गया: बिहार के गया में अब लोगों को रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है. अपने क्षेत्र में ही लोगों को काम (Employment In Gaya) मिल रहा है और यह सब मुमकिन हो पाया है कारू लाल (karu lal) के कारण जो पेशे से मिस्त्री हैं. दरअसल अहमदाबाद, गुजरात, महाराष्ट्र और मेरठ से कबाड़ के भाव खरीदकर लाए गए पावरलूम (Power Loom ) को कारू लाल ने काम के लायक बना दिया.
यह भी पढ़ें- रद्दी कागजों से मनीष बनाते हैं खूबसूरत कलाकृतियां, देश ही नहीं विदेशों में भी बढ़ी डिमांड
मानपुर के पटवाटोली (Manpur Patwatoli) में हजारों पावरलूम संचालित हैं और हजारों बुनकर इसमें काम कर रहे हैं. खास बात ये कि सभी पावरलूम कबाड़ से जुगाड़ लगाकर बनाया गया है. पटवाटोली के रहनेवाले कारू लाल मिस्त्री की टीम ने कबाड़ में जंग खा रहे पावरलूम को जुगाड़ विधि से काम के लायक बना दिया, जिससे छोटे बुनकरों (Weavers in Gaya) को खुद का पावरलूम लगाने में सहूलियत हो रही है.
गुजरात के सूरत और यूपी के अकबरपुर में खराब हुए पावरलूम को लोहे के भाव से कबाड़ में बेच दिया जाता है. कारू लाल ऐसे पावरलूम को अपनी मेहनत और जुगाड़ से कारगर बनाकर हजारों बुनकरों को रोजगार में मदद करते हैं. खासकर छोटे बुनकरों को आर्थिक रूप से काफी राहत मिल रही है.
'बिना डिग्री वाले इंजीनियर' कारू लाल कबाड़ को कारगर बना रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में करीब 200 पावरलूम की मरम्मत कर काम के लायक बनाया गया. पावरलूम चालू होने से कोरोना महामारी में करीब 400 बुनकर मजदूरों की वजह से पटवाटोली के उद्योग संचालकों को काफी बचत हो रही है.
'यहां कबाड़ के भाव में मशीन आती है. हम लोग इसका प्रोसेस करते हैं. हर तरह से मरम्मत करते हैं, फिटिंग करते हैं उसके बाद उसे बुनकरों के हवाले करते हैं जिससे बुनकर कपड़ा बनाते हैं. नई मशीन की कीमत बहुत ज्यादा होती है इसलिए लोग पुराना लेते हैं. ये मशीन भी नए वाले मशीन की तरह ही काम करती है. सस्ता होने के कारण हमें भी फायदा होता है और गरीब बुनकरों को भी इससे काफी लाभ हो रहा है.'- कारू लाल, मिस्त्री
आज से दस साल पहले गुजरात के सूरत में कारू लाल मिस्त्री का काम करते थे. वहां बड़े-बड़े पावरलूम पर काम होता था. कारू लाल ने सूरत में कबाड़ से एक पावरलूम लेकर जुगाड़ लगाकर उसे काम करने लायक बना दिया. इसके बाद कारू अपने घर पटवाटोली वापस आए. उन्होंने कबाड़ से दो पावरलूम लिए और उसे बनाया. पावरलूम के कारगर होने के बाद उन्होंने अब तक एक हजार से ज्यादा कबाड़ में फेंके हुए पावरलूम को बनाकर चालू किया है.
कबाड़ वाले पावरलूम को कारगर बनाने के लिए 12 लोगों की टीम है, जो विभिन्न तरह के काम करती है. इसमें लोहार, बढ़ई, लेंथ मिस्त्री, गैस मिस्त्री की जरूरत पड़ती है. एक कबाड़ वाले पावरलूम को बनाने में 15 दिन का समय लगता है. अगर इसे सही तरीके से चलाया जाए तो 10 साल तक खराब ना होने की गारंटी भी दी जाती है.
नया पावरलूम डेढ़ लाख रुपये तक मिलता है. कारू 30 हजार में कबाड़ से पावरलूम लाकर 70 हजार तक डिजाइन सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी लगाकर देते हैं. पावरलूम सस्ता होने से छोटे बुनकरों को इससे फायदा हो रहा है.
'हम दोनों ने साथ में इस काम को शुरू किया था. इससे छोटे बुनकरों को काफी फायदा मिलता है. हमारी 12 लोगों की टीम के साथ ही 40 मजदूरों के सहयोग से एक पावरलूम बनाकर तैयार किया जाता है. एक पावरलूम से 20 अन्य लोगों को रोजगार मिलता है.'- मुन्ना प्रसाद, कारू लाल के सहयोगी मिस्त्री
'नया मशीन लेने का पैसा नहीं था इसलिए पुरानी मशीन ली है. कारू लाल की मदद से पुरानी मशीन लगाई है. इसी से कमाते खाते हैं. नया पावरलूम नहीं ले सकते इसलिए पुराना लिया है. काम नए जैसा ही करता है.'- झूलन देवी, बुनकर
गौरतलब है कि अहमदाबाद, गुजरात, महाराष्ट्र, मेरठ- अकबरपुर शहरों के उद्योगों में बेकार पावरलूम को कबाड़ के भाव में बेचा जाता है. उसे पटवाटोली के उद्योग संचालक खरीद कर लाते हैं और यहां कारू लाल के द्वारा इसे काम के लायक बना दिया जाता है. कारू लाल ने कोरोना काल में 200 पावरलूम देकर लगभग 400 बुनकरों को रोजगार में मदद किया है. पुराने पावरलूम को बनाने के बाद करीब 15 हजार रुपये की बचत बुनकरों को होती है.
यह भी पढ़ें- बिहार की बेटी का कमाल, बनाया कोरोना मरीज की जांच और देखभाल करने वाला रोबोट