मोतिहारी: सूर्योपासना के महापर्व छठ में पवित्रता के लिहाज से मिट्टी से बने समानों का उपयोग किया जाता है. इस पर्व में मिट्टी के बने हाथी, घड़ा, तौला, दीया, कुरेसर, ढ़कन की भी जरुरत होती है. जिसे गन्ना के बने कोशी के बीच में रखकर पूजा किया जाता है.
मिलता है उचित दाम
छठ पर्व में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के सामान बनाने वाला कुम्हार कम कीमत पाकर भी खुश रहते हैं. इस महापर्व में होने वाले खर्च को देखते हुए व्रतियों से कम पैसा मिलने पर भी ये लोग ऐतराज नहीं करते हैं. इसके भी कई कारण हैं. छठ के नाम पर बने मिट्टी के चीजों की बिक्री न होने पर इन सामानों को बेचने के लिए एक साल तक फिर इंतजार करना पड़ता है.
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..अब तो मजबूरी है
मिट्टी का काम करने वाले मदन पंडित और रामप्रवेश पंडित बताते हैं कि मिट्टी महंगे हो चुके हैं. मिट्टी और जलावन के कारण छठ सामग्री को बनाने की लागत भी निकाल पाना मुश्किल हो गया है. लेकिन पुश्तैनी पेशा होने के कारण वे लोग इसे बनाते हैं. सरकारी सुविधाओ से महरुम ये लोग पेट की आग बुझाने के लिए सपरिवार इसमें लगे रहते हैं.
कम पैसे पाकर भी हैं संतुष्ट
बहरहाल शासन-प्रशासन से उपेक्षित मिट्टी के काम करने वालों ने इन लोगों से अपेक्षा करना ही छोड़ दिया है. वे अपने पुश्तैनी काम को अपनी जिद्द के बदौलत रोटी कमाने का साधन बनाये हुए हैं. इसके बावजूद भी इस छठ के मौके पर मिट्टी के समानों के बदले कम पैसे पाकर भी संतुष्ट रहने वाले ये लोग यहीं समझते हैं कि छठी मईया कभी-न-कभी इनके ऊपर भी कृपा करेंगी.