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Pitru Paksha 2022: 10वें दिन सीताकुंड में पिंडदान का विशेष महत्व, इस दिन सुहागिन करें ये काम

पितृ पक्ष 2022 (Pitru Paksha 2022) का आज दसवां दिन है. इस दिन की महत्ता कई मायनों में खास है. मान्यता है कि माता सीता ने राजा दशरथ को पिंडदान किया था इसलिए इस दिन सीताकुंड में पिंडदान का विशेष महत्व है. पढ़ें.

Importance Of Tenth Day Of Pitru Paksha
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Published : Sep 19, 2022, 6:00 AM IST

गया: मोक्ष की नगरी गयाजी (Pind Daan in Gayaji) में पिंडदान के दसवें दिन ( Importance Of Tenth Day Of Pitru Paksha) मातृ नवमी को सीताकुंड और रामगया तीर्थ इन दो पुण्य तीर्थो में पिंडदान करने का विधान है. दसवें दिन ( Tenth Day Of Pinddan In Gaya) सीताकुंड पर सुहाग पिटारी दान और बालू का पिंड अर्पित किया जाता है. फल्गु नदी की बालू से पिंड बना विधि विधान पूरा किया जाता है.

पढ़ें- ट्रेन में मृत आत्माओं के नाम से बुक की जाती है टिकट, पिंडदानी बच्चों की तरह पितृदंड का रखते हैं ख्याल

माता सीता ने राजा दशरथ को किया था पिंडदान: सीताकुंड को लेकर एक कथा प्रचलित हैं. कथा ये है कि जब राम, लक्षमण और माता सीता वनवास काल में राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात पिंडदान करने गया जी में आए. भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पिंड की सामग्री लेने के लिए चले गए. इसी बीच राजा दशरथ की आकाशवाणी हुई. जिसमें राजा दशरथ ने कहा पुत्री सीता जल्दी से हमें पिंड दे दो. पिंड देने का मुहूर्त बीता जा रहा है. माता सीता ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के आने में देरी होते देख फल्गु नदी के बालू का पिंड बनाया और राजा दशरथ को अर्पित कर दिया. इसके बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से सीताकुंड पिंडवेदी पर बालू का पिंड बनाकर पितरों को देने का प्रावधान है.

राजा दशरथ को हुई मोक्ष की प्राप्ति : राजा दशरथ को पिंडदान करने की बात जब माता सीता ने श्रीराम को बताई तो उन्होंने कहा कि बिना किसी सामग्री के पिंडदान कैसे किया जा सकता है. क्योंकि माता सीता ने गाय, फल्गु नदी और केतकी के फूल तीनों को साक्षी मानकर पिंडदान किया था, तो उन्होंने तीनों से आग्रह किया कि बताएं पिंडदान किया जा चुका है. इस बाबत, गाय, फल्गु और केतकी तीनों मुकर गए. अंत में माता सीता ने राजा दशरथ को याद कर प्रामणिकता देने की बात कही. राजा दशरथ ने श्री राम को बताया कि सीता ने मुहूर्त निकलता देख ऐन मौके पर मुझे पिंडदान कर दिया था.

सीता मैया ने दिया था श्राप: वहीं, तीनों की झूठी गवाही पर क्रोधित हुई माता सीता ने श्राप दे दिया. माता सीता ने गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी. फल्गु को श्राप दिया कि नदी, जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा. केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा. ये तीनों श्राप आज भी चरितार्थ हैं.

सुहागिन होने का मिलता है आशीर्वाद: सीताकुंड में मां सीता ने बालू का पिंडदान राजा दशरथ को दिया, तब से पितरों को बालू का पिंडदान देने का परंपरा है. पितरों में कोई महिला हो, तो दसवें दिन सुहाग पिटारी दान की जाती है. पिंडदानी महिलाएं उस पूर्वज से सुहागिन होने का आशीर्वाद मांगती हैं.

पवित्र रह कर करना चाहिए पिंडदान: पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए. इस दौरान एक बार भोजन करना चाहिए. पृथ्वी पर सोना चाहिए और सच बोलना चाहिए. साथ ही पवित्र रहना चाहिए. इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं. नियमों का पालन कर पिंडदान करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है.

पितृपक्ष की तिथि: आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है. वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत श्राद्ध करें.


भूल के भी ना करें ये काम: पितृ पक्ष के दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.

गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.


पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.

दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.

तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.

चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.

पांचवा दिन: पितृ पक्ष के पांचवें दिन मोक्ष की नगरी गया में ब्रह्म सरोवर महत्व रखता है. ब्रह्म सरोवर में पिंडदान कर काकबलि वेदी पर कुत्ता, कौआ और यम को उड़द के आटे का पिंड बनाकर तर्पण दिया जाता है. काकबलि से बलि देकर आम्र सिचन वेदी के पास आम वृक्ष की जड़ को कुश के सहारे जल दिया जाता है. तीनों वेदियों में प्रमुख वेदी ब्रह्म सरोवर है.

छठा दिन: छठे दिन फल्गु स्नान के पश्चात विष्णुपद दक्षिणा अग्नीपद वेदियों का आह्वान किया जाता है, जो विष्णु मंदिर में ही मानी जाती है. उसके दर्शन कर श्राद्ध पिंडदान करना चाहिए. वहां से गज कर्णिका में तर्पण करना चाहिए. साथ ही गया सिर पर पिंडदान करना चाहिए. मुंड पृष्टा पर पिंड दान करना चाहिए.

सातवां दिन: फल्गु स्नान, श्राद्ध, अक्षय वट जाकर अक्षय वट के नीचे श्राद्ध करना चाहिए. वहां 3 या 1 ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. यहीं गया पाल पंडों के द्वारा सुफल दिलाई जाती है.

आठवां दिन: इस दिन जल से किए तर्पण के द्वारा पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ कार्य करने के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए.

नौवां दिन: पिंडदान अर्पित कर कण्वपद, दधीचि पद, कार्तिक पद, गणेश पद और गजकर्ण पद पर दूध ,गंगा जल या फल्गू नदी के पानी से तर्पण करना चाहिए. अंत में कश्यप पद पर श्राद्ध करके कनकेश, केदार और वामन की ओर उत्तर मुख होकर पूजा करने मात्र से पितर तर जाते हैं.

दसवां दिन: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के दसवें दिन मातृ नवमी को सीताकुंड और रामगया तीर्थ इन दो पुण्य तीर्थो में पिंडदान करने का विधान है. दसवें दिन सीताकुंड पर सुहाग पिटारी दान और बालू का पिंड अर्पित किया जाता है. फल्गु नदी की बालू से पिंड बना विधि विधान पूरा किया जाता है.

11वां दिन: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के 11वें दिन गया सिर और गया कूप नामक दो तीर्थों में पिंडदान होता है. गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, गया कूप के बारे में कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से जो स्वर्गस्थ पितर हैं, उन्हें मोक्ष को प्राप्त होता है. दोनों तीर्थों की पौराणिक कथा भी प्रचलित है.

12वां दिन: मोक्ष की नगरी गयाजी में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. एकादशी तिथि के दिन फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

13वां दिन: मोक्ष की नगरी गया में पितृपक्ष के 13वें दिन द्वादशी तिथि को भीम गया,गौ प्रचार,गदालोल इन तीन वेदियों पर श्राद्ध करने का विधान है. मंगला गौरी मंदिर के मुख्य रास्ता से भीम गया वेदी अक्षयवट वाले रास्ते मे गौप्रचार वेदी है. अक्षयवट के सामने गदालोल वेदी स्थित है, जहां पिंडदान किया जाता है.

14वां दिन: 14वें दिन फल्गु नदी में स्नान करके दूध तर्पण करने का विधान है. 14वें दिन शाम यहां शाम को पितृ दीपावली मनायी जाती है. इसमें पितरों के लिए दीप जलाया जाता है और आतिशबाजी की जाती है.

15वां दिन: इस दिन वैतरणी सरोवर में पिंडदान और गौदान करने का नियम है. ऐसी मान्यता है कि देवनदी वैतरणी में स्नान करने से पितर स्वर्ग को जाते हैं. पिंडदान और गोदान करने के बाद सरोवर के निकट स्थित मार्कण्डेय शिव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने का भी प्रावधान है.

16वां दिन: श्राद्ध पक्ष में गाय को गुड़ के साथ रोटी खिलाएं और कुत्ते, बिल्ली और कौओं को भी आहार दें. इससे पितरों का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा. दुर्घटना, अस्त्र-शस्त्र और अपमृत्यु से मरे लोगों का श्राद्ध किया जाता है. इस दिन को तर्पण-श्राद्ध कर प्रसन्न करने का दिन माना जाता है.

