर्पण करते हैं. मान्यता है कि यहां सभी पितर को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है. गया क्षेत्र गयासुर राक्षस के नाम पर हुआ. भगवान श्री हरि विष्णु ने यहां अपना दाहिना पांव गयासुर पर रखा था. नारायण गदा लेकर गया आए थे. गया गजाधर क्षेत्र इसी के नाम पर हुआ. यहां पावन नदी फाल्गुनी है, जिसे मोक्षदायिनी फल्गु कहा जाता है.

पुराणों में गया क्षेत्र का वर्णन: पंडित राजा अचार्य बताते हैं कि वायु पुराण, पद्यम पुराण, स्कंद पुराण समेत अनेक पुराणों और शास्त्रों में गया क्षेत्र का वर्णन है. वायु पुराण में भी गया का महत्व बताया गया है. यहां कितनी वेदियां हैं, कितनी वेदियों में आकर श्राद्ध तर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसका उल्लेख है. वर्तमान में यहां 48 वेदी उपस्थित हैं. महालया पक्ष में आकर त्रिपक्षिक श्राद्ध के रूप में किया जाता है. अनंत चतुर्दशी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी से आरंभ होकर आश्विन कृष्ण पक्ष संपूर्ण तिथि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि तक यानी 17 दिवसीय पिंडदान कार्य चलता है.

पिंडदान से पितरों को होती है उत्तम लोग की प्राप्ति: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पितर ऊपर से देखते हैं कि उनका वंशज गया की यात्रा पर जा रहा है, यह देख पितर उत्सव मनाने लगते हैं. पितर के स्मरण मात्र से पितरों को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि शमी वृक्ष के पत्ता के समान पिंड का दाना भी गया क्षेत्र विष्णुपद में रखकर कोई चला जाए तो उसके साथ गोत्र और 121 कुलों का उद्धार हो जाता है. विष्णुपद में प्राचीन काल में और भी वेदियां थी. इसमें से काफी संख्या में वेदी लुप्त हो गई है. पितरों को पिंड की कामना रहती है. काशी, गया और प्रयाग पुण्य क्षेत्रों में जाना जाता है, इसमें गया धाम में तर्पण करना श्रेयस्कर है.

गया में श्राद्ध की महत्ता : गया क्षेत्र को ही श्राद्ध के लिए प्रधान माना जाता है. काशी, प्रयागराज, बद्री गोकर्ण जैसे पुण्य क्षेत्र हैं, जहां श्राद्ध किया जाता है लेकिन गयाजी में भगवान विष्णु खुद उपस्थित होकर अपना चरण गयासुर पर रखे थे. चरण कमल पर पिंड देते हैं, तो पितरों को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है. इसलिए गया क्षेत्र में अवश्य आकर पिंड दान करना चाहिए. यहां की 48 वेदियों में पिंंड प्रदान करना श्रेयस्कर होता है. पिंडदान के लिए 1 दिन से लेकर 17 दिन का विधान है. 1 से लेकर 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन, 12 दिन, 15 दिन, 17 दिन का श्राद्ध कार्य तीर्थयात्री कर सकते हैं.

ये हैं यहां की प्रधान वेदियां: यहां की प्रधान वेदियों में विष्णु वेदी, फल्गु वेदी, प्रेतशिला, रामशिला, धर्मारणय, दक्षिण मानस, उत्तर मानस, भीम गया, आदि गजाधर, गदा लोल, सीता कुंड, गयेश्वरी देवी, काकबली, ब्रह्मसरोवर, मंगला गौरी, आकाशगंगा समेत अन्य हैं.

फल्गु में पानी तीर्थयात्रियों के लिए बिल्कुल नया होगा: इस बार अंत: सलिला फल्गु नदी में रबर डैम बनाया गया है, जिससे यहां पानी रहेगा. इस बार पावन फल्गु में पानी का होना तीर्थ यात्रियों के लिए बिल्कुल नया होगा. फल्गु में पानी होने के कारण तीर्थयात्रियों को तर्पण में आसानी होगी. गौरतलब हो कि फल्गु अंत: सलिला रही है. किंतु इस बार रबर डैम बना कर इसमें पानी स्टोर किया गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सीता के श्राप से फल्गु अंत: सलिला हुई थी.

