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पेड़ के नीचे लगती है मास्टर जी की क्लास, 45 सालों से गरीब बच्चों को दे रहे शिक्षा - सोशल स्कूल

यहां सभी वर्गों की पढ़ाई होती है. उनका कहना है कि बच्चों पर परीक्षा के दौरान खास ध्यान देना पड़ता है. यहां से पढ़ने वाले कई छात्र जो आज डॉक्टर, इंजीनियर बन विदेशों में सेवा दे रहे हैं.

सांइंस और मैथ की लगती है क्लास
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Published : Feb 15, 2019, 9:54 AM IST

गयाः पहाड़ों की तलहटी में बसा नवादा गांव जहां 45 सालों से एक शिक्षक सिपाही की नौकरी छोड़ बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. लोग इस गांव को शांति निकेतन कहते हैं. जहां मैट्रिक परीक्षा पास आते ही आस-पास के गांव के छात्र-छात्राएं पढ़ाई करने आ जाते हैं.

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पहाड़ो के बीच दे रहे शिक्षा
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बिहार के सरकारी विद्यालयों में चरमराई शिक्षा व्यवस्था के कारण नीजि स्कूल ही विकल्प बचता है, लेकिन महंगी फीस के चलते गरीब बच्चे वहां नहीं पढ़ सकते. ऐसे बच्चों के लिए नवादा गांव का शांति निकेतन वरदान साबित हो रहा है. पहाड़ी की गोद और पेड़ों की छांव के नीचे दूर गांव से आए गरीब बच्चों को शिक्षक सुरेंद्र सिंह 45 सालों से पढ़ा रहे हैं. इस आधुनिक युग के शांति निकेतन में 30 से 40 गांव के छात्र पढ़ने आते हैं.

बोर्ड परीक्षा के दौरान आते हैं ज्यादा बच्चे

बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों को गणित और साइंस जैसे विषयों में ही ज्यादा दिक्कत होती हैं. ऐसे में यहां बच्चे दूर-दूर के गांवों से चलकर पढ़ने आते हैं. बच्चों का कहना है कि गांव में बेहतर कोचिंग सेंटर नहीं है, उन्हें यहां आकर बोर्ड परीक्षा में बहुत मदद मिल जाती है. परीक्षा के दौरान छात्रों की संख्या में इजाफा हो जाता है.

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दूर के गांव से पढ़ने आती हैं छात्राएं
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45 सालों से दे रहे शिक्षा

शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने बताया कि वे 1974 से इसी तरह से पढ़ा रहे हैं. सिपाही की नौकरी छोड़कर वे इस कार्य में लग गए. उनके पास शिक्षा लेने आने वाले बच्चों में कई ऐसे भी हैं, जिनके दादा-पिता भी उनसे पढ़ चुके हैं. यहां सभी वर्गों की पढ़ाई होती है. उनका कहना है कि बच्चों पर परीक्षा के दौरान खास ध्यान देना पड़ता है. यहां से पढ़ने वाले कई छात्र जो आज डॉक्टर, इंजीनियर बन विदेशों में सेवा दे रहे हैं.

नवादा गांव में अनोखा शांति निकेतन
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इस शांति निकेतन में ज्यादातर छात्राएं पढ़ने आती है, जो शहर में नहीं पढ़ सकती. शहर में रहकर पढ़ना सबके बस की बात नहीं है. गांव में ही कम पैसे में स्कूल के बाद यहां आकर पढ़ाई कर लेती हैं. सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि पहले एक पहले एक झोपड़ीनुमा घर था जिसमें बरसात के दिनों में पढ़ाई होती थी. अब वो भी खंडहर हो गया. ऐसे में बरसात के दिनों में छात्रों को काफी परेशानी होती है. जो जितना सक्षम है उस हिसाब से खुद ही फीस दे जाता है. गरीब बच्चों से वह भी नहीं ली जाती. वे जब तक जिंदा है ऐसे ही बच्चों को पढ़ाते रहेंगे.

ऐसे समय मे जहां शिक्षा के लिए सरकार का विद्यालय बस शोभा का वस्तु बन गया है वहीं ऐसे शिक्षक सुरेंद्र सिंह बिहार की शिक्षा के लिए संजीवनी बूटी का काम कर रहे हैं.