17वां और आखिरी दिन: आखिरी दिन पितृ अमावस्या को लेकर मोक्षदायिनी फल्गु नदी पर तीर्थयात्रियों पितरों की आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए फल्गु नदी के जल से तर्पण करते हैं.

गया: मोक्ष की नगरी गयाजी (Pind Daan in Gayaji) में पिंडदान के दसवें दिन ( Importance Of Tenth Day Of Pitru Paksha) मातृ नवमी को सीताकुंड और रामगया तीर्थ इन दो पुण्य तीर्थो में पिंडदान करने का विधान है. दसवें दिन ( Tenth Day Of Pinddan In Gaya) सीताकुंड पर सुहाग पिटारी दान और बालू का पिंड अर्पित किया जाता है. फल्गु नदी की बालू से पिंड बना विधि विधान पूरा किया जाता है.

पढ़ें- ट्रेन में मृत आत्माओं के नाम से बुक की जाती है टिकट, पिंडदानी बच्चों की तरह पितृदंड का रखते हैं ख्याल

माता सीता ने राजा दशरथ को किया था पिंडदान: सीताकुंड को लेकर एक कथा प्रचलित हैं. कथा ये है कि जब राम, लक्षमण और माता सीता वनवास काल में राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात पिंडदान करने गया जी में आए. भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पिंड की सामग्री लेने के लिए चले गए. इसी बीच राजा दशरथ की आकाशवाणी हुई. जिसमें राजा दशरथ ने कहा पुत्री सीता जल्दी से हमें पिंड दे दो. पिंड देने का मुहूर्त बीता जा रहा है. माता सीता ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के आने में देरी होते देख फल्गु नदी के बालू का पिंड बनाया और राजा दशरथ को अर्पित कर दिया. इसके बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से सीताकुंड पिंडवेदी पर बालू का पिंड बनाकर पितरों को देने का प्रावधान है.

राजा दशरथ को हुई मोक्ष की प्राप्ति : राजा दशरथ को पिंडदान करने की बात जब माता सीता ने श्रीराम को बताई तो उन्होंने कहा कि बिना किसी सामग्री के पिंडदान कैसे किया जा सकता है. क्योंकि माता सीता ने गाय, फल्गु नदी और केतकी के फूल तीनों को साक्षी मानकर पिंडदान किया था, तो उन्होंने तीनों से आग्रह किया कि बताएं पिंडदान किया जा चुका है. इस बाबत, गाय, फल्गु और केतकी तीनों मुकर गए. अंत में माता सीता ने राजा दशरथ को याद कर प्रामणिकता देने की बात कही. राजा दशरथ ने श्री राम को बताया कि सीता ने मुहूर्त निकलता देख ऐन मौके पर मुझे पिंडदान कर दिया था.

सीता मैया ने दिया था श्राप: वहीं, तीनों की झूठी गवाही पर क्रोधित हुई माता सीता ने श्राप दे दिया. माता सीता ने गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी. फल्गु को श्राप दिया कि नदी, जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा. केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढ़ाया जाएगा. ये तीनों श्राप आज भी चरितार्थ हैं.

सुहागिन होने का मिलता है आशीर्वाद: सीताकुंड में मां सीता ने बालू का पिंडदान राजा दशरथ को दिया, तब से पितरों को बालू का पिंडदान देने का परंपरा है. पितरों में कोई महिला हो, तो दसवें दिन सुहाग पिटारी दान की जाती है. पिंडदानी महिलाएं उस पूर्वज से सुहागिन होने का आशीर्वाद मांगती हैं.

पवित्र रह कर करना चाहिए पिंडदान: पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए. इस दौरान एक बार भोजन करना चाहिए. पृथ्वी पर सोना चाहिए और सच बोलना चाहिए. साथ ही पवित्र रहना चाहिए. इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं. नियमों का पालन कर पिंडदान करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है.

पितृपक्ष की तिथि: आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है. वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत श्राद्ध करें.


भूल के भी ना करें ये काम: पितृ पक्ष के दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.

गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.


पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.

दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.

तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.

चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.

