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Republic Day: गया का मुस्लिम परिवार 4 पीढ़ियों से छाप रहे तिरंगे पर अशोक चक्र, जुनून है देशभक्ति

बिहार के गया जिले का मुस्लिम परिवार पिछले तीन पीढ़ियों से तिरंगे पर अशोक चक्र की मुहर लगा रहा है, यह काम पैसे कमाने के लिए नहीं बल्कि देश प्रेम के जुनून से जुड़ा है. हर वर्ष की तरह इस साल भी गणतंत्र दिवस पर यह परिवार 50 हजार से अधिक तिरंगे झंडे पर अशोक चक्र की मुहर लगा चुका है.

तिरंगे पर अशोक चक्र छापता गया का मुस्लिम परिवार
तिरंगे पर अशोक चक्र छापता गया का मुस्लिम परिवार
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Published : Jan 26, 2023, 8:09 AM IST

तिरंगे पर अशोक चक्र छापता गया का एकमात्र मुस्लिम परिवार

गया : बिहार के गया में एक मुस्लिम रंगरेज परिवार है जो आजादी के बाद से तिरंगे पर अशोक चक्र छाप रहा है. इस परिवार के पास आजादी के समय की मुहर आज भी मौजूद हैं, जिसमें महात्मा गांधी के चरखे वाली तिरंगे की मुहर भी शामिल है. इस वर्ष गणतंत्र दिवस को लेकर यह परिवार 50 हजार से अधिक तिरंगे झंडे में अशोक चक्र की मुहर लगा चुका है. खादी ग्रामोद्योग भी इसी हुनर को देखते हुए छापे के लिए इसी परिवार को झंडे सौंपता है. क्योंकि झंडे पर अशोक चक्र का छापा बेहद ही सावधानी से करना होता है.

ये भी पढ़ें- 26 January Chief Guests : जानें कैसे होता Republic Day पर चीफ गेस्ट का चयन

पैसा नहीं देशभक्ति का जुनून : राष्ट्र के प्रति देश प्रेम का जुनून भारतीयों की नस-नस में है. इसी का एक उदाहरण गया का ये मुस्लिम परिवार है. यह परिवार पिछले कई पीढ़ियों से तिरंगे पर अशोक चक्र की छपाई करता है. यह काम पिछली तीन पीढ़ी से पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि देश भक्ति के जुनून में कर रही है. इससे जो सम्मान मिलता है, वही इनके लिए असली पारिश्रमिक होता है. वैसे परिवार के लोग बताते हैं कि उनके पूर्वज अंग्रेजों के भी जमाने में भी तिरंगे पर छापा दिया करते थे.

पूरा परिवार तिरंगे पर छापता है अशोक चक्र: गया के मखलोट गंज के रहने वाले मोहम्मद शमीम, उनकी पत्नी सीमा प्रवीण और यह पूरा परिवार अपने घर में तिरंगे पर अशोक चक्र का छापा देने में व्यस्त है. यह परिवार पिछले तीन पीढ़ियों से ऐसा कर रहा है. पहले पिता, दादा यह काम करते थे. तीसरी पीढ़ी ने अब यह काम संभाल रखा है और तिरंगे पर चक्र का छापा का काम पूरी लगन से कर रहा है. कहा तो यह भी जाता है कि यह मुस्लिम परिवार अंग्रेजों के जमाने से तिरंगे पर चक्र का छापा देने का काम करता रहा है. फिलहाल वर्तमान में तीसरी पीढ़ी अपने पुरखों के छोड़े गए दायित्व का निर्वाहन कर रही है.

खादी ग्रामोद्योग को करते हैं छापा लगे तिरंगे की सप्लाई : गया के मखलोटगंज के मोहम्मद शमीम के परिवार द्वारा तिरंगे पर चक्र का छापा दिए झंडे की सप्लाई बिहार के गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, सासाराम समेत विभिन्न जिलों में होती है. इसके अलावा बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड के समीपवर्ती जिलों में भी सप्लाई की जाती है. वहीं, अशोक चक्र का छापा देने के लिए खादी ग्रामोद्योग, सरकारी विभाग से भी आर्डर आते हैं. उसे पूरी लगन से यह परिवार पूरा करता है और तिरंगे पर चक्र का छापा देकर खादी ग्रामोद्योग से लेकर बिहार-झारखंड के जिलों में इसे भेजते हैं.

50 हजार से ज्यादा तिरंगे पर लगा चुके हैं मुहर: यह मुस्लिम परिवार गणतंत्र दिवस 2023 को लेकर 50 हजार से अधिक तिरंगे पर अशोक चक्र का छापा लगा चुका है और संबंधित स्थानों पर भेज चुका है. इस तरह मोहम्मद शमीम के परिवार के द्वारा दिया गया अशोक चक्र का छापा वाला तिरंगा झंडा बड़े-बड़े सरकारी भवनों में फहराया जाता है.

