ETV Bharat / state

सूखने की कगार पर है ये ब्रिटिशकालीन तालाब, भीषण गर्मी में पानी के लिए भटक रहे लोग - gaya

इस तालाब की मिट्टी से यहां के राजा और रानी नहाते थे. इसके पानी से हजारों लोग जीवन यापन करते थे.

ब्रिटिशकालीन तालाब
author img

By

Published : Apr 24, 2019, 12:43 PM IST

गयाः गर्मी की तपिश लोगों को तड़पा रही है, साथ ही ऐतिहासिक महत्व वाले तालाब को भी सुखा रही है. गया के इस ऐतिहासिक तालाब की मिट्टी से राजा और रानी नहाते थे. इसके पानी से हजारों लोग जीवन यापन करते थे. लेकिन बोधगया के इटला गांव का ब्रिटिशकालीन तालाब अब सूख चुका है. भुमिगत जल का लेबल भी तेजी से घट रहा है. वहीं, ग्रामीण पानी के लिए परेशान हो कर रहे हैं.

तालाब के निर्माण होने की तारीख तो किसी को नहीं पता, लेकिन इसके महत्व और विशेषताएं ग्रामीणों को खूब पता है. पांच एकड़ में फैला तालाब अतिक्रमण की वजह से तीन एकड़ में सिकुड़ गया है. सालों नहीं सूखने वाले तालाब का इतिहास टिकारी के राजा, उपचार, पूजा और खाने से जुड़ा हुआ है. इतने महत्व वाला तालाब जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के बेरुख रवैया से अपना अस्तित्व खो रहा है.

सूखा हुआ ब्रिटिशकालीन तालाब

ब्रिटिश काल में हुआ था निर्माण
ग्रामीण बताते हैं तारीख तो मुझे नहीं पता पर ये मालूम है ब्रिटिश काल में इसका निर्माण हुआ था. इसकी मिट्टी की बड़ी महत्ता है. इसके मिट्टी से आप नहा सकते हैं. ये चिकनी मिट्टी है. टिकारी के महल में यहां से मिट्टी जाती थी. वहां राजा, रानी और उनके परिवार इसकी मिट्टी से नहाते थे. एक ग्रामीण ने बताया कि तालाब की मिट्टी से दांत दर्द ठीक हो जाता है. सात दिन लगातार इसकी मिट्टी से आप सुबह मुंह धोएंगे तो आपको दांतों की समस्या से निदान मिल जाएगा.

नहीं हो पाती खेतों में सिंचाई
साथ ही टिकारी किला के साथ ही पंचायत के ग्यारह गांव में यहां से दाल बनाने के लिए पानी का उपयोग होता था. तालाब के पानी से दाल जल्दी और स्वादिष्ट बनती थी. वर्ष के दोनों छठ पूजा में कई गावों से लोग यहां अर्ध्य देने आते थे. गर्मी के दिन में पंचायत के सभी गांव के लोग यहां से पीने के लिए पानी जरूर ले जाते थे. इस तालाब से 500 एकड़ खेत में सिंचाई होती थी. इस वर्ष सिंचाई भी नहीं हुई.

दर्जनों चापाकल हैं खराब
गांव में सरकार की योजना तो पहुंची है. लेकिन सभी जरूरतमंद के दरवाजे तक नहीं पहुंची है. यहां दर्जनों चापाकल बनाए गए. लेकिन पानी दो ही चापाकल देता है. पीएचईडी विभाग से पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था की गई थी. साल बीतते ही वो भी बन्द हो गया. नल जल योजना का बोरिंग भी भूमिगत जलस्तर घटने से दम तोड़ चुका है.
500 घर की आबादी वाला इस ईरला गांव के लोगों की मांग है कि इस तालाब की उड़ाही कराई जाए, इसमें बोरिंग लगाकर पानी भरा जाए. जिससे जलस्तर में बढ़ोतरी हो. जानवर के पीने का साधन तालाब था. तालाब के सूखने से वो भी इधर-उधर पानी के तलाश में घूम रहे हैं.