पांचवा दिन: पितृ पक्ष के पांचवें दिन मोक्ष की नगरी गया में ब्रह्म सरोवर महत्व रखता है. ब्रह्म सरोवर में पिंडदान कर काकबलि वेदी पर कुत्ता, कौआ और यम को उड़द के आटे का पिंड बनाकर तर्पण दिया जाता है. काकबलि से बलि देकर आम्र सिचन वेदी के पास आम वृक्ष की जड़ को कुश के सहारे जल दिया जाता है. तीनों वेदियों में प्रमुख वेदी ब्रह्म सरोवर है.

छठा दिन: छठे दिन फल्गु स्नान के पश्चात विष्णुपद दक्षिणा अग्नीपद वेदियों का आह्वान किया जाता है, जो विष्णु मंदिर में ही मानी जाती है. उसके दर्शन कर श्राद्ध पिंडदान करना चाहिए. वहां से गज कर्णिका में तर्पण करना चाहिए. साथ ही गया सिर पर पिंडदान करना चाहिए. मुंड पृष्टा पर पिंड दान करना चाहिए.

सातवां दिन: फल्गु स्नान, श्राद्ध, अक्षय वट जाकर अक्षय वट के नीचे श्राद्ध करना चाहिए. वहां 3 या 1 ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. यहीं गया पाल पंडों के द्वारा सुफल दिलाई जाती है.

आठवां दिन: इस दिन जल से किए तर्पण के द्वारा पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ कार्य करने के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए.

नौवां दिन: पिंडदान अर्पित कर कण्वपद, दधीचि पद, कार्तिक पद, गणेश पद और गजकर्ण पद पर दूध ,गंगा जल या फल्गू नदी के पानी से तर्पण करना चाहिए. अंत में कश्यप पद पर श्राद्ध करके कनकेश, केदार और वामन की ओर उत्तर मुख होकर पूजा करने मात्र से पितर तर जाते हैं.

दसवां दिन: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के दसवें दिन मातृ नवमी को सीताकुंड और रामगया तीर्थ इन दो पुण्य तीर्थो में पिंडदान करने का विधान है. दसवें दिन सीताकुंड पर सुहाग पिटारी दान और बालू का पिंड अर्पित किया जाता है. फल्गु नदी की बालू से पिंड बना विधि विधान पूरा किया जाता है.

11वां दिन: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के 11वें दिन गया सिर और गया कूप नामक दो तीर्थों में पिंडदान होता है. गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, गया कूप के बारे में कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से जो स्वर्गस्थ पितर हैं, उन्हें मोक्ष को प्राप्त होता है. दोनों तीर्थों की पौराणिक कथा भी प्रचलित है.

12वां दिन: मोक्ष की नगरी गयाजी में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. एकादशी तिथि के दिन फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

13वां दिन: मोक्ष की नगरी गया में पितृपक्ष के 13वें दिन द्वादशी तिथि को भीम गया,गौ प्रचार,गदालोल इन तीन वेदियों पर श्राद्ध करने का विधान है. मंगला गौरी मंदिर के मुख्य रास्ता से भीम गया वेदी अक्षयवट वाले रास्ते मे गौप्रचार वेदी है. अक्षयवट के सामने गदालोल वेदी स्थित है, जहां पिंडदान किया जाता है.

14वां दिन: 14वें दिन फल्गु नदी में स्नान करके दूध तर्पण करने का विधान है. 14वें दिन शाम यहां शाम को पितृ दीपावली मनायी जाती है. इसमें पितरों के लिए दीप जलाया जाता है और आतिशबाजी की जाती है.

15वां दिन: इस दिन वैतरणी सरोवर में पिंडदान और गौदान करने का नियम है. ऐसी मान्यता है कि देवनदी वैतरणी में स्नान करने से पितर स्वर्ग को जाते हैं. पिंडदान और गोदान करने के बाद सरोवर के निकट स्थित मार्कण्डेय शिव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने का भी प्रावधान है.

16वां दिन: श्राद्ध पक्ष में गाय को गुड़ के साथ रोटी खिलाएं और कुत्ते, बिल्ली और कौओं को भी आहार दें. इससे पितरों का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा. दुर्घटना, अस्त्र-शस्त्र और अपमृत्यु से मरे लोगों का श्राद्ध किया जाता है. इस दिन को तर्पण-श्राद्ध कर प्रसन्न करने का दिन माना जाता है.

17वां और आखिरी दिन: आखिरी दिन पितृ अमावस्या को लेकर मोक्षदायिनी फल्गु नदी पर तीर्थयात्रियों पितरों की आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए फल्गु नदी के जल से तर्पण करते हैं.

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