गया जी में वर्तमान वेदियां: गया जी में वर्तमान में प्रमुख वेदियों में फल्गु तीर्थ, विष्णुपद मंदिर, गदाधर भगवान, गया सिर, मुंड पृष्ठा, आदि गया, धौतपद, सूरजकुंड, जिह्वा लोल, राम गया सीता कुंड, उत्तर मानस, रामशिला, काकबली, प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, वैतरणी, भीम गया, भसमकुट, गो प्रचार, ब्रह्मसरोवर, अक्षयवट, रुक्मिणी सरोवर, गदा लोल, मंगला गौरी, आकाशगंगा, गायत्री देवी, संकटा देवी, ब्रह्मयोनी, सरस्वती, सावित्री कुंड, सरस्वती नदी, मातंगवापी, धर्मारणय बुद्ध गया हैं.

गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है.

प्रथम दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करके संध्या करनी चाहिए.

द्वितीय दिन: फल्गु स्नान, प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड तथा प्रेतशिला पर पिंडदान वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान और वहां से नीचे आकर का काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.

तृतीय दिन: फल्गु स्नान करके उत्तर मानस, वहां स्नान तर्पण पिंडदान उत्तरारक दर्शन और वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.

चतुर्थ दिन: फल्गु स्नान, मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान धर्मेश्वर दर्शन, पिंडदान और वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना है.

पंचम दिन: फल्गु स्नान, मतंग वापी में जाकर स्नान तर्पण पिंडदान, ब्रह्मसरोवर प्रदक्षिणा, वहां काक, यम, स्वान बली और फिर स्नान करना चाहिए.

षष्ठ दिन: फल्गु स्नान, विष्णुपद दक्षिणा अग्नीपद वेदियों का आवाहन जो कि विष्णु मंदिर में ही मानी जाती है, के दर्शन और उन पर श्राद्ध पिंडदान. वहां से गज कर्णिका में तर्पण और गया सिर पर पिंडदान. मुंड पृष्टा पर पिंड दान करना चाहिए.

सप्तम दिन: फल्गु स्नान, श्राद्ध, अक्षय वट जाकर अक्षय वट के नीचे श्राद्ध और वहां 3 या 1 ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. यहीं गया पाल पंडों के द्वारा सुफल दिलाई जाती है.

गया में आश्विन कृष्ण पक्ष में अधिक लोग श्राद्ध करने आते हैं. पूरे श्राद्ध पक्ष में यहां रहते हैं. श्राद्ध पक्ष के लिए पिंडदान आदि इस प्रकार हैं.

