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गया: कठिन चीवर दान समारोह का आयोजन, 150 बौद्ध भिक्षुओं को दान किया गया चीवर

लाओस मॉनेस्ट्री के केयरटेकर संजय कुमार ने बताया कि कठिन चीवर दान समारोह में लाओस, वियतनाम, श्रीलंका, थाईलैंड सहित कई देशों के बौद्ध धर्मगुरु और लामा शामिल हुए हैं. लगभग 150 बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवरदान दिया गया है.

कठिन चीवरदान समारोह
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Published : Nov 11, 2019, 11:26 PM IST

गया: भगवान बुद्ध की पावन ज्ञानभूमि बोधगया स्थित लाओस देश की मोनेस्ट्री में सोमवार को कठिन चीवर दान समारोह का आयोजन किया गया. इस दौरान बौद्ध भिक्षुओं ने विशेष रूप से मोनेस्ट्री के प्रांगण में भगवान बुद्ध की मूर्ति के सामने विशेष रूप से पूजा अर्चना की. इस दौरान बौद्ध भिक्षुओं को कठिन चीवर (यानी कि बौद्ध भिक्षुओं को पहनने के लिए गेरुआ रंग का कपड़ा) दान दिया गया.

चीवर दान बौद्धों के लिए पवित्र परंपरा
लाओस मोनेस्ट्री के प्रभारी भंते साईं साना ने बताया कि बारिश के महीने के बाद बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवर दान करने की परंपरा है. यही चीवर पहनकर बौद्ध भिक्षु पूरे साल प्रवचन और मेडिटेशन करते हैं. चीवर दान बौद्धों के लिए काफी पवित्र परंपरा रही है.

कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन

150 बौद्ध भिक्षुओं के बीच किया गया चीवरदान
लाओस मॉनेस्ट्री के केयरटेकर संजय कुमार ने बताया कि कठिन चीवरदान समारोह में लाओस, वियतनाम, श्रीलंका, थाईलैंड सहित कई देशों के बौद्ध धर्मगुरु शामिल हुए. लगभग 150 बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवर दान दिया गया है. उन्होंने कहा कि बारिश के मौसम में 3 महीने तक बौद्ध भिक्षु एक ही जगह पर रहकर पूजा-पाठ करते हैं. इस दौरान वे कहीं भी भ्रमण नहीं करते हैं. बारिश का महीना बीत जाने के बाद बौद्ध भिक्षु को चीवर देने की परंपरा रही है.

गया: भगवान बुद्ध की पावन ज्ञानभूमि बोधगया स्थित लाओस देश की मोनेस्ट्री में सोमवार को कठिन चीवर दान समारोह का आयोजन किया गया. इस दौरान बौद्ध भिक्षुओं ने विशेष रूप से मोनेस्ट्री के प्रांगण में भगवान बुद्ध की मूर्ति के सामने विशेष रूप से पूजा अर्चना की. इस दौरान बौद्ध भिक्षुओं को कठिन चीवर (यानी कि बौद्ध भिक्षुओं को पहनने के लिए गेरुआ रंग का कपड़ा) दान दिया गया.

चीवर दान बौद्धों के लिए पवित्र परंपरा
लाओस मोनेस्ट्री के प्रभारी भंते साईं साना ने बताया कि बारिश के महीने के बाद बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवर दान करने की परंपरा है. यही चीवर पहनकर बौद्ध भिक्षु पूरे साल प्रवचन और मेडिटेशन करते हैं. चीवर दान बौद्धों के लिए काफी पवित्र परंपरा रही है.

कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन

150 बौद्ध भिक्षुओं के बीच किया गया चीवरदान
लाओस मॉनेस्ट्री के केयरटेकर संजय कुमार ने बताया कि कठिन चीवरदान समारोह में लाओस, वियतनाम, श्रीलंका, थाईलैंड सहित कई देशों के बौद्ध धर्मगुरु शामिल हुए. लगभग 150 बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवर दान दिया गया है. उन्होंने कहा कि बारिश के मौसम में 3 महीने तक बौद्ध भिक्षु एक ही जगह पर रहकर पूजा-पाठ करते हैं. इस दौरान वे कहीं भी भ्रमण नहीं करते हैं. बारिश का महीना बीत जाने के बाद बौद्ध भिक्षु को चीवर देने की परंपरा रही है.

Intro:विभिन्न देशों के बौद्ध धर्म गुरुओं और लामाओ के बीच दिया गया कठिन चीवरदान,
विभिन्न देशों के लगभग 150 बौद्ध श्रद्धालु हुए शामिल,
बौद्ध परंपरा के अनुसार की गई विशेष पूजा-अर्चना।



Body:गया: भगवान बुद्ध की पावन ज्ञानबूमि बोधगया स्थित लाओस देश की मॉनेस्ट्री में आज कठिन चीवरदान समारोह का आयोजन किया गया। इस दौरान बौद्ध भिक्षुओं ने विशेष रूप से मोनेस्ट्री के प्रांगण में भगवान बुद्ध की मूर्ति के समक्ष विशेष रूप से पूजा अर्चना की। इस दौरान बस बौद्ध भिक्षुओं को कठिन चीवर (यानी कि बौद्ध भिक्खुओं को पहनने जे लिए गेरुआ रंग का कपड़ा) दान स्वरूप दिया गया।
लाओस मोनेस्ट्री के प्रभारी भंते साईं साना ने बताया कि वर्षावास के बाद बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवरदान करने की परंपरा है। यही चीवर पहनकर बौद्ध भिक्षु पूरे साल प्रवचन एवं एवं मेडिटेशन करते हैं। चीवरदान बौद्धिस्टो के लिए काफी पवित्र परंपरा रही है। बौद्ध परंपरा के अनुसार आज यहां विशेष रूप से पूजा की गई और बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवरदान दिया गया।
वहीं लाओस मॉनेस्ट्री के केयरटेकर संजय कुमार ने बताया कि कठिन चीवरदान समारोह में लाओस, वियतनाम, श्रीलंका, थाईलैंड सहित कई देशों के बौद्ध धर्मगुरु एवं लामा शामिल हुए हैं। लगभग 150 बौद्ध भिक्षुओं के बीच चीवरदान दिया गया है। उन्होंने कहा कि बरसात के मौसम में 3 माह तक बौद्ध भिक्षु एक ही जगह पर रहकर पूजापाठ करते हैं। इस दौरान वे कहीं भी भ्रमण नहीं करते हैं। वर्षावास बीत जाने के बाद बौद्ध भिक्षु को चीवर देने की परंपरा रही है। इसी परंपरा का आज यहां निर्वहन किया जा रहा है।

बाइट- भंते साई साना, प्रभारी, लाओस मोनेस्ट्री।
बाइट- संजय कुमार, केयरटेकर, लाओस मोनेस्ट्री।

रिपोर्ट- प्रदीप कुमार सिंह
गया।



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