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बिहार का ऐसा गांव, जहां हर घर में है म्यूजिशियन.. अमेरिका सहित कई देशों में चमका यहां का सितारा - etv news

बिहार (Village Of Musicians In Bihar) के एक गांव ने वो कर दिखाया है जो आज हर किसी के लिए मिसाल है. गया का यह गांव देशभर का इकलौता गांव है जो नक्सल प्रभावित होने के बावजूद संगीत की दुनिया में चमक रहा है. इस गांव के लोग देश ही नहीं बल्कि अमेरिका, थाईलैंड सहित कई देशों में अपना जौहर मनवा चुके हैं. आगे पढ़िए संगीत की दुनिया में चमकने वाले इस गांव की खासियत..

Village Of Musicians In Bihar
Village Of Musicians In Bihar
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Published : Jul 19, 2022, 8:05 PM IST

Updated : Jul 20, 2022, 11:41 AM IST

गया: बिहार के गया में एक गांव ऐसा है जहां अगर आप जाएंगे तो ऐसा लगेगा कि संगीत की दुनिया (Village Of Musicians In Gaya) में आ गए हैं. इस गांव में जगह जगह आपको वाद्य यंत्रों की मधुर आवाज सुनने को मिलेगी. इस अद्भुत नजारे को देख कोई भी दंग रह जाता है. यहां 100 सालों की परंपरा आज भी है जिंदा. बिहार के इस गांव में घर-घर में तबला, हारमोनियम, सितार, गिटार बजाने वाले वादक आसानी से देखे जा सकते हैं.

पढ़ें- बिहार का अनोखा गांव: जहां लड़कों की लंबाई बनी वरदान.. तो लड़कियों को नहीं मिल रहे दूल्हे

ईशरपुर के हर गांव में म्यूजिशियन: यह है गया जिले का ईशरपुर गांव (Isharpur Village Of Gaya) जो नक्सल प्रभावित रहा है, लेकिन गोलियों से की आवाज से दहलने वाले इस गांव में सदियों से संगीत से जुड़ी विरासत मौजूद है और गांव के लोगों ने इस परंपरा को आज भी जीवित कर रखा है. इस गांव की पहचान अब पूरी तरह से संगीत से होती है. ईशरपुर में घर-घर में तबला, हारमोनियम, सितार, गिटार, ध्रुपद धमार गायकी, तालपुरा, सितार वादन करने वाले लोग मिल जाएंगे. इस तरह गया के ईशरपुर की पहचान संगीत से होती है. संभवत देश का यह ऐसा पहला गांव है जहां इस तरह की विरासत करीब 100 सालों से कायम है. यहां की प्रतिभा विदेशों में निखर रही है.

300 घरों की बस्ती में लोगों के रग-रग में समाया है संगीत: जिला के परैया प्रखंड अंतर्गत ईशरपुर गांव करीब 300 लोगों की बस्ती वाला इलाका है. इस बस्ती में दो टोले हैं. दोनों में रहने वाले लोगों के रग-रग में संगीत बसा है. बच्चे हो वृद्ध हो या फिर लड़कियां हर कोई संगीत से ओत प्रोत है. संगीत सीखने की ललक और इस दिशा में देश-राज्य के लिए कुछ करना, उनके लिए एक जुनून सा नजर आता है.

कई देशों में यहां की प्रतिभा दिखा रही जलवा: ईशरपुर यूं ही अपने आप में महत्वपूर्ण नहीं है. यहां संगीत से जुड़े लोगों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. नतीजतन यहां के लोग विदेशों में अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं. कई ने तो संगीत के माध्यम में ऐसी प्रतिभा दिखाई कि वे विदेश में नौकरी करते करते वहीं के होकर रह गए. ऐसे कुछ लोगों में से एक हैं विनय पाठक. विनय ने अपने गांव की विरासत को दूसरे देशों में भी फैलाया है.

इन लोगों ने देश विदेश में किया गांव का नाम रौशन: विनय आज अमेरिका के कैलिफोर्निया में म्यूजिक कंपोजर के पद पर काम कर रहे हैं. वहीं अशोक पाठक थाईलैंड में सितार वादन में अपना नाम और अपने गांव का नाम बढ़ा रहे हैं. यह पिछले कई वर्षों से थाईलैंड में ही रह रहे हैं. वहीं ईशरपुर के ही रहने वाले स्वर्गीय बलराम पाठक को पदम विभूषण का पुरस्कार भी सरकार द्वारा दिया जा चुका है. इसी तरह दिल्ली में रवि शंकर उपाध्याय संगीत नाटक अकादमी से जुड़े हैं ईशरपुर के ही रहने वाले विनोद पाठक. उनके पुत्र विवेक पाठक भी संगीत में ही अच्छे पद पर पोस्टेड हैं. यहां के रहने वाले मनीष कुमार पाठक को भी राज्य सरकार द्वारा सम्मानित किया जा चुका है.