  1. भाद्र शुक्ल चतुर्दशी- पुनपुन तट पर श्राद्ध.
  2. भाद्र शुक्ल पूर्णिमा- फल्गु नदी में स्नान और तट पर खीर के पिंड से श्राद्ध.
  3. अश्विन कृष्ण प्रतिपदा- ब्रह्म कुंड, प्रेतशिला, राम कुंड एवं राम शिला और काकबली पर श्राद्ध करना चाहिए.
  4. आश्विन कृष्ण द्वितीया- उत्तर मानस, कनखल दक्षिण मानस और वेदियों पर पिंड दान करना चाहिए.
  5. आश्विन कृष्ण तृतीया- सरस्वती स्नान मातंग वापी, धर्मारणय और बोधगया में श्राद्ध करना चाहिए.
  6. आश्विन कृष्ण चतुर्थी- ब्रह्मसरोवर काकबली पर पिंडदान श्राद्ध करना चाहिए.
  7. आश्विन कृष्ण पंचमी- विष्णुपद मंदिर में रूद्र पद, ब्रह्मा पद और विष्णुपद में खीर के पिंड से श्राद्ध करना चाहिए.
  8. अश्विन कृष्णा षष्ठी से अष्टमी तक- विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी नामक मंडप में 14 स्थानों पर और आसपास के मंडप में 2 स्थान पर पिंडदान होता है. वेदियों के नाम हैं, कार्तिकपद, इंद्रपद अगस्त्य पद और कश्यप पद आदि, अष्टमी को 16 वेदी नामक मंडप में दूध से गजकर्ण तर्पण होता है.
  9. आश्विन कृष्ण नवमी- राम गया में श्राद्ध और सीता कुंड पर माता-पिता और प्रपितामही को बालू के पिंड दिए जाते हैं.
  10. आश्विन कृष्ण दशमी- गया तीर्थ और गया कूप के पास पिंड दान करना चाहिए.
  11. आश्विन कृष्ण एकादशी- मुंड पृष्टा आदि गया में खोए या तिल गुड़ से पिंड दान करना चाहिए.
  12. अश्विन कृष्ण द्वादशी- भीम गया, गो प्रचार और गदा लोल में पिंड दान करना चाहिए.
  13. आश्विन कृष्ण त्रयोदशी- फल्गु स्नान करके दूध का तर्पण, गायत्री सावित्री तथा सरस्वती तीर्थों पर क्रमशः प्रातः मध्याह्न संध्या स्नान करना चाहिए.
  14. आश्विन कृष्ण चतुर्दशी- वैतरणी स्नान और तर्पण किया जाता है.
  15. आश्विन कृष्ण अमावस्या- अक्षय वट के नीचे श्राद्ध, ब्राह्मण भोजन, यहीं पर गयापाल पंडों द्वारा सुफल विदाई दी जाएगी.
  16. आश्विन शुक्ल प्रतिपदा- गायत्री घाट पर दही अक्षत का पिंड देकर गया श्राद्ध समाप्त किया जाता है.

बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम का पितृपक्ष को लेकर टूरिज्म पैकेज: इस बार बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम के द्वारा पिंडदान करने के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए पैकेज लाया गया है. यह पैकेज 9 सितंबर से लेकर 25 सितंबर तक के लिए अलग-अलग पैकेज में है. इसमें ई पिंडदान की भी व्यवस्था की गई है. पैकेज ऑनलाइन बुकिंग करवा सकते हैं और इसकी पूरी जानकारी बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम की वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगी. छह तरह के पैकेज एक रात और 2 दिनों का होगा. इसमें होटल से लेकर पिंडदान, दान दक्षिणा और वीडियोग्राफी के खर्च शामिल किए गए हैं.

  1. गया से गया का पैकेज: गया से गया पिंडदान को आने वाले एक व्यक्ति से 12180 और दो व्यक्ति के लिए 13440 रुपए लिए जाएंगे. यह पैकेज एक रात और 2 दिन का होगा.
  2. गया से गया: गया से गया एक रात और 2 दिन के लिए कैटेगरी वन में एक व्यक्ति का शुल्क 19425 रुपए रखा गया है.
  3. गया-बोधगया-राजगीर-नालंदा का पैकेज: गया-बोधगया -राजगीर -नालंदा पैकेज एक रात और 2 दिनों का है. पहले कैटेगरी के लिए एक व्यक्ति को 14700 और दो व्यक्ति को 16500 देने होंगे.
  4. पटना,पुनपुन, गया, बोधगया, नालंदा, राजगीर,पटना पैकेज: इस पैकेज में एक रात और 2 दिनों के लिए गया में पिंडदान कराकर नालंदा और राजगीर घुमाने की व्यवस्था दी जा रही है. इसमें तीन कैटेगरी शामिल किए गए हैं. प्रथम कैटेगरी में एक व्यक्ति का शुल्क 20025, दो व्यक्तियों का 20655, चार व्यक्तियों का 38720, कैटेगरी टू में एक व्यक्ति का 18750, दो व्यक्ति का 19605 और चार व्यक्ति का 36820 चार्ज लगेगा. कैटेगरी 3 में एक व्यक्ति के लिए 17925, दो के लिए 18555 और चार के लिए 34520 देना होगा.
  5. पटना, पुनपुन, गया, पटना पैकेज: इसी तरह पटना, पुनपुन, गया, पटना पैकेज 1 दिन का है. इसमें पटना से पुनपुन और गया में पूजा करके वापस पटना आना होगा. इस पैकेज में तीन कैटेगरी रखे गए हैं. कैटेगरी-1 में एक व्यक्ति के लिए शुल्क 15825, दो व्यक्ति के 16455, चार व्यक्ति के 29165 चार्ज देने होंगे. कैटेगरी टू में एक व्यक्ति को 14770, दो को 15405 और 4 को 27072 देना होगा.ॉ
  6. ई पिंडदान की रहेगी सुविधा: इसी तरह ई-पिंडदान की भी सुविधा इस बार रहेगी. देश के अलावे विदेश में रहने वाले यदि गया आकर पिंडदान में असमर्थ हैं, तो उनके लिए ई पिंडदान की व्यवस्था की गई है. 21500 में 3 जगहों पर पिंडदान कराया जाएगा. इसमें पंडित, दान दक्षिणा, विधि विधान का शुल्क शामिल रखा जाएगा. इसका वीडियो क्लिप भी श्रद्धालुओं को भेजा जाएगा.

