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मोक्षनगरी गया के आचार्यों ने सूर्यग्रहण से बचाव के बताए उपाय

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Published : Jun 21, 2020, 12:42 PM IST

आचार्यों ने बताया कि भगवान वेद व्यासजी ने परम हितकारी ये वचन कहे हैं, 'सामान्य दिन से सूर्यग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) दस लाख गुणा, यदि गंगाजल पास में हो तो सूर्यग्रहण में 10 करोड़ गुणा फलदायी होता है'

आचार्यों
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गया: आज इस साल का सबसे बड़ा सूर्यग्रहण है. सनातन धर्म में सूर्यग्रहण का बड़ा महत्व है. इसका वैज्ञानिक महत्व के साथ ही धार्मिक आस्था भी है. गया में स्थित विष्णुपद मंदिर के निकट वैदिक मंत्रालय के स्वामी रामाचार्य और राजाचार्य ने सूर्यग्रहण के दौरान बचाव के उपाय बताएं.

आचार्यों ने बताया कि सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल मिलता है. श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत (5 से 10 ग्राम) का स्पर्श करके ' ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहण शुद्धि होने पर उस घृत को पी लें. ऐसा करने से वो मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है.

सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए. बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं. ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक 'अरुन्तुद' नरक में वास करता है. सूतक से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसी-पत्र डाल के रखें, ताकि सूतक काल में उसे उपयोग में ला सकें. ग्रहणकाल में रखे गये पानी का उपयोग ग्रहण के बाद नहीं करना चाहिए, किंतु जिन्हें ये सम्भव न हो वे उपरोक्तानुसार कुशा आदि डालकर रखे पानी को उपयोग में ला सकते हैं.

अन्न या जल नहीं लेना चाहिए
ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते. पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए. ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए. ग्रहण पूरा होने पर स्नान के बाद सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर अर्घ्य दे कर भोजन करना चाहिए.

समुद्र का जल पवित्र माना जाता है
ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए और स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए. स्त्रियां सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं. ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए. ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ ही प्रयोग करे. निकाले हुए जल की अपेक्षा जमीन में भरा पानी का, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है.

कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से पुण्य प्राप्त होता है. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए. बाल और वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए, दंतधावन नहीं करना चाहिए. ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन ये सब कार्य वर्जित हैं. ग्रहण के समय कोई भी शुभ और नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए.

गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष सावधानी
ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है. गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए. भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी ये वचन कहे हैं, 'सामान्य दिन से सूर्यग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) दस लाख गुणा, यदि गंगाजल पास में हो तो सूर्यग्रहण में 10 करोड़ गुणा फलदायी होता है'

सूर्य ग्रहण संबंधी शंका- समाधान
शंका : ग्रहण के सूतक काल में सोना चाहिए या नहीं ?
समाधान : सो सकते हैं लेकिन चूंकि सोकर तुरंत उठने के बाद जल-पान, लघुशंका-शौच आदि की स्वाभाविक प्रवृत्ति की आवश्यकता पड़ती है, अतः ग्रहण प्रारम्भ होने के करीब 4 घंटें पहले उठ जाना चाहिए. जिससे लघुशंका-शौच आदि की आवश्यकता होने पर इनसे निवृत्त हो सके, जिससे ग्रहणकाल में समस्या न आए.

शंका : सूतक काल में खाने का त्याग करना है तो पानी पी सकते हैं या नहीं ?
समाधान : इसमें अलग-अलग विचारकों का अलग-अलग मत है. कुछ जानकार लोगों का कहना है कि चूंकि सूतक का समय-अवधि अधिक होने से 12 घंटें का सूतक और लगभग 3.5 घंटें ग्रहण का समय टोटल 15.5 घंटे बिना जल-पान का रहना सामान्य तौर पर सबके लिए सम्भव नहीं है. इसलिए सूतक काल में सूतक लगने के पहले जल में तिल या कुशा डालकर रखना चाहिए और सूतक के दौरान प्यास लगने पर वहीं जल पीना चाहिए. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जल-पान के बाद 2 से 4 घंटों के अंदर लघुशंका की प्रवृत्ति होती है. इसलिए ग्रहण प्रारम्भ होने के 4 घंटे पहले ही जलपान करने से भी बचना चाहिए.

