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Independence Day 2023 : देशभक्ति के रंग में तिरंगे पर अशोक चक्र छापता है ये मुस्लिम परिवार, खप गईं 4 पीढ़ियां

बिहार के गया में एक मुस्लिम परिवार तिरंगे पर अशोक चक्र छापने का काम करता है. आमदनी न के बराबर होने के बावजूद भी वो इस पुश्तैनी काम को इसलिए कर रहा है क्योंकि इस परिवार को अशोक चक्र छापने में फक्र महसूस होता है. उनका कहना है कि यह एक देश भक्ति का जुनून ही है जो इस काम को करने के लिए प्रेरित करता है-

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Published : Aug 12, 2023, 6:02 AM IST

Updated : Aug 12, 2023, 8:13 AM IST

4 पीढ़ी से तिरंगे पर अशोक चक्र छाप रहा मुस्लिम परिवार

गया : बिहार के गया में मुस्लिम परिवार चार पुश्तों से तिरंगे पर अशोक चक्र छापता है. उनका कहना है कि वो ये काम आमदनी नहीं, बल्कि देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत होकर, पुरखों की विरासत को संभाल रहे हैं. मुस्लिम समुदाय का यह रंगरेज परिवार आजादी के समय काल से ही पीढ़ी दर पीढ़ी तिरंगे पर अशोक चक्र की मुहर लगाता चला आ रहा है. आज तक करीब 15 हजार तिरंगे पर मोह लगाकर भेज चुके हैं.

ये भी पढ़ें- पैसे के लिए नहीं, सम्मान के लिए तीन पीढ़ियों से तिरंगे पर अशोक चक्र छाप रहा ये परिवार

मगध के कई जिलों से आते हैं ऑर्डर : गया में यही ऐसा परिवार है, जहां अशोक चक्र की मुहर लगाने का काम होता है. इस परिवार के पास मगध प्रमंडल के कई जिलों से तिरंगे पर मोहर लगाने के ऑर्डर आते हैं. गया जिले के अलावे नवादा, औरंगाबाद समेत अन्य इलाकों से यह ऑर्डर गया शहर के मारूफगंंज के रहने वाले मोहम्मद शमीम के यहां आता है. वर्तमान में मोहम्मद शमीम का परिवार ही तिरंंगे में हाथ से अशोक चक्र की मोहर लगाने का काम कर रहा है. इसके अलावा गया में यह कहीं नहीं होता है.

इलेक्ट्रॉनिक जमाने में हैंडमेड छपाई की डिमांड : आज इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम आ गया है. किंतु कंप्यूटराइज्ड अशोक चक्र की अपेक्षा हाथ से लगाए अशोक चक्र की मोहर खूबसूरती के कारण यह बाजारों में पहली पसंद है. यही वजह है कि खादी ग्रामोद्योग हो, या झंडा बनाने वाले अन्य संस्थान सभी के तिरंगे झंडे में अशोक चक्र लगाने का काम मोहम्मद शमीम के यहां ही होता है. मोहम्मद शमीम बताते हैं, कि जितने भी प्रशासनिक स्थान पर तिरंगे झंडे, 15 अगस्त या 26 जनवरी को फहराए जाते हैं, इसमें लगाया गया अशोक चक्र हमारे ही हाथों का होता है.

अशोक चक्र छापने में पूरा परिवार देता है साथ : मोहम्मद शमीम की पत्नी सीमा परवीन यानी घर की बहू भी तिरंगे में अशोक चक्र की मुहर लगाने में साथ देती है. इस तरह पूरा परिवार तिरंगे में अशोक चक्र की मोहर हाथ से लगाने का काम कर रहा है. सीमा परवीन बताती है, कि मुस्लिम समुदाय के परिवार से हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी आजादी के समय से हमारे पूर्वज काल से अब तक तिरंगे में मोहर लगाने का काम जारी है. अभी चौथी पीढ़ी तिरंगे में अशोक चक्र लगाने का काम कर रही है. खादी ग्रामोद्योग द्वारा एक बंधी कीमत रहती है, जो कि सरकारी होती है. हालांकि आमदनी कम हो, इसका इस परिवार को तनिक भी मलाल नहीं है, क्योंकि वह अपने देश के लिए तिरंगे में अशोक चक्र का मुहर लगाकर इसे खुद का सौभाग्य मानते हैं.


पैसे के लिए नहीं, देशभक्ति का है जज्बा : इस संबंध में मोहम्मद शमीम बताते हैं कि आजादी के समय से हमारे पीढ़ी दर पीढ़ी तिरंगे में अशोक चक्र लगाने का काम करते रहे हैं. पहले उनके दादा परदादा यह काम करते थे. अब मेरे द्वारा किया जा रहा है. वहीं मेरे पुत्र भी तिरंगे में मुहर लगाने का काम करते हैं. इस तरह अभी फिलहाल में हमारी चौथी पीढ़ी तिरंगे में मोहर लगाने का काम कर रहे हैं, इसमें जिस मुहर का प्रयोग किया जाता है, आज उसका मिलना दुर्लभ है.

''हम पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि देशभक्ति से ओतप्रोत होकर पुरखों की इस विरासत वाले काम को अपनाए हुए हैं. जब तक जीवित रहेंगे, तिरंगे में अशोक चक्र की मुहर लगाते रहेंगे, चाहे आमदनी कम ही क्यों ना हो.''- मोहम्मद शमीम, तिरंगा पर अशोक चक्र छापने वाले कलाकार

4 पीढ़ी से तिरंगे पर अशोक चक्र छाप रहा मुस्लिम परिवार

गया : बिहार के गया में मुस्लिम परिवार चार पुश्तों से तिरंगे पर अशोक चक्र छापता है. उनका कहना है कि वो ये काम आमदनी नहीं, बल्कि देशभक्ति की भावना से ओत प्रोत होकर, पुरखों की विरासत को संभाल रहे हैं. मुस्लिम समुदाय का यह रंगरेज परिवार आजादी के समय काल से ही पीढ़ी दर पीढ़ी तिरंगे पर अशोक चक्र की मुहर लगाता चला आ रहा है. आज तक करीब 15 हजार तिरंगे पर मोह लगाकर भेज चुके हैं.

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मगध के कई जिलों से आते हैं ऑर्डर : गया में यही ऐसा परिवार है, जहां अशोक चक्र की मुहर लगाने का काम होता है. इस परिवार के पास मगध प्रमंडल के कई जिलों से तिरंगे पर मोहर लगाने के ऑर्डर आते हैं. गया जिले के अलावे नवादा, औरंगाबाद समेत अन्य इलाकों से यह ऑर्डर गया शहर के मारूफगंंज के रहने वाले मोहम्मद शमीम के यहां आता है. वर्तमान में मोहम्मद शमीम का परिवार ही तिरंंगे में हाथ से अशोक चक्र की मोहर लगाने का काम कर रहा है. इसके अलावा गया में यह कहीं नहीं होता है.

इलेक्ट्रॉनिक जमाने में हैंडमेड छपाई की डिमांड : आज इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम आ गया है. किंतु कंप्यूटराइज्ड अशोक चक्र की अपेक्षा हाथ से लगाए अशोक चक्र की मोहर खूबसूरती के कारण यह बाजारों में पहली पसंद है. यही वजह है कि खादी ग्रामोद्योग हो, या झंडा बनाने वाले अन्य संस्थान सभी के तिरंगे झंडे में अशोक चक्र लगाने का काम मोहम्मद शमीम के यहां ही होता है. मोहम्मद शमीम बताते हैं, कि जितने भी प्रशासनिक स्थान पर तिरंगे झंडे, 15 अगस्त या 26 जनवरी को फहराए जाते हैं, इसमें लगाया गया अशोक चक्र हमारे ही हाथों का होता है.

अशोक चक्र छापने में पूरा परिवार देता है साथ : मोहम्मद शमीम की पत्नी सीमा परवीन यानी घर की बहू भी तिरंगे में अशोक चक्र की मुहर लगाने में साथ देती है. इस तरह पूरा परिवार तिरंगे में अशोक चक्र की मोहर हाथ से लगाने का काम कर रहा है. सीमा परवीन बताती है, कि मुस्लिम समुदाय के परिवार से हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी आजादी के समय से हमारे पूर्वज काल से अब तक तिरंगे में मोहर लगाने का काम जारी है. अभी चौथी पीढ़ी तिरंगे में अशोक चक्र लगाने का काम कर रही है. खादी ग्रामोद्योग द्वारा एक बंधी कीमत रहती है, जो कि सरकारी होती है. हालांकि आमदनी कम हो, इसका इस परिवार को तनिक भी मलाल नहीं है, क्योंकि वह अपने देश के लिए तिरंगे में अशोक चक्र का मुहर लगाकर इसे खुद का सौभाग्य मानते हैं.


पैसे के लिए नहीं, देशभक्ति का है जज्बा : इस संबंध में मोहम्मद शमीम बताते हैं कि आजादी के समय से हमारे पीढ़ी दर पीढ़ी तिरंगे में अशोक चक्र लगाने का काम करते रहे हैं. पहले उनके दादा परदादा यह काम करते थे. अब मेरे द्वारा किया जा रहा है. वहीं मेरे पुत्र भी तिरंगे में मुहर लगाने का काम करते हैं. इस तरह अभी फिलहाल में हमारी चौथी पीढ़ी तिरंगे में मोहर लगाने का काम कर रहे हैं, इसमें जिस मुहर का प्रयोग किया जाता है, आज उसका मिलना दुर्लभ है.

''हम पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि देशभक्ति से ओतप्रोत होकर पुरखों की इस विरासत वाले काम को अपनाए हुए हैं. जब तक जीवित रहेंगे, तिरंगे में अशोक चक्र की मुहर लगाते रहेंगे, चाहे आमदनी कम ही क्यों ना हो.''- मोहम्मद शमीम, तिरंगा पर अशोक चक्र छापने वाले कलाकार

Last Updated : Aug 12, 2023, 8:13 AM IST
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