गयाः पहाड़ों की तलहटी में बसा नवादा गांव जहां 45 सालों से एक शिक्षक सिपाही की नौकरी छोड़ बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. लोग इस गांव को शांति निकेतन कहते हैं. जहां मैट्रिक परीक्षा पास आते ही आस-पास के गांव के छात्र-छात्राएं पढ़ाई करने आ जाते हैं.
बिहार के सरकारी विद्यालयों में चरमराई शिक्षा व्यवस्था के कारण नीजि स्कूल ही विकल्प बचता है, लेकिन महंगी फीस के चलते गरीब बच्चे वहां नहीं पढ़ सकते. ऐसे बच्चों के लिए नवादा गांव का शांति निकेतन वरदान साबित हो रहा है. पहाड़ी की गोद और पेड़ों की छांव के नीचे दूर गांव से आए गरीब बच्चों को शिक्षक सुरेंद्र सिंह 45 सालों से पढ़ा रहे हैं. इस आधुनिक युग के शांति निकेतन में 30 से 40 गांव के छात्र पढ़ने आते हैं.
बोर्ड परीक्षा के दौरान आते हैं ज्यादा बच्चे
बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों को गणित और साइंस जैसे विषयों में ही ज्यादा दिक्कत होती हैं. ऐसे में यहां बच्चे दूर-दूर के गांवों से चलकर पढ़ने आते हैं. बच्चों का कहना है कि गांव में बेहतर कोचिंग सेंटर नहीं है, उन्हें यहां आकर बोर्ड परीक्षा में बहुत मदद मिल जाती है. परीक्षा के दौरान छात्रों की संख्या में इजाफा हो जाता है.
45 सालों से दे रहे शिक्षा
शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने बताया कि वे 1974 से इसी तरह से पढ़ा रहे हैं. सिपाही की नौकरी छोड़कर वे इस कार्य में लग गए. उनके पास शिक्षा लेने आने वाले बच्चों में कई ऐसे भी हैं, जिनके दादा-पिता भी उनसे पढ़ चुके हैं. यहां सभी वर्गों की पढ़ाई होती है. उनका कहना है कि बच्चों पर परीक्षा के दौरान खास ध्यान देना पड़ता है. यहां से पढ़ने वाले कई छात्र जो आज डॉक्टर, इंजीनियर बन विदेशों में सेवा दे रहे हैं.
इस शांति निकेतन में ज्यादातर छात्राएं पढ़ने आती है, जो शहर में नहीं पढ़ सकती. शहर में रहकर पढ़ना सबके बस की बात नहीं है. गांव में ही कम पैसे में स्कूल के बाद यहां आकर पढ़ाई कर लेती हैं. सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि पहले एक पहले एक झोपड़ीनुमा घर था जिसमें बरसात के दिनों में पढ़ाई होती थी. अब वो भी खंडहर हो गया. ऐसे में बरसात के दिनों में छात्रों को काफी परेशानी होती है. जो जितना सक्षम है उस हिसाब से खुद ही फीस दे जाता है. गरीब बच्चों से वह भी नहीं ली जाती. वे जब तक जिंदा है ऐसे ही बच्चों को पढ़ाते रहेंगे.
ऐसे समय मे जहां शिक्षा के लिए सरकार का विद्यालय बस शोभा का वस्तु बन गया है वहीं ऐसे शिक्षक सुरेंद्र सिंह बिहार की शिक्षा के लिए संजीवनी बूटी का काम कर रहे हैं.