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विष्णुपद मंदिर में अर्पित पिंडदान के 'पिंड' खरीद रहे गौ पालक.. दूध ज्यादा और चारे का खर्च भी आधा

गया में पिंड को अब कचरे में नहीं फेंका जाता है. उसे गौ पालक खरीद रहे हैं और अपनी गायों को खिला रहे हैं. उनका मानना है कि इससे गाय को काफी फायदा पहुंच रहा है. गाय ज्यादा दूध दे रही हैं. इसके साथ ही उन्हें चारा का खर्च भी कम पड़ रहा है.

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Published : Oct 5, 2021, 10:09 PM IST

Updated : Oct 5, 2021, 10:58 PM IST

गयाः बिहार की धार्मिक नगरी गया में पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के दौरान लाखों की संख्या में पिंडदानी विष्णुपद सहित अन्य पिंडवेदी पर पिंडदान (Pinddan In Gaya) करते हैं. विष्णुपद पर अर्पित पिंड पहले कचरे में फेंक दिया जाता था लेकिन अब उसी पिंड को गाय खा रही हैं. गौपालकों का कहना है कि पिंड में गुड़, जौ, तिल, चावल और ड्राईफ्रूट्स रहने के कारण गाय इसे खूब चाव से खाती हैं. इससे दूध में भी बढ़ोतरी होती है.

इसे भी पढ़ें: पितृपक्ष के 10 दिनों बाद जागा निगम प्रशासन, विष्णुपद मंदिर इलाके में किया गया सैनिटाइजेशन

बता दें कि गया जी में ऐसे तो 45 पिंडवेदी हैं. लेकिन सबसे ज्यादा पिंडदान विष्णुपद में होता है. यहां हर दिन हजारों लोग भगवान विष्णु के पद चिन्ह पर पिंड अर्पित करते हैं. विष्णुचरण पर अर्पित पिंड को सफाईकर्मी मंदिर के बाहर गौपालकों को बेच देते हैं.

देखें वीडियो

'पितृपक्ष शुरू होने के साथ पिंड मन्दिर से ज्यादा संख्या में आता है. मंदिर के गर्भगृह और परिसर से पिंड को इकट्ठा कर सफाईकर्मी हमलोग को बाहर लाकर देते हैं. कुछ साल पहले तक पिंड को कचरे में फेंक दिया जाता था. पांच साल पूर्व एक गौपालक ने विष्णुचरण पर अर्पित पिंड को गाय को खिलाना शुरू किया. इससे फायदा होने लगा, तो इस क्षेत्र के अधिकांश गौपालक पिंड ले जाने लगे. इससे गाय को काफी फायदा होता है. गाय दूध भी अच्छा देती है.' -कमल यादव, गौ पालक

गौ पालकों ने कहा कि कचरा में पड़ा पिंड भीगा और सड़ा हुआ रहता था. लेकिन अब उसे खरीद लिए जाने से कचरा भी कम हो रहा है. लोग सफाईकर्मी को 150 रुपए देकर एक टोकरी पिंड ले लेते हैं. पिछले पांच सालों से दर्जनों गौ पालक सुबह से लेकर शाम तक पिंड की खरीदारी करते हैं. पिंड को गाय को खिलाने में काफा फायदा होता है. गाय बहुत ही स्वाद लेकर खाती है. दूध में भी बढ़ोतरी होती है. खल्ली वगैरह का पैसा भी बच जाता है.

'पिछले दो साल से मुझे पिंड बिक्री और इसके फायदे के बारे में जानकारी मिली. मैं हर दिन तीन टोकरी पिंड लेकर जाता हूं. दस गाय को खल्ली-चुनी खिलाने में हजार रुपया का खर्च पड़ता था. जब से पिंड की खरीदारी कर गाय को खिलाता हूं, तो 500 रुपया का बचत होता है. गाय को खाने में पिंड अच्छा लगता है. पिंड में जौ का आटा, घी, गुड़, ड्राई फ्रूट्स रहते हैं, जिससे गाय को काफी फायदा मिलता है.' -आमोद यादव, गौ पालक

दरअसल, मोक्षधाम गया में अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए हजारों किलोमीटर दूर से लोग आकर पिंडदान करते हैं. कहा जाता है कि श्रद्धा का भाव ही श्राद्ध है. गया जी में श्राद्ध के दौरान अर्पित किए गए पिंड का भोग लगाया जा रहा है.

विष्णुचरण पर अर्पित पिंड को सफाईकर्मी एक टोकरी (20 kg) पिंड को 70 रुपए से 150 रुपए तक बेचते हैं. पिंड की बिक्री से स्थानीय प्रशासन से लेकर मंदिर प्रबंधकारिणी समिति तक अंजान है. बहरहाल, सालों पहले पिंड को कचरे में फेंक दिया जाता था. अब उस पिंड से दर्जनों लोगों के घर का चूल्हा जल रहा है.

बता दें कि पितृपक्ष के दौरान विष्णुपद का गर्भगृह और परिसर से अर्पित पिंड को हटाने के लिए अस्थायी सफाईकर्मी को रखा जाता है. 15 दिन में दस अस्थायी सफाईकर्मी मंदिर से पिंड हटाकर कचरा साफ करते हैं. बाहर आकर पिंड को बेच देते हैं. जिससे उन्हें आर्थिक फायदा पहुंचता है.

साथ ही मंदिर के पास गंदगी नहीं लगी रहती है. फिर भी पिंड को बेचना श्रद्धा के तौर पर एक अपमान है. जानकारी दें कि गया नगर निगम पिंड से खाद बनाने का कार्य शुरू कर चुकी है. लेकिन गया नगर निगम का यह पहल हर साल ट्रायल तक सीमित रह जाता है. अगर गया नगर निगम रेगुलर पिंड से खाद बनाए, तो फिर पिंड की बिक्री नहीं होगी.