डिजिटल प्रिंट इनकी कला के आगे फेल: आज डिजिटल तरीके से भी अशोक चक्र का छापा दिया जाता है, लेकिन वह हाथ से दिए गए इस छापे की बराबरी नहीं कर सकता. नतीजतन आज भी शमीम के परिवार के अशोक चक्र के छापे की डिमांड हर और रहती है. इस परिवार की सीमा परवीन की मानें, तो यह छापा तिरंगे के दोनों और उग आता है और इसके रंग बदलकर तिरंगे के साथ मैच कर जाता है. जबकि कंप्यूटराइज में ऐसा संभव नहीं होता है.

''हमारा परिवार देश के प्रति भक्ति और सम्मान पाने के लिए ही ऐसा पीढ़ी दर पीढ़ी कर रहा है. गया में सिर्फ इसी घर में अशोक चक्र का छापा तिरंगे में दिया जाता है. यह हमारे लिए गर्व की बात है. हाथों से दिया जाने वाला अशोक चक्र का छापा पीढ़ियों से विरासत में मिली है. छापा करीब 6-7 दशक से भी ज्यादा पुराना है. यह विभिन्न साइजों में है.''- सीमा परवीन, तिरंगा छापने वाली कलाकार

चार पीढ़ियों से छाप रहे अशोक चक्र: मोहम्मद शमीम और उसकी पत्नी सीमा परवीन बताती हैं कि वह तिरंगे में अशोक चक्र का छापा देने का काम करते हैं. यह पिछले कई पीढ़ियों से लगातार किया जा रहा है. आमदनी के सवाल पर बताते हैं कि वे इसे कारोबार के रूप में नहीं देखते हैं, बल्कि देश के प्रति भक्ति और उससे मिलने वाले सम्मान को ही बहुमूल्य मानते हैं. दूसरे बिजनेस में लाभ की जरूर सोचते हैं, पर तिरंगे पर अशोक चक्र का छापा में लाभ या हानि नहीं देखते.

''महात्मा गांधी के चरखे के रूप में भी छापा यहां मौजूद है. परिवार के लोग बताते हैं कि इस तरह का छापा अब मिलना नामुमकिन है. परिवार के लोग विरासत के रूप में इसकी हिफाजत करते हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी तिरंगे पर छापा देने का काम कर रहे हैं. इस देश के प्रति प्रेम वाले इस काम को हमारे बच्चे भी आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं. अशोक चक्र छापने में काफी हिफाजत रखनी पड़ती है. अशोक चक्र का सांचा बनारस और हैदराबाद से लाया गया है.'' - मो. शमीम, तिरंगा छापने वाले कलाकार

तिरंगे पर अशोक चक्र छापता गया का एकमात्र मुस्लिम परिवार

गया : बिहार के गया में एक मुस्लिम रंगरेज परिवार है जो आजादी के बाद से तिरंगे पर अशोक चक्र छाप रहा है. इस परिवार के पास आजादी के समय की मुहर आज भी मौजूद हैं, जिसमें महात्मा गांधी के चरखे वाली तिरंगे की मुहर भी शामिल है. इस वर्ष गणतंत्र दिवस को लेकर यह परिवार 50 हजार से अधिक तिरंगे झंडे में अशोक चक्र की मुहर लगा चुका है. खादी ग्रामोद्योग भी इसी हुनर को देखते हुए छापे के लिए इसी परिवार को झंडे सौंपता है. क्योंकि झंडे पर अशोक चक्र का छापा बेहद ही सावधानी से करना होता है.

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पैसा नहीं देशभक्ति का जुनून : राष्ट्र के प्रति देश प्रेम का जुनून भारतीयों की नस-नस में है. इसी का एक उदाहरण गया का ये मुस्लिम परिवार है. यह परिवार पिछले कई पीढ़ियों से तिरंगे पर अशोक चक्र की छपाई करता है. यह काम पिछली तीन पीढ़ी से पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि देश भक्ति के जुनून में कर रही है. इससे जो सम्मान मिलता है, वही इनके लिए असली पारिश्रमिक होता है. वैसे परिवार के लोग बताते हैं कि उनके पूर्वज अंग्रेजों के भी जमाने में भी तिरंगे पर छापा दिया करते थे.

