गया: बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. पितृ पक्ष मेला में अब तक करीब 7 लाख से अधिक तीर्थयात्री पहुंच चुके हैं. तीर्थ यात्रियों के आने का सिलसिला अब भी जारी है. गया जी धाम पहुंचे पिंडदानी अपने पितरों के मोक्ष की कामना के निमित्त पिंडदान का कर्मकांड कर रहे हैं. इस क्रम में पितृ पक्ष मेले के नौवें दिन विष्णुपद और यहां स्थित स्तंभ रूपी वेदियों में पिंडदान करने का विधान है. इन वेदियों के देव परिधि की मान्यता पुराण शास्त्रों में लिखी गई है. मान्यता है कि यहां पिंडदान से पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति हो जाती है.
स्तंभ रूपी वेदियों में पिंडदान का विधान: पितृ पक्ष मेले के नौवें दिन विष्णुपद और स्तंभ रूपी वेेदियों में पिंडदान का विधान है. स्तंभ रूपी वेदियों की भी अलग-अलग मान्यताएं हैं. आश्विन कृष्ण पंचमी से लेकर आश्विन कृष्ण अष्टमी तक विष्णुपद और 16 वेदी के नाम से विख्यात स्तंभ रूपी वेदियों पर पिंडदान का विधान है. मंगलवार को आश्विन कृष्ण अष्टमी है. ऐसे में पिंडदानी विष्णुपद और देव परिधि के रूप में रही सोलह वेदियों में पिंडदान का कर्मकांड करेंगे. फाल्गुनी गंगा स्नान के बाद तीर्थयात्री यहां पहुंचेंगे और पितरों के निमित्त पिंडदान का कर्मकांड करेंगे.
विष्णु लोक को प्राप्त हो जाते हैं पितर: आश्विन कृष्ण पंचमी से आश्विन कृष्ण षष्ठी, आश्विन कृष्ण सप्तमी और आश्विन कृष्ण अष्टमी तक विष्णुपद और 16 वेदियों में पिंडदान होता है. मान्यता है कि यहां पिंडदान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें विष्णु लोक प्राप्त हो जाता है. इस तरह मंगलवार को पितृपक्ष मेले के नौवें दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी होने को लेकर विष्णुपद और 16 वेदी मंडप में पिंडदान का कर्मकांड पिंडदानी करेंगे.
16 स्तंभों में पिंड अर्पित करने का विधान: विष्णुपद मंदिर गर्भगृह के पास ये सोलह वेदियां अलग-अलग भगवान के नाम से हैं. इन वेदियो पर पिंडदान किया जाता है और एक-एक करके सभी सोलह पिंंडवेदियां जो कि स्तंभ रुप में हैं, उस पर पिंड अर्पित किया जाता है. पितरों के मोचमोक्ष कामना को लेकर पिंपिंडदानी सभी 16 स्तंभों में पिंड को चिपकाते या अर्पित करते हैं.
हाथी के आकार में है सोलह वेदी: बताया जाता है कि सोलह वेदी मंडप हाथी के आकार की तरह दिखता है. ऐसे में इस 16 वेदियों का विशेष महत्व है. यहां पिंडदान करने और पिंड अर्पित करने को लेकर मान्यता है कि इससे पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और पितर विष्णु लोक को प्राप्त हो जाते है. सोलह वेदी को देव परिधि भी कहा जाता है.
गया जी आने पर पूर्वजों को स्वर्ग में मिलता है स्थान: पुराण शास्त्रों में वर्णित है कि जो व्यक्ति पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण कर्मकांड के लिए गयाजी धाम यानी की मोक्ष नगरी विष्णु धाम को जाता है. वहां पिंडदान श्राद्ध और तर्पण कर्मकांड से उनके पूर्वजों को स्वर्ग में स्थान मिलता है. पितृ पक्ष के नौवें दिन सोलह वेदियो में पिंडदान करने का विधान है. तीर्थ यात्री यहां आकर भगवान विष्णु सहित विभिन्न भगवानों के नाम से रहे 16 वेदियों का स्मरण करना चाहिए और इसके बाद ही पिंडदान का कर्मकांड करना चाहिए. 16 वेदियों में पिंडदान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है और वे विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं.
यह हैं विष्णुपद की 16 वेदियां: विष्णु पद के 16 वेदियों में कार्तिक पद, दक्षिणाग्नि पद, गार्हपत्यानी पद, आवहनोमग्निपद, संध्याग्नि पद, आवसंध्याग्निपथ, सूर्य पद, चंद्र पद, गणेश पद, उधीचीपद, कण्वपद, मातंगपद, कौचपद, इंद्र पद, अगस्त्य पद और कश्यप पद हैं. इन पिंड वेदियों पर पिंडदानी पहुंचकर पिंडदान का कर्मकांड करते हैं.
धार्मिक विधान के अनुसार करें पिंडदान: वहीं, पिंडदानी को पितृपक्ष के दौरान पूरे विधि विधान से पितरों के मोक्ष के निमित्त पिंडदान का कर्मकांड करना चाहिए. पितृपक्ष अवधि तक लहसुन, प्याज, सत्तू, मसूर की दाल का सेवन वर्जित माना गया है. गया श्राद्ध त्रैपाक्षिक यानी की पितृ पक्ष की पूरी अवधि तक, 8 दिन, 5 दिन, 3 दिन और 1 दिन का भी होता है. धार्मिक विधि विधान और नियमों के अनुसार पिंड दान करना चाहिए.
ये भी पढ़ें:
क्या है 'प्रेतशिला पर्वत' का रहस्य, रात को सुनाई देती हैं तरह-तरह की आवाजें - Pitru Paksha 2024