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पर्यावरण संरक्षण की अनोखी पहल, होलिका दहन के लिए गोबर के कंडे का इस्तेमाल

गया में इस बार होलिका दहन में लड़की या किसी अन्य सामान का उपयोग नहीं किया जाएगा. पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इस साल होलिका दहन में गोबर के कंडे का इस्तेमाल होगा.

गया
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Published : Mar 9, 2020, 7:15 PM IST

Updated : Mar 9, 2020, 8:56 PM IST

गया: सनातन धर्म में होलिका दहन मनाने की परंपरा आदि काल से चली आ रही है. बिहार की धार्मिक नगरी गया में हर चौक-चौराहों पर होलिका दहन करने की तैयारी जोरों पर है. लेकिन इस बार मोक्ष धाम के वासी पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी सजग दिख रहे हैं. इस बार के होलिका दहन में पेड़ की टहनी या लकड़ी का प्रयोग न कर गोबर के बने कंडे से होलिका दहन किया जाएगा. इसकी पहल चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष अनूप केडिया के प्रयास से हो रही है.

जल जीवन हरियाली को लेकर रखा गया ध्यान
अमूमन होलिका दहन के लिए पेड़, पौधे, टायर और लकड़ी जलाकर होलिका दहन मनाते हैं. लेकिन गया शहर में कुछ स्थानों पर इस बार जल जीवन हरियाली अभियान को ध्यान में रखते हुए गोबर के कंडे से होलिका दहन करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए मानपुर के गौरक्षणि गौशाला ने बड़े पैमाने पर मशीन से गोबर के कंडे लकड़ीनुमा आकार के बनाए हैं. गौरक्षणि गौशाला इसे लागत मूल्य पर लोगों को दे रही है.

gaya
राजस्थानी महिला गोबर के कंडा से पूजा पाठ करती हुई

'गोबर के कंडे से होगी होलिका दहन'
वहीं, चैम्बर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष अनूप केडिया गौरक्षणि गौशाला से गोबर के कंडे लेकर शहर में प्रमुख स्थानों सिर्फ गोबर के कंडे की होलिका दहन करवाएंगे. इस संबंध में चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष अनूप केडिया ने कहा गौरक्षणि गौशाला में अधिक मात्रा में गोबर रहता था. उसे मशीन की मदद से लकड़ी का आकार देकर एक छोटा सा प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि शहर में कुछ जगहों पर होलिका दहन में लकड़ी की नहीं सिर्फ गोबर के बने कंडे का प्रयोग हो, इसके लिए बहुत लोग ने सहमति भी दी है. साथ ही ये पर्यावरण संरक्षण को लेकर ये एक पहल है.

gaya
गोबर का कंडा

क्या है राजस्थान की परंपरा
गया में रह रहे राजस्थान की मूल निवासी का मानना है कि ये प्रथा राजस्थानी परंपरा है. राजस्थानी निवासी रोशनी केडिया ने बताया कि राजस्थान में गोबर के कंडे से होलिका दहन किया जता है. उन्होंने कहा कि हमलोग फाल्गुन एकादशी से ही गोबर से होलिक और कंडे बनाने लगते हैं.

देखिए खास रिपोर्ट

पर्यावरण का होता है बचाव
राजस्थानी निवासी ने ये भी कहा कि हमलोग में विधिवत पूजा करके बनाने का काम शुरू करते हैं. इसमें गोबर से होलिका, सूर्य, चांद, तारा बनाते हैं. साथ ही होलिका दहन के लिए अधिक मात्रा में कंडे बनाते हैं. महिला ने कहा कि ये हमारी परंपरा हैं. हमलोग होलिका में लकड़ी, प्लास्टिक, टायर का उपयोग नहीं करते हैं. बल्कि सिर्फ गोबर का कंडे का उपयोग होता हैं. जिससे पर्यावरण के लिए काफी अच्छा होता हैं और पेड़ो की कटाई नहीं होती है.

गया: सनातन धर्म में होलिका दहन मनाने की परंपरा आदि काल से चली आ रही है. बिहार की धार्मिक नगरी गया में हर चौक-चौराहों पर होलिका दहन करने की तैयारी जोरों पर है. लेकिन इस बार मोक्ष धाम के वासी पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी सजग दिख रहे हैं. इस बार के होलिका दहन में पेड़ की टहनी या लकड़ी का प्रयोग न कर गोबर के बने कंडे से होलिका दहन किया जाएगा. इसकी पहल चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष अनूप केडिया के प्रयास से हो रही है.

जल जीवन हरियाली को लेकर रखा गया ध्यान
अमूमन होलिका दहन के लिए पेड़, पौधे, टायर और लकड़ी जलाकर होलिका दहन मनाते हैं. लेकिन गया शहर में कुछ स्थानों पर इस बार जल जीवन हरियाली अभियान को ध्यान में रखते हुए गोबर के कंडे से होलिका दहन करने की तैयारी की जा रही है. इसके लिए मानपुर के गौरक्षणि गौशाला ने बड़े पैमाने पर मशीन से गोबर के कंडे लकड़ीनुमा आकार के बनाए हैं. गौरक्षणि गौशाला इसे लागत मूल्य पर लोगों को दे रही है.

gaya
राजस्थानी महिला गोबर के कंडा से पूजा पाठ करती हुई

'गोबर के कंडे से होगी होलिका दहन'
वहीं, चैम्बर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष अनूप केडिया गौरक्षणि गौशाला से गोबर के कंडे लेकर शहर में प्रमुख स्थानों सिर्फ गोबर के कंडे की होलिका दहन करवाएंगे. इस संबंध में चैंबर ऑफ कॉमर्स के पूर्व अध्यक्ष अनूप केडिया ने कहा गौरक्षणि गौशाला में अधिक मात्रा में गोबर रहता था. उसे मशीन की मदद से लकड़ी का आकार देकर एक छोटा सा प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि शहर में कुछ जगहों पर होलिका दहन में लकड़ी की नहीं सिर्फ गोबर के बने कंडे का प्रयोग हो, इसके लिए बहुत लोग ने सहमति भी दी है. साथ ही ये पर्यावरण संरक्षण को लेकर ये एक पहल है.

gaya
गोबर का कंडा

क्या है राजस्थान की परंपरा
गया में रह रहे राजस्थान की मूल निवासी का मानना है कि ये प्रथा राजस्थानी परंपरा है. राजस्थानी निवासी रोशनी केडिया ने बताया कि राजस्थान में गोबर के कंडे से होलिका दहन किया जता है. उन्होंने कहा कि हमलोग फाल्गुन एकादशी से ही गोबर से होलिक और कंडे बनाने लगते हैं.

देखिए खास रिपोर्ट

पर्यावरण का होता है बचाव
राजस्थानी निवासी ने ये भी कहा कि हमलोग में विधिवत पूजा करके बनाने का काम शुरू करते हैं. इसमें गोबर से होलिका, सूर्य, चांद, तारा बनाते हैं. साथ ही होलिका दहन के लिए अधिक मात्रा में कंडे बनाते हैं. महिला ने कहा कि ये हमारी परंपरा हैं. हमलोग होलिका में लकड़ी, प्लास्टिक, टायर का उपयोग नहीं करते हैं. बल्कि सिर्फ गोबर का कंडे का उपयोग होता हैं. जिससे पर्यावरण के लिए काफी अच्छा होता हैं और पेड़ो की कटाई नहीं होती है.

Last Updated : Mar 9, 2020, 8:56 PM IST
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