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ढुंगेश्वरी पहाड़ की गुफा में साधना में कंकाल बन गए थे बुद्ध, गुलजार रहने वाली पहाड़ी पर सन्नाटा

गया जिले का ढुंगेश्वरी पहाड़ राजकुमार सिद्धार्थ के महात्मा बुद्ध बनने का गवाह है. बरसात के मौसम में यहां पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ती थी, लेकिन कोविड के कारण अभी सन्नाटा है. कारोबार ठप होने से पर्यटकों पर आश्रित दुकानदार रोजी-रोटी को लेकर चिंतित हैं.

कंकाल बन गए थे बुद्ध
कंकाल बन गए थे बुद्ध
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Published : Aug 6, 2021, 11:43 AM IST

गयाः कभी पर्यटकों से गुलजार रहने वाला गया जिले में स्थित ढुंगेश्वरी पहाड़ (Dhungeshwari Hills Gaya) पर आज सन्नाटा पसरा है. यहां हर साल बरसात का मौसम शुरू होते ही मेडिटेशन करने के लिए विभिन्न देशों से बौद्ध श्रद्धालु और भिक्षु आते थे लेकिन कोरोना महामारी (Covid Pandemic) की वजह से पिछले एक साल से यहां का माहौल शांत-शांत है.

इसे भी पढ़ें- जानिए पिछले दो साल से कहां हैं भूखी आत्माएं, प्रेतशिला में क्यों उड़ाते हैं सत्तू

पिछले एक साल से श्रद्धालुओं और पर्यटकों के नहीं आने के कारण पहाड़ की तहलटी में रहनेवाले लोग भूखमरी का शिकार हो रहे हैं. इन लोगों का आय का मुख्य साधन पर्यटक ही थे.

देखें वीडियो

"सावन में हिन्दू धर्म के मानने वाले लोग ढुंगेश्वरी मां की पूजा अर्चना करने आते थे. बरसात के मौसम यह जगह काफी रमणीय हो जाता था. हजारों की संख्या में लोग यहां घूमने आते थे. बौद्ध धर्मावलंबी भी मेडिटेशन करने के लिए आते थे, लेकिन कोरोना के कारण पिछले एक साल से यहां कोई नहीं आ रहा है. हम पहाड़ की तलहटी में पूजा सामग्री बेचने का काम करते हैं, लेकिन अब कारोबार भी ठप पड़ गया है."- सुरेश सिंह, दुकानदार

यहां पालकी वाले भी कमाई करते थे. लेकिन 50 से अधिक की संख्या में पालकी से कमाई करने वाले बेरोजगार बैठे हैं. सभी दुकानदार सिर्फ दुकान खोलकर बैठे हैं लेकिन कोई ग्राहक ही नही आ रहा है. ढुंगेश्वरी पहाड़ पर आने वाले पर्यटकों से कमाई करने वाले सैकड़ों लोगों के सामने आज दो जून की रोटी की समस्या आ गई है.

बताते चलें कि आज से ढाई हजार साल पहले राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्ति की खोज में राजगीर के जंगल से होतु हुए गया के ढुंगेश्वरी पहाड़ पहुंचे थे. पहाड़ी की गुफा में 6 सालों तक वे साधना किए थे. इस दौरान उनका शरीर बिल्कुल कंकाल के समान हो गया था. 6 सालों की साधना के बाद वे बोधगया पहुंचे थे, जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. भगवान बुद्ध के अनुयायी आज भी यहां साधना करने आते हैं.

इसे भी पढ़ें- गया: वर्षाकाल समाप्त होते ही पर्यटकों से गुलजार हुआ महाबोधि मंदिर

बता दें कि इस पहाड़ की शिखर से 50 फिट नीचे एक गुफा है. इस गुफा में ढुंगेश्वरी मां की प्रतिमा स्थापित थी. जब सिद्धार्थ वहां पहुंचे तो गुफा का गोलाकार बनावट और शांति देख इसी गुफा में साधना करने लगे. 6 सालों की साधना के बाद भी जब उन्हें ज्ञान नहीं मिला तो वे बोधगया की तरफ बढ़ने लगे.

बोधगया जाने के रास्ते में बकरोर गांव में उन्हें सुजाता मिली. सुजाता ने भगवान बुद्ध को खीर खिलाया. खीर खाकर भगवान बुद्ध निरंजना नदी पार कर बोधिवृक्ष के पास बैठकर साधना करने लगे. और इसी स्थान पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. अभी तक वे सिद्धार्थ ही थे, लेकिन ज्ञान प्राप्त होने के बाद दुनिया उन्हें भगवान बुद्ध के नाम से जानने लगी.

