मोतिहारी: किसी ने सच ही कहा है कि 'कामयाबी का तो जुनून होना चाहिए, फिर मुश्किलों की क्या औकात', इन पंक्तियों को पूर्वी चंपारण जिले के ढाका की रहने वाली जैनब बेगम ने अपने जज्बे से सही साबित कर दिया है. कोरोना संक्रमण को लेकर वर्ष 2020 में हुए लॉकडाउन पीरियड में जैनब और उनके पिता की नौकरी छूट गई. तब उसने मात्र 400 रुपए की पूंजी से मशरूम की खेती (Mushroom Farming) शुरू की और आज उसकी पूंजी 5 लाख रुपए की हो गई है. वो कहती है कि मशरूम की खेती ने जिंदगी बदल दी (Life Changed Due to Mushroom Cultivation) है.
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लॉकडाउन में छूटी थी नौकरी: जैनब भावुक होकर कहती है कि कोरोना काल में जब पिता के नौकरी के साथ मेरी नौकरी चली गई, तब परिवार के भरण पोषण को लेकर काफी निराश और चिंतित हो चली थी. रोजगार की तलाश कर ही रही थी. अचानक कुछ लोगों ने मशरूम की खेती की बात बतायी. जिसके बाद मैंने इसे अपनाया और आज मुझे लगता है कि ये सफल रहा. जैनब को सरकार के बागवानी मिशन के तहत जिला और राज्य स्तर पर कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. वो कहती है कि यूट्यूब पर मशरूम के बारे में देखकर उसकी खेती करने की सोची.उसने दूसरे से 400 रुपए लेकर मशरूम की खेती शुरू की थी.
दो किलो बीज से शुरू की खेती: जैनब मशरूम के बारे में लोगों की बातों को सुनकर वह पूसा चली गई और वहां से मशरूम की खेती के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी ली. पूसा से उसने मशरूम की तस्वीरों को मोबाइल में कैद कर लिया और ऑनलाइन मशरूम की खेती के बारे में सीखा. फिर वह पटना आई और पटना में उसने दो किलोग्राम मिल्की मशरूम का बीज खरीदा, क्योंकि जून-जुलाई में मिल्की मशरूम की खेती होती है. वह दस बैग में मशरूम का स्पॉन लगाई. उसके बाद उसने 100 बैग में मशरूम लगाया. मार्केटिंग भी उसने खुद की और अब उसके पास मशरूम के लिए व्यापारी खुद संपर्क करते हैं.
दूसरों को देती है प्रशिक्षण: जैनब ने कुछ लोगों को अपने मशरूम की खेती में रोजगार दिया है और वह अपने काम को बढ़ाना चाहती है ताकि अधिक लोगों को वह रोजगार दे सके. हालांकि, बिना किसी सरकारी मदद के खुद की मेहनत की बदौलत 'मशरूम गर्ल' बनी जैनब की कहानी महिलाओं को प्रेरित करने वाली है. जैनब के अनुसार वह मशरुम की खेती के अलावा उसका कई उत्पाद बनाती है. वह मशरुम का चॉकलेट, अचार और अदौरी के अलावा कई चीजों को बनाती है, जिसका बाजार में काफी डिमांड है.
पड़ोसी देश में बाजार की तलाश: जैनब बेगम कहती है कि मशरूम की खेती में ही वह अपना भविष्य देख रही है. साथ ही बरोजगार युवकों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए वह अपने काम को बढ़ाने में लगी है. जैनब ने पड़ोसी देश नेपाल में भी अपने उत्पादित मशरूम को बेचने के लिए बाजार तलाशना शुरू कर दिया है. वक्त के पहिए को अपनी कर्मठता और हठ से जैनब अपने हिसाब से मोड़ रही है, जो उसकी सफलता की गाड़ी के पहिया बने हुए हैं.
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