वार्ड सदस्य ने क्या कहा
ईरला पंचायत की वार्ड सदस्य बताती है कि मैं हर जगह गुहार लगा चुकी हों. लेकिन आज तक योजना गांव तक नहीं पहुंची. मेरे घर में चापाकल है लेकिन वो बन्द हो गया है. मैं खुद दूसरे के यहां पानी लाने जाती हूं. बीडीओ को कहते हैं तो मुखिया के पास भेजते हैं मुखिया के पास आते हैं तो वो टालमटोल करते हैं.

गयाः गर्मी की तपिश लोगों को तड़पा रही है, साथ ही ऐतिहासिक महत्व वाले तालाब को भी सुखा रही है. गया के इस ऐतिहासिक तालाब की मिट्टी से राजा और रानी नहाते थे. इसके पानी से हजारों लोग जीवन यापन करते थे. लेकिन बोधगया के इटला गांव का ब्रिटिशकालीन तालाब अब सूख चुका है. भुमिगत जल का लेबल भी तेजी से घट रहा है. वहीं, ग्रामीण पानी के लिए परेशान हो कर रहे हैं.

तालाब के निर्माण होने की तारीख तो किसी को नहीं पता, लेकिन इसके महत्व और विशेषताएं ग्रामीणों को खूब पता है. पांच एकड़ में फैला तालाब अतिक्रमण की वजह से तीन एकड़ में सिकुड़ गया है. सालों नहीं सूखने वाले तालाब का इतिहास टिकारी के राजा, उपचार, पूजा और खाने से जुड़ा हुआ है. इतने महत्व वाला तालाब जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के बेरुख रवैया से अपना अस्तित्व खो रहा है.

सूखा हुआ ब्रिटिशकालीन तालाब

ब्रिटिश काल में हुआ था निर्माण
ग्रामीण बताते हैं तारीख तो मुझे नहीं पता पर ये मालूम है ब्रिटिश काल में इसका निर्माण हुआ था. इसकी मिट्टी की बड़ी महत्ता है. इसके मिट्टी से आप नहा सकते हैं. ये चिकनी मिट्टी है. टिकारी के महल में यहां से मिट्टी जाती थी. वहां राजा, रानी और उनके परिवार इसकी मिट्टी से नहाते थे. एक ग्रामीण ने बताया कि तालाब की मिट्टी से दांत दर्द ठीक हो जाता है. सात दिन लगातार इसकी मिट्टी से आप सुबह मुंह धोएंगे तो आपको दांतों की समस्या से निदान मिल जाएगा.

नहीं हो पाती खेतों में सिंचाई
साथ ही टिकारी किला के साथ ही पंचायत के ग्यारह गांव में यहां से दाल बनाने के लिए पानी का उपयोग होता था. तालाब के पानी से दाल जल्दी और स्वादिष्ट बनती थी. वर्ष के दोनों छठ पूजा में कई गावों से लोग यहां अर्ध्य देने आते थे. गर्मी के दिन में पंचायत के सभी गांव के लोग यहां से पीने के लिए पानी जरूर ले जाते थे. इस तालाब से 500 एकड़ खेत में सिंचाई होती थी. इस वर्ष सिंचाई भी नहीं हुई.

दर्जनों चापाकल हैं खराब
गांव में सरकार की योजना तो पहुंची है. लेकिन सभी जरूरतमंद के दरवाजे तक नहीं पहुंची है. यहां दर्जनों चापाकल बनाए गए. लेकिन पानी दो ही चापाकल देता है. पीएचईडी विभाग से पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था की गई थी. साल बीतते ही वो भी बन्द हो गया. नल जल योजना का बोरिंग भी भूमिगत जलस्तर घटने से दम तोड़ चुका है.
500 घर की आबादी वाला इस ईरला गांव के लोगों की मांग है कि इस तालाब की उड़ाही कराई जाए, इसमें बोरिंग लगाकर पानी भरा जाए. जिससे जलस्तर में बढ़ोतरी हो. जानवर के पीने का साधन तालाब था. तालाब के सूखने से वो भी इधर-उधर पानी के तलाश में घूम रहे हैं.

वार्ड सदस्य ने क्या कहा
ईरला पंचायत की वार्ड सदस्य बताती है कि मैं हर जगह गुहार लगा चुकी हों. लेकिन आज तक योजना गांव तक नहीं पहुंची. मेरे घर में चापाकल है लेकिन वो बन्द हो गया है. मैं खुद दूसरे के यहां पानी लाने जाती हूं. बीडीओ को कहते हैं तो मुखिया के पास भेजते हैं मुखिया के पास आते हैं तो वो टालमटोल करते हैं.