ढुंगेश्वरी पहाड़ पर स्थित गुफा में विराजमान ढुंगेश्वरी माता मंदिर के पुजारी मुकेश कुमार मिश्रा बताते हैं कि बोधगया से 12 किलोमीटर दूर उतर पूर्व में ढुंगेश्वरी पहाड़ है. इस पहाड़ के बीचों बीच एक गुफा है, जहां मां ढुंगेश्वरी और भगवान बुद्ध विराजमान हैं. काफी संख्या में लोग इस पावन स्थल के दर्शन करने आते हैं, लेकिन अभी कोरोना के कारण सन्नाटा है. हर साल ठंड के मौसम में ढुंगेश्वरी पहाड़ से सुजाता गढ़ तक ज्ञानयात्रा निकाली जाती है.

गयाः कभी पर्यटकों से गुलजार रहने वाला गया जिले में स्थित ढुंगेश्वरी पहाड़ (Dhungeshwari Hills Gaya) पर आज सन्नाटा पसरा है. यहां हर साल बरसात का मौसम शुरू होते ही मेडिटेशन करने के लिए विभिन्न देशों से बौद्ध श्रद्धालु और भिक्षु आते थे लेकिन कोरोना महामारी (Covid Pandemic) की वजह से पिछले एक साल से यहां का माहौल शांत-शांत है.

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पिछले एक साल से श्रद्धालुओं और पर्यटकों के नहीं आने के कारण पहाड़ की तहलटी में रहनेवाले लोग भूखमरी का शिकार हो रहे हैं. इन लोगों का आय का मुख्य साधन पर्यटक ही थे.

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"सावन में हिन्दू धर्म के मानने वाले लोग ढुंगेश्वरी मां की पूजा अर्चना करने आते थे. बरसात के मौसम यह जगह काफी रमणीय हो जाता था. हजारों की संख्या में लोग यहां घूमने आते थे. बौद्ध धर्मावलंबी भी मेडिटेशन करने के लिए आते थे, लेकिन कोरोना के कारण पिछले एक साल से यहां कोई नहीं आ रहा है. हम पहाड़ की तलहटी में पूजा सामग्री बेचने का काम करते हैं, लेकिन अब कारोबार भी ठप पड़ गया है."- सुरेश सिंह, दुकानदार

यहां पालकी वाले भी कमाई करते थे. लेकिन 50 से अधिक की संख्या में पालकी से कमाई करने वाले बेरोजगार बैठे हैं. सभी दुकानदार सिर्फ दुकान खोलकर बैठे हैं लेकिन कोई ग्राहक ही नही आ रहा है. ढुंगेश्वरी पहाड़ पर आने वाले पर्यटकों से कमाई करने वाले सैकड़ों लोगों के सामने आज दो जून की रोटी की समस्या आ गई है.

बताते चलें कि आज से ढाई हजार साल पहले राजकुमार सिद्धार्थ ज्ञान प्राप्ति की खोज में राजगीर के जंगल से होतु हुए गया के ढुंगेश्वरी पहाड़ पहुंचे थे. पहाड़ी की गुफा में 6 सालों तक वे साधना किए थे. इस दौरान उनका शरीर बिल्कुल कंकाल के समान हो गया था. 6 सालों की साधना के बाद वे बोधगया पहुंचे थे, जहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. भगवान बुद्ध के अनुयायी आज भी यहां साधना करने आते हैं.

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बता दें कि इस पहाड़ की शिखर से 50 फिट नीचे एक गुफा है. इस गुफा में ढुंगेश्वरी मां की प्रतिमा स्थापित थी. जब सिद्धार्थ वहां पहुंचे तो गुफा का गोलाकार बनावट और शांति देख इसी गुफा में साधना करने लगे. 6 सालों की साधना के बाद भी जब उन्हें ज्ञान नहीं मिला तो वे बोधगया की तरफ बढ़ने लगे.

बोधगया जाने के रास्ते में बकरोर गांव में उन्हें सुजाता मिली. सुजाता ने भगवान बुद्ध को खीर खिलाया. खीर खाकर भगवान बुद्ध निरंजना नदी पार कर बोधिवृक्ष के पास बैठकर साधना करने लगे. और इसी स्थान पर उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. अभी तक वे सिद्धार्थ ही थे, लेकिन ज्ञान प्राप्त होने के बाद दुनिया उन्हें भगवान बुद्ध के नाम से जानने लगी.

ढुंगेश्वरी पहाड़ पर स्थित गुफा में विराजमान ढुंगेश्वरी माता मंदिर के पुजारी मुकेश कुमार मिश्रा बताते हैं कि बोधगया से 12 किलोमीटर दूर उतर पूर्व में ढुंगेश्वरी पहाड़ है. इस पहाड़ के बीचों बीच एक गुफा है, जहां मां ढुंगेश्वरी और भगवान बुद्ध विराजमान हैं. काफी संख्या में लोग इस पावन स्थल के दर्शन करने आते हैं, लेकिन अभी कोरोना के कारण सन्नाटा है. हर साल ठंड के मौसम में ढुंगेश्वरी पहाड़ से सुजाता गढ़ तक ज्ञानयात्रा निकाली जाती है.

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