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नक्सलियों के गढ़ में अफीम की खेती छोड़कर कर रहे लेमन ग्रास फार्मिंग, किसान कमा रहे दोगुना मुनाफा

विशेष केंद्रीय सहायता योजना की मदद से नक्सल इलाके के किसानों की जिंदगी संवर रही है. गया जिले के अंजनिया टांड़ के किसान इस योजना की मदद से लेमन ग्रास की खेती (Leman grass farming in Gaya) कर रहे हैं. परंपरागत खेती के अनुपात में ये किसान अब दोगुना फायदा कमाकर अपने जीवन को सुधार रहे हैं.

गया में लेमन ग्रास की खेती
गया में लेमन ग्रास की खेती
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Published : Oct 29, 2022, 5:30 PM IST

Updated : Oct 31, 2022, 2:40 PM IST

गया: बिहार के गया जिला के बाराचट्टी प्रखंड क्षेत्र के दक्षिणी इलाके का अंजनिया टांड गांव नक्सलियों का गढ़ (Naxal Area of Gaya) माना जाता है. नक्सलियों के संरक्षण में इस इलाके में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती किये जाने की सच्चाई समय-समय पर साबित होती रही है. लेकिन अब इलाके में केंद्र सरकार ने सकारात्मक पहल की है. विशेष केंद्रीय सहायता योजना के तहत वैकल्पिक और आधुनिक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है. अब इस क्षेत्र के लोग परंपरागत खेती को छोड़कर लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं और दोगुना मुनाफा भी कमा रहे हैं.

ये भी पढ़ें- गया में माओवादी सबजोनल कमांडर ने राइफल के साथ किया सरेंडर, प्रेशर IED प्लांट करने में था एक्सपर्ट

गया के अंजनिया टांड गांव में लेमन ग्रास की खेती: इस गांव की मंजू देवी इनकी प्रेरणास्रोत बनी हुईं हैं. यहां के गोविंद प्रजापति, मंजू देवी सहित अन्य किसानों को एकजुट कर सामूहिक रूप से लेमन ग्रास की खेती करवाई जा रही है. लेमनग्रास के इस क्लस्टर के लिए केंद्र सरकार द्वारा 15 लाख 20 हजार रुपए की आर्थिक मदद किसानों को दी गयी है. यहां पर लेमन ग्रास से तेल निकलने का प्लांट भी लगाया है. जिससे किसान खुद लेमन ग्रास का तेल निकालकर बाजार में बेच रहे हैं.


लेमन ग्रास का तेल है महंगा: महिला किसान मंजू देवी बताती हैं कि-'धान और गेहूं जैसी खेती में अत्यधिक श्रम करना पड़ता था. साथ ही बार-बार सिंचाई जरूरी थी. लेकिन लेमनग्रास में ऐसी बात नहीं है. धान-गेहूं के अनुपात में दोगुना मुनाफा है. उन्होंने बताया कि गया में लेमन ग्रास की खेती के लिए बार-बार जुताई भी नहीं करनी पड़ती है. लेमन ग्रास से निकाला तेल 14 सौ रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिकता है. पिछली बार 15 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती की थी. जिसके बाद 64 किलो तेल निकाला गया. इस हिसाब से लगभग 88 हजार रुपए की कमाई हुई.' उन्होंने कहा कि यदि धान-गेहूं की खेती करने के हिसाब से देखा जाए तो उसके मुकाबले दोगुना फायदा हुआ है. अब हमलोग गांव के दूसरे किसानों को भी लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रेरित रहे हैं. उन्होंने कहा कि अंजनिया टांड नक्सल प्रभावित इलाका है. ऐसे में जो लोग कभी नक्सल विचारधारा से जुड़े हुए थे. उन्हें भी इस खेती से जुड़ने का सुझाव देते हैं.


अफीम की खेती छोड़ लेमन ग्रास की खेती के लिए प्रोत्साहित: वहीं किसान गोविंद प्रजापति बताते हैं कि- 'जो लोग अफीम की खेती करते थे, वे भी अब प्रेरित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि वर्ष 2021 के जुलाई माह से लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं. प्राण संस्था के लोगों के द्वारा लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. सरकार के द्वारा भी शुरुआती दौर में हर संभव मदद की गई. जिसके बाद इस खेती से अब दोगुना लाभ कमा रहे हैं. लेमन ग्रास की खेती के बहुत फायदे हैं, एक तो इसमें बार-बार पानी नहीं देना पड़ता है. दूसरी नीलगाय एवं अन्य जानवर भी लेमनग्रास के पौधों को नहीं खाते हैं. तो देखा जाए तो इसमें मेहनत कम और फायदा ज्यादा है. गांव के दूसरे लोगों को भी इस खेती को करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं'.


''बाप-दादा के समय से गेहूं-धान की खेती कर रहे हैं. लेकिन गांव के ही लोगों के द्वारा लेमन ग्रास की खेती के बारे में बताया गया. यह भी जानकारी दी गई कि इसमें दोगुना फायदा होता है. हाल ही में हमने लेमन ग्रास की खेती को लगाया है. आने वाले समय में कितना फायदा होगा? यह देखने वाली बात होगी''- द्वारिका प्रजापति, अंजनिया टांड़ गांव निवासी



केंद्र सरकार की पहल का दिखने लगा असर: इस गांव में लगे प्लांट का असर है कि अब गांव के किसानों का ध्यान मिल रहे मुनाफे की तरफ है. गांव में ऐसा अवसर पाकर अब यहां के किसान परंपरागत खेती से हटके लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं. खराब मौसम में भी इस फसल से मुनाफा कमाया जा सकता है.

