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पारखी नजर रखते हैं गया के यूसुफ, जंगलों में घूमकर अब तक 450 प्राकृतिक आकृतियों को दे चुके हैं पहचान

कहते हैं कला, कलाकार के आनंद के श्रेय और प्रेम तथा आदर्श और यथार्थ को समन्वित करने वाली प्रभावोत्पादक अभिव्यक्ति है. कुछ ऐसी ही कालाओं को प्रदर्शित कर गया जिले के रहने वाले जावेद यूसुफ देश के विभिन्न हिस्सों में जा चुके हैं. पढ़ें रिपोर्ट...

कलाकार
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Published : Aug 26, 2021, 10:16 AM IST

गया: बिहार के गया (Gaya) जिले में रहने वाले पेशे से वकील जावेद यूसुफ को प्रकृति ने निगाहों में एक जादुई शक्ति दी है. इस निगाहों से वे प्राकृतिक आकृतियों को ढूंढ़ने का काम करते हैं. जावेद यूसुफ ने 40 सालो में 450 के करीब आकृतियों को ढूंढ़कर एक नई पहचान दी है. बता दें वकील जावेद यूसुफ ड्रिफ्ट वुड आर्ट (Wood Art) के कलाकार हैं. इनके माध्यम से खोजी गयी आकृतियों का प्रदर्शन देश के विभिन्न हिस्सों में हुआ है.

इसे भी पढ़ें: बॉलीवुड में अपने हुनर का लोहा मनवा रहे हैं बिहार के कलाकार, अनुज के निर्देशन ने जीते कई अवॉर्ड

वकील जावेद यूसुफ शहर के छत्ता मस्जिद गली के रहने वाले हैं. उनकी निगाहों में एक नायाब कला है. जिस कला से वह प्रकृति के माध्यम से बनाए गए आकृतियों को ढूंढ लेते हैं. जिसके बाद उस आकृति को पहचानकर उसे विभिन्न शायरों के शायरी से लोगों तक पहुंचाते हैं. जावेद यूसुफ अपनी कला में न तो हाथों का उपयोग करते हैं और न ही रंगों का उपयोग करते हैं.

देखें रिपोर्ट.

ये भी पढ़ें: पुण्यतिथि विशेष: भोजपुरी के इस शेक्सपियर ने छोड़ी अमिट छाप, शिष्य तक को मिला पद्मश्री

कलाकार जावेद अपनी कला में पेड़ों की टहनियों से मानव और पशु पक्षियों का आकार देकर उसे संजो कर रखते हैं. इस कला को ड्रिफ्ट वुड कला (Drift Wood Art) कहते हैं. देश के कई राज्यों में इनके आकृतियों को प्रदर्शित किया गया है.

'बचपन से ही मुझे जंगलों में घूमने का शौक है. मैं देश के विभिन्न जंगलों में घुमा हूं. मैंने शुरुआत मुंगेर के जंगलों से की है. एक बार मैं अपने पिता के साथ जंगल में घूम रहा था. इसी बीच एक दीमक खायी हुई लकड़ी दिखायी दी. उसे जब साफ किया तो एक महल का स्वरूप सामने आया. मेरे पिता ने उस वक्त बताया कि यह ड्रिफ्ट वुड कला है. उसके बाद से 40 सालों से यह कारवां चल रहा है.' -वकील जावेद यूसुफ, ड्रिफ्ट वुड कलाकार

कलाकार जावेद देश के जंगलों में घूम-घूमकर पेड़ों की टहनियों और जड़ों को अपने निगाहों से आकृतियों को ढूंढ़ते हैं. आकृतियों को ढूंढ़ना आसान नहीं होता है. जंगल के एक दो पेड़ों और टहनियों पर ऐसी आकृतियां मिलती है. इन आकृतियों में मानव शक्ल अधिक मिलता है. कलाकार जावेद के पास 15 इंच से लेकर सात फिट तक के मानव शक्ल की आकृतियां हैं.

जावेद बतातें हैं कि वे आकृतियों में कोई पेटिंग नहीं करते हैं और न ही इसके प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ करते हैं. वे बस टहनी के ऊपर के छाल को हटाकर दीमक से बचाव के लिए केमिकल का पॉलिश करते हैं. जावेद बतातें हैं कि जब उन्हें कचहरी के कामों से फुर्सत मिलता है, तो वे जंगलों में चल जाते हैं. इन आकृतियों को खोजने और पहचानने में कई दिन और रात बीत जाते हैं.

कलाकार जावेद असम, मेघालय, मणिपुर, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार के जंगलों में जा चुके हैं. उनका मानना है कि ईश्वर ने कला का एक दूसरा रूप दिया है. वे बतातें हैं कि दरख्तों से आकृतियां उखरी रहती है, बस उसे अपने निगाहों से पहचाना होता है कि ये कौन सा जीव है. इस समय उनके पास इंसानी शक्ल की आकृतियां सबसे ज्यादा है. ऐसी आकृतियों को खोजना काफी मुश्किल होता है.

हालांकि अब तक कलाकार जावेद को बिहार सरकार या जिला प्रशासन के माध्यम से सम्मानित नहीं किया गया है. इन आकृतियों को बोधगया में लगे वाले प्रदर्शनी में भी जगह नहीं दी गई है. इस बारे में कई बार तत्कालीन जिलाधिकारी से बात की गई है. लेकिन इस पर स्थानीय प्रशासन के माध्यम से कोई पहल नहीं किया गया.

