गया: बिहार के गया का नन्हा तबला वादक शाश्वत अपनी वाद्य यंत्र कला में काफी निपुण है. कठिन तालों में भी वह पारंगत हो चुका है. 2 साल की उम्र से तबले के साथ रहे शाश्वत को 5 साल की उम्र में बौद्ध महोत्सव जैसे बड़े आयोजनों में कला प्रदर्शन का मौका मिला. आज वह तबला वादन के कई कठिन तालों में परिपक्व हो चुका है. तबला वादन की विधा जैसे 9 मात्र 9:30 मात्रा, 9:25 मात्रा, रूपक, लाल, तीन लाल, 16 मात्रा, 10 मात्रा, एक ताल, 12 मात्रा, 14 मात्रा, दीपचंदी, आड़ा चौताल, दादर कहरवा, तबला सोलो जैसे विधा में वह पूरी तरह से पारंगत हो चुका है.
2 साल की उम्र में पहली बार तबला पर रखा हाथ: एक आम तबला वादक को परिपक्व तबला बालक बनने की उम्र आते-आते जवानी का पड़ाव पार हो जाता है, फिर भी तबले की इतनी विधा दूभर रहती है, लेकिन महज 10 साल की उम्र में ही शाश्वत तबले का अच्छा वादक बन चुका है. गया जिले के बोधगया के कोल्हौरा गांव का रहने वाला एक नन्हा बालक शाश्वत महज 10 साल की उम्र में तबला वादन के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुका है. उसे बिहार-झारखंड के कई सरकारी कार्यक्रमों में परफॉर्मेंस के लिए भी मौका मिल चुका है.
ढाई-तीन साल की उम्र से ही पकड़ा तबला: शाश्वत की उंगलियों ने ढाई 3 वर्ष की उम्र से ही तबला को स्पर्श करना शुरू कर दिया था. शाश्वत ने एकबारगी तबले को हुआ तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. तब से लेकर इस क्षेत्र में उसका कौशल इतना बेहतर होता चला गया कि महज 5 साल की उम्र में उसे देश स्तरीय होने वाले बोधगया के बौद्ध महोत्सव में शिरकत होने का मौका मिला. उसने बौद्ध महोत्सव में अकेले ही तबला वादन कर लोगों को मंत्र मुग्ध कर दिया था. आज शाश्वत को तबले का जादूगर कहा जा रहा है. महज 10 साल के शाश्वत की उंगलियां तबले पर थिरकना शुरू करती है, तो लोग दंंग रह जाते हैं. शाश्वत की उंगलियों का जादू देख लोग कह उठते हैं, 'वाह उस्ताद वाह'.
"जब मैं 2 साल का था, तभी मेरे गुरुजी स्वर्गीय कामेश्वर पाठक ने तबला पर हाथ रखना सिखाया था. उसके बाद दादाजी से तबला बजाने के लिए सिखता गया. बाद में मुंबई से भी ऑनलाइन शिक्षा हासिल किया. बौद्ध महोत्सव समेत कई बड़े कार्यक्रमों में परफॉर्मेंस देने का मौका मिला"- शाश्वत, नन्हा तबला वादक
कम उम्र में पाया बड़ा मुकाम: 10 वर्षीय शाश्वत संगीत क्षेत्र में पहचान बनाने में जुटा है. शाश्वत अपने पूर्वजों के तबला वादन परंपरा को आगे बढ़ने का काम कर रहा है. परदादा स्व. गोखुल जी, दादा स्व. वासुदेव प्रसाद एक कुशल तबला वादक हुए और उनकी तबला वादन परंपरा को जीवित रखने के लिए 10 वर्षीय शाश्वत कुशलता से तबला वादन की शिक्षा ले रहा है. लगभग दो-ढाई वर्ष के उम्र में ही तबला की शिक्षा के प्रति प्रसिद्ध संगीताचार्य गुरु स्व. कामेश्वर पाठक ने शाश्वत पर हाथ रखा था.
दादा से लेकर अन्य बने गुरु: शाश्वत के प्रथम गुरु कामेश्वर पाठक रहे. वहीं, सुप्रसिद्ध पखावज वादक पंडित आशुतोष उपाध्याय, पिता राजेश कुमार, दादा वासुदेव जी, पंडित राम गोपाल, पंडित दिनेश कुमार, पंडित सतीश शर्मा रांची और अन्य गुरुओं से तबला वादन और संगत करने की शिक्षा मिल रही है. वर्तमान समय में भी सुप्रसिद्ध अंतराष्टीय तबला वादक उस्ताद सलीम अल्लाह वाले भोपाल और उस्ताद शादाब शाकोरी मुंबई से तबला वादन करने की शिक्षा ले रहा है. शाश्वत लगभग 2 वर्ष की आयु से ही तबला वादन की तालीम लेने के साथ ही विभिन्न मंचों पर अपना प्रस्तुति देकर भी लोगों का मन मोह लिया है.
कई बड़े महोत्सव में दिखा चुका है जौहर: नन्हा तबला वादक शाश्वत कई बड़े महोत्सव में अपना जौहर दिखा चुका है. अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव के मंच पर 5 वर्ष की उम्र में तबला सोलो बजाने का अवसर मिला. बिहार सरकार बाल भवन किलकारी, जगन्नाथ महोत्सव, बोधगया, बैजनाथ धाम, बासुकीनाथ धाम झारखंड के मंच पर तबला सोलो और सुप्रसिद्ध गायक पंडित सतीश शर्मा जी के साथ संगत में तबला बजा चुका है. साथ ही सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना पद्म श्री श्रीमती शोभना नारायण , पद्म श्री श्रीमती मालिनी अवस्थी मैं भी इसकी प्रतिभा को देखकर इस बाला को आशीर्वाद दिया है.
कठिन तालों में तबला वादन: शाश्वत कठिन तालों में पारंगत हो चुका है. कठिन तालों में सोलो बजाने जैसे 9 मात्रा, 9.5 ( साढ़े नौ) मात्रा, 9: 25 (सवा 9 मात्रा) सात मात्रा रूपक ताल तीन ताल 16 मात्रा, 10 मात्रा, एक ताल 12 मात्रा, 14 मात्रा दीपचंदी,आड़ा चौताल, दादर कहरवा इन तालों की तबला सोलो और संघर्ष बजाने का कम उम्र में ही कुशलता हासिल है.
आईएएस बनना चाहता है शाश्वत: बालक शाश्वत की सोच काफी ऊंची है. वह तबला की कला से समाज सेवा करना चाहता है. हालांकि उसकी इच्छा आईएएस बनने की भी है. वह कहता है कि तबला वादन के साथ-साथ पढ़ाई पर भी ध्यान लगा रहा है. बताता है कि मेरे परिवारिक विरासत में तबला रहा है. यही वजह है कि मुझे इस ओर आकर्षक हुआ और कम उम्र से ही इससे जुड़ गया हूं. मुंबई से ऑनलाइन शिक्षा भी ली. गांव के कुछ पारंगत तबला वादकों से भी आशीर्वाद पाया. आज मुझे बिहार हो या झारखंड कई स्थानों पर सरकारी आयोजनों में बुलाया जाता है.
क्या बोलीं शाश्वत की मां: अपने बेटे की उपलब्धि से मां संगीता कुमारी काफी खुश हैं. वो कहती हैं कि मेरे बेटे में तबले को लेकर जुनून है. ईश्वर उसके जुनून को पूरा करें और लक्ष्य तक पहुंचाएं. उन्होंने बताया कि वह आईएएस बनना चाहता है. मैं चाहती हूं कि उसकी दोनों मुरादे पूरी हो.
"मेरा बच्चा अच्छा तो कर रहा है लेकिन चाहती हूं कि आगे और अच्छा करे. कई बड़े-बड़े मंच पर वह तबला बजा चुका है. झारखंड भी जा चुका है. वह लगातार इसके बारे में नई-नई चीजें सीखने की कोशिश कर रहा है. पढ़ाई भी मन लगाकर करता है"- संगीता कुमारी, शाश्वत की मां