गयाः पहाड़ों की तलहटी में बसा नवादा गांव जहां 45 सालों से एक शिक्षक सिपाही की नौकरी छोड़ बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं. लोग इस गांव को शांति निकेतन कहते हैं. जहां मैट्रिक परीक्षा पास आते ही आस-पास के गांव के छात्र-छात्राएं पढ़ाई करने आ जाते हैं.

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पहाड़ो के बीच दे रहे शिक्षा
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बिहार के सरकारी विद्यालयों में चरमराई शिक्षा व्यवस्था के कारण नीजि स्कूल ही विकल्प बचता है, लेकिन महंगी फीस के चलते गरीब बच्चे वहां नहीं पढ़ सकते. ऐसे बच्चों के लिए नवादा गांव का शांति निकेतन वरदान साबित हो रहा है. पहाड़ी की गोद और पेड़ों की छांव के नीचे दूर गांव से आए गरीब बच्चों को शिक्षक सुरेंद्र सिंह 45 सालों से पढ़ा रहे हैं. इस आधुनिक युग के शांति निकेतन में 30 से 40 गांव के छात्र पढ़ने आते हैं.

बोर्ड परीक्षा के दौरान आते हैं ज्यादा बच्चे

बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों को गणित और साइंस जैसे विषयों में ही ज्यादा दिक्कत होती हैं. ऐसे में यहां बच्चे दूर-दूर के गांवों से चलकर पढ़ने आते हैं. बच्चों का कहना है कि गांव में बेहतर कोचिंग सेंटर नहीं है, उन्हें यहां आकर बोर्ड परीक्षा में बहुत मदद मिल जाती है. परीक्षा के दौरान छात्रों की संख्या में इजाफा हो जाता है.

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दूर के गांव से पढ़ने आती हैं छात्राएं
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45 सालों से दे रहे शिक्षा

शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने बताया कि वे 1974 से इसी तरह से पढ़ा रहे हैं. सिपाही की नौकरी छोड़कर वे इस कार्य में लग गए. उनके पास शिक्षा लेने आने वाले बच्चों में कई ऐसे भी हैं, जिनके दादा-पिता भी उनसे पढ़ चुके हैं. यहां सभी वर्गों की पढ़ाई होती है. उनका कहना है कि बच्चों पर परीक्षा के दौरान खास ध्यान देना पड़ता है. यहां से पढ़ने वाले कई छात्र जो आज डॉक्टर, इंजीनियर बन विदेशों में सेवा दे रहे हैं.

नवादा गांव में अनोखा शांति निकेतन
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इस शांति निकेतन में ज्यादातर छात्राएं पढ़ने आती है, जो शहर में नहीं पढ़ सकती. शहर में रहकर पढ़ना सबके बस की बात नहीं है. गांव में ही कम पैसे में स्कूल के बाद यहां आकर पढ़ाई कर लेती हैं. सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि पहले एक पहले एक झोपड़ीनुमा घर था जिसमें बरसात के दिनों में पढ़ाई होती थी. अब वो भी खंडहर हो गया. ऐसे में बरसात के दिनों में छात्रों को काफी परेशानी होती है. जो जितना सक्षम है उस हिसाब से खुद ही फीस दे जाता है. गरीब बच्चों से वह भी नहीं ली जाती. वे जब तक जिंदा है ऐसे ही बच्चों को पढ़ाते रहेंगे.

ऐसे समय मे जहां शिक्षा के लिए सरकार का विद्यालय बस शोभा का वस्तु बन गया है वहीं ऐसे शिक्षक सुरेंद्र सिंह बिहार की शिक्षा के लिए संजीवनी बूटी का काम कर रहे हैं.

