गया: पूरे विश्व में मोक्षधाम के रूप में प्रसिद्ध गया (Gaya) में इन दिनों आस्था की लूट हो रही है. मान्यता है कि मोक्षदायिनी फल्गु नदी (Falgu River) की एक बूंद पानी और बालू के पिंडदान (Pind Daan) से भी मोक्ष की प्राप्ति होती है. इन दिनों पिंडदान करने वाले बालू की बालू माफिया (Sand Mafia) दिनदहाड़े चोरी कर रहे हैं.
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पितरों को मोक्ष देने वाले बालू (Sand) को महज 10 से 20 रुपये प्रति बोरा (50 किलोग्राम) में बेचा जा रहा है. बालू का उठाव रात के अंधेरे में नहीं दिनदहाड़े प्रशासन की नाक के नीचे से होता है और जिला प्रशासन (District Administration) मौन है.
दरअसल, बिहार में इन दिनों किसी भी नदी से बालू उठाव पर रोक है. ऐसे में बालू का उठाव करना अभी गैरकानूनी है. सरकार के इस आदेश को ठेंगा दिखाते हुए जिस बालू से मोक्ष की प्राप्ति होती है, उस बालू का दिन के उजाले में उठाव किया जा रहा है. मोक्षदायिनी फल्गु नदी में बालू से पिंडदान और पानी से तर्पण केंदुआ गांव से रामशिला पर्वत तक फल्गु क्षेत्र में होता है. इन क्षेत्रों में धड़ल्ले से बालू का उठाव किया जा रहा है.
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उत्तराखंड से आए यात्री पंचानंद मंडल ने बताया कि वो पूरे परिवार के साथ पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए गया में पिंडदान करने आये थे. घर लौटते वक्त हम सभी मोक्षदायिनी फल्गु की बालू को गांव में ले जाते हैं. फल्गु नदी के बालू का बड़ा महत्व है. पूरे गांव के लोग एक-एक मुट्ठी फल्गु नदी के बालू को अपने घर ले जाते हैं. मान्यता है कि बालू को घर में रखने से शांति मिलती है. हमें पता चला कि इस पवित्र बालू की चोरी हो रही है. ऐसा करना गलत है, यह बालू हमारी आस्था है.
वहीं, विष्णुपद प्रबन्धकारिणी समिति के सदस्य महेश लाल गुप्त ने बताया कि गया में एक रुपए से लेकर एक करोड़ यानी असंख्य राशि तक पिंडदान किया जाता है. वेद पुराणों में ऐसा कहा गया कि कोई भी संतान अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के उद्देश्य से गया में आएगा और फल्गु नदी के पानी से तर्पण और कम से कम उसके बालू से पिंडदान करेगा तो उसके पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी. ऐसे में धर्मक्षेत्र की बालू की चोरी हो रही है, तो सरकार को गंभीर होना चाहिए. धर्मक्षेत्र के बालू की सरकार को रक्षा करना चाहिए.
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बता दें कि फल्गु नदी में बालू का पिंडदान मां सीता ने शुरू किया था. इसके पीछे एक कथा है. भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु के बाद गया में पिंडदान करने आये थे. पिंडदान की सामग्री लाने दोनों भाई नगर में चले गए और माता सीता फल्गु नदी में अठखेलियां कर रहीं थी. इसी बीच आकाशवाणी हुई कि पुत्री पिंडदान का वक्त हो गया है, मुझे पिंड दो. माता सीता ने फल्गु नदी, गाय, ब्राह्मण और अक्षयवट को साक्षी रखकर राजा दशरथ को बालू का पिंडदान दिया.
भगवान राम और लक्ष्मण के वापस आने पर माता सीता ने पूरा वाक्या बताया, लेकिन भगवान राम को भरोसा नहीं हुआ. माता सीता ने साक्षी चारों से पूछा लेकिन ब्राह्मण, फल्गु नही और गाय ने कह दिया कि माता सीता ने पिंडदान नहीं किया. माता सीता ने आक्रोशित होकर फल्गु नदी को अंतः सलिला होने का श्राप दे दिया. माता सीता ने बालू का पिंडदान दिया तब से अनाज के साथ बालू का पिंडदान देना अनिवार्य हो गया.