मोतिहारी: पूर्वी चंपारण जिले में नदियों का जलस्तर अब सामान्य हो गया है, लेकिन बाढ़ का पानी जमा रहने की वजह से जिले के कई गांव अभी भी डूबे हुए हैं. जिस कारण बाढ़ पीड़ितों की शरण स्थली जिले की कई सड़क बने हुए हैं. मोतिहारी-पकड़ीदयाल रोड में मधुबनी घाट के पास सड़क के दोनों तरफ बाढ़ पीड़ित टेंट लगाकर रह रहे हैं.
तेज धूप में प्लास्टिक के टेंट के अंदर रहना मुश्किल हो रहा है, जबकि बारिश होने पर टेंट से टपकता पानी परेशान करता है. वहीं, सड़क की दोनों तरफ लगे टेंट के बीच से गुजरने वाली गाड़ियां खतरे को आमंत्रण देती है.
हर साल झेलते हैं बाढ़ की त्रासदी
सिकरहना नदी के तांडव से बेघर हो चुके ग्रामीण मदन सहनी ने बताया कि हर साल बाढ़ का दंश झेलते हैं और गांव से पलायन कर सड़क पर शरण लेना पड़ता है. इस साल फिर से सड़क पर जिंदगी गुजारना पड़ रहा है. सरकार की तरफ से आधा बाढ़ पीड़ित को ही प्लास्टिक दिया गया. ऐसे में बाकि बाढ़ पीड़ितों ने खुद से प्लास्टिक का व्यवस्था किया है. मदन सहनी ने बताया कि उनलोगों को सुखा राशन भी नहीं मिला है. बाढ़ पीड़ितों को मिलने वाला छह हजार अनुदान कुछ लोगों के खाता में आया है जबकि कुछ लोग अब भी इससे वंचित हैं.
तटबंध का काम अब तक है अधूरा
बता दें कि हर साल सिकरहना नदी के कारण बाढ़ का पानी तबाही मचाता है. इसके कारण लोगों को पलायन करना पड़ता है. बरदाहा पंचायत के लोगों की माने तों नदी का तटबंध कुछ दूर तक अब तक अधूरा है. अगर इसे पूरा कर दिया जाता और धनौती नदी के मुहाने पर सुलिस गेट बना दिया जाए तो बाढ़ से बहुत हद तक निजात मिल जाएगा. धनौती नदी बरदाहां गांव से थोड़ी दूरी पर आगे जाकर सिकरहना नदी में मिलती है. लेकिन जब सिकरहना नदी उफान पर होती है तब उसका पानी उल्टा धनौती नदी के पानी के साथ इन इलाकों में तबाही मचाती है.
भगवान के नाम पर कट रही जिंदगी
मोतिहारी-पकड़ीदयाल सड़क के दोनो किनारे रह रहे लोगों ने सरकार से मिलने वाली राहत की आस भी अब छोड़ दी है. बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि राहत तो दूर की बात है उन्हे देखने अब तक कोई नहीं आया है. किसी को कोई मतलब नहीं है कि वे लोग किस हाल में जिंदगी गुजार रहे हैं. ग्रामीण मुनिलाल सहनी ने बताया कि बाढ़ राहत के नाम पर उन्हे कुछ नहीं मिला है. किसी तरह भगवान के नाम पर जिंदगी कट रही है.