Intro:शिक्षा मनुष्य के जिंदगी के लिए अहम हो गया है। सरकार के विद्यालय में शिक्षा की गुणवत्ता में कमी आया तो पहाड़ी के तलहटी और पेड़ के छाँव में शांति निकेतन खुल गया। लगभग 30 से 40 गाँव के छात्र -छात्राएं यहां शिक्षा लेते हैं।


Body:पुराने जमाने मे शिक्षा प्राप्ति के लोग ऐशो आराम छोड़कर ऋषि मुनि के कुटिया में जाकर शिक्षा ग्रहण करते थे। पेड़ के छाँव और पहाड़ो के तलहटी में शिक्षा लेते थे। लोग इसे शांति निकेतन कहते थे। आज के आधुनिक युग मे गया वजीरगंज प्रखंड के सकरदास नवादा गाँव मे कुछ ऐसा ही नजारा हैं एक शिक्षक 15 से 20 छात्राओ को पेड़ के छाँव व पहाड़ के तलहटी में शिक्षा दे रहे हैं।

सरकारी विद्यालयों का हाल खस्ताहाल हैं किसी स्कूल में शिक्षक नही है किसी स्कूल में विद्यालय का भवन नही है। आधारभूत सुविधाओं का पूर्ण अभाव है। एक समय था जब सरकारी विद्यालयों से पढ़कर एक से एक बढ़कर विभूतियों ने देश दुनिया मे नाम कमाया हैं। आज के वर्तमान में शिक्षा के लिए शहर के लोग निजी संस्थानों तरफ ज्यादा जा रहे हैं। गाँव मे शिक्षा के लिए मात्र एक व्यवस्था है सरकारी विद्यालय । जहां शिक्षा के नाम पर खानापूर्ती हो रहा है । वही शहर से दूर सुदूर गाँव मे एक व्यक्ति खुले आसमान में पेड़ के छाँव में शिक्षा का अलख जगा रहा है।

सकरदास नवादा गाँव मे पहाड़ के तलहटी और पेड़ के छाँव में गाँव के शिक्षक 45 वर्षो से शिक्षा दे रहा है। इस आधुनिक युग के शांति निकेतन में 30 से 40 गाँव के छात्र पढ़ने आते हैं। मैट्रिक परीक्षा नजदीक आ गया है ऐसे आसपास गाँव के परीक्षा देने वाली छात्राएं एक घण्टा पैदल चलकर यहां पढ़ने आती है। छात्राओ ने बताया की इन से जो पढ़ लेता हैं वो मैट्रिक परीक्षा फेल नही होता है। यहां विज्ञान और गणित का पढ़ाई होता है।

पेड़ के छाँव में शिक्षा दे रहे शिक्षक सुरेंद्र सिंह ने बताया मैं 1974 से इसी तरह से पढ़ा रहा हूं । सिपाही के नौकरी छोड़कर आया तब से इसी कार्य मे लगा हूँ। आज जिन्हें पढा रहा हु उसमे कितने कर दादा और पिता को पढा चुका हूं। यहां सभी वर्गों का पढ़ाई होता हैं। अभी परीक्षा आने वाला है परीक्षार्थियों पर ज्यादा ध्यान देना पड़ता है। यहां से पढ़कर निकलने वाला डॉक्टर ,इंजीनियरिंग करके इंजीनियर बन गया है। कई तो विदेशो में जाकर रह रहे हैं। जब तक जिंदगी रहेगी तब तक इसी तरह पढ़ता रहूंगा।






Conclusion:इस शांति निकेतन में ज्यादातर छात्राएं पढ़ने आती है गाँव से शहर दूर होता है। शहर में रहकर पढ़ना सबके बस की बात नही है। गाँव मे ही कम पैसा में वो स्कूल के बाद आकर पढ़ाई कर लेती है। पहले एक झोपड़ीनुमा घर था बरसात के दिनों में इसी में पढ़ाई होता था। अब वो भी खण्डहर होगया बरसात के दिनों में यहां के छात्राओ को दिक्कत होता हैं। यहाँ फीस की तय नहीं होता है। आप जितना देने के सक्षम दीजिये और कितने छात्र तो गरीब होते वो मुफ्त में पढ़ते हैं। शिक्षक मैट्रिक के परीक्षा को लेकर चार माह पूर्व से विशेष तैयारी करवाते हैं हर रोज 2 से ढाई घण्टा पढ़ाई करवाते हैं।

ऐसे समय मे जहां शिक्षा के लिए सरकार का विद्यालय बस शोभा का वस्तु बन गया है वही ऐसे शिक्षक सुरेंद्र सिंह बिहार के शिक्षा के लिए संजीवनी बूटी का काम कर रहे हैं।
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