यह भी पढ़ें- गया नगर-निगम की नेक पहल, पितरों को अर्पित पिंडों से बन रही जैविक खाद

गयाः बिहार की धार्मिक नगरी गया में पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के दौरान लाखों की संख्या में पिंडदानी विष्णुपद सहित अन्य पिंडवेदी पर पिंडदान (Pinddan In Gaya) करते हैं. विष्णुपद पर अर्पित पिंड पहले कचरे में फेंक दिया जाता था लेकिन अब उसी पिंड को गाय खा रही हैं. गौपालकों का कहना है कि पिंड में गुड़, जौ, तिल, चावल और ड्राईफ्रूट्स रहने के कारण गाय इसे खूब चाव से खाती हैं. इससे दूध में भी बढ़ोतरी होती है.

इसे भी पढ़ें: पितृपक्ष के 10 दिनों बाद जागा निगम प्रशासन, विष्णुपद मंदिर इलाके में किया गया सैनिटाइजेशन

बता दें कि गया जी में ऐसे तो 45 पिंडवेदी हैं. लेकिन सबसे ज्यादा पिंडदान विष्णुपद में होता है. यहां हर दिन हजारों लोग भगवान विष्णु के पद चिन्ह पर पिंड अर्पित करते हैं. विष्णुचरण पर अर्पित पिंड को सफाईकर्मी मंदिर के बाहर गौपालकों को बेच देते हैं.

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'पितृपक्ष शुरू होने के साथ पिंड मन्दिर से ज्यादा संख्या में आता है. मंदिर के गर्भगृह और परिसर से पिंड को इकट्ठा कर सफाईकर्मी हमलोग को बाहर लाकर देते हैं. कुछ साल पहले तक पिंड को कचरे में फेंक दिया जाता था. पांच साल पूर्व एक गौपालक ने विष्णुचरण पर अर्पित पिंड को गाय को खिलाना शुरू किया. इससे फायदा होने लगा, तो इस क्षेत्र के अधिकांश गौपालक पिंड ले जाने लगे. इससे गाय को काफी फायदा होता है. गाय दूध भी अच्छा देती है.' -कमल यादव, गौ पालक

गौ पालकों ने कहा कि कचरा में पड़ा पिंड भीगा और सड़ा हुआ रहता था. लेकिन अब उसे खरीद लिए जाने से कचरा भी कम हो रहा है. लोग सफाईकर्मी को 150 रुपए देकर एक टोकरी पिंड ले लेते हैं. पिछले पांच सालों से दर्जनों गौ पालक सुबह से लेकर शाम तक पिंड की खरीदारी करते हैं. पिंड को गाय को खिलाने में काफा फायदा होता है. गाय बहुत ही स्वाद लेकर खाती है. दूध में भी बढ़ोतरी होती है. खल्ली वगैरह का पैसा भी बच जाता है.

'पिछले दो साल से मुझे पिंड बिक्री और इसके फायदे के बारे में जानकारी मिली. मैं हर दिन तीन टोकरी पिंड लेकर जाता हूं. दस गाय को खल्ली-चुनी खिलाने में हजार रुपया का खर्च पड़ता था. जब से पिंड की खरीदारी कर गाय को खिलाता हूं, तो 500 रुपया का बचत होता है. गाय को खाने में पिंड अच्छा लगता है. पिंड में जौ का आटा, घी, गुड़, ड्राई फ्रूट्स रहते हैं, जिससे गाय को काफी फायदा मिलता है.' -आमोद यादव, गौ पालक

दरअसल, मोक्षधाम गया में अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए हजारों किलोमीटर दूर से लोग आकर पिंडदान करते हैं. कहा जाता है कि श्रद्धा का भाव ही श्राद्ध है. गया जी में श्राद्ध के दौरान अर्पित किए गए पिंड का भोग लगाया जा रहा है.

विष्णुचरण पर अर्पित पिंड को सफाईकर्मी एक टोकरी (20 kg) पिंड को 70 रुपए से 150 रुपए तक बेचते हैं. पिंड की बिक्री से स्थानीय प्रशासन से लेकर मंदिर प्रबंधकारिणी समिति तक अंजान है. बहरहाल, सालों पहले पिंड को कचरे में फेंक दिया जाता था. अब उस पिंड से दर्जनों लोगों के घर का चूल्हा जल रहा है.

बता दें कि पितृपक्ष के दौरान विष्णुपद का गर्भगृह और परिसर से अर्पित पिंड को हटाने के लिए अस्थायी सफाईकर्मी को रखा जाता है. 15 दिन में दस अस्थायी सफाईकर्मी मंदिर से पिंड हटाकर कचरा साफ करते हैं. बाहर आकर पिंड को बेच देते हैं. जिससे उन्हें आर्थिक फायदा पहुंचता है.

साथ ही मंदिर के पास गंदगी नहीं लगी रहती है. फिर भी पिंड को बेचना श्रद्धा के तौर पर एक अपमान है. जानकारी दें कि गया नगर निगम पिंड से खाद बनाने का कार्य शुरू कर चुकी है. लेकिन गया नगर निगम का यह पहल हर साल ट्रायल तक सीमित रह जाता है. अगर गया नगर निगम रेगुलर पिंड से खाद बनाए, तो फिर पिंड की बिक्री नहीं होगी.

यह भी पढ़ें- गया नगर-निगम की नेक पहल, पितरों को अर्पित पिंडों से बन रही जैविक खाद

Last Updated : Oct 5, 2021, 10:58 PM IST
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