ये भी पढ़ें-गया में पिंडदान को लेकर तैयारियां पूरी, कोरोना काल में जान लें नए नियम

गया: बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2022 आगामी 9 सितंबर से शुरू होने जा रहा है. कोरोना काल के 2 वर्षों के बाद पितृपक्ष मेला शुरू हो रहा है. गया के पितृपक्ष मेले का खासा महत्व रहा है. पुराणों और शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु ने यहां अपना दाहिना पांव गयासुर पर रखा था. इसका महत्व इतना है कि शमी वृक्ष के पत्ते के समान पिंड का दाना भी गया क्षेत्र विष्णुपद में रख देने मात्र से सात गोत्र और 121 कुलों का उद्धार होता है.

ये भी पढ़ें-मसौढ़ी के पुनपुन नदी के तट पर पिंडदान का खासा महत्व, सबसे पहले भगवान श्रीराम ने यहीं किया था तर्पण

गया में पिंडदान का क्यों है खास महत्व?: समस्त विश्व में पूर्वजों, पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए गया क्षेत्र ही एकमात्र पुण्य क्षेत्र माना जाता है. जहां पुत्र अपने पिता-पूर्वजों के लिए श्राद्ध तर्पण करते हैं. मान्यता है कि यहां सभी पितर को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है. गया क्षेत्र गयासुर राक्षस के नाम पर हुआ. भगवान श्री हरि विष्णु ने यहां अपना दाहिना पांव गयासुर पर रखा था. नारायण गदा लेकर गया आए थे. गया गजाधर क्षेत्र इसी के नाम पर हुआ. यहां पावन नदी फाल्गुनी है, जिसे मोक्षदायिनी फल्गु कहा जाता है.

पुराणों में गया क्षेत्र का वर्णन: पंडित राजा अचार्य बताते हैं कि वायु पुराण, पद्यम पुराण, स्कंद पुराण समेत अनेक पुराणों और शास्त्रों में गया क्षेत्र का वर्णन है. वायु पुराण में भी गया का महत्व बताया गया है. यहां कितनी वेदियां हैं, कितनी वेदियों में आकर श्राद्ध तर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसका उल्लेख है. वर्तमान में यहां 48 वेदी उपस्थित हैं. महालया पक्ष में आकर त्रिपक्षिक श्राद्ध के रूप में किया जाता है. अनंत चतुर्दशी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी से आरंभ होकर आश्विन कृष्ण पक्ष संपूर्ण तिथि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि तक यानी 17 दिवसीय पिंडदान कार्य चलता है.