Intro:गर्मी के तपसी लोगो को प्यासे तड़पा रहा है साथ ही ऐतिहासिक महत्व वाला तालाब को सुखा रहा है। जिस तालाब के मिट्टी से राजा और रानी नहाते थे। जिसके पानी से हजारो लोग जीवन यापन करते थे। गर्मी की तपसी से बोधगया के इटला गाँव का ब्रिटिशकालीन तालाब को सुखा दिया है। भूमीगत जल का लेबल तेजी से घट रहा है। ग्रामीण पानी के लिए त्राहि त्राहि कर रहे हैं।


Body:तालाब के इतिहास में इसके निर्माण होने का तारीख तो किसी को नही पता , लेकिन इसके महत्व और विशेषता ग्रामीण को पता है। पांच एकड़ में फैला तालाब अतिक्रमण के वजह से तीन एकड़ में सिकुड़ गया है। सालो न सूखने वाला तालाब का इतिहास टिकारी के राजा , उपचार, पूजा और खाना से जुड़ा हुआ है। इतने महत्व वाला तालाब जनप्रतिनिधियों और प्रशासन के बेरुख रवैया से अपना अस्तित्व खो रहा है।

ग्रामीण बताते हैं तारीख तो मुझे नही पता पर ये मालूम है ब्रिटिश काल मे इसका निर्माण हुआ था। इसके मिट्टी की बड़ी महता है इसके मिट्टी से आप नहा सकते हैं। ये चिकना मिट्टी है। टिकारी के महल में यहां से मिट्टी जाता था। वहां राजा ,रानी और उनके परिवार इसके मिट्टी से नहाते थे।

एक ग्रामीण ने बताया तालाब के मिट्टी से दांत दर्द ठीक हो जाता है। सात दिन लगातार इसके मिट्टी से आप सुबह मुँह धोएंगे तो आपको दांतो के समस्या से निदान मिल जाएगा। साथ ही टिकारी किला के साथ ही पंचायत के ग्यारह गाँव मे यहां से दाल बनाने के लिए पानी का उपयोग होता था। तालाब के पानी से दाल जल्दी और स्वादिष्ट बनता था।

वर्ष के दोनो छठ पूजा में व्रती अर्ध्य देती , कई गाँवो से लोग यहां अर्ध्य देने आते थे। तालाब गन्दगी और पानी सूखने के वजह से नही आते हैं। गर्मी के दिन में पंचायत के सभी गांव के लोग यहां से पानी पीने के लिए जरूर ले जाते थे।

गाँव मे सरकार की योजना तो पहुची है पर सभी जरूरतमंद के दरवाजे तक नही पहुँचा है। चापाकल दर्जनों सरकार ने दिया पर पानी दो चापाकल देता है। पीएचईडी विभाग से पेयजल आपूर्ति का व्यवस्था किया गया था साल बीते ही वो भी बन्द हो गया। गाँव के कुछ इलाकों में नल जल योजना से पानी पहुँचा है। नल जल योजना का बोरिंग भी भूमिगत जलस्तर घटने से दम तोड़ दिया है।


Conclusion:500 घर के आबादी वाला बोधगया प्रखंड के ईरला गाँव के ग्रामीण का मांग से इस तालाब का उड़ाही किया जाए, इसमें बोरिंग लगाकर पानी भरा जाए । जिससे जलस्तर में बढ़ोतरी होगा। इस तालाब से 500 एकड़ में खेत मे सिचाई होता था इस वर्ष सिचाई भी नही हुआ। जानवर के पीने का साधन तालाब था तालाब के सूखने से वो भी इधर उधर पानी के तलाश में घूम रहे हैं।

ईरला पंचायत के वार्ड सदस्य बताती है मैं हर दरवाजा ओर दस्तक दे चुकी हुई , लेकिन आज तक योजना गाँव तक नही पहुँचा। मेरे घर मे चापाकल है वो बन्द हो गया है। मैं खुद दूसरे यहां पानी लाने जाती हूँ। बीडीओ को कहते हैं तो मुखिया के पास भेजते हैं मुखिया के पास आते हैं तो वो टालमटोल करते हैं।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.