बता दें की भारत में गिने-चुने ड्रिफ्ट वुड आर्ट के कलाकार हैं. यह कला प्राकृतिक संसाधनों से विकसित होती है और करोड़ों में से कुछ ही लोगो में इस कला की समझ विकसित होती है. जावेद यूसुफ बचपन से इस कला से महारत हासिल किए हुए हैं. लेकिन उन्होंने कभी इसे पेशेवर तौर पर नहीं किया. वे अपने शौक के लिए इस कला में रमे रहते हैं. उन्होंने इस कला और आकृतियों पर एक किताब भी प्रकाशित करवाया है.

गया: बिहार के गया (Gaya) जिले में रहने वाले पेशे से वकील जावेद यूसुफ को प्रकृति ने निगाहों में एक जादुई शक्ति दी है. इस निगाहों से वे प्राकृतिक आकृतियों को ढूंढ़ने का काम करते हैं. जावेद यूसुफ ने 40 सालो में 450 के करीब आकृतियों को ढूंढ़कर एक नई पहचान दी है. बता दें वकील जावेद यूसुफ ड्रिफ्ट वुड आर्ट (Wood Art) के कलाकार हैं. इनके माध्यम से खोजी गयी आकृतियों का प्रदर्शन देश के विभिन्न हिस्सों में हुआ है.

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वकील जावेद यूसुफ शहर के छत्ता मस्जिद गली के रहने वाले हैं. उनकी निगाहों में एक नायाब कला है. जिस कला से वह प्रकृति के माध्यम से बनाए गए आकृतियों को ढूंढ लेते हैं. जिसके बाद उस आकृति को पहचानकर उसे विभिन्न शायरों के शायरी से लोगों तक पहुंचाते हैं. जावेद यूसुफ अपनी कला में न तो हाथों का उपयोग करते हैं और न ही रंगों का उपयोग करते हैं.

देखें रिपोर्ट.

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कलाकार जावेद अपनी कला में पेड़ों की टहनियों से मानव और पशु पक्षियों का आकार देकर उसे संजो कर रखते हैं. इस कला को ड्रिफ्ट वुड कला (Drift Wood Art) कहते हैं. देश के कई राज्यों में इनके आकृतियों को प्रदर्शित किया गया है.

'बचपन से ही मुझे जंगलों में घूमने का शौक है. मैं देश के विभिन्न जंगलों में घुमा हूं. मैंने शुरुआत मुंगेर के जंगलों से की है. एक बार मैं अपने पिता के साथ जंगल में घूम रहा था. इसी बीच एक दीमक खायी हुई लकड़ी दिखायी दी. उसे जब साफ किया तो एक महल का स्वरूप सामने आया. मेरे पिता ने उस वक्त बताया कि यह ड्रिफ्ट वुड कला है. उसके बाद से 40 सालों से यह कारवां चल रहा है.' -वकील जावेद यूसुफ, ड्रिफ्ट वुड कलाकार

कलाकार जावेद देश के जंगलों में घूम-घूमकर पेड़ों की टहनियों और जड़ों को अपने निगाहों से आकृतियों को ढूंढ़ते हैं. आकृतियों को ढूंढ़ना आसान नहीं होता है. जंगल के एक दो पेड़ों और टहनियों पर ऐसी आकृतियां मिलती है. इन आकृतियों में मानव शक्ल अधिक मिलता है. कलाकार जावेद के पास 15 इंच से लेकर सात फिट तक के मानव शक्ल की आकृतियां हैं.

जावेद बतातें हैं कि वे आकृतियों में कोई पेटिंग नहीं करते हैं और न ही इसके प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ करते हैं. वे बस टहनी के ऊपर के छाल को हटाकर दीमक से बचाव के लिए केमिकल का पॉलिश करते हैं. जावेद बतातें हैं कि जब उन्हें कचहरी के कामों से फुर्सत मिलता है, तो वे जंगलों में चल जाते हैं. इन आकृतियों को खोजने और पहचानने में कई दिन और रात बीत जाते हैं.

कलाकार जावेद असम, मेघालय, मणिपुर, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार के जंगलों में जा चुके हैं. उनका मानना है कि ईश्वर ने कला का एक दूसरा रूप दिया है. वे बतातें हैं कि दरख्तों से आकृतियां उखरी रहती है, बस उसे अपने निगाहों से पहचाना होता है कि ये कौन सा जीव है. इस समय उनके पास इंसानी शक्ल की आकृतियां सबसे ज्यादा है. ऐसी आकृतियों को खोजना काफी मुश्किल होता है.

हालांकि अब तक कलाकार जावेद को बिहार सरकार या जिला प्रशासन के माध्यम से सम्मानित नहीं किया गया है. इन आकृतियों को बोधगया में लगे वाले प्रदर्शनी में भी जगह नहीं दी गई है. इस बारे में कई बार तत्कालीन जिलाधिकारी से बात की गई है. लेकिन इस पर स्थानीय प्रशासन के माध्यम से कोई पहल नहीं किया गया.

बता दें की भारत में गिने-चुने ड्रिफ्ट वुड आर्ट के कलाकार हैं. यह कला प्राकृतिक संसाधनों से विकसित होती है और करोड़ों में से कुछ ही लोगो में इस कला की समझ विकसित होती है. जावेद यूसुफ बचपन से इस कला से महारत हासिल किए हुए हैं. लेकिन उन्होंने कभी इसे पेशेवर तौर पर नहीं किया. वे अपने शौक के लिए इस कला में रमे रहते हैं. उन्होंने इस कला और आकृतियों पर एक किताब भी प्रकाशित करवाया है.

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