मोतिहारी: अनलॉक-1.0 में जनजीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है. लॉकडाउन के कारण काम-धंधा बंद हो जाने से रोज कमाने-खाने वाले लोगों की परेशानी काफी बढ़ गई. प्रवासी मजदूरों के परिवारों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा. लिहाजा, सरकार ने गरीब जरूरतमंद लोगों का पेट भरने के लिए राशन कार्डधारियों को मुफ्त अनाज देने की घोषणा की.
लेकिन आरोप है कि उस घोषणा से सरकारी कागजों का ही पेट भर रहा हैं, गरीब जरूरतमंद लोगों की थालियां खाली थी और अभी भी खाली ही है. पूर्वी चंपारण के कोटवा प्रखंड स्थित मच्छरगावां पंचायत के वार्ड नंबर नौ और ग्यारह में रहने वाले अनुसूचित समाज के लगभग दौ सौ परिवारों का यही हाल है.
'राशन कार्ड रहने के बावजूद अनाज नहीं मिलता है'
दिव्यांग वृद्धा गुली देवी की सिर्फ तीन बेटियां हैं, जिनकी शादी भी हो चुकी है. घर में कमानेवाला कोई नहीं पति की भी मौत हो चुकी है. घर में राशन कार्ड है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें अनाज नहीं मिलता. अपनी देखभाल के लिए उन्होंने अपनी नवासी को अपने पास रखा है. उनकी नवासी ही किसी के खेत से कमाकर लाती हैं, तो दोनों का पेट चलता हैं. लॉकडाउन के दौरान कभी-कभार रिश्तेदार खाना दे जाते थे, उसी की बदौलत ही दोनों का गुजारा होता रहा, और अभी भी लगभग वही हाल है.वहीं हाल जलकालो देवी का भी हैं. उन्होंने बताया कि होली के समय तो फिर भी राशन मिला था, लेकिन उसके बाद से अबतक अनाज नहीं मिला है. जिस किसान के खेतों में काम करती थीं उन्हीं की मेहरबानी से गुजर-बसर चल रहा है.
'डीलर के पास दौड़ते-दौड़ते थक गए, अनाज नहीं मिला'
अपने दरवाजे पर बैठे गणेश दास ने बताया कि वह अनाज लेने डीलर के पास गए, तो डीलर ने पंचायत के दूसरे डीलर के पास भेज दिया. दूसरे डीलर ने भी अनाज देने से मना कर दिया.पीडीएस डीलर यहां से वहां दौड़ाते रहे, यही करते हुए दुकानदारों ने थका दिया. इससे परेशान होकर वह वापस अनाज लेने नहीं गए. अनुसूचित इलाके के रहने वाले महेश महतो ने सरकारी व्यवस्था की पोल खोलते हुए कहा कि गरीब आदमी क्या कर सकता है, डीलर राशन नहीं देता है. हाकिम उनकी सुनते नहीं हैं, जिस कारण वह कभी खाते हैं और कभी भूखे पेट सो जाते हैं. वहीं दया देवी बताती है कि उनके पति दूसरे राज्य में लॉकडाउन में फंसे हैं. यहां वे अपने बच्चों के साथ गांव में रह रहीं हैं. भूख तो बर्दाश्त कर लेंगी, लेकिन बच्चों के पेट को भरने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है.
'जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक लगा चुके हैं गुहार'
अनुसूचित समाज के लगभग 200 परिवारों की परेशानियां देख स्थानीय किसानों ने अपने स्तर से उनकी मदद की. साथ हीं सरकारी खाद्यान्न से वंचित इन परिवारों के दर्द को जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक पहुंचाया, फिर भी कोई सुनवाई नहीं हुई. ग्रामीण मनोज कुमार सिंह ने बताया कि गरीबों की हकमारी के लिए अधिकारी जनवितरण प्रणाली में टैगिंग का खेल खेलते हैं, जिससे कालाबाजारियों की चांदी कटती है. उन्होंने बताया कि वे आपूर्त्ति पदाधिकारी से लेकर स्थानीय विधायक तक इन लोगों की परेशानी सुना चुके हैं, लेकिन किसी ने इनकी सुध नहीं ली है.