शंका : सूतक में स्नान, पेशाब & शौच कर सकते हैं या नहीं ?
समाधान : कर सकते हैं.

शंका : ग्रहणकाल में धूप, दीप, अगरबत्ती, कपूर जला सकते हैं या नहीं ?
समाधान : जला सकते हैं.

शंका : ब्राह्मीघृत कब, कैसे एवं उसकी मात्रा एक व्यक्ति के लिए कितनी लेनी है ?
समाधान : ग्रहणकाल पूरा होने पर स्नान आदि से शुद्ध होने के बाद 6 से 12 ग्राम घृत का सेवन करके ऊपर से गर्मपानी पी लेना चाहिए. शेष बचा ब्राह्मी घृत प्रतिदिन सुबह खाली पेट इसी विधि से 6 से 12 ग्राम ले सकते हैं.

शंका : ग्रहणकाल के दौरान अध्ययन कर सकते हैं क्या ?
समाधान : बिल्कुल नहीं. नारद पुराण के अनुसार - ‘‘चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के दिन, उत्तरायण और दक्षिणायन प्रारम्भ होने के दिन कभी अध्ययन न करें. अनध्याय (न पढ़ने के दिनों में) के इन सब समयों में जो अध्ययन करते हैं, उन मूढ़ पुरुषों की संतति, बुद्धि, यश, लक्ष्मी, आयु, बल तथा आरोग्य का साक्षात् यमराज नाश करते हैं.’

गया: आज इस साल का सबसे बड़ा सूर्यग्रहण है. सनातन धर्म में सूर्यग्रहण का बड़ा महत्व है. इसका वैज्ञानिक महत्व के साथ ही धार्मिक आस्था भी है. गया में स्थित विष्णुपद मंदिर के निकट वैदिक मंत्रालय के स्वामी रामाचार्य और राजाचार्य ने सूर्यग्रहण के दौरान बचाव के उपाय बताएं.

आचार्यों ने बताया कि सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल मिलता है. श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत (5 से 10 ग्राम) का स्पर्श करके ' ॐ नमो नारायणाय' मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहण शुद्धि होने पर उस घृत को पी लें. ऐसा करने से वो मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है.

सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए. बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं. ग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक 'अरुन्तुद' नरक में वास करता है. सूतक से पहले पानी में कुशा, तिल या तुलसी-पत्र डाल के रखें, ताकि सूतक काल में उसे उपयोग में ला सकें. ग्रहणकाल में रखे गये पानी का उपयोग ग्रहण के बाद नहीं करना चाहिए, किंतु जिन्हें ये सम्भव न हो वे उपरोक्तानुसार कुशा आदि डालकर रखे पानी को उपयोग में ला सकते हैं.

अन्न या जल नहीं लेना चाहिए
ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते. पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए. ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए. ग्रहण पूरा होने पर स्नान के बाद सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो उसका शुद्ध बिम्ब देखकर अर्घ्य दे कर भोजन करना चाहिए.

समुद्र का जल पवित्र माना जाता है
ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए और स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए. स्त्रियां सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं. ग्रहण के स्नान में कोई मंत्र नहीं बोलना चाहिए. ग्रहण के स्नान में गरम जल की अपेक्षा ठंडा जल, ठंडे जल में भी दूसरे के हाथ से निकाले हुए जल की अपेक्षा अपने हाथ से निकाला हुआ ही प्रयोग करे. निकाले हुए जल की अपेक्षा जमीन में भरा पानी का, भरे हुए की अपेक्षा बहता हुआ, बहते हुए की अपेक्षा सरोवर का, सरोवर की अपेक्षा नदी का, अन्य नदियों की अपेक्षा गंगा का और गंगा की अपेक्षा भी समुद्र का जल पवित्र माना जाता है.

कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरतमंदों को वस्त्रदान से पुण्य प्राप्त होता है. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए. बाल और वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहिए, दंतधावन नहीं करना चाहिए. ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल-मूत्र का त्याग, मैथुन और भोजन ये सब कार्य वर्जित हैं. ग्रहण के समय कोई भी शुभ और नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए.

गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष सावधानी
ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है. गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए. भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी ये वचन कहे हैं, 'सामान्य दिन से सूर्यग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) दस लाख गुणा, यदि गंगाजल पास में हो तो सूर्यग्रहण में 10 करोड़ गुणा फलदायी होता है'

सूर्य ग्रहण संबंधी शंका- समाधान
शंका : ग्रहण के सूतक काल में सोना चाहिए या नहीं ?
समाधान : सो सकते हैं लेकिन चूंकि सोकर तुरंत उठने के बाद जल-पान, लघुशंका-शौच आदि की स्वाभाविक प्रवृत्ति की आवश्यकता पड़ती है, अतः ग्रहण प्रारम्भ होने के करीब 4 घंटें पहले उठ जाना चाहिए. जिससे लघुशंका-शौच आदि की आवश्यकता होने पर इनसे निवृत्त हो सके, जिससे ग्रहणकाल में समस्या न आए.

शंका : सूतक काल में खाने का त्याग करना है तो पानी पी सकते हैं या नहीं ?
समाधान : इसमें अलग-अलग विचारकों का अलग-अलग मत है. कुछ जानकार लोगों का कहना है कि चूंकि सूतक का समय-अवधि अधिक होने से 12 घंटें का सूतक और लगभग 3.5 घंटें ग्रहण का समय टोटल 15.5 घंटे बिना जल-पान का रहना सामान्य तौर पर सबके लिए सम्भव नहीं है. इसलिए सूतक काल में सूतक लगने के पहले जल में तिल या कुशा डालकर रखना चाहिए और सूतक के दौरान प्यास लगने पर वहीं जल पीना चाहिए. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जल-पान के बाद 2 से 4 घंटों के अंदर लघुशंका की प्रवृत्ति होती है. इसलिए ग्रहण प्रारम्भ होने के 4 घंटे पहले ही जलपान करने से भी बचना चाहिए.

शंका : सूतक में स्नान, पेशाब & शौच कर सकते हैं या नहीं ?
समाधान : कर सकते हैं.

शंका : ग्रहणकाल में धूप, दीप, अगरबत्ती, कपूर जला सकते हैं या नहीं ?
समाधान : जला सकते हैं.

शंका : ब्राह्मीघृत कब, कैसे एवं उसकी मात्रा एक व्यक्ति के लिए कितनी लेनी है ?
समाधान : ग्रहणकाल पूरा होने पर स्नान आदि से शुद्ध होने के बाद 6 से 12 ग्राम घृत का सेवन करके ऊपर से गर्मपानी पी लेना चाहिए. शेष बचा ब्राह्मी घृत प्रतिदिन सुबह खाली पेट इसी विधि से 6 से 12 ग्राम ले सकते हैं.

शंका : ग्रहणकाल के दौरान अध्ययन कर सकते हैं क्या ?
समाधान : बिल्कुल नहीं. नारद पुराण के अनुसार - ‘‘चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के दिन, उत्तरायण और दक्षिणायन प्रारम्भ होने के दिन कभी अध्ययन न करें. अनध्याय (न पढ़ने के दिनों में) के इन सब समयों में जो अध्ययन करते हैं, उन मूढ़ पुरुषों की संतति, बुद्धि, यश, लक्ष्मी, आयु, बल तथा आरोग्य का साक्षात् यमराज नाश करते हैं.’

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