गया: बिहार के गया जिला के बाराचट्टी प्रखंड क्षेत्र के दक्षिणी इलाके का अंजनिया टांड गांव नक्सलियों का गढ़ (Naxal Area of Gaya) माना जाता है. नक्सलियों के संरक्षण में इस इलाके में बड़े पैमाने पर अफीम की खेती किये जाने की सच्चाई समय-समय पर साबित होती रही है. लेकिन अब इलाके में केंद्र सरकार ने सकारात्मक पहल की है. विशेष केंद्रीय सहायता योजना के तहत वैकल्पिक और आधुनिक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है. अब इस क्षेत्र के लोग परंपरागत खेती को छोड़कर लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं और दोगुना मुनाफा भी कमा रहे हैं.

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गया के अंजनिया टांड गांव में लेमन ग्रास की खेती: इस गांव की मंजू देवी इनकी प्रेरणास्रोत बनी हुईं हैं. यहां के गोविंद प्रजापति, मंजू देवी सहित अन्य किसानों को एकजुट कर सामूहिक रूप से लेमन ग्रास की खेती करवाई जा रही है. लेमनग्रास के इस क्लस्टर के लिए केंद्र सरकार द्वारा 15 लाख 20 हजार रुपए की आर्थिक मदद किसानों को दी गयी है. यहां पर लेमन ग्रास से तेल निकलने का प्लांट भी लगाया है. जिससे किसान खुद लेमन ग्रास का तेल निकालकर बाजार में बेच रहे हैं.


लेमन ग्रास का तेल है महंगा: महिला किसान मंजू देवी बताती हैं कि-'धान और गेहूं जैसी खेती में अत्यधिक श्रम करना पड़ता था. साथ ही बार-बार सिंचाई जरूरी थी. लेकिन लेमनग्रास में ऐसी बात नहीं है. धान-गेहूं के अनुपात में दोगुना मुनाफा है. उन्होंने बताया कि गया में लेमन ग्रास की खेती के लिए बार-बार जुताई भी नहीं करनी पड़ती है. लेमन ग्रास से निकाला तेल 14 सौ रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिकता है. पिछली बार 15 एकड़ में लेमन ग्रास की खेती की थी. जिसके बाद 64 किलो तेल निकाला गया. इस हिसाब से लगभग 88 हजार रुपए की कमाई हुई.' उन्होंने कहा कि यदि धान-गेहूं की खेती करने के हिसाब से देखा जाए तो उसके मुकाबले दोगुना फायदा हुआ है. अब हमलोग गांव के दूसरे किसानों को भी लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रेरित रहे हैं. उन्होंने कहा कि अंजनिया टांड नक्सल प्रभावित इलाका है. ऐसे में जो लोग कभी नक्सल विचारधारा से जुड़े हुए थे. उन्हें भी इस खेती से जुड़ने का सुझाव देते हैं.


अफीम की खेती छोड़ लेमन ग्रास की खेती के लिए प्रोत्साहित: वहीं किसान गोविंद प्रजापति बताते हैं कि- 'जो लोग अफीम की खेती करते थे, वे भी अब प्रेरित हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि वर्ष 2021 के जुलाई माह से लेमन ग्रास की खेती कर रहे हैं. प्राण संस्था के लोगों के द्वारा लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. सरकार के द्वारा भी शुरुआती दौर में हर संभव मदद की गई. जिसके बाद इस खेती से अब दोगुना लाभ कमा रहे हैं. लेमन ग्रास की खेती के बहुत फायदे हैं, एक तो इसमें बार-बार पानी नहीं देना पड़ता है. दूसरी नीलगाय एवं अन्य जानवर भी लेमनग्रास के पौधों को नहीं खाते हैं. तो देखा जाए तो इसमें मेहनत कम और फायदा ज्यादा है. गांव के दूसरे लोगों को भी इस खेती को करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं'.


''बाप-दादा के समय से गेहूं-धान की खेती कर रहे हैं. लेकिन गांव के ही लोगों के द्वारा लेमन ग्रास की खेती के बारे में बताया गया. यह भी जानकारी दी गई कि इसमें दोगुना फायदा होता है. हाल ही में हमने लेमन ग्रास की खेती को लगाया है. आने वाले समय में कितना फायदा होगा? यह देखने वाली बात होगी''- द्वारिका प्रजापति, अंजनिया टांड़ गांव निवासी



केंद्र सरकार की पहल का दिखने लगा असर: इस गांव में लगे प्लांट का असर है कि अब गांव के किसानों का ध्यान मिल रहे मुनाफे की तरफ है. गांव में ऐसा अवसर पाकर अब यहां के किसान परंपरागत खेती से हटके लेमन ग्रास की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हुए हैं. खराब मौसम में भी इस फसल से मुनाफा कमाया जा सकता है.

Last Updated : Oct 31, 2022, 2:40 PM IST
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