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गया पितृपक्ष: 12वें दिन मुंडपृष्ठा तीर्थ पर होता है पिंडदान, पूर्वजों को मिलता है ब्रह्मलोक में स्थान

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Published : Sep 24, 2019, 7:03 AM IST

ब्रह्मा जी ने चांदी का दान दिया था और धौंता ऋषि ने संकल्प कराया. इसलिए इस वेदी का नाम द्दोतपद पड़ा. द्दोतपद पर अपने पुरोहित को यथा शक्ति चांदी का दान अवश्य करना चाहिए, जिससे पितर तर जाते हैं.

गदाधर देव स्तुति करते हैं यहां

गया: मोक्ष की नगरी गया में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. एकादशी तिथि के दिन फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

यहां होता है पिंडदान
यहां होता है पिंडदान

कहा जाता है कि मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. वहीं, आदि गया वेदी पर पिंडदान करते हैं. यहां चांदी की वस्तु दान की जाती है. दोनों जगह कर्मकांड करने से ही पितरों को मोक्ष मिलता है.

पिंडवेदी
पिंडवेदी
  • गया जी में पिंडदान के 12 दिन एकादशी तिथि को फल्गु नदी में तर्पण कर श्राद्ध की शुरुआत करनी चाहिए.
  • करसल्ली पर्वत पर तीनों पिंड वेदी को नाभि तीर्थ भी कहते हैं.
  • इसके ऊपर विरजा देवी विराजमान हैं, इसलिए इसे विरजा तीर्थ भी कहते हैं.
  • मुस्लिम शासक औरंगजेब ने विरजा देवी की मूर्ति को भंग कर दिया था.
  • आज भी विरजा देवी की भंग मूर्ति के दर्शन होते हैं.
    गदाधर देव स्तुति करते हैं यहां
    गदाधर देव स्तुति करते हैं यहां

क्या है मुंड पृष्ठा की पौराणिक कहानी
गया सुर पर जब धर्मशिला पर्वत को रखा गया, तो उसे स्थिर करने के लिए आदि गदाधर भगवान मुंड पृष्ठा पर बैठ गए. इसके चलते इस तीर्थ को आदि गया कहते हैं. जो मुंडपृष्ठा पर स्थित आदि गदाधर देव स्तुति करते हैं, पूजा करते हैं वो विष्णु लोक को चले जाते हैं.

मुंड पृष्ठा तीर्थ से खास रिपोर्ट

क्यों देते हैं चांदी दान
इसके बाद मुंडपृष्ठा पर ही अवस्थित धौतपद वेदी पर श्राद्ध करते हैं. यहां ब्रह्मा जी ने चांदी का दान दिया था और धौंता ऋषि ने संकल्प कराया. इसलिए इस वेदी का नाम द्दोतपद पड़ा. द्दोतपद पर अपने पुरोहित को यथा शक्ति चांदी का दान अवश्य करना चाहिए, जिससे पितर तर जाते हैं.

गया: मोक्ष की नगरी गया में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. एकादशी तिथि के दिन फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

यहां होता है पिंडदान
यहां होता है पिंडदान

कहा जाता है कि मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. वहीं, आदि गया वेदी पर पिंडदान करते हैं. यहां चांदी की वस्तु दान की जाती है. दोनों जगह कर्मकांड करने से ही पितरों को मोक्ष मिलता है.

पिंडवेदी
पिंडवेदी
  • गया जी में पिंडदान के 12 दिन एकादशी तिथि को फल्गु नदी में तर्पण कर श्राद्ध की शुरुआत करनी चाहिए.
  • करसल्ली पर्वत पर तीनों पिंड वेदी को नाभि तीर्थ भी कहते हैं.
  • इसके ऊपर विरजा देवी विराजमान हैं, इसलिए इसे विरजा तीर्थ भी कहते हैं.
  • मुस्लिम शासक औरंगजेब ने विरजा देवी की मूर्ति को भंग कर दिया था.
  • आज भी विरजा देवी की भंग मूर्ति के दर्शन होते हैं.
    गदाधर देव स्तुति करते हैं यहां
    गदाधर देव स्तुति करते हैं यहां

क्या है मुंड पृष्ठा की पौराणिक कहानी
गया सुर पर जब धर्मशिला पर्वत को रखा गया, तो उसे स्थिर करने के लिए आदि गदाधर भगवान मुंड पृष्ठा पर बैठ गए. इसके चलते इस तीर्थ को आदि गया कहते हैं. जो मुंडपृष्ठा पर स्थित आदि गदाधर देव स्तुति करते हैं, पूजा करते हैं वो विष्णु लोक को चले जाते हैं.

मुंड पृष्ठा तीर्थ से खास रिपोर्ट

क्यों देते हैं चांदी दान
इसके बाद मुंडपृष्ठा पर ही अवस्थित धौतपद वेदी पर श्राद्ध करते हैं. यहां ब्रह्मा जी ने चांदी का दान दिया था और धौंता ऋषि ने संकल्प कराया. इसलिए इस वेदी का नाम द्दोतपद पड़ा. द्दोतपद पर अपने पुरोहित को यथा शक्ति चांदी का दान अवश्य करना चाहिए, जिससे पितर तर जाते हैं.

Intro:त्रीपाक्षिक श्राद्ध करने वाले पिंडदान ही 12वे दिन एकादशी तिथि को स्नान तर्पण कर सर्वप्रथम मुंड पृष्टा तीर्थ पर पिंडदान करते हैं यहां खोया का पिंडदान किया जाता है। उसके बाद आदि गया वेदी पर पिंडदान करते हैं यहां चांदी का वस्तु दान दिया जाता है। दोनो जगह कर्मकांड करके द्दोतपद पर पिंडदान किया जाता है।


Body:गयाजी में पिंडदान के 12 दिन एकादशी तिथि को फल्गु नदी में तर्पण कर श्राद्ध का शुरुआत करना चाहिए। करसल्ली पर्वत पर तीनो पिंड वेदी को नाभि तीर्थ भी कहते हैं और इसके ऊपर विरजा देवी विराजमान है इसलिए इसे विरजातीर्थ भी कहते हैं। विरजा देवी को मुस्लिम शासक औरंगजेब ने भग्न दिया था। आज विरजा देवी का भग्न मूर्ति का दर्शन होता हैं।

मुंडपृष्ठा वेदी पर एकादशी को पिंडदान किया जाता है यहां खोआ का पिंडदान किया जाता है। मुंडपृष्ठा वेदी पर श्राद्ध करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। पांदाकित मुंडपृष्ठा महादेवी का दर्शन करने से सभी लोग पाप से मुक्त हो जाते हैं।

धर्मशिला को स्थिर करने के लिए आदि गदाधर भगवान मुंडपृष्ठा पर बैठे हैं। इस तीर्थ को आदि गया कहते हैं जो मुंडपृष्ठा पर स्थित आदि गदाधर देव स्तुति करते हैं पूजा करते हैं वह विष्णु लोक को चले जाते हैं।

इसके बाद मुंडपृष्ठा पर ही अवस्थित धौतपद वेदी पर श्राद्ध करते हैं। यहां ब्रह्मा जी ने चांदी का दान दिया था और धौंता ऋषि ने संकल्प कराया इसलिए इस वेदी का नाम द्दोतपद पड़ा। द्दोतपद पर अपने पुरोहित को यथा शक्ति चांदी का दान अवश्य करना चाहिए जिससे पितरों की परम् सन्तुष्टि होती हैं।




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