गया: जिले के मानपुर प्रखंड का पटवाटोली गांव इन दिनों गर्म कपड़े के निर्माण में लगा है. इस गांव के लगभग हर घर में पावरलूम यानी कपड़ा बनाने वाली मशीन दिख जाती है. यहां से तैयार सर्दियों में इस्तेमाल किए जाने वाले चादर, रजाई और तोसक के खोल की बंगाल और असम में खूब मांग है. मांग को देखते हुए अभी करीब 50 लाख के मुल्य के कपड़े का निर्माण हर रोज हो रहा है. जिसमें हजारों हुनरमंद मजदूर लगे हैं.
'बिहार का मैनचेस्टर'
'बिहार का मैनचेस्टर' नाम से मशहूर पटवाटोली में यूं तो सालोंभर कपड़ा निर्माण का काम चलता है, लेकिन इसकी पहचान यहां से तैयार सर्दियों के कपड़े की वजह से है. यहां बनने वाले चादर, रजाई और तोसक के खोल में उपयोग होने वाला सूत सत प्रतिशत कॉटन होता है. जिसे तमिलनाडु, पंजाब और पानीपत से मंगाया जाता है.
बंगाल और असम में है कपड़ों की मांग
बुनकर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम नारायण पटवा ने बताया कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के बाद यहां गर्म कपड़ा बनना शुरू हो जाता है. यहां के कपड़ो की मांग सबसे ज्यादा बंगाल में है. उन्होंने कहा कि यहां तैयार 75 फीसदी कपड़ा बंगाल में खपते है. 15 फीसदी असम और शेष बिहार में बिकते हैं.
पूंजा का है अभाव
बुनकर प्रकाश राम पटवा ने बताया कि ठंडी के सीजन में काम बढ़ीया चलता है. हम मांग के हिसाब से ही माल तैयार करते हैं. क्योंकि हमारे पास पूंजी का अभाव है. सरकार लोन दे तो हम लोग सिजन के बाद भी माल तैयार करेंगे और देश के दूसरे हिस्सों में भी सप्लाई करेंगे. उन्होंने कहा कि पूंजी के अभाव में कई पावरलूम इलाई ठप पड़ा है.