पूरा परिवार तिरंगे पर छापता है अशोक चक्र: गया के मखलोट गंज के रहने वाले मोहम्मद शमीम, उनकी पत्नी सीमा प्रवीण और यह पूरा परिवार अपने घर में तिरंगे पर अशोक चक्र का छापा देने में व्यस्त है. यह परिवार पिछले तीन पीढ़ियों से ऐसा कर रहा है. पहले पिता, दादा यह काम करते थे. तीसरी पीढ़ी ने अब यह काम संभाल रखा है और तिरंगे पर चक्र का छापा का काम पूरी लगन से कर रहा है. कहा तो यह भी जाता है कि यह मुस्लिम परिवार अंग्रेजों के जमाने से तिरंगे पर चक्र का छापा देने का काम करता रहा है. फिलहाल वर्तमान में तीसरी पीढ़ी अपने पुरखों के छोड़े गए दायित्व का निर्वाहन कर रही है.

खादी ग्रामोद्योग को करते हैं छापा लगे तिरंगे की सप्लाई : गया के मखलोटगंज के मोहम्मद शमीम के परिवार द्वारा तिरंगे पर चक्र का छापा दिए झंडे की सप्लाई बिहार के गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, सासाराम समेत विभिन्न जिलों में होती है. इसके अलावा बिहार के पड़ोसी राज्य झारखंड के समीपवर्ती जिलों में भी सप्लाई की जाती है. वहीं, अशोक चक्र का छापा देने के लिए खादी ग्रामोद्योग, सरकारी विभाग से भी आर्डर आते हैं. उसे पूरी लगन से यह परिवार पूरा करता है और तिरंगे पर चक्र का छापा देकर खादी ग्रामोद्योग से लेकर बिहार-झारखंड के जिलों में इसे भेजते हैं.

50 हजार से ज्यादा तिरंगे पर लगा चुके हैं मुहर: यह मुस्लिम परिवार गणतंत्र दिवस 2023 को लेकर 50 हजार से अधिक तिरंगे पर अशोक चक्र का छापा लगा चुका है और संबंधित स्थानों पर भेज चुका है. इस तरह मोहम्मद शमीम के परिवार के द्वारा दिया गया अशोक चक्र का छापा वाला तिरंगा झंडा बड़े-बड़े सरकारी भवनों में फहराया जाता है.

डिजिटल प्रिंट इनकी कला के आगे फेल: आज डिजिटल तरीके से भी अशोक चक्र का छापा दिया जाता है, लेकिन वह हाथ से दिए गए इस छापे की बराबरी नहीं कर सकता. नतीजतन आज भी शमीम के परिवार के अशोक चक्र के छापे की डिमांड हर और रहती है. इस परिवार की सीमा परवीन की मानें, तो यह छापा तिरंगे के दोनों और उग आता है और इसके रंग बदलकर तिरंगे के साथ मैच कर जाता है. जबकि कंप्यूटराइज में ऐसा संभव नहीं होता है.

''हमारा परिवार देश के प्रति भक्ति और सम्मान पाने के लिए ही ऐसा पीढ़ी दर पीढ़ी कर रहा है. गया में सिर्फ इसी घर में अशोक चक्र का छापा तिरंगे में दिया जाता है. यह हमारे लिए गर्व की बात है. हाथों से दिया जाने वाला अशोक चक्र का छापा पीढ़ियों से विरासत में मिली है. छापा करीब 6-7 दशक से भी ज्यादा पुराना है. यह विभिन्न साइजों में है.''- सीमा परवीन, तिरंगा छापने वाली कलाकार

चार पीढ़ियों से छाप रहे अशोक चक्र: मोहम्मद शमीम और उसकी पत्नी सीमा परवीन बताती हैं कि वह तिरंगे में अशोक चक्र का छापा देने का काम करते हैं. यह पिछले कई पीढ़ियों से लगातार किया जा रहा है. आमदनी के सवाल पर बताते हैं कि वे इसे कारोबार के रूप में नहीं देखते हैं, बल्कि देश के प्रति भक्ति और उससे मिलने वाले सम्मान को ही बहुमूल्य मानते हैं. दूसरे बिजनेस में लाभ की जरूर सोचते हैं, पर तिरंगे पर अशोक चक्र का छापा में लाभ या हानि नहीं देखते.

''महात्मा गांधी के चरखे के रूप में भी छापा यहां मौजूद है. परिवार के लोग बताते हैं कि इस तरह का छापा अब मिलना नामुमकिन है. परिवार के लोग विरासत के रूप में इसकी हिफाजत करते हैं. पीढ़ी दर पीढ़ी तिरंगे पर छापा देने का काम कर रहे हैं. इस देश के प्रति प्रेम वाले इस काम को हमारे बच्चे भी आगे बढ़ाने में मदद कर रहे हैं. अशोक चक्र छापने में काफी हिफाजत रखनी पड़ती है. अशोक चक्र का सांचा बनारस और हैदराबाद से लाया गया है.'' - मो. शमीम, तिरंगा छापने वाले कलाकार

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