पिंडदान से पितरों को होती है उत्तम लोग की प्राप्ति: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पितर ऊपर से देखते हैं कि उनका वंशज गया की यात्रा पर जा रहा है, यह देख पितर उत्सव मनाने लगते हैं. पितर के स्मरण मात्र से पितरों को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि शमी वृक्ष के पत्ता के समान पिंड का दाना भी गया क्षेत्र विष्णुपद में रखकर कोई चला जाए तो उसके साथ गोत्र और 121 कुलों का उद्धार हो जाता है. विष्णुपद में प्राचीन काल में और भी वेदियां थी. इसमें से काफी संख्या में वेदी लुप्त हो गई है. पितरों को पिंड की कामना रहती है. काशी, गया और प्रयाग पुण्य क्षेत्रों में जाना जाता है, इसमें गया धाम में तर्पण करना श्रेयस्कर है.

गया में श्राद्ध की महत्ता : गया क्षेत्र को ही श्राद्ध के लिए प्रधान माना जाता है. काशी, प्रयागराज, बद्री गोकर्ण जैसे पुण्य क्षेत्र हैं, जहां श्राद्ध किया जाता है लेकिन गयाजी में भगवान विष्णु खुद उपस्थित होकर अपना चरण गयासुर पर रखे थे. चरण कमल पर पिंड देते हैं, तो पितरों को उत्तम लोक की प्राप्ति होती है. इसलिए गया क्षेत्र में अवश्य आकर पिंड दान करना चाहिए. यहां की 48 वेदियों में पिंंड प्रदान करना श्रेयस्कर होता है. पिंडदान के लिए 1 दिन से लेकर 17 दिन का विधान है. 1 से लेकर 3 दिन, 5 दिन, 7 दिन, 12 दिन, 15 दिन, 17 दिन का श्राद्ध कार्य तीर्थयात्री कर सकते हैं.

ये हैं यहां की प्रधान वेदियां: यहां की प्रधान वेदियों में विष्णु वेदी, फल्गु वेदी, प्रेतशिला, रामशिला, धर्मारणय, दक्षिण मानस, उत्तर मानस, भीम गया, आदि गजाधर, गदा लोल, सीता कुंड, गयेश्वरी देवी, काकबली, ब्रह्मसरोवर, मंगला गौरी, आकाशगंगा समेत अन्य हैं.

फल्गु में पानी तीर्थयात्रियों के लिए बिल्कुल नया होगा: इस बार अंत: सलिला फल्गु नदी में रबर डैम बनाया गया है, जिससे यहां पानी रहेगा. इस बार पावन फल्गु में पानी का होना तीर्थ यात्रियों के लिए बिल्कुल नया होगा. फल्गु में पानी होने के कारण तीर्थयात्रियों को तर्पण में आसानी होगी. गौरतलब हो कि फल्गु अंत: सलिला रही है. किंतु इस बार रबर डैम बना कर इसमें पानी स्टोर किया गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सीता के श्राप से फल्गु अंत: सलिला हुई थी.

गया जी में वर्तमान वेदियां: गया जी में वर्तमान में प्रमुख वेदियों में फल्गु तीर्थ, विष्णुपद मंदिर, गदाधर भगवान, गया सिर, मुंड पृष्ठा, आदि गया, धौतपद, सूरजकुंड, जिह्वा लोल, राम गया सीता कुंड, उत्तर मानस, रामशिला, काकबली, प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, वैतरणी, भीम गया, भसमकुट, गो प्रचार, ब्रह्मसरोवर, अक्षयवट, रुक्मिणी सरोवर, गदा लोल, मंगला गौरी, आकाशगंगा, गायत्री देवी, संकटा देवी, ब्रह्मयोनी, सरस्वती, सावित्री कुंड, सरस्वती नदी, मातंगवापी, धर्मारणय बुद्ध गया हैं.

गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है.

प्रथम दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करके संध्या करनी चाहिए.

द्वितीय दिन: फल्गु स्नान, प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड तथा प्रेतशिला पर पिंडदान वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान और वहां से नीचे आकर का काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.

