गयाः दीपावली का पर्व नजदीक आ गया है. आज धनतेरस है और आज के दिन लोग खरीदारी करने के लिए बजार में उमड़ते हैं. ज्यादातर लोग बर्तन, जेवरात, सोने-चांदी के सिक्के आदि की खरीददारी करते हैं, लेकिन बिहार में एक अनोखी परंपरा है, धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने की जो सालों से चली आ रही है. धनतेरस के दिन बिकने वाली झाड़ू को गया में खास तौर से बनाया जाता है. ये झाड़ू इंडोनेशिया और नेपाल से मंगाई गए जंगली तिनकों और फूलों से बनाई जाती है.
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झाड़ू खरीदने की है अनोखी प्रथाः किसी भी परिवार के लोग धनतेरस के दिन झाड़ू की खरीदारी करना नहीं भूलते. झाड़ू की खरीदारी एकदम जरूरी होती है, क्योंकि धार्मिक मान्यता है कि झाड़ू लक्ष्मी का प्रतीक होती है. इसे लेकर गया में दिन-रात झाड़ू बनाने का काम दिपावली के कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाता है. अब तक 50 लाख से अधिक झाड़ू बिहार के विभिन्न जिलों में भेजी जा चुकी है.
इंडोनेशिया नेपाल से आते हैं तिनके और फूलः दिपावली करीब आते ही गया की मंडियों में दिन-रात झाड़ू बनाने का काम चलता है. फूल झाड़ू और नारियल झाड़ू दोनों बनाए जा रहे हैं, क्योंकि दोनों की डिमांड होती है. कारीगर दिन रात एक कर धनतेरस के लिए झाड़ू बनाते हैं. इसके तिनके और फूल इंडोनेशिया व नेपाल से आते हैं. इंडोनेशिया से कोलकाता के रास्ते गया में यह फूल और तिनके आते हैं.
ठंडे प्रदेशों में मिलते हैं झाड़ू बनाने के तिनके और फूलः ठंडे प्रदेशों में ही झाड़ू बनाने के फूल और तिनके मिलते हैं, जो की जंगली होते हैं. इन जंगली फूल और तिनकों की कटाई-छटाई का काम कारीगर ही करते हैं. ज्यादा से ज्यादा झाड़ू बने इसके लिए कोलकाता और असम से भी कारीगर गया में आकर काम करते हैं.
50 लाख से ज्यादा की हो चुकी है सप्लाईः कोलकाता और असम के एक्सपर्ट कारीगरों के द्वारा तेजी से झाड़ू का निर्माण किया जाता है. जंगली तिनके और फूलों की कटाई कर उसे नारियल झाड़ू और फूल झाड़ू के रूप में झटपट तैयार कर हजारों की संख्या में खेप तैयार किये जाते हैं और उसे बिहार के तकरीबन सभी जिलों में भेजा जाता है. अब तक 50 लाख से ज्यादा झाङू की सप्लाई गया से हो चुकी है.
झाड़ू बनाने का हब बना गया है गयाः इस संबंध में कारीगर आसिफ बताते हैं कि इंडोनेशिया से कोलकाता के मार्फत और नेपाल, सिक्किम, शिलांग, असम से जंगली फूल और जंगली तिनके लाए जाते हैं. उसकी कटाई छटाई कर उसे नारियल झाड़ू और फूल झाड़ू के रूप में बनाते हैं. असम और कोलकाता के एक्सपर्ट कारीगर भी यहां आते हैं और दिन रात कर झाड़ू बनाने का काम करते हैं.
"काम थोड़ा मेहनत का है, लेकिन वे लोग इतने दक्ष हो चुके हैं कि झाड़ू बनाने में कोई ज्यादा समय नहीं लगता है. असम और कोलकाता के एक्सपर्ट कारीगर यहां आते हैं और धनतेरस के लिए झाड़ू का निर्माण करते हैं"- सुनील कुमार, कारीगर
धनतेरस को लेकर बनती है लाखों झाड़ूः झाड़ू बनाने का काम देखने वाले बिंदु ट्रेडर्स के मालिक राहुल गुप्ता बताते हैं कि धनतेरस को लेकर झाड़ू बनाने का काम तेजी से किया जाता है. अब तक वह अकेले 5 लाख झाड़ू सेल कर चुके हैं. बिहार के तमाम जिलों में उनके यहां की बनाई गई झाड़ू की बिक्री की गई है.
"हमारे जैसे दर्जनों कारीगर हैं. इस तरह गया में 50 लाख से अधिक झाड़ू का निर्माण होता है और उसे पूरे बिहार में सप्लाई किया जाता है. गया से करीब 1 करोड़ की संख्या में झाड़ू की बिक्री होती है और पूरे बिहार में इसकी सप्लाई की जाती है"- राहुल गुप्ता, मालिक, बिंदु ट्रेडर्स
'झाड़ू को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है': वहीं, मंत्रालय रामाचार्य वैदिक पाठशाला गया तीर्थ के राजा आचार्य बताते हैं कि धनतेरस के दिन झाड़ू की खरीदारी लोग करना शुभ मानते हैं. यह हमारी धार्मिक परंपरा में शामिल है. राजा आचार्य बताते हैं कि झाड़ू को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. माता लक्ष्मी के प्रतीक के रूप में झाड़ू की खरीदारी कर लोग अपने घरों में ले जाते हैं. धनतेरस के दिन खरीदे गए झाड़ू को घर में ले जाकर उसके निकट दीपक जलाकर माता लक्ष्मी और कुबेर जी का पूजा करना प्रमुखता है.