गया: गयाजी में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला इस बार रद्द कर दिया गया है. परंपरा अनुसार, पंडा और पुरोहित यहां पिंडदान कर रहे हैं. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान मृत्यु लोक से पूर्वज पृथ्वी लोक गयाजी में आते हैं.
कोरोना ने सदियों से चली आ रही परंपरा को भी क्वारंटीन सा कर दिया है. इसकी वजह से इस बार पारंपरिक पिंडदान की जगह ई-पिंडदान की व्यवस्था ने जोर पकड़ लिया है.
'पिंडदान करने से मिलती है मुक्ति'
अगर पितरों के मोक्ष के लिए महाकुंभ कहीं नजर आता है तो वह गया में है. धर्म ग्रंथों के अनुसार यहां पूर्वजों का पिंडदान करने से उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है. इसलिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आस्थावान लोग यहां आते हैं और अपने पूर्वजों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं. लेकिन इस साल कोरोना महामारी को देखते हुए इसमें थोड़ा बदलाव किया गया है.
'ई-पिंडदान की व्यवस्था आदिकाल से नहीं'
वैसे तो यह चलन पिछले पांच सालों से पनप रहा है. लेकिन इस बार इसका प्रचलन थोड़ा ज्यादा बढ़ गया है. वहीं, पंडा समुदाय इसका घोर विरोध कर रहे है. समुदाय ने इसे अधार्मिक बता दिया है. इनका तर्क है कि ई-पिंडदान की व्यवस्था आदिकाल से नहीं है. इसलिए ये उल्लेखित धार्मिक दिशा निर्देशों के खिलाफ है. वैदिक और दैवीय परंपरा के संदर्भ का हवाला देकर यह भी कहते हैं कि इसपर संशय है कि पिंडदान का फल मोक्ष प्राप्ति के लिए सार्थक होगा या नहीं. साथ ही संसारिक व्यवस्थाओं को देखते हुए इनकी दलील है कि इससे धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षति होगी.
हर साल पिंडदान की अवधि 15 से 17 दिनों की होती है. इस बार ये 17 दिनों की है. गया जी में पिंडदान एक दिवसीय, तीन दिवसीय, सात दिवसीय, पंद्रह या सत्रह दिवसीय किया जाता है. यहां कुल 48 वेदियां हैं. 48 वेदियों पर पिंडदान करने में 15 से 17 दिनों का समय लगता है. सभी पिंडवेदियों का अलग महत्व है. यहां कई सरोवर पिंडवेदी में है.