तृतीय दिन: फल्गु स्नान करके उत्तर मानस, वहां स्नान तर्पण पिंडदान उत्तरारक दर्शन और वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.

चतुर्थ दिन: फल्गु स्नान, मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान धर्मेश्वर दर्शन, पिंडदान और वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना है.

पंचम दिन: फल्गु स्नान, मतंग वापी में जाकर स्नान तर्पण पिंडदान, ब्रह्मसरोवर प्रदक्षिणा, वहां काक, यम, स्वान बली और फिर स्नान करना चाहिए.

षष्ठ दिन: फल्गु स्नान, विष्णुपद दक्षिणा अग्नीपद वेदियों का आवाहन जो कि विष्णु मंदिर में ही मानी जाती है, के दर्शन और उन पर श्राद्ध पिंडदान. वहां से गज कर्णिका में तर्पण और गया सिर पर पिंडदान. मुंड पृष्टा पर पिंड दान करना चाहिए.

सप्तम दिन: फल्गु स्नान, श्राद्ध, अक्षय वट जाकर अक्षय वट के नीचे श्राद्ध और वहां 3 या 1 ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. यहीं गया पाल पंडों के द्वारा सुफल दिलाई जाती है.

गया में आश्विन कृष्ण पक्ष में अधिक लोग श्राद्ध करने आते हैं. पूरे श्राद्ध पक्ष में यहां रहते हैं. श्राद्ध पक्ष के लिए पिंडदान आदि इस प्रकार हैं.

  1. भाद्र शुक्ल चतुर्दशी- पुनपुन तट पर श्राद्ध.
  2. भाद्र शुक्ल पूर्णिमा- फल्गु नदी में स्नान और तट पर खीर के पिंड से श्राद्ध.
  3. अश्विन कृष्ण प्रतिपदा- ब्रह्म कुंड, प्रेतशिला, राम कुंड एवं राम शिला और काकबली पर श्राद्ध करना चाहिए.
  4. आश्विन कृष्ण द्वितीया- उत्तर मानस, कनखल दक्षिण मानस और वेदियों पर पिंड दान करना चाहिए.
  5. आश्विन कृष्ण तृतीया- सरस्वती स्नान मातंग वापी, धर्मारणय और बोधगया में श्राद्ध करना चाहिए.
  6. आश्विन कृष्ण चतुर्थी- ब्रह्मसरोवर काकबली पर पिंडदान श्राद्ध करना चाहिए.
  7. आश्विन कृष्ण पंचमी- विष्णुपद मंदिर में रूद्र पद, ब्रह्मा पद और विष्णुपद में खीर के पिंड से श्राद्ध करना चाहिए.
  8. अश्विन कृष्णा षष्ठी से अष्टमी तक- विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी नामक मंडप में 14 स्थानों पर और आसपास के मंडप में 2 स्थान पर पिंडदान होता है. वेदियों के नाम हैं, कार्तिकपद, इंद्रपद अगस्त्य पद और कश्यप पद आदि, अष्टमी को 16 वेदी नामक मंडप में दूध से गजकर्ण तर्पण होता है.
  9. आश्विन कृष्ण नवमी- राम गया में श्राद्ध और सीता कुंड पर माता-पिता और प्रपितामही को बालू के पिंड दिए जाते हैं.
  10. आश्विन कृष्ण दशमी- गया तीर्थ और गया कूप के पास पिंड दान करना चाहिए.
  11. आश्विन कृष्ण एकादशी- मुंड पृष्टा आदि गया में खोए या तिल गुड़ से पिंड दान करना चाहिए.
  12. अश्विन कृष्ण द्वादशी- भीम गया, गो प्रचार और गदा लोल में पिंड दान करना चाहिए.
  13. आश्विन कृष्ण त्रयोदशी- फल्गु स्नान करके दूध का तर्पण, गायत्री सावित्री तथा सरस्वती तीर्थों पर क्रमशः प्रातः मध्याह्न संध्या स्नान करना चाहिए.
  14. आश्विन कृष्ण चतुर्दशी- वैतरणी स्नान और तर्पण किया जाता है.
  15. आश्विन कृष्ण अमावस्या- अक्षय वट के नीचे श्राद्ध, ब्राह्मण भोजन, यहीं पर गयापाल पंडों द्वारा सुफल विदाई दी जाएगी.
  16. आश्विन शुक्ल प्रतिपदा- गायत्री घाट पर दही अक्षत का पिंड देकर गया श्राद्ध समाप्त किया जाता है.

बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम का पितृपक्ष को लेकर टूरिज्म पैकेज: इस बार बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम के द्वारा पिंडदान करने के लिए आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए पैकेज लाया गया है. यह पैकेज 9 सितंबर से लेकर 25 सितंबर तक के लिए अलग-अलग पैकेज में है. इसमें ई पिंडदान की भी व्यवस्था की गई है. पैकेज ऑनलाइन बुकिंग करवा सकते हैं और इसकी पूरी जानकारी बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम की वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगी. छह तरह के पैकेज एक रात और 2 दिनों का होगा. इसमें होटल से लेकर पिंडदान, दान दक्षिणा और वीडियोग्राफी के खर्च शामिल किए गए हैं.

  1. गया से गया का पैकेज: गया से गया पिंडदान को आने वाले एक व्यक्ति से 12180 और दो व्यक्ति के लिए 13440 रुपए लिए जाएंगे. यह पैकेज एक रात और 2 दिन का होगा.
  2. गया से गया: गया से गया एक रात और 2 दिन के लिए कैटेगरी वन में एक व्यक्ति का शुल्क 19425 रुपए रखा गया है.
  3. गया-बोधगया-राजगीर-नालंदा का पैकेज: गया-बोधगया -राजगीर -नालंदा पैकेज एक रात और 2 दिनों का है. पहले कैटेगरी के लिए एक व्यक्ति को 14700 और दो व्यक्ति को 16500 देने होंगे.
  4. पटना,पुनपुन, गया, बोधगया, नालंदा, राजगीर,पटना पैकेज: इस पैकेज में एक रात और 2 दिनों के लिए गया में पिंडदान कराकर नालंदा और राजगीर घुमाने की व्यवस्था दी जा रही है. इसमें तीन कैटेगरी शामिल किए गए हैं. प्रथम कैटेगरी में एक व्यक्ति का शुल्क 20025, दो व्यक्तियों का 20655, चार व्यक्तियों का 38720, कैटेगरी टू में एक व्यक्ति का 18750, दो व्यक्ति का 19605 और चार व्यक्ति का 36820 चार्ज लगेगा. कैटेगरी 3 में एक व्यक्ति के लिए 17925, दो के लिए 18555 और चार के लिए 34520 देना होगा.
  5. पटना, पुनपुन, गया, पटना पैकेज: इसी तरह पटना, पुनपुन, गया, पटना पैकेज 1 दिन का है. इसमें पटना से पुनपुन और गया में पूजा करके वापस पटना आना होगा. इस पैकेज में तीन कैटेगरी रखे गए हैं. कैटेगरी-1 में एक व्यक्ति के लिए शुल्क 15825, दो व्यक्ति के 16455, चार व्यक्ति के 29165 चार्ज देने होंगे. कैटेगरी टू में एक व्यक्ति को 14770, दो को 15405 और 4 को 27072 देना होगा.ॉ
  6. ई पिंडदान की रहेगी सुविधा: इसी तरह ई-पिंडदान की भी सुविधा इस बार रहेगी. देश के अलावे विदेश में रहने वाले यदि गया आकर पिंडदान में असमर्थ हैं, तो उनके लिए ई पिंडदान की व्यवस्था की गई है. 21500 में 3 जगहों पर पिंडदान कराया जाएगा. इसमें पंडित, दान दक्षिणा, विधि विधान का शुल्क शामिल रखा जाएगा. इसका वीडियो क्लिप भी श्रद्धालुओं को भेजा जाएगा.

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Last Updated : Sep 6, 2022, 12:51 PM IST
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