इन वादनों में परिपक्व हैं ईश्वरपुर गांव के लोग: ईशरपुर गांव के लोग तबला, हारमोनियम, सितार, गिटार, ध्रुपद धमाल, गायकी, ठुमरी, तालपुरा, पखावज वादन, सितार वादन, ढोल वादन, ख्याल गायकी, पखावज में परिपक्व हैं. इसके अलावा विविध संगीत अध्याय से भी इनका जुड़ाव अरसे से बना हुआ है. विविध तरह की गायकी में यहां के लोग निपुण नजर आते हैं.

संगीत के क्षेत्र में नक्सल प्रभावित गांव ईशरपुर ने बनायी पहचान: ईशरपुर के रहने वाले मनीष कुमार पाठक को ठुमरी गायन, ख्याल गायकी समेत संगीत के विभिन्न कलाओं में महारत हासिल है. मनीष बताते हैं कि परैया प्रखंड नक्सल प्रभावित रहा है. आज भी यहां पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया है, लेकिन यहां के संगीत की विरासत अनोखी है. एक सौ से अधिक सालों से जो विरासत चल निकली है, वह अब काफी आगे बढ़ चुकी है. यहां के लोग संगीत के क्षेत्र में जिला-राज्य, देश और विदेशों में भी काफी नाम कर रहे हैं.

"बच्चे संगीत सीखने को काफी लालायित हैं, लेकिन एक संगीत विद्यालय की कमी ने गांव की विरासत को थोड़ा तोड़ना शुरू किया है. सदियों की विरासत को और ईशरपुर गांव की पहचान को बरकरार रखने के लिए यहां एक संगीत विद्यालय खोला जाए. यहां के पुरुषों के अलावे लड़कियों ने भी काफी नाम किया है, जिसमें एक नाम महिमा उपाध्याय का भी है, जो देश के नामचीन कलाकारों के साथ काम कर रही हैं और अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं."- मनीष कुमार पाठक, संगीत शिक्षक सह ग्रामीण



"यहां अलग-अलग जातियों के लोग हैं और हर जाति के लोगों में संगीत की परंपरा भरी हुई है. लेकिन संगीत को प्रोत्साहन आज तक नहीं मिला है. प्रशासनिक और सरकारी उपेक्षा के कारण यहां के बच्चे संगीत सीखने में थोड़े असहज महसूस कर रहे हैं, लेकिन जहां तक उनका प्रयास है वे इसे सीखने की कोशिश में जुटे होते हैं."- बालेश्वर यादव, ग्रामीण

"मेरे चाचा संगीत सीखाते हैं. यहां पर डेढ़ साल से संगीत सीख रहे हैं. हम तबला बजाते हैं. प्रोग्राम भी करते हैं." - ऋतुराज, संगीत सीख रहा बालक

"पहले हम ज्यादा ध्यान नहीं दिए लेकिन अब संगीत सीखने को लेकर गंभीर हैं. हमें गाने में कम लेकिन तबला बजाने में ज्यादा अच्छा लगता है. संगीत हमारी विरासत है. दादा भी तबला बजाते थे. मेरे जीवन का लक्ष्य संगीत है."- शुभम कुमार, संगीत सीख रहा किशोर



गया: बिहार के गया में एक गांव ऐसा है जहां अगर आप जाएंगे तो ऐसा लगेगा कि संगीत की दुनिया (Village Of Musicians In Gaya) में आ गए हैं. इस गांव में जगह जगह आपको वाद्य यंत्रों की मधुर आवाज सुनने को मिलेगी. इस अद्भुत नजारे को देख कोई भी दंग रह जाता है. यहां 100 सालों की परंपरा आज भी है जिंदा. बिहार के इस गांव में घर-घर में तबला, हारमोनियम, सितार, गिटार बजाने वाले वादक आसानी से देखे जा सकते हैं.

पढ़ें- बिहार का अनोखा गांव: जहां लड़कों की लंबाई बनी वरदान.. तो लड़कियों को नहीं मिल रहे दूल्हे

ईशरपुर के हर गांव में म्यूजिशियन: यह है गया जिले का ईशरपुर गांव (Isharpur Village Of Gaya) जो नक्सल प्रभावित रहा है, लेकिन गोलियों से की आवाज से दहलने वाले इस गांव में सदियों से संगीत से जुड़ी विरासत मौजूद है और गांव के लोगों ने इस परंपरा को आज भी जीवित कर रखा है. इस गांव की पहचान अब पूरी तरह से संगीत से होती है. ईशरपुर में घर-घर में तबला, हारमोनियम, सितार, गिटार, ध्रुपद धमार गायकी, तालपुरा, सितार वादन करने वाले लोग मिल जाएंगे. इस तरह गया के ईशरपुर की पहचान संगीत से होती है. संभवत देश का यह ऐसा पहला गांव है जहां इस तरह की विरासत करीब 100 सालों से कायम है. यहां की प्रतिभा विदेशों में निखर रही है.

300 घरों की बस्ती में लोगों के रग-रग में समाया है संगीत: जिला के परैया प्रखंड अंतर्गत ईशरपुर गांव करीब 300 लोगों की बस्ती वाला इलाका है. इस बस्ती में दो टोले हैं. दोनों में रहने वाले लोगों के रग-रग में संगीत बसा है. बच्चे हो वृद्ध हो या फिर लड़कियां हर कोई संगीत से ओत प्रोत है. संगीत सीखने की ललक और इस दिशा में देश-राज्य के लिए कुछ करना, उनके लिए एक जुनून सा नजर आता है.

कई देशों में यहां की प्रतिभा दिखा रही जलवा: ईशरपुर यूं ही अपने आप में महत्वपूर्ण नहीं है. यहां संगीत से जुड़े लोगों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. नतीजतन यहां के लोग विदेशों में अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं. कई ने तो संगीत के माध्यम में ऐसी प्रतिभा दिखाई कि वे विदेश में नौकरी करते करते वहीं के होकर रह गए. ऐसे कुछ लोगों में से एक हैं विनय पाठक. विनय ने अपने गांव की विरासत को दूसरे देशों में भी फैलाया है.

इन लोगों ने देश विदेश में किया गांव का नाम रौशन: विनय आज अमेरिका के कैलिफोर्निया में म्यूजिक कंपोजर के पद पर काम कर रहे हैं. वहीं अशोक पाठक थाईलैंड में सितार वादन में अपना नाम और अपने गांव का नाम बढ़ा रहे हैं. यह पिछले कई वर्षों से थाईलैंड में ही रह रहे हैं. वहीं ईशरपुर के ही रहने वाले स्वर्गीय बलराम पाठक को पदम विभूषण का पुरस्कार भी सरकार द्वारा दिया जा चुका है. इसी तरह दिल्ली में रवि शंकर उपाध्याय संगीत नाटक अकादमी से जुड़े हैं ईशरपुर के ही रहने वाले विनोद पाठक. उनके पुत्र विवेक पाठक भी संगीत में ही अच्छे पद पर पोस्टेड हैं. यहां के रहने वाले मनीष कुमार पाठक को भी राज्य सरकार द्वारा सम्मानित किया जा चुका है.

इन वादनों में परिपक्व हैं ईश्वरपुर गांव के लोग: ईशरपुर गांव के लोग तबला, हारमोनियम, सितार, गिटार, ध्रुपद धमाल, गायकी, ठुमरी, तालपुरा, पखावज वादन, सितार वादन, ढोल वादन, ख्याल गायकी, पखावज में परिपक्व हैं. इसके अलावा विविध संगीत अध्याय से भी इनका जुड़ाव अरसे से बना हुआ है. विविध तरह की गायकी में यहां के लोग निपुण नजर आते हैं.

संगीत के क्षेत्र में नक्सल प्रभावित गांव ईशरपुर ने बनायी पहचान: ईशरपुर के रहने वाले मनीष कुमार पाठक को ठुमरी गायन, ख्याल गायकी समेत संगीत के विभिन्न कलाओं में महारत हासिल है. मनीष बताते हैं कि परैया प्रखंड नक्सल प्रभावित रहा है. आज भी यहां पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया है, लेकिन यहां के संगीत की विरासत अनोखी है. एक सौ से अधिक सालों से जो विरासत चल निकली है, वह अब काफी आगे बढ़ चुकी है. यहां के लोग संगीत के क्षेत्र में जिला-राज्य, देश और विदेशों में भी काफी नाम कर रहे हैं.

"बच्चे संगीत सीखने को काफी लालायित हैं, लेकिन एक संगीत विद्यालय की कमी ने गांव की विरासत को थोड़ा तोड़ना शुरू किया है. सदियों की विरासत को और ईशरपुर गांव की पहचान को बरकरार रखने के लिए यहां एक संगीत विद्यालय खोला जाए. यहां के पुरुषों के अलावे लड़कियों ने भी काफी नाम किया है, जिसमें एक नाम महिमा उपाध्याय का भी है, जो देश के नामचीन कलाकारों के साथ काम कर रही हैं और अपनी एक अलग पहचान बना चुकी हैं."- मनीष कुमार पाठक, संगीत शिक्षक सह ग्रामीण



"यहां अलग-अलग जातियों के लोग हैं और हर जाति के लोगों में संगीत की परंपरा भरी हुई है. लेकिन संगीत को प्रोत्साहन आज तक नहीं मिला है. प्रशासनिक और सरकारी उपेक्षा के कारण यहां के बच्चे संगीत सीखने में थोड़े असहज महसूस कर रहे हैं, लेकिन जहां तक उनका प्रयास है वे इसे सीखने की कोशिश में जुटे होते हैं."- बालेश्वर यादव, ग्रामीण

"मेरे चाचा संगीत सीखाते हैं. यहां पर डेढ़ साल से संगीत सीख रहे हैं. हम तबला बजाते हैं. प्रोग्राम भी करते हैं." - ऋतुराज, संगीत सीख रहा बालक

"पहले हम ज्यादा ध्यान नहीं दिए लेकिन अब संगीत सीखने को लेकर गंभीर हैं. हमें गाने में कम लेकिन तबला बजाने में ज्यादा अच्छा लगता है. संगीत हमारी विरासत है. दादा भी तबला बजाते थे. मेरे जीवन का लक्ष्य संगीत है."- शुभम कुमार, संगीत सीख रहा किशोर



Last Updated : Jul 20, 2022, 11:41 AM IST
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