गया: बिहार के गया में इस वर्ष सुखाड़ के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं. किसान मूसलाधार बारिश नहीं होने से चिंतित है. वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक अब तक सिर्फ 2.9% ही धान की रोपनी की जा सकी है. इसमें भी डीजल पंप के सहारे से ही यह संभव हो पाया है. वर्षा की बात की जाए तो 32% कम वर्षा इस बार के खरीफ फसल के सीजन में हुई है.
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आसमान की ओर टकटकी लगाए किसान: सावन महीने में धान की रोपनी होती है. हालांकि सावन माह का एक पखवारा से ज्यादा बीत चुका है. अब तक 2.9% ही धान की रोपनी हो सकी है. वहीं सावन माह ऐसे बारिश के बगैर किसानों के चेहरे पर शिकन आ गई है. इस बार उनके धान की फसल की उम्मीद टूटने लगी है. जिले में बारिश रुक-रुक कर छिटपुट हो रही है. मूसलाधार बारिश नहीं होने से क्यारियां नहीं भर रही है और धान की रोपनी नहीं हो पा रही है.
1.90 लाख हेक्टेयर का है आच्छादन: जिले में धान की रोपनी 1 लाख 90 हजार 186 हेक्टेयर में है. किंतु अब तक यह लक्ष्य एकदम पीछे है. जिले में धान की रोपनी सिर्फ 4352 हेक्टेयर में ही हो सकी है. वहीं, वर्षा की बात करें तो कम से कम 300 से अधिक मिलीमीटर वर्षा होनी चाहिए थी, किंतु 200 मिलीमीटर के करीब ही वर्षा हो पाई है. यह आंकड़ा 1 जून से 17 जुलाई 2023 तक का है. इस तरह बारिश करीब 32% बकम हुई है.
अगले 5 दिन मूसलाधार बारिश के आसार नहीं: वहीं कृषि से जुड़े वैज्ञानिकों की मानें तो अगले 5 दिन तेज बारिश नहीं होगी. यह किसानों के लिए चिंता का विषय निश्चित तौर पर है. वहीं, बारिश नहीं होने से बिचड़े भी काफी उम्र के हो गए हैं और जलने भी लगे हैं. मोरी की उम्र बढ़ने से यदि फसल किसी प्रकार से लग भी जाए तो उत्तम किस्म की उत्पाद नहीं होगी और किसान को फायदा कम होगा. वैकल्पिक खेती करने की सलाह भी अब कृषि से जुड़े वैज्ञानिक दे रहे हैं.
क्या कहते हैं किसान: वहीं किसान हताश और परेशान दिख रहे हैं. मूसलाधार बारिश नहीं होने की शिकन उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती है. वो आसमान की ओर इशारा करके भी अपना दुख बताते दिख रहे हैं. किसान उपेंद्र पासवान कहते हैं बिचड़े तैयार हैं, लेकिन बारिश का इंतजार है. बारिश नहीं हो रही है. बिचड़े भी मर रहे हैं. ऐसे में धान की रोपनी संभव नहीं प्रतीत हो रही है. धान की रोपनी नहीं करते हैं तो भूखे मर जाएंगे. 3 बीघे में धान की रोपनी के लिए बिचड़े तैयार किए थे. उसमें काफी पूंजी फंसी है और अब नुकसान ही नुकसान होना रह गया है.
"बारिश नहीं होने से बिचड़े झुलस कर मर रहे. ऐसा ही चलाता रहा तो हम किसानों की परेशानी बढ़ जाएगी. हम चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए क्षतिपूर्ति करे. वहीं महिला किसान गोरी खातून बताती है, कि 3 बीघा में खेती करनी थी. पानी नहीं है. धान की रोपनी नहीं कर पा रही है. बिचड़ा भी जल रहा है. आधा सावन चला गया है, अब तक रोपनी कर देते थे."- उपेंद्र पासवान, किसान
कृषि वैज्ञानिकों का आकलन: वहीं, संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र मंडल बताते हैं, कि धान की रोपनी को लेकर गया की स्थिति अच्छी नहीं है. वर्षा कम हो रही है. 32% वर्षा अभी तक तक कम हुई है. आच्छादन 1.90 लाख हेक्टेयर का था, जिसमें से अब तक 4352 हेक्टेयर में ही धान की रोपनी हो पाई है. यह 2.9 प्रतिशत है. धान की रोपनी में यह बहुत बड़ा गैप है. जुलाई के 17 दिन बीत चुके हैं. अगले 5 दिन पानी के आसार नहीं दिख रहे हैं. यदि किसान देर से किसी तरह फसल लगा भी लेते हैं तो रबी का उत्पादन भी प्रभावित होगा. वहीं उत्तम किस्म के धान की उपज नहीं हो सकेगी.
"वर्षा कम होने के बीच किसानों के पास कई विकल्प हैं, जिसमें मोटे अनाज की खेती करना है. धान की रोपनी नहीं होने की स्थिति में किसान बाजरा, ज्वार, मड़ुआ, कांगड़ी, कोदो की खेती कर सकते हैं, जो कि फायदेमंद भी है. मोरी पुरानी हो रही है, उम्र बढ़ने से वह जल भी रही. ऐसे में धान की रोपनी निश्चित तौर पर जिले में व्यापक पैमाने पर प्रभावित हुई है. किसानों को वैकल्पिक कृषि करनी चाहिए."-देवेंद्